लेनिन -
शाबाश! अगर यह जोश बरकरार रहा तो कामयाबी जल्दी ही तुम्हारे कदम चूमेगी.
कवि-
कम्युनिस्टों ने जब लिया, निर्णय यह संगीन.लगा सोंचने बचत तब,जार हुआ गमगीन..
बादशाह जार-
सेनापति तुमने सुना,लेनिन का ऐलान .राज करेंगे रूस पर ,अब मजदूर किसान ..
अब मजदूर किसान कभी ना ,इसे सोचने पायें,लेनिन के झूठे प्रचार में,नहीं प्रजा जन आयें.
कहो रूस के सभी लोग ,सम्राट को शीश झुकाए ,करें वफा सिंहासन से ,और अदब से हुक्म बजायें..
हुक्म जारी करवाओ ,देर ना जरा लगाओ,हाल जल्दी से बोलो ,बिगड़ रही क्यों प्रजा हमारी, इस गुत्थी को खोलो ..
सेनापति-
आप अब तक इसे टालते ही रहे,पर ये लेनिन बहुत ही खतरनाक है.
गर ये आजाद ज्यादा दिनों तक रहा , तो समझ लो महल बस हुआ खाक है .
बादशाह-
ख्याल ये था कि कमजोर काफी है वो, इसलिए न हुआ वह गिरफ्तार है .
बेवजह चाहता था न झंझट बढे, पर न घटती जरा उसकी रफ्तार है.
सेनापति -
आम जनता को लेनिन रहा बरगला ,रोकना उसको है अब जरूरी हुआ .
माहौले खिलाफत अभी बढ़ रहा ,बंद करना अब उसको जरूरी हुआ .
बादशाह -
जल्द कर लो गिरफ्तार लेनिन को अब ,काले पानी की उसको दिला दो सजा .
जल्द कर लो गिरफ्तार लेनिन को अब ,काले पानी की उसको दिला दो सजा .
काले कोसों की दूरी पे जब वह रहे, देख ले फिर बगावत का असली मजा..
सेनापति-
आपके हुकुम का तुरंत पालन किया जाएगा .लेनिन की गिरफ्तारी के थोड़े दिन बाद ही उस बागी लड़की क्रुप्स काया को भी काले पानी की सजा देकर साइबेरिया भेज दिया जाएगा.
कवि -
बादशाह का जब मिला हुक्म सुनो संगीन.लेनिन तब खोजे गए, और लोग हुए गमगीन .
लोग हुए गमगीन, कि लेनिन भाग कहां को जायें,शहर -शहर और गांव- गांव में, अफसर जार के छाये .
गिरफ्तार करने को काफी, अहल कार दौडाये ,काफी दिन तक पर जनता ,लेनिन को रही छिपाये.
किया तब सख्त सजा की मार, कर लिया बेकसूर गिरफ्तार ,भेज साइबेरिया दीन,
मिली जहं क्रुप्स काया लवलीन ,एक दिन मौका पाकर ,
क्रुप्स काया बोली लेनिन से ,सब संकोच मिटा कर.
क्रुप्स काया -
देखते तुमको कितना समय कट गया ,
कुछ महीने बरस जान पाई नहीं .
कितनी तकलीफ कितने सितम सह चुके ,
पर शिकन एक चेहरे पर आई नहीं .
क्या पागल हुकूमत के जुल्मों की सब ,
बात जनता अभी जान पाई नहीं.
हल न कोई है मेहनत कशों के लिए ,
होती जब तक यहां से रिहाई नहीं..
लेनिन -
भूल से भी हो कोमल कच्ची उमर,
राहे इंकलाब में फिर भी आई हो तुम .
सुख से जीवन कटे और करो ऐश भी ,
रह पीछे बहुत छोड़ आई हो तुम ..
आज मजदूर सारा कमरकस रहा ,
करती संघर्ष की रहनुमाई हो तुम.
