रविवार, 1 अप्रैल 2018

देश भक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फाँसी की

साथियों,
    लोकसंघर्ष की ओर से राज्य सम्मेलन की शुभकामनाएँ तथा बधाई। यह सम्मेलन भारत के इतिहास के एक खास मोड़-मुकाम पर हो रहा है। जब दक्षिण पंथी शक्तियाँ देश और दुनिया को मनुष्यता और न्याय को, जनवादी और लोकतांत्रिक मूल्यों को, हमारे और हमारे बच्चों के भविष्य को रौंद रहीं हैं। शोषण और लूट का नंगा नाच तथा अन्याय मानवीय संवेदना पर पहले से ज्यादा हमलावर है तो यहाँ से विचार चिंतन के दो रास्ते बनते हैं। पहला यह कि हम इस आक्रमण का रोना रोएँ, निराश हों, एक दूसरे को लांछित करें तो दूसरा रास्ता है कि हम उन प्रतिरोध तथा परिवर्तन कारी शक्तियों को एक जुट करें, अपने विचार को धार दें तथा इस अवसर का लाभ उठाकर मुँह तोड़ जवाब दें।

    ऐसा नहीं है कि हमारा संघर्ष ‘धीमा पड़’ गया है। ध्यान से देखें तो फासिज्म के विरोध में लड़ी जाने वाली लड़ाई में हमने अग्रिम पंक्ति प्राप्त की है। लेखकों से आरम्भ हुआ प्रतिरोध छात्रों नौजवानों, किसानों के न्यायिक जनान्दोलनों ने कारपोरेट पूँजी तथा फासिज्म के गठबंधन के खिलाफ ढेर सारी जीत हासिल की है। हमने साथी खोये हैं लेकिन छात्रों, नौजवानों की एक बड़ी जमात ने हमारे ऊपर भरोसा जताया है। कैम्पस में हमने निर्णायक संघर्ष छेड़ रखा है।
    यह भी एक अभूतपूर्व समय है जब छोटे-बड़े स्तर पर व्यापक संघर्ष चल रहे हैं। आज इन जनान्दोलनों को सुविचारित दिशा देने, संयुक्त मोर्चा बनाने, देश तथा संविधान बचाने का गुरूतर दायित्व हमारे ऊपर है। इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर शिव मंगल सिंह सुमन की एक कविता याद आ रही है- 

    इतिहास न तुमको माफ करेगा,
    पीढ़िया तुम्हारी करनी पर पछताएँगी
    पूरब की लाली में कालिख पुत जाएगी
    सदियों में क्या ऐसी घड़ियाँ आएँगी
    इसलिए समय से सैलाबों को मत रोको
    हर किरण जिन्दगी के आँगन तक आने दो। 

        इस ऐतिहासिक घड़ी में संघर्ष हमारा मार्ग दर्शक सिद्धांत बनें।      
 -डॉ. राजेश मल्ल 

लोकसंघर्ष पत्रिका मार्च 2018 विशेषांक में प्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं:

Share |