मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

मैं तुम्हारी "शहीद की बेटी" नहीं हूँ

एक प्रश्न, जिसका उत्तर मै कुछ हफ़्तों पहले बिना किसी संकोच या सावधानी के अपने हंसमुख अंदाज़ में दे सकती थी . अब, मुझे यकीन नही है.

क्या मैं वो हूँ जैसा ट्रोल मुझे सोचते हैं ?
क्या मैं वो हूँ जैसा मीडिया मुझे चित्रित करता है ?
क्या मैं वो हूँ जैसा सेलिब्रिटीज मुझे सोचते हैं ?
नहीं, मैं उनमें से कोई भी नही हो सकती. जैसी लड़की आपने अपने टीवी पर देखा है, हाथों में तख्ती पकडे हुए, भौहें तनी हुई. छोटे गोल सेलफोन कैमरे के लेंस पर टकटकी लगाये, निश्चित रूप से मेरे जैसी दिखती है. उसके विचारों की तीव्रता जो चित्र में परिलक्षित होती है निश्चित रूप से उसमें मेरा असर है. वह ज्वलंत दिखती है. मैं उससे सम्बंधित हूँ लेकिन ब्रेकिंग न्यूज़ हैडलाइन कुछ अलग ही कहानी बताती है. वह हेडलाइंस मैं नही हूँ.

शहीद की बेटी
शहीद की बेटी
शहीद की बेटी

मैं अपने पिता की बेटी हूँ. मैं पापा की गुलगुल हूँ. मैं उनकी गुडिया हूँ. मैं दो साल की कलाकार हूँ जो शब्दों को नही समझ सकती लेकिन stick figure को समझ जाती है, जो वह मुझे प्रेषित चिट्ठियों में बना कर भेजते थे. मैं अपनी मम्मी का सिरदर्द हूँ, उनकी स्वछंद, लापरवाह, मूडी बच्ची- उन्ही का प्रतिबिम्ब. मैं अपनी बहन की पॉप संस्कृति की मार्गदर्शक और उसकी झगडालू साथी हूँ. मैं ऐसी भी लडकी हूँ जो लेक्चर के दौरान पहली बेंच पर शिक्षक को दखल देने के इरादे से बैठती है और हरचीज़ या किसी भी चीज़ पर ज्वलंत वाद-विवाद शुरू करती है, इसलिए क्योंकि साहित्य इस तरह से और भी ज्यादा मजेदार है. मेरे दोस्त कुछ-कुछ मेरी तरह के ही हैं, मैं उम्मीद करती हूँ. वे कहते हैं कि मेरा हास्य भाव सूखा है लेकिन कभी-कभी काम करता है (मैं उसके साथ रह सकती हूँ).  किताबें और कवितायेँ मुझे संतुष्टि देते हैं.
एक पुस्तक प्रेमी, घर की लाइब्रेरी हद से ज्यादा भर चुकी है. और पिछले कुछ दिनों से मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि मैं माँ को उनके लैम्प्स और तस्वीरों को हटाने के लिए कैसे मनाऊँ जिससे एक नई अलमारी बनाने के लिए जगह बन सके.
मैं एक आदर्शवादी हूँ. एक खिलाडी, एक युद्ध की मुखालफत करने वाली. मैं आपकी गुस्सा, प्रतिशोधी, युद्ध की मांग करने वाली बेचारी नही हूँ, जैसा आप आशा व्यक्त कर रहे हैं . मैं युद्ध नही चाहती हूँ क्योंकि मैं इसकी कीमत जानती हूँ. यह बहुत महंगा पड़ता है. मेरा विश्वास करो मुझे बेहतर पता है क्योंकि मैंने इसे हर रोज़ का भुगता है अब भी करती हूँ। इसके लिए कोई बिल नहीं है, शायद अगर ऐसा होता है तो, कुछ लोग मुझसे इतनी नफरत नहीं करेंगे. नंबर इसे और अधिक विश्वसनीय बनाते हैं.
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और हाँ! उसके सामने हमारी पीड़ा का मूल्य क्या है?  अगर 51% लोगों को लगता है कि मैं गलत हूँ, तो मुझे गलत होना चाहिए। उस स्थिति में, भगवान जानता है कि मेरे दिमाग को किसने प्रदूषित किया है.
पापा मेरे साथ यहाँ नहीं हैं. वह 18 साल से नहीं हैं. मेरी 200 शब्दों की सीमित शब्दावली ने 16 अगस्त 1999 के बाद कुछ नए शब्द सीखे थे – मृत्यु, युद्ध और पाकिस्तान. स्पष्ट कारणों से मुझे वास्तव में उन की लक्षित परिभाषा को समझने में कुछ साल लग गए। मैं कहती हूं लक्षित क्योंकि ईमानदारी से क्या किसी को भी उसके सच्चे अर्थ का पता है? मैं इसे जीती हूँ और मैं अभी भी इसे समझने की कोशिश कर रही हूँ, खासकर दुनिया के तात्पर्य में।
मेरे पिता शहीद हैं लेकिन मैं उनको इस तरह से नही जानती हूँ. मैं उसे उस आदमी के रूप में जानती हूँ, जो बड़े कार्गो जैकेट पहनता थे, जिसकी जेबें मिठाइयों से भरी हुई होती थीं. जब भी वे मेरे माथे को चूमते थे उनकी दाढ़ी मेरी नाक पर खरोंच जाती थी. शिक्षक जिसने मुझे सिखाया कैसे स्ट्रॉ से पीते हैं और मुझे च्युइंग गम से मिलवाया. मैं उन्हें अपने पिता के रूप में जानती हूँ. मैं उन्हें उस कंधे के रूप में भी जानती हूँ जिसे मैं अपनी बाँहों से लिपटती थी इस आशा में कि मैं उन्हें कसकर पकडूँ तो वह नही जायेंगे. वह गए. वह कभी वापस नही आये.
मेरे पिता एक शहीद हैं। मैं उनकी बेटी हूँ.
परंतु।

मैं तुम्हारी "शहीद की बेटी" नहीं हूँ. 

गुरमेहर के ब्लॉग से 
अनुवादक : अमर प्रताप सिंह

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