हमसे क्या पूछती जानती क्या नहीं,
राह जो मार्क्स की चलके आई हो तुम ..
क्रुप्स काया -
मार्क्स के भी तो पहले बहुत लोग थे ,
सन्त साइमन फ्यूरे प्रमुख जानिए .
दुख मुसीबत जदों का न वह सके ,
बात झूठी नहीं इस को सच मानिए ..
उनकी कोशिश पर कुछ कारगर ,
लूट का राजा भी है सच जानिए .
गोकि हम दर्द मेहनत कसो के वो थे ,
फेल फिर भी हुए क्या वजह मानिए..
लेनिन -
बात सच्ची है पर मांग करके रकम,
सेठ लोगों से कुछ भी न वो कर सके.
इसी धनवान ने ना दिया धन उन्हें ,
आस पूरी न अपनी कभी कर सके.
वह थे हमदर्द मेहनत कशो के हैं सच,
राज मेहनत कशो को नहीं दे सके .
इसलिए काम उनका न पूरा हुआ,
वो लुटेरेसे खंजर नहीं ले सके ..
क्रुप्स काया -
मार्क्स की राह पर हम चले तुम चले ,
राज मेहनत कशो को दिलाएंगे हम.
पीढ़ियों से जो लूटते चले आ रहे,
ताज उनके सरो पर पिन्हायेगे हम ..
राज जिस वर्ग का हो रहे वह सुखी,
आम जनता को अब ए बताएंगे हम.
क्रांतिकारी कहे पर बताओ किसे,
साथ जिनके की मंजिल पर जाएंगे हम..
लेनिन-
क्रांति के मार्ग में सिर्फ वह रखे कदम,
धार तलवार पर चलना आता जिसे.
ना फिकर जिसको हो अपने परिवार की,
सेज कांटों पे सोनाहो आता जिसे..
चैन जीवन में जिसके न हो और रहे ,
दर्द मेहनत कशो का सताता जिसे.
लक्ष्य जीवन का हो क्रांति जब ध्यान में ,
अपना जीवन लुटाना हो आता जिसे ..
इसके साथ ही -
दर्द और कष्ट जिनके न संगी रहे,
और अभाव में जीवन बिताया नहीं.
भूखों नंगों के संग जो कभी न रहा ,
क्रांतिकारी कभी बन पाया नहीं..
क्रुप्स काया -
राह जीवन की दोनों के अब एक है ,
बात ऐसी समझ में है आती मुझे .
रूस आजाद हो और खतम लूट हो ,
हर फिजा है यही ढंग बताती मुझे..
लेनिन-
राज जनता का जब तक न हो रूस में ,
और उसमें जुल्म मिटते नहीं जान पाई हो तुम .
इस दौरे सजा जुल्म की आग पर,
मुक्ति की बनके बदली सी छाई हो तुम ..
क्रुप्स काया -
राहे जीवन में अब हम जो साथी रहे,
तो फिर नजदीक मंजिल बुला लेंगे हम.
कुछ तुम्हारा सहारा करेगा मदद ,
कुछ अपनी भी हिम्मत बढ़ा लेंगे हम..
है शोषण मिटाने की जो मुश्किलें ,
उनको आसान थोड़ा बनाएंगे हम .
क्रांति की राह में ये कटे जिंदगी,
अपने फर्जों को पूरा निभाएंगे हम ..
लेनिन-
ज्ञान और त्याग में इतना आगे बढ़ो,
लड़कियां कम ही देती दिखाई यहां.
मकसदे जिंदगी जो तुम्हारा बना,
लक्ष्य है साफ देता दिखाई वहां ..
मार्ग संघर्ष में भी मिलेगी मदद ,
साथ होगी तुम होगी लड़ाई जहां.
हर तरह पूरी जीवन हो पाकर तुम्हें,
हार जीवन में फिर दे दिखाई कहां ..
कवि -
बीच दोनों के इस तरह से जब करार हुआ,
संगठन मुक्ति का तब और असरदार हुआ .
