-अरुण माहेश्वरी
किसी भी सामाजिक-राजनीतिक परिघटनाके पीछे कोई एक कारण नहीं होता है । यहजीवन के अनेक कारणों के समुच्चय कापरिणाम होता है । इसे कहते है - कारणों कानानात्व । (Multiplicity of causality)
2014 में मोदी के उत्थान के पीछे एककारण नहीं था । वे मनमोहन सिंह केअतिरिक्त मौन व्यक्तित्व की तुलना मेंअतिरिक्त वाचाल थे । यूपीए-2 के काल मेंआम लोगों के बीच भ्रष्टाचार को लेकर कईकारणों से एक अलग प्रकार की बेचैनी पैदाहो गई थी । अन्ना हज़ारे, अरविंद केजरीवालकी तब दिल्ली में धूम मची थी । लेकिनलाभ मिला मोदी को ।
इसके अतिरिक्त, गुजरात के जनसंहारों केबाद भी वहाँ सत्ता पर बने रहने के कारणलोगों को लगा कि यह आदमी कठिन समयमें भी अर्थ-व्यवस्था की बागडोर थाम सकताहै । गुजरात में पूँजीपतियों के सामूहिकप्रदर्शनों ने इसमें एक बड़ी भूमिका अदा की।
इनके अलावा जादू की छड़ी से देश काकायाकल्प कर देने का मोदी का ताबड़तोड़प्रचार भी एक नये स्तर का था । 2014 मेंमोदी ने शासक कांग्रेस दल से दुगुना सेज़्यादा रुपये बहाये थे ।
मोदी की भारी जीत के बाद कईउदारवादियों ने भी जनतांत्रिक नैतिकता केनाम पर इस उम्मीद में मोदी को मौक़ा देनेकी दलीलें शुरू कर दी थी कि सरकारचलाने की जिम्मेदारी इस ख़तरनाक प्राणीको सभ्यता सिखा देगी।
और देखते-देखते मोदी केंद्र के अलावा अन्यराज्यों में भी छा गये । वे भारतीय जनतंत्रकी राजनीति की एक ख़ास परिघटना बनगये ।
लेकिन सच कहा जाए तो यह कहानीबमुश्किल दो साल चली, और इसी बीच यहसाफ़ देने लगा था कि हर चीज़ की अपनीख़ास तात्विकता होती है । बबूल का बीजबदले हुए मौसम में, कितने ही आनुवंशिकबदलावों से क्यों न गुज़रे, शुद्ध रसीले मीठेआमों का पेड़ पैदा नहीं कर सकता है ।
मोदी के आने के साथ ही बुद्धिजीवियों कीहत्या, उन्हें डराने-धमकाने और प्रैस को पूरीतरह से पालतू कुत्ते में तब्दील करने काडरावना संगठित सिलसिला तो शुरू हो हीगया था । बीफ़ और गोरक्षा के नाम परमुसलमानों को डराने का और लव जिहाद केनाम पर मुसलमानों से संपर्क रखने वालेतमाम लोगों को धमकाने का काम भीपुरज़ोर चलने लगा ।
और तभी, जनता पर मोदी के मूलभूत संघीफ़ासिस्ट विचारों का, गुजरात के जनसंहारवाले हत्यारे अभियान का प्रभाव सबसेप्रकट रूप में पहली बार 8 नवंबर 2016 केदिन सामने आया जब मोदी ने तालियाँबजाते हुए नोटबंदी की घोषणा करके देशभर में पूरी जनता को बदहवास होकर बैंकोंके सामने लाइनों में खड़ा होने, असहाय दशामें रोने-कलपने के लिये उतार दिया । पूरे दोमहीने तक मोदी टेलिविज़न के पर्दे पर रोते-बिलखते लोगों, स्त्रियों, वृद्धजनों, किसानों,मज़दूरों के दुखों पर पूरी अश्लीलता के साथनाचते रहे ।
वह एक अजीब सा समय था । हर रोताहुआ आदमी अन्यों के रूदन को देख करखुद को दिलासा दे रहा था । वह अंदर हीअंदर शायद इस कल्पना से ख़ुश भी था किउसकी तरह ही सारे काला धन वाले भीअपने भाग्य पर रो रहे होंगे ! विपत्ति के कालके एक समताकारी प्रभाव की ख़ुशफ़हमी मेंलोग उस महा ठगी के झटके को झेल गये ।
और कहना न होगा, उसी जन-उद्वेलन कीपरिस्थिति में मोदी ने उत्तर प्रदेश में भी भारीजीत हासिल कर लीं ।
मोदी को खुद को ईश्वर मान लेने के लियेइतना सब काफ़ी था । मार्च 2017 में यूपीके चुनाव हुए । मोदी की अर्थनीति कीअपनी कोई विशेष समझ नहीं थी, लेकिनउसे इस क्षेत्र में अपनी ईश्वरीय शक्ति कापरिचय देना था ! उसने अर्थशास्त्री मनमोहनसिंह की अर्थनीति की किताब से एक पन्नाफाड़ लिया, जीएसटी का पन्ना और उसेअपनी अर्थनीति की एक महान पताका कीतरह लहराते हुए जुलाई 2017 की आधीरात में संसद के संयुक्त सत्र में एक नक़लकिया हुआ पन्ना बिना उसे समझे, ग़लत-सलत ढंग से पढ़ दिया । मोदी-जेटली केहाथ में यूपीए का जीएसटी का अध्याय एकपूरी तरह से बेढंगे दस्तावेज का रूप ले करसामने आया । कहा जा सकता है, जीएसटीकी स्कीम का विकृतिकरण ही उसमें मोदीका मौलिक अवदान था !
