सोमवार, 18 अप्रैल 2016

कालियाचक तथ्यान्वेषण रपट (भाग-2)




(पिछले अंक से जारी........)
रैली
तीन जनवरी को सुबह आठ बजे से रैली के लिए लोग इकट्ठे होना शुरू हो गए। इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल थे। स्पष्ट है कि अगर आयोजकों का इरादा हिंसा भड़काने का होता तो वे महिलाओं और बच्चों को इकट्ठा नहीं करते। कई महिलाएं और बच्चे सजे धजे हुए थे और नए कपड़े पहने थे।
एक हिंदू प्रत्यक्षदर्शी , जिसका घर कालियाचक पुलिस स्टेशन के नज़दीक है, ने बताया कि रैली करीब सुबह साढ़े नौ बजे शुरू हुई। रैली में शामिल लोग कमलेश  तिवारी के पुतले लिए हुए थे और ‘‘कमलेश  तिवारी को फांसी दो’’, ‘‘नरेन्द्र मोदी जवाब दो’’ व ‘‘नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर’’ के नारे लगा रहे थे। उसने यह भी बताया कि रैली में पाकिस्तान समर्थक नारे नहीं लगाए गए।
लगभग साढ़े दस बजे, 50 से 70 नए लोग रैली की भीड़ में शामिल हो गए। उनके हाथों में लाठियां, पेट्रोल बम और अन्य हथियार थे। उन्होंने कालियाचक पुलिस थाने की चहारदीवारी को तोड़ दिया और अंदर घुसकर थाने में तोड़फोड़ की और थाना प्रभारी राम साहा के साथ दुव्र्यवहार किया। उसके बाद, थाने के प्रांगण में खड़े वाहनों में आग लगा दी गई। ऐसा लगता है कि जिन लोगांे ने थाने पर हमला किया, वे मुआजामपुर के थे और असादुल्ला बिस्बास की माफिया गैंग के सदस्य थे। हमलावर केवल लूटपाट करने वहां आए थे। थाने के अंदर स्थित आरएएफ की बैरक में आग लगा दी गई। गुंडों ने पुलिस स्टेशन के भीतर पेट्रोल बम फेंके। पुलिस थाने पर पत्थर भी फेंके गए, जिनमें से कई आसपास के घरों पर भी लगे। पुलिस थाने के प्रांगण में एक छोटा-सा मंदिर भी है। मंदिर के दरवाजे का ताला तोड़ दिया गया। शायद ऐसा करने वालों का इरादा मंदिर में रखे बर्तनों को चुराना था। प्रताप तिवारी, जो कि उस मंदिर में लगभग 30 साल से पुजारी हैं, ने बताया कि ताला तोड़ा गया परंतु मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया।
प्रत्यक्षदर्शीयों के अनुसार, गुंडों ने पुलिस द्वारा जब्त बियर और खांसी की दवाई की बोतलें, जो थाने में रखीं थीं, खोलकर पी लीं। आसपास की नालियों में बड़ी संख्या में खाली बोतलें पड़ी देखी गईं। कुछ मुसलमानों ने इस लूटपाट को रोकने का प्रयास भी किया परंतु वे उसमें सफल नहीं हो सके क्योंकि हमलावर, पेशेवर अपराधी थे। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि रैली के अगले दिन जब वह स्थानीय मुसलमानों से मिला तो उन्होंने इस बात पर पछतावा व्यक्त किया कि उनकी रैली के दौरान इस तरह की घटना हुई। अब दोनों समुदायों के बीच रिष्ते सौहार्दपूर्ण और सामान्य हैं।
पुलिस स्टेशन के पीछे एक हिंदू मोहल्ला है, जिसमें सड़क के किनारे एक मंदिर बना हुआ है। हमलावरों ने मंदिर की बागड़ की लकडि़यां निकालनी शुरू कीं। उसी समय वहां कुछ हिंदू लड़के आ गए जिन्होंने उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोशिश की। इसके बाद दोनों गुट भिड़ गए। इसी दौरान तनमोय तिवारी नामक एक लड़के के पैर में गोली लगी। तनमोय अब कलकत्ता के एक अस्पताल में इलाज करवा रहा है। हमने मालदा के एडीएम से जब इस बाबत पूछा तो उन्होंने इस बात से इंकार किया कि रैली के दौरन किसी भी पक्ष ने गोलियां चलाईं। हमलावरों ने आसपास की कुछ छोटी दुकानों में भी आग लगा दी और उनका सामान लूट लिया।


