शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की महान क्रान्तिकारी नेत्री कल्पना दत्त



कल्पना दत्त: लड़के के भेष में अग्रेजों से लड़ने वाली क्रांतिकारी महिला!
-खुर्शीद आलम
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में हर किसी वर्ग और समुदाय ने अपना योगदान दिया. एक तरफ जहां पुरुष क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से लोहा लिया वहीं महिलाओं ने भी आंदोलनों में कूद कर ईट से ईट बजा दी थी.

उन्हीं महिला क्रांतिकारियों में एक नाम कल्पना दत्त का है, जिन्होंने अंग्रेजों से बड़ी निडरता और साहस के साथ जमकर लोहा लिया था.

इनकी निडरता और वीरता को देखने के बाद ही कल्पना को ‘वीर महिला’ के ख़िताब से नवाज़ा गया था. आज़ादी की लड़ाई में इनके योगदान को देखते हुए इन पर उपन्यास सहित फ़िल्में भी बनाई गईं हैं.

ऐसे में इस क्रांतिकारी महिला के बारे में जानना दिलचस्प होगा…

जब हुई सूर्य सेन से मुलाकात!
कल्पना दत्त का जन्म 27 जुलाई 1913 को चटगांव के श्रीपुर गांव में हुआ था, जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है. ये एक मध्यम वर्गीय परिवार से थीं. इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चटगांव से हासिल किया.

1929 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद कलकत्ता चलीं गईं. वहां पर विज्ञान में स्नातक के लिए बेथ्यून कॉलेज में दाखिला ले लिया. इस बीच कल्पना मशहूर क्रांतिकारियों की जीवनियाँ भी पढ़ने लगी थीं.

आगे, जल्द ही छात्र संघ से जुड़ गईं और क्रांतिकारी गतिविधियों में रूचि लेनी लगी. इसी महिला छात्र संघ में बीना दास और प्रीतिलता वड्डेदार जैसी क्रांतिकारी महिलाएं भी सक्रिय भूमिका निभा रही थीं.

तभी इनकी मुलाकात स्वतंत्रता सेनानी सूर्य सेन से हुई, जिन्हें ‘मास्टर दा’ के नाम से भी जाना जाता है.

कल्पना इनके विचारों से बहुत प्रभावित हुईं और सूर्य सेन के संगठन ‘इंडियन रिपब्लिकन आर्मी’ में शामिल हो गईं. इसके बाद कल्पना खुलकर अंग्रेजों के खिलाफ अपनी मुहिम छेड़ चुकी थीं.

भेष बदलकर धमाका करने की बनाई योजना!
1930 में जब इस संगठन ने ‘चटगांव शास्त्रानगर लूट’ को अंजाम दिया, तो कल्पना अंग्रेजों की नज़र में चढ़ गई थीं. ऐसे में इन्हें कलकत्ता से पढ़ाई छोड़कर वापस चटगांव आना पड़ा.

हालांकि इन्होंने संगठन का साथ नहीं छोड़ा और लगातार सूर्य सेन के संपर्क में बनी रहीं. इस हमले के बाद कई क्रांतिकारी नेता गिरफ्तार किये गए थे, जो अपने ट्रायल का इन्तेज़ार कर रहे थे. वहीं कल्पना को कलकत्ता से विस्फोटक सामग्री सुरक्षित ले जाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी. कल्पना चटगांव में गुप्तरूप से संगठन के लोगों को हथियार पहुँचाने लगीं.

फिर, कल्पना ने इन क्रांतिकारियों को आज़ाद कराने का फैसला लिया. इसके लिए इन्होंने जेल की अदालत को बम से उड़ाने की योजना बनाई. इनकी इस योजना में प्रीतिलता जैसी क्रांतिकारी महिला भी शामिल थीं.

इसके लिए इनको हथियार प्रशिक्षण की भी ज़रुरत थी. इसीलिए ये रात के सन्नाटे में सूर्यसेन के गांव जातीं और प्रीतिलता के साथ रिवाल्वर शूटिंग में नियमित अभ्यास करने लगी थीं. 

सितम्बर 1931 को कल्पना और प्रीतिलता ने चटगांव के यूरोपीयन क्लब पर हमला करने का फैसला किया. जिसके लिए इन्होंने अपना हुलिया बदल रखा था.

कल्पना एक लड़के के भेष में इस काम को अंजाम देने वाली थीं, मगर पुलिस को इनकी इस योजना के बारे में पता चल चुका था. इसीलिए, अपने मिशन को अंजाम देने से पहले ही कल्पना को गिरफ्तार कर लिया गया.

दोबारा हुईं गिरफ्तार और मिली उम्र कैद की सजा!
बाद में अभियोग सिद्ध न होने पर उनको रिहा कर दिया गया था. जेल से रिहा होने के बाद भी पुलिस उन पर पैनी नज़र रखे हुई थी. यहां तक की उनके घर पर भी पुलिस का पहरा लगा दिया गया था.

परन्तु, कल्पना पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहीं और घर से भागकर सूर्य सेन से जा मिलीं.

