बुधवार, 30 दिसंबर 2015

अखंड भारत का नहीं महासंघ का सपना देखें


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पाकिस्तान की आकस्मिक यात्रा के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रवक्ता एवं वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने यह आशा प्रगट की है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक हो जाएंगे। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि उनका यह विचार पार्टी लाइन पर नहीं बल्कि आरएसएस के सदस्य के तौर पर है। उन्होंने यह भी कहा कि अखंड भारत का सपना युद्ध से नहीं आम सहमति से ही संभव हो सकता है।
इस संबंध में मैं अपना एक अनुभव पाठकों के साथ बांटना चाहूंगा। वर्ष 2013 में मैं पाकिस्तान की यात्रा पर गया था। यात्रा का उद्देश्य करांची में एक समारोह में शामिल होना था। समारोह में मुझे एक अमरीकी संगठन द्वारा शांति और समरसता के लिए दिए गए पुरस्कार को स्वीकार करना था। करांची के कार्यक्रम के बाद मुझे अनेक शहरों और संस्थाओं में जाने का मौका मिला। मुझे करांची विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करने के लिए निमंत्रित किया गया था। विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए मैंने एक सुझाव दिया और उसके बारे में उनकी राय मांगी। मैंने उन्हें बताया कि प्रसिद्ध अमरीकी समाजसुधारक डाॅ. मार्टिन लूथर किंग ‘जूनियर’ अपने भाषण के बीच में यह कहते थे कि ‘‘आई हेव ए ड्रीम’’ (अर्थात मेरा एक सपना है)। इसी तरह पाकिस्तान की यात्रा के दौरान मैंने एक सपना देखा है। मेरा सपना है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक कनफेडरेशन (महासंघ) में शामिल हो जाएं।
इस कनफेडरेशन का स्वरूप यूरोपियन यूनियन के समान होगा अर्थात तीनों देश पूर्ण रूप से स्वतंत्र होंगे, उनके अपने संविधान होंगे, अपनी शासन व्यवस्था होगी, अपनी सेना, न्यायपालिका आदि होगी, उनकी अपनी संसद होगी। परंतु तीनों देशों में आने-जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा की आवश्यकता नहीं होगी, यूरोप की तर्ज पर तीनों देशों की मिलीजुली एक संसद होगी, यूरो-डालर के समान कामन करंसी भी होगी। तीनों के बीच में शांति एवं युद्ध विरोधी संधि होगी। कनफेडरेशन का यह स्वरूप बताने के बाद  मैंने छात्र-छात्राओं की राय पूछी। मैंने कहा कि यदि वे मेरी योजना से सहमत हैं तो एक नहीं दोनों हाथों को उठाकर समर्थन करें। यदि नहीं तो दोनों हाथ उठाकर अपनी असहमति प्रगट करें। सभाग्रह में करीब 500 छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। सभी ने एक स्वर से ताली बजाई और प्रस्ताव का स्वागत किया।
मैं इस घटना का उल्लेख इसलिए कर रहा हूं कि अखंड भारत के स्थान पर हमें तीनों देशों के महासंघ का सपना देखना चाहिए। आज जो परिस्थितियां हैं उनके चलते न तो पाकिस्तान और ना ही बांग्लादेश अखंड भारत के निर्माण के लिए तैयार होगा। यदि हम तीनों देशों के विलय के बाद बनें देश का नाम अखंड भारत रखेंगे तो यह पाकिस्तान और बांग्लादेश को पसंद नहीं होगा। अखंड भारत से ऐसी बू आएगी कि पाकिस्तान और बांग्लादेश ने अपना अस्तित्व खो दिया है और वे अखंड भारत के हिस्से बन गए। इसलिए अखंड भारत की बात करने से काम नहीं चलेगा।
