बुधवार, 30 दिसंबर 2015

ध्वंस के अपराधियों को सजा कराओ

बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद, ध्वंस करने वाले लोगों पर रायबरेली की सीबीआई न्यायालय में मामला विचाराधीन है. वहीँ, संपत्ति किसकी है उसका वाद माननीय उच्चतम नयायालय में लंबित है लेकिन केंद्र सरकार के मंत्री आये दिन उस विवादित स्थल पर निर्माण करने की बात करते रहते हैं और अब उनकी देखा-देखी दूसरा पक्ष भी निर्माण की बात करने लगा है. सरकार के मंत्रियों व सत्तारूढ़ दल के गैर जिम्मेदाराना बयानों के कारण देश की एकता और अखंडता को गंभीर खतरा हो सकता है. जिस तरह से सांप्रदायिक आधार पर सोची-समझी रणनीति के तहत विभाजन कराया जा रहा है. वह देश के संविधान की प्रस्तावना में लिखित शब्द " धर्मनिरपेक्षता" की भावना का स्पष्ट उल्लंघन है. सरकार की अगर मंशा नहीं है तो कैसे शिलापूजन और निर्माण के लिए पत्थर तराशे जा रहे हैं. क्या सरकार को मालूम है उच्चतम न्यायलय का फैसला उन्ही पक्ष में आएगा. सरकार को चाहिए की अविलम्ब ध्वंस के जिम्मेदार अपराधियों को न्यायलय से प्राथमिकता के आधार पर सजा कराये. कोई भी मंत्री ध्वंस के मामले में अपराधियों को सजा कराने की बात नहीं करता है.
                    आज ही केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने कहा है कि उनकी सरकार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन वह या तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगी या मंदिर निर्माण पर परस्पर सहमति पर पहुंचेगी. इससे पहले भी अयोध्या में साधू-संतों ने विवादित परिसर के पास शिलापूजन किया था. सत्ता रूढ़ दल व उसके सहयोगी संगठन एक-एक शिला का पूजन कर विवादित परिसर पर निर्माण कार्य करने की उद्घोषनाएं करते रहते हैं और सामाजिक वातावरण में सांप्रदायिक सद्भाव को जबरदस्त खतरे में डालते हैं जब सरकारें ही देश के संविधान और कानून का पालन नहीं करेंगी तो जनता से कैसे उम्मीद कैसे की जा सकती है की वह उसका पालन करे. भारतीय लोकतंत्र में यह अद्भुत द्रश्य जनता के सामने परिलक्षित हो रहा है.
                     मजेदार बात तो यह है कि इस सरकार का एक मंत्री उत्तेजक बयान देकर चुप होता है तो दूसरा मंत्री यह बताने लगता है कि उस मंत्री का बयान उसका व्यक्तिगत विचार है. तबतक सहयोगी संगठन का कोई फायर ब्रांड नेता नया सवाल खड़ा कर देता है. विकास की बात महंगाई की बात, बेरोजगारी कैसे दूर हो इन सवालों की कोई चर्चा या समाधान की दिशा में प्रयास नहीं हो रहा है. कभी-कभी यह लगता है कि प्रधानमंत्री का मंत्रिमंडल के सदस्यों के ऊपर नियंत्रण ही नहीं रहा है या वह जानबूझकर मंत्रिमंडल के सदस्यों और दल व सहयोगी संगठनो से बहुसंख्यक आबादी की भावनाओं को उभार कर उनको अपने पक्ष के मतदाता के रूप में बदल रहे हैं. देश व उसके संविधान से कोई लेना-देना नहीं है. 

सुमन

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