लोग अभी तक नोटबंदी के दुखों से उबरे हीनहीं थे कि मोदी के इस नये कारनामे नेउनके ज़ख़्मों पर बुरी तरह से नमक रगड़नेका काम किया । कल-कारख़ाने, ख़ास तौरपर अर्थ-व्यवस्था का अनौपचारिक क्षेत्र पूरीतरह से तबाह हो गया । एक झटके मेंबेरोज़गारी की गति राकेट की गति से बढ़नेलगी । मोदी सत्ता के मद में इतने पागल होगये कि भूखो मर रहे किसानों को सरे आमधमकाने लगे । फ़सल का वाजिब दाममाँगने पर मंदसौर में उन पर गोलियाँ बरसाई।
इसके साथ ही खुद मोदी अपने पूँजीपतिमित्रों के साथ विदेश यात्राओं की पुरानीअय्याशी में डूब गये । नोटबंदी के ठीक पहले(सितंबर 2016 में) वे भारत की प्रमुखलड़ाकू विमानों की सरकारी उत्पादक कंपनी‘हिंदुस्तान एरोनेटिक्स लिमिटेड’ (एचएएल)को धत्ता बता कर रफाल लड़ाकू विमानों केदुनिया के सबसे बड़े रक्षा सौदे में अपनेदिवालिया हो रहे मित्र अनिल अंबानी कोतीस हज़ार करोड़ का लाभ पहुँचा चुके थे ।
हथियारों के सौदागरों की सोहबत में मोदीइतने बेलगाम हो गये कि वे खुले आम नीरवमोदी, मेहुल चौकसी की तरह के अपने मित्रोंको बैंकों का हज़ारों करोड़ लूट कर विदेशोंमें जा बसने का प्रबंध करने लगे ।
इधर, देशवासियों की आँखों में स्वच्छताअभियान, शौचालय आदि के कोरे प्रचार सेधूल झोंकते हुए मोदी ने समझ लिया किअब भारत की दुखी जनता उनके चंगुल सेकभी मुक्त नहीं होगी ! झूठे प्रचार से जनताको जीवन के दुख-दर्द को भुला देने काअचूक सम्मोहन मंत्र उनके हाथ लग गया है!
लेकिन, उनका और सारी दुनिया के ऐसेतानाशाहों का दुर्भाग्य है कि जीवन का सचपूरी तरह से उनकी ही इच्छा से गठित नहींहोता है । मोदी के मामले में भी ऐसा हीहुआ ।
नोटबंदी और जीएसटी के दुखों को तो हरेकआदमी महसूस कर ही रहा था, इसी बीचएक-एक कर मोदी और उनके लोगों केतमाम भ्रष्टाचार के क़िस्से भी खुल करसामने आने लगे । ख़ास तौर पर रफाल केमामले में तो ऐसे तमाम प्रमाण औरदस्तावेज सामने आएं कि दिन रात बक बककरने वाले मोदी को ही साँप सूंघ गया ।
राहुल गांधी ने संसद के पटल पर ही उनकीसर्वशक्तिमानता की छवि के परखचे उड़ातेहुए यहाँ तक कहा कि इस शख़्स में हम सेआँख मिलाने तक की हिम्मत नहीं है । यहकभी इधर देखता है, कभी उधर। कभी ऊपरतो कभी नीचे । लेकिन आँख से आँख नहींमिला पाता है ।
और कहना न होगा, यहीं से पैदा हुआ, आजके भारत के घर-घर में गूँजता हुआ नारा -चौकीदार चोर है । राहुल ने संसद में ही यहभी कहा कि यहां उपस्थित मोदी और शाह,दो ऐसे व्यक्ति है जो अन्य सबसे अलग हैऔर ये दोनों यह जानते हैं कि उनके लियेचुनाव में हारना कितना भारी पड़ सकता है ।एक बार सत्ता से हटने के बाद न जानेकितनी फौजदारी कार्रवाइयों का उन्हेंसामना करना पड़ेगा !