अखंड भारत एक ऐसा प्रस्ताव है जो पाकिस्तान और बांग्लादेश के आम आदमी को कतई पसंद नहीं आएगा। हमारे देश के कुछ चिंतकों ने वर्षों पहले स्वीकार कर लिया है कि भारत के भीतर दो राष्ट्र हैं। ऐसे चिंतकों में वीर सावरकर शामिल हैं। इसमें डाॅ. मुंजे भी शामिल हैं। इन दोनों चिंतकों ने यह दावा किया था कि भारत में एक नहीं दो राष्ट्र हैं। एक राष्ट्र उनका है जिनकी मातृभूमि और धर्मभूमि यहीं है अर्थात भारत में उन्हीं को रहने का अधिकार है जिनका जन्म यहां हुआ है और जो उस धर्म को मानते हैं जो यहीं विकसित हुए हैं। इस परिभाषा के अनुसार सिर्फ हिंदू, बुद्ध, जैन और सिक्ख यहां रह सकते हैं, बाकी नहीं। जब तक राष्ट्र की इस परिभाषा को रद्द नहीं किया जाता, तब तक अखंड भारत की कल्पना साकार नहीं हो सकती।
अखंड भारत उस समय तक संभव नहीं हो सकता जब तक हमारे देश के अनेक संगठन अल्पसंख्यकों की देश के प्रति वफादारी पर शंका करते रहेंगे। जब तक इस तरह की बातें कहीं जाती हैं कि यदि चुनाव में भाजपा हारती है तो पाकिस्तान में जश्न मनेगा। जब तक किसी सीधीसाधी बात करने पर यह कह दिया जाए कि यदि आप ऐसा सोचते हैं तो आप पाकिस्तान चले जाएं, जैसा कि अभी शाहरूख खान और आमिर खान के बारे में कहा गया।
अखंड भारत उस समय तक कैसे संभव होगा जब तक शिवसेना के समान संगठन गुलाम अली के जैसे महान गायक का कार्यक्रम भारत में नहीं होने देंगे। जब तक हमारे देश में पाकिस्तान के खिलाडि़यों को क्रिकेट नहीं खेलने दिया जाएगा। अखंड भारत की कल्पना कैसे साकार हो सकती है जब तक भारत आने वाले प्रत्येक पाकिस्तानी को हम शंका की नज़र से देखेंगे। इसी तरह पाकिस्तान जाने वाले प्रत्येक भारतीय को शंका की नज़र से देखा जाता है।
अखंड भारत का सपना देखने के पहले सांस्कृतिक स्तर पर अनेक कदम उठाने चाहिए, जैसे आज भी पाकिस्तान के अखबार हमें पढ़ने को नहीं मिलते, ना ही हमारे अखबार पाकिस्तानियों को पढ़ने को मिलते हैं। जब तक इस बात की शिकायतें आती रहेंगी कि पाकिस्तान भारतविरोधी आतंकवादियों की शरणस्थली है, जब तक पाकिस्तान यह आरोप लगाता रहेगा कि उनके देश में होने वाली प्रत्येक हिंसक घटना के पीछे हमारी गुप्त एजेन्सी ‘रा’ का हाथ है।
इसलिए यह स्पष्ट है कि आज व्याप्त परिस्थितियों के चलते अखंड भारत का सपना नहीं देखा जा सकता। अखंड भारत के औचित्य को ठहराते हुए यह कहा गया है कि जब जर्मनी एक हो सकता है, जब वियतनाम एक हो सकता है तो भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक क्यों नहीं हो सकते? जर्मनी और वियतनाम के उदाहरण से अखंड भारत की वकालत नहीं की जा सकती। जिन परिस्थितियों में वियतनाम और जर्मनी बांटे गए थे वे पूरी तरह भिन्न थीं। इसके अतिरिक्त जब अखंड भारत की बात की जाती है तो बांग्लादेश और पाकिस्तान के आम नागरिकों के मन में यह शंका होती है कि वास्तव में यह योजना पाकिस्तान और बांग्लादेश को समाप्त करने की योजना है। इसलिए प्रयास कनफेडरेशन बनाने के लिए किए जाएं। इसके लिए वातावरण बनाने का प्रयास शनैः शनैः किया जाना चाहिए। महासंघ बनने से दोनों देशों में रक्षा के ऊपर होने वाले व्यय में भारी कटौती होगी। कटौती से बचे आर्थिक साधनों का उपयोग गरीबी, भुखमरी, चिकित्सा और शिक्षा पर किया जा सकेगा। ऐसा करने से तीनों देशों में भारी भरकम प्रगति होगी।
-एल.एस. हरदेनिया

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