घटना का सांप्रदायिकीकरण
भाजपा और हिंदू राष्ट्रवादियों ने रैली के दौरान हुई हिंसा के लिए मुसलमानों को जि़म्मेदार ठहराया और यह कहा कि वे कानून का सम्मान नहीं करते और कट्टरवादी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सत्ताधारी टीएमसी व अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियां, वोट बैंक की राजनीति के चलते, मुसलमानों को संरक्षण दे रही हैं। ये तत्व समाज का सांप्रदायिक आधार पर धु्रवीकरण कर हिंदू वोट हासिल करना चाहते हैं। असल में यह हमला एक माफिया द्वारा केवल पुलिस स्टेशन पर किया गया था जिसका उद्देष्य उनके या उनके आकाआंे के खिलाफ दायर प्रकरणों से संबंधित दस्तावेज नष्ट करना था।
हिंदू राष्ट्रवादी पार्टियों ने कई तरह की अफवाहें फैलाईं और झूठ बोले ताकि हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काया जा सके। विहिप के एक स्थानीय नेता गौतम सरकार ने एक पर्चा बांटा जिसमें यह कहा गया कि मुसलमान, हिंदू महिलाओं को परेशान करते हैं। पर्चे में मंदिरों को हुए नुकसान का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया जबकि हमने पाया कि मंदिरों को कोई नुकसान नहीं हुआ है। भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रचार किया कि कालियाचक की घटना की धर्मनिरपेक्षतावादियों ने इसलिए निंदा नहीं की क्योंकि हमलावर मुसलमान थे।
जो लोग कालियाचक नहीं गए हैं और जिन्होंने पीडि़तों से बातचीत नहीं की है उन्हें ऐसा लग सकता है कि यह हमला एक बहुत बड़ी घटना थी जो कि पष्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था के चरमराने की द्योतक है और टीएमसी सरकार द्वारा मुसलमानों के तुष्टीकरण का नतीजा है। इस घटना को दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक हिंसा बताया गया। मुसलमानों के बारे में यह कहा गया कि उन्होंने मंदिरों को नष्ट किया, पुजारी की हत्या की और हिंदू घरों में आग लगाई। इसके विपरीत, हमने पाया कि मंदिरों को छुआ तक नहीं गया है, पुजारी को एक खरोंच तक नहीं आई है और आसपास के घरों को कोई नुकसान नहीं हुआ है।
हिंदू पीडि़तों से चर्चा करने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हंै कि यह हमला न तो बहुत बड़ा था और ना ही सांप्रदायिक। अपराधियों और असामाजिक तत्वों ने पुलिस थाने के प्रांगण में खड़े कुछ वाहनों को आग के हवाले कर दिया, आरएएफ के बैरक को जलाकर खाक कर दिया और थाने के दस्तावेज जला दिए। किसी भी प्रकार की हिंसा निंदनीय है। परंतु भारत में पुलिस और पुलिस थानों पर हमले होते रहे हैं। जब भी किसी समूह, संगठन या समुदाय को सरकार से कोई शिकायत होती है तब उसके गुस्से का शिकार पुलिस की गाडि़यां, सरकारी बसें, पुलिसकर्मी और पुलिस स्टेशन बनते हैं। गुजरात में 1984-85 के आरक्षण-विरोधी आंदोलन, हरियाणा के जाट आंदोलन, राजस्थान के गुज्जर आंदोलन और गुजरात के हालिया पाटीदार आंदोलन के दौरान भी पुलिसकर्मियों और पुलिस थानों पर हमले हुए थे।
एडवोकेट असित बरम चैधरी से बातचीत
एक स्थानीय वकील, असित बरम चैधरी, जिनसे हमने मुलाकात की, ने पूरे मुस्लिम समुदाय को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि इस समुदाय के सदस्य अपराधियों को संरक्षण देते हैं और उनकी मानसिकता अलगाववादी है। उन्होंने कहा कि पहले भारत से बड़ी संख्या में गायें बांग्लादेश निर्यात की जाती थीं। जब भारत सरकार ने इस पर रोक लगा दी तब मुसलमानों ने नकली नोट छापने का काम शुरू कर दिया। जब इसके विरूद्ध भी कार्यवाही हुई तो वे अफीम उगाने लगे। उनका कहना था कि अफीम की खेती हथियारबंद लोगों द्वारा बहुत सुनियोजित तरीके से कराई जाती है और इसके व्यापार पर दाउद इब्राहिम का नियंत्रण है। उन्होंने यह भी दावा किया कि दस साल पहले इस क्षेत्र में ‘मुगलिस्तान’ के पोस्टर चिपकाए गए थे जिनमें पष्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार को ‘मुगलिस्तान’ का भाग बताया गया था। उनका यह भी कहना था कि मुसलमान हमेशा अपने आप को मुसलमान पहले और भारतीय बाद में मानते हैं।
टीएमसी नेता मोजाहर हुसैन से बातचीत