इसके साथ ही मोदी-शाह के बेजा हस्तक्षेपके कारण सुप्रीम कोर्ट, आरबीआई,सीबीआई आदि संस्थाओं में अजीबोगरीबसंकट के विस्फोट होने लगे । देश का पूराप्रशासन सभी स्तरों पर पूरी तरह से ठप होगया । सारी एजेंसियों के पास मानो मोदी केबचाव के अलावा दूसरा कोई काम नहीं रहगया ।
मोदी सरकार के बदइरादों, उसकीकूटनीतिक नालायकी और झूठे जंगी तेवर नेकश्मीर समस्या को भी एक नये विस्फोटककगार पर पहुँचा दिया । कश्मीर में उनकीसाझा सरकार ऐसे चली गई जैसे उसके रहनेका कभी कोई औचित्य ही नहीमोदी केस्वेच्छाचार, सत्ता का केंद्रीकरण, भ्रष्टाचार,आर्थिक नीति के मामले में चरम अज्ञता,तमाम महत्वपूर्ण विषयों पर उसकी नीति-विहीनता और झूठी जंगबाज़ी की नीतियों नेवस्तुत: आज पूरे देश को अचल बना करछोड़ दिया है । जैसे मोदी के उत्थान के पीछेएक समय में अनेक प्रकार के कारणों काएक समुच्चय पैदा हो गया था, देखते हीदेखते अब उनके तेज़ी से चरम पतन कीपरिघटना के नाना कारणों का समुच्चयतैयार हो चुका है ।
आज मोदी के प्रति स्वीकार्यता का किसी भीविवेकवान आदमी के पास कोई कारण नहींबचा है । खुद मोदी भी अपने शासन से जुड़ेकिसी विषय को 2019 के चुनाव का विषयबनने नहीं देना चाहते हैं । इसीलिये वे भारतनहीं, पाकिस्तान के विषय पर चुनाव लड़नाचाहते हैं ; सर्जिकल स्ट्राइक के झूठे शौर्य कीकिस्सागोई से काम चलाना चाहते हैं ।
बालाकोट प्रकरण में भारत को अपमानितकराने के बाद भी गोदी मीडिया की मदद सेमोदी ने थोड़े से दिनों तक ‘राष्ट्रवाद’ काउन्माद पैदा करने की कोशिश की थी ।लेकिन इस उन्माद का ज्वर जितनी तेज़ी सेचढ़ा, उतनी ही तेज़ी से उतर भी गया । इसप्रकार, आज ‘युद्धबाजी’ के अपने तरकश केअंतिम तीर को भी चला कर मोदी खुद कोपूरी तरह से निहत्था कर चुके हैं ।
सरला माहेश्वरी की एक कविता है ‘अंतिमतीर’ :
क्या तरकश का अंतिम तीर /ब्रह्मास्त्र है कि/शत्रु मरेगा ही !
अंतिम तीर अंतिम होता है /बस खुद कोनिहत्था करता है ।
एक हल्की सी आवाज से / जब सपनाटूटता है / पसरा पड़ा आदमी / गिद्धों सेबचने / पसीना-पसीना / हो रहा होता है ।
अंतिम तीर / अंतिम क्षण का संकेत होता है।
अब अवसादग्रस्त मोदी लगता है जैसेआत्म-हत्या का रुझान बढ़ने लगा है । एकdeath drive। देश की गली-गली में गूँजरहे ‘चौकीदार चोर है’ के नारे से पागल होचुके मोदी अब सड़कों पर उलंग होकर यहकहते हुए घूमने लगे है - “मैं ही हूँचौकीदार”!
अरुण माहेश्वरी
अपना अन्तिम तीर छोड़ कर निहत्था होचुके मोदी ने ‘चोर चौकीदार’ पर जनता केन्याय की नियति को मान लिया है ! यह हैमोदी के अंत की परिघटना का वह यथार्थजो आने वाले सत्तर दिनों के बाद कीपरिस्थितियों को अंतिम आकार देगा ।
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सटीक
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