दोनों ने लाल ध्वज को जब मिल कर लिया उठा ,
शोषकों के दिल में छुरा जैसे आर- पार हुआ .
लेनिन को "लाल शक्ति"रूप पत्नी मिल गई,
भविष्य के संघर्ष का तारा-ए- चमकदार हुआ.
कितने जवान हुस्न जिसे ढूंढ रहे थे ,
क्रुप्स काया के लिए आज वह दिलदार हुआ.
सौगंध ली कि जुल्म दो अब रूस से मिटा ,
मिलना नहीं तो दोनों का समझो कि फिर बेकार हुआ.
कवि दोबारा-
क्रांति कारियों पे तुमने थोड़ी निगाह डाली है ,
उधर जार का महल न होता इक पल को खाली है.
दरबारियों के चेहरे पर छाई यद्दपि लाली है,
मगर रूस के जार के दिल पर घबराहट बेहाली है .
परेशानी की हालत में संदेशा इक उठाया है ,
बुला सेनापति को जार ने ऐसे बताया है.
बादशाह -
सेनापति तुम रूस के में इसका सरताज ,
मिटने के दिन आ गए तुम्ही बचाओ लाज .
तुम्ही बचाओ लाज हमारी समझ न कुछ भी आता,
यश कीरत और जनाधार लेनिन का बढ़ता जाता .
दिन दूनी हो शाख न उसकी चाल समझ पाता,
भूखों नगों का लश्कर भी हर रोज है बढ़ता जाता.
गर इनको गया न रोका,
और तुमने बढ़ कर ना टोका .
सर पर चढ़कर फिर बोलेंगे ,
और ए बद तमीज इंसान ,
तख्त से कभी करेंगे धोखा .
सेनापति-
नाम अब रूस का बदनाम हुआ जाता है,
ए तख्त राज के लिए नाकाम हो जाता है.
पीढ़ियां खत्म हुई तख्त की खिदमत करते हैं,
उन्हीं लोगों को अब इलहाम हुआ जाता है.
ऐश था जिंदगी के साथ हुक्मरानों की,
अब जरा सी बात पर कुहराम हुआ जाता है.
आपके नाम से हर शख्स कांप जाता था ,
लेनिन का बढ़के आपसे अब नाम हुआ जाता है .
ताकत कोई दुनिया की न इस तख्त से टकरा पाई,
भूख मरों के हाथ से यह काम हुआ जाता है.
सहनी हमें पड़ेगी मजूरों की हुकूमत,
देख के हाल मगन "श्याम" हुआ जाता है .
बादशाह -
जो किया तुमने किस्सा बयां आज है ,
वह सारा का सारा है हम जानते.
जिंदगी भर से मेरा नमक खा रहे,
ऐसी बातें करो तुमको सौ लानते ..
बात सच्ची है लेनिन बहुत बढ़ चुका ,
फिर भी तुम्हारी न हम मानते .
हम मिटाते रहे हैं सदा से उन्हें'
जो रहे तख्त पर खंजरें तानते ..
सेनापति -
बात सच्ची है जो वह बयां कर दिया ,
हुक्म होगा जो हमको करेंगे वही .
जब तक जिंदा है तलवार है हाथ में ,
तख्त की हम हिफाजत करेंगे सही..
आज लेनिन तो क्या काल आ जाए खुद,
है भिडने की हिम्मत डरेंगे नहीं.
ताज सर पर चमकता रहे आपके ,
फर्ज -ए-बिन निभाये मरेंगे नहीं..
बादशाह-
काले पानी से तुमने रिहा कर दिया,
आज लेनिन विदेशों में है रह रहा .
उसके साथी प्रजा को रहे बरगला,
भुखमरों से बगावत को वह कह रहा..
सेनापति-
हाथ से मेरे लेनिन गया है निकल ,
मैं खाता हूं मैं खतावार हूं मैं खाता हूं मैं खतावार