मोजाहर हुसैन ने हमें बताया कि पुलिस स्टेशन पर हमला करने वाले अपराधी थे जिनका रैली से कोई लेनादेना नहीं था। उन्होंने तो केवल रैली के आयोजन का इस्तेमाल अपने उद्देष्य को पूरा करने के लिए किया। हमले का उद्देष्य केवल थाने के दस्तावेज जलाना था। उन्होंने यह भी कहा कि अगर पुलिस उन्हें घटना का वीडियो फुटेज दिखाए तो वे हमले में षामिल लोगों की पहचान करने के लिए तैयार हैं ताकि उन्हें उपयुक्त सज़ा दिलवाई जा सके।
एडीएम ने हमें बताया कि कालियाचक में सब कुछ ठीक है और यह भी कि यह हमला सांप्रदायिक नहीं था। उन्होंने जोर देकर कहा कि इलाके में अब शांति है और जिन भी लोगों ने हिंसा की है, उनके विरूद्ध उपयुक्त कानूनी कार्यवाही की जा रही है और आगे भी की जाएगी।
निष्कर्ष
तथ्यान्वेषण दल निम्न निष्कर्षों पर पहुंचा।
1. पुलिस स्टेशन पर हमला, रैली के आयोजकों द्वारा प्रायोजित नहीं था।
2. अपराधियों ने रैली का लाभ उठाते हुए पुलिस थाने पर हमला किया। उनका निशाना हिंदू समुदाय नहीं बल्कि पुलिस थाना और वहां रखे दस्तावेज और रिकार्ड थे। आरएएफ के बैरक भी उनके निशाने पर थे। शायद वे उनकी गैरकानूनी गतिविधियों पर नियंत्रण करने की कोशिश से नाराज़ थे।
3. इस पूरे घटनाक्रम में मीडिया का रोल अत्यंत निंदनीय रहा। कालियाचक पुलिस स्टेशन पर हमला
अपराधियों ने किया था, जो संयोगवश मुसलमान थे। परंतु इसका राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह प्रचार-प्रसार किया गया मानो मुसलमानों ने सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया हो। इस मामले में जी-न्यूज़ की भूमिका बहुत खराब थी।
4. मुसलमानों के दो संगठनों, एहले सुनातुल जमात व इदारा-ए-शरिया के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण रैली आयोजित की गई जिसके नतीजे में कालियाचक पुलिस थाने पर हमला हो सका। दोनों संगठन इलाके के मुसलमानों मंे अपनी पैठ बढ़ाना चाहते हैं। अगर हमें सांप्रदायिक राजनीति को पराजित करना है तो इस तरह की प्रतिस्पर्धा से बचा जाना चाहिए। मुसलमानों को धैर्य रखना चाहिए क्योंकि वे जितने ज्यादा उत्तेजित होंगे और हिंसा करेंगे, हिंदू राष्ट्रवादियों को उनके खिलाफ प्रचार करने का उतना ही अधिक मौका मिलेगा। अगर किसी व्यक्ति विशेष  ने पवित्र पैगम्बर के संबंध में कोई अपमानजनक टिप्पणी की भी हो तो उसका मुकाबला कानूनी रास्ते से किया जाना चाहिए ना कि सड़कों पर हिंसा करके। कब जब मुस्लिम संगठन, पवित्र पैगम्बर के प्रति प्रेम और श्रद्धा के कारण नहीं वरन अपने राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए इस तरह के विरोध प्रदर्शनों  का आयोजन करते हैं।
5. हमने यह पाया कि हिंदू अपने घरों में सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। यहां तक कि तनमोय तिवारी के परिवार वालों के मन में भी मुसलमानों के प्रति कोई कटुता नहीं है।
6. पुलिस स्टेशन पर हमला न तो सांप्रदायिक था और ना ही इससे सांप्रदायिक धु्रवीकरण हुआ। 
7. इलाके में शांति को बढ़ावा देने और दोनों समुदायों के आपसी रिष्तों को मजबूत करने के लिए सकारात्मक प्रयासों की आवष्यकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस सिलसिले में न तो टीएमसी और ना ही सीपीएम ने कोई कदम उठाए। टीएमसी और सीपीएम के धर्मनिरपेक्ष हिंदू नेता, शांति स्थापना के लिए पहल कर सकते थे परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। हिंदू राष्ट्रवादी, कालियाचक थाने पर हमले की घटना का इस्तेमाल मुसलमानों का दानवीकरण करने और हिंदुओं के मन में उनके प्रति भय उत्पन्न करने के लिए कर रहे हैं। ऐसा बताया जा रहा है कि मानो हिंसक, अपराधी, आतंकवादी व राष्ट्रविरोधी मुसलमान, पूरे हिंदू समुदाय को अपना शत्रु मानते हैं। इस तरह के दुष्प्रचार का धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक शक्तियों द्वारा मुुकाबला किया जाना चाहिए और हिंदू राष्ट्रवादियों के असली चेहरे को बेनकाब किया जाना चाहिए।
8. इलाके के मुसलमानों का यह कर्तव्य था कि जिन लोगों की दुकानें जलाई गईं हैं वे उनसे मिलते और उन्हें प्रतिकात्मक रूप से थोड़ा-बहुत मुआवजा अपनी ओर से देते। परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। उनका यह कहना है कि वे हिंसा के पीडि़तों से इसलिए नहीं मिले क्योंकि उन्हें डर था कि वे लोग उन्हें हिंसा के लिए दोषी ठहराएंगे।
9. जिन छोटे दुकानदारों का नुकसान हुआ है, सरकार को उन्हें उचित मुआवजा देना चाहिए।
-इरफान इंजीनियर

2 टिप्‍पणियां:

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