इसके बाद ये दो साल तक अंडरग्राउंड हो गईं और गुप्त रूप से क्रांतिकारी आंदोलनों में हिस्सा लेती रहीं. दो साल बीत जाने के बाद पुलिस सूर्य सेन का ठिकाना पता लगाने में सफल रही.

17 फ़रवरी 1933 को पुलिस ने सूर्य सेन को गिरफ्तार कर लिया, जबकि कल्पना अपने साथी मानिन्द्र दत्ता के साथ भागने में कामयाब रहीं. कुछ महीनों तक ये इधर उधर छुपती रहीं, मगर  मई 1933 को ही कल्पना को पुलिस ने घेर लिया था.

कुछ देर तक चली इस मुठभेड़ के बाद कल्पना और उनके साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया. जब इन क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया. तब 1934 में सूर्य सेन और उनके साथी तारकेश्वर दस्तीकार को फांसी की सजा सुनाई गई.

जबकि, कल्पना दत्त को उम्र कैद की सजा हुई.

मिली आज़ादी तो, राजनीति में भी अजमाया हाथ!
21 वर्षीय कल्पना को आजीवन करावास की सजा मुकर्र हो चुकी थी. अब वो किसी भी क्रांतिकारी आंदोलनों का हिस्सा नहीं बनने वाली थीं, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. 1937 में पहली बार प्रदेशों में मंत्रिमंडल बनाये गए.

तब महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि नेताओं ने क्रांतिकारियों को छुड़ाने की मुहीम छेड़ दी थी. जिसके बाद अंग्रेजों को बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों को छोड़ना पड़ा था. उन्हीं क्रांतिकारियों में कल्पना दत्त भी शामिल थीं.

खैर, 1939 में कल्पना जेल से रिहा हुईं.

आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए कल्पना ने कलकत्ता  विश्वविद्यालय में दाख़िला ले लिया. स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद कल्पना भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गईं. कल्पना जेल के अंदर ही कई कम्युनिस्ट नेताओं के संपर्क में रहीं और उनके विचारों से प्रभावित भी हुई थीं. उस दौरान इन्होंने ने मार्क्सवादी जैसे विचारों को पढ़ना भी शुरू कर दिया था.

1943 में कल्पना भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पूरन चंद जोशी से विवाह के बंधन में बंध गईं. इस तरह कल्पना दत्त अब कल्पना जोशी बन चुकी थीं. यह वही दौर था, जब बंगाल की स्थिति आकाल और विभाजन के चलते गंभीर थी.

कल्पना ने इस समय बंगाल के लोगों के साथ हमदर्दी बांटी और राहत कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया था. इसके बाद कल्पना देश की आज़ादी के साथ ही भारतीय राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाने लगी.

इन पर आधारित हैं कई उपन्यास और बॉलीवुड फ़िल्में!
इस दौरान इन्होंने चटगांव लूट केस पर आधारित अपनी आत्मकथा भी लिखी थी. कम्युनिस्ट पार्टी का साथ छोड़ने के बाद कल्पना एक सांख्यिकी संस्थान में कार्य करने लगी, जहां पहले भी वो कुछ दिनों तक काम किया था.

बाद में कल्पना बंगाल से दिल्ली आ गईं और इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी का हिस्सा बनीं. 1979 में कलपना जोशी को इनके कामों को देखते हुए ‘वीर महिला’ की उपाधि से नवाज़ा गया था.

8 फ़रवरी 1995 को कल्पना दिल्ली में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. खैर, कल्पना ने दो बच्चों को जन्म दिया था. जिनका नाम चांद जोशी और सूरज जोशी था. चाँद जोशी एक बहुत बड़े पत्रकार रह चुके हैं. जिनकी पत्नी मानिनी ने इनके ऊपर एक उपन्यास ‘डू एंड डाई: चटग्राम विद्रोह’ लिखा था.

इसी कड़ी में दिलचस्प बात यह है कि 2010 में भारतीय सिनेमा जगत ने भी इन पर आधारित एक फिल्म बनाई थी. इस फिल्म का नाम ‘खेलें हम जी जान से’ जो आशुतोष गोवारिकर के निर्देशन में बनी थीं.

इस मूवी की कहानी मानिनी के उपन्यास से ही ली गई थीं. इसमें अभिषेक बच्चन और दीपिका पादुकोण ने मुख्य किरदार की भूमिका निभाई है. इस फिल्म में चटगांव विद्रोह को बखूबी दिखाया गया, जिसमें लगभग सभी रियल पात्रों को भी दर्शाया गया था.

जिस निडरता और साहस के बल पर कल्पना दत्त जोशी ने देश के लिए खुद को समर्पित कर दिया, वह आज भी देश के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है.


2 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…


जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-08-2019) को "देशप्रेम का दीप जलेगा, एक समान विधान से" (चर्चा अंक- 3431) पर भी होगी।

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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

जनदृष्टि ने कहा…

कितना आसान लगता है कहना और सोचना कि
कल्पना दत्ता ने 'ईंट से ईंट बजा दी थी',
शहादत दे दी थी...
और आज
ऐसा कोई करे तो क्या कहा जाएगा?...

हम भी उसे क्या कहेंगे, क्या मानेंगे?..

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