लाल सलाम क्या है? लाल सलाम क्रांतिकारी अभिवादन है। कोई
व्यवस्था जब मनुष्यों का शोषण चौतरफा करने लग जाती है तो उसे बदल देना
नितांत आवश्यक हो जाता है। कुछ लोग यह जिम्मेदारी उठाते हैं तो अपने
साथियों में प्रेरणा भरने के लिए लाल सलाम करते हैं। जैसे हिन्दू-जयराम,
श्रीराम, सीताराम, जयश्रीकृष्ण, राधे-राधे, मुसलमान-अस्सलाम वालेकुम,
आंबेडकरवादी-नमो बुद्धाय, जय भीम, देश के रक्षक-जय हिन्द, देश के आजादी
आंदोलन के समय आंदोलनकारी-भारत माता की जय, बंदेमातरम् इत्यादि करते हैं।
कम्युनिष्ट के अभिवादन का तरीका लाल सलाम होता है।
प्रश्न है सिस्टम नष्ट कैसे किया जाय? सिस्टम नष्ट करने में कौन-कौन हमारे शत्रु हैं और कौन दुश्मन? इन्हें चिन्हित करना पड़ेगा। इस सिस्टम के बाद कौन सा सिस्टम लागू किया जाय? राम के समय में राम राज की कल्पना की गई किन्तु वह सामंती व्यवस्था थी और उसी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्वीकार किया जो कई दूसरे वर्गों के लिए उचित नहीं होगा। पूँजीवाद वर्तमान में चल रहा है। साम्राज्यवाद पूँजीवाद का ही विकृत रूप है जो भूमंडलीकरण के बहाने एकाधिकारी पूँजी को जन्म देकर पल्लवित-पोषित कर रहा है। इस व्यवस्था में दुनिया के 100 लोगों के पास पूरी संपत्ति का 99 प्रतिशत है तथा 99 प्रतिशत लोग 1 प्रतिशत में गुजर-बसर कर रहे हैं। कुछ लोगों के पास ऐसो आराम बाकी मुफ़लिसी और बदहाली की जिंदगी जिएंगे। समाजवाद नेहरू और आम्बेडकर का सपना था किन्तु वे सरकारी तौर पर उसे लागू करना चाहते थे जो बहुमत होने नहीं देता है। बचा तानाशाही, अब बड़ाई तानाशाही से सभी डरते हैं। साम्यवाद में है सर्वहारा की तानाशाही अर्थात बहुमत की तानाशाही। जो बहुमत के नियंत्रण में रहेगा। आप को ओशो पसंद हैं किन्तु ओशो ने भी कोई व्यवस्था नहीं दी है जिस पर राजकीय व्यवस्था चलाया जा सके। कोई व्यवस्था सोचिए फिर उस पर कार्य किया जाय जिससे कम्युनिस्ट का अत्याचार न हो, मारकाट न हो। जनमत क्या है?
मानवता का विकास ही वर्ण संकरता पर आधारित है। यह गाली नहीं है। गाली लगती जरूर है। गंदे खून के नाते कोई गन्दा नहीं होता वर्ना पूरा रामायण और महाभारत काल के वीर और बुद्दिजीवी सब के सब वर्ण संकर हैं। वर्ण संकरता ही है जो मनुष्य को अपंग होने से बचाता है। रोगी होने से बचाता है। अंधे होने से बचाता है। यह तो खून की सुद्धता है जो अधिक बइमान है। एक ही खून में शादी-ब्याह करिए, देखिए कितनी कमीनी प्रजाति पैदा होती है। ये जो अधिक गंदे लग रहे है, ये शुद्ध खून का नतीजा है। गड़बड़ियां विचारों की भौतिक परिस्थितियों में है।
जय भीम। आप पढ़ते भी हैं और उसे अपने दिल पर भी लेते हैं। दोनों ही स्थितियों में ईमानदार हैं। संस्थागत कमियों के कारन हम लोग क्रियागति परिणति तक नहीं पहुँच पाते हैं। अभी कोई ऐसी पार्टी नहीं है जो क्रान्ति के लिए तैयार हो। सर्वहारा संस्कृति व भीम संस्कृति का आभाव है। क्रान्ति के लिए जनगण में एकरूपता नहीं बन पाई है। क्रान्ति के लिए क्रन्तिकारी सिद्धांत और पार्टी की आवश्यकता है। नौकरी की स्थिति में हम लोग बहुत एक्टिव होकर पार्टिसिपेट नहीं कर सकते हैं। जितना कर सकें उतना प्रयाप्त है।
अब क्राँति की जरूरत नहीं है। जनता का विश्वाश मोदी में जम गया है, अब मोदी समाजवाद लाएंगे। मोदी के समाजवाद से सभी को खुश रहना सीखना होगा। जो क्राँति की बात करेगा वोलार दिया जाएगा। क्राँति में खून बहता है इसलिए मोदी साहब नहीं चाहते हैं कि गरीब खून बहाए। देश-राष्ट्र का विकास होगा तो गरीबों का भी विकास होगा, गरीबी का भी विकास होगा। अब साम्यवादी बदमाशी न करें। बदमाशी करेंगे तो ओलारे जाएंगे। साम्यवादियों के दुर्दिन शुरू। अब भी संभल जाओ साम्यवादियों, समय है। फिर न कहना कि मोदी साहब ने समझाया नहीं।
वैसे भी दलित आम्बेडकर वाली कुछ कर नहीं रहा था। अपनी ढपली-अपनी राग अलाप रहे हैं। जातिप्रथा उन्मूलन के बजाय जाति को दलित मजबूत कर रहा था इसलिए आम्बेडकर दलितों के लिए बेकार हो चुके थे। बहन मायावती ने जाति का ध्रुवीकरण किया। दलित ने उनको सत्ता का स्वाद चखाया परन्तु माया बहन को समाज और आम्बेडकर कम दिखे। उन्हें सत्ता और सर्वजन के गुंडे ही समझ में आए। जनता ने सोचा जब मेरी भी सरकार गुंडों की सरकार है तो किसी की भी सरकार बने, क्या हर्ज है। कोउ होय नृप हमें का हानी।
और ये कम्युनिस्ट एक हो ही नहीं सकते है। किसी को मार्क्स, किसी को लेनिन, किसी को स्टालिन, किसी को माओ, किसी को विनोद मिश्रा, किसी को कानू सान्याल, किसी को चंद्र शेखर, किसी को चाओ मजूमदार पसंद हैं तो फिर मार्क्स का द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और वर्ग-संघर्ष का फार्मूला पर किसी को एक मत होना नहीं है। वर्गीय एकता बनाने से कोई मतलब नहीं। चिंतन की एकरूपता से कोई मतलब नहीं। जनवादी केन्द्रीयता से कोई मतलब नहीं। ऐसी स्थिति में मोदी जी का समरसतावाद और बीजेपी अच्छा है।
जनता खुश है कि देश से काला धन मोदी ने ख़त्म कर दिया। आप इस बात को समझो या न समझो, जनता ने इस बात को समझा, माना और वोट दिया। आप के समझने से क्या होता है। आप जनता को बेवक़ूफ़ कहते रहो। मोदी पर इलज़ाम लगते रहो। फासीवाद की आहट सुनते रहो, क्या मतलब?
-
आर डी आनंद
प्रश्न है सिस्टम नष्ट कैसे किया जाय? सिस्टम नष्ट करने में कौन-कौन हमारे शत्रु हैं और कौन दुश्मन? इन्हें चिन्हित करना पड़ेगा। इस सिस्टम के बाद कौन सा सिस्टम लागू किया जाय? राम के समय में राम राज की कल्पना की गई किन्तु वह सामंती व्यवस्था थी और उसी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्वीकार किया जो कई दूसरे वर्गों के लिए उचित नहीं होगा। पूँजीवाद वर्तमान में चल रहा है। साम्राज्यवाद पूँजीवाद का ही विकृत रूप है जो भूमंडलीकरण के बहाने एकाधिकारी पूँजी को जन्म देकर पल्लवित-पोषित कर रहा है। इस व्यवस्था में दुनिया के 100 लोगों के पास पूरी संपत्ति का 99 प्रतिशत है तथा 99 प्रतिशत लोग 1 प्रतिशत में गुजर-बसर कर रहे हैं। कुछ लोगों के पास ऐसो आराम बाकी मुफ़लिसी और बदहाली की जिंदगी जिएंगे। समाजवाद नेहरू और आम्बेडकर का सपना था किन्तु वे सरकारी तौर पर उसे लागू करना चाहते थे जो बहुमत होने नहीं देता है। बचा तानाशाही, अब बड़ाई तानाशाही से सभी डरते हैं। साम्यवाद में है सर्वहारा की तानाशाही अर्थात बहुमत की तानाशाही। जो बहुमत के नियंत्रण में रहेगा। आप को ओशो पसंद हैं किन्तु ओशो ने भी कोई व्यवस्था नहीं दी है जिस पर राजकीय व्यवस्था चलाया जा सके। कोई व्यवस्था सोचिए फिर उस पर कार्य किया जाय जिससे कम्युनिस्ट का अत्याचार न हो, मारकाट न हो। जनमत क्या है?
मानवता का विकास ही वर्ण संकरता पर आधारित है। यह गाली नहीं है। गाली लगती जरूर है। गंदे खून के नाते कोई गन्दा नहीं होता वर्ना पूरा रामायण और महाभारत काल के वीर और बुद्दिजीवी सब के सब वर्ण संकर हैं। वर्ण संकरता ही है जो मनुष्य को अपंग होने से बचाता है। रोगी होने से बचाता है। अंधे होने से बचाता है। यह तो खून की सुद्धता है जो अधिक बइमान है। एक ही खून में शादी-ब्याह करिए, देखिए कितनी कमीनी प्रजाति पैदा होती है। ये जो अधिक गंदे लग रहे है, ये शुद्ध खून का नतीजा है। गड़बड़ियां विचारों की भौतिक परिस्थितियों में है।
जय भीम। आप पढ़ते भी हैं और उसे अपने दिल पर भी लेते हैं। दोनों ही स्थितियों में ईमानदार हैं। संस्थागत कमियों के कारन हम लोग क्रियागति परिणति तक नहीं पहुँच पाते हैं। अभी कोई ऐसी पार्टी नहीं है जो क्रान्ति के लिए तैयार हो। सर्वहारा संस्कृति व भीम संस्कृति का आभाव है। क्रान्ति के लिए जनगण में एकरूपता नहीं बन पाई है। क्रान्ति के लिए क्रन्तिकारी सिद्धांत और पार्टी की आवश्यकता है। नौकरी की स्थिति में हम लोग बहुत एक्टिव होकर पार्टिसिपेट नहीं कर सकते हैं। जितना कर सकें उतना प्रयाप्त है।
अब क्राँति की जरूरत नहीं है। जनता का विश्वाश मोदी में जम गया है, अब मोदी समाजवाद लाएंगे। मोदी के समाजवाद से सभी को खुश रहना सीखना होगा। जो क्राँति की बात करेगा वोलार दिया जाएगा। क्राँति में खून बहता है इसलिए मोदी साहब नहीं चाहते हैं कि गरीब खून बहाए। देश-राष्ट्र का विकास होगा तो गरीबों का भी विकास होगा, गरीबी का भी विकास होगा। अब साम्यवादी बदमाशी न करें। बदमाशी करेंगे तो ओलारे जाएंगे। साम्यवादियों के दुर्दिन शुरू। अब भी संभल जाओ साम्यवादियों, समय है। फिर न कहना कि मोदी साहब ने समझाया नहीं।
वैसे भी दलित आम्बेडकर वाली कुछ कर नहीं रहा था। अपनी ढपली-अपनी राग अलाप रहे हैं। जातिप्रथा उन्मूलन के बजाय जाति को दलित मजबूत कर रहा था इसलिए आम्बेडकर दलितों के लिए बेकार हो चुके थे। बहन मायावती ने जाति का ध्रुवीकरण किया। दलित ने उनको सत्ता का स्वाद चखाया परन्तु माया बहन को समाज और आम्बेडकर कम दिखे। उन्हें सत्ता और सर्वजन के गुंडे ही समझ में आए। जनता ने सोचा जब मेरी भी सरकार गुंडों की सरकार है तो किसी की भी सरकार बने, क्या हर्ज है। कोउ होय नृप हमें का हानी।
और ये कम्युनिस्ट एक हो ही नहीं सकते है। किसी को मार्क्स, किसी को लेनिन, किसी को स्टालिन, किसी को माओ, किसी को विनोद मिश्रा, किसी को कानू सान्याल, किसी को चंद्र शेखर, किसी को चाओ मजूमदार पसंद हैं तो फिर मार्क्स का द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और वर्ग-संघर्ष का फार्मूला पर किसी को एक मत होना नहीं है। वर्गीय एकता बनाने से कोई मतलब नहीं। चिंतन की एकरूपता से कोई मतलब नहीं। जनवादी केन्द्रीयता से कोई मतलब नहीं। ऐसी स्थिति में मोदी जी का समरसतावाद और बीजेपी अच्छा है।
जनता खुश है कि देश से काला धन मोदी ने ख़त्म कर दिया। आप इस बात को समझो या न समझो, जनता ने इस बात को समझा, माना और वोट दिया। आप के समझने से क्या होता है। आप जनता को बेवक़ूफ़ कहते रहो। मोदी पर इलज़ाम लगते रहो। फासीवाद की आहट सुनते रहो, क्या मतलब?
-
आर डी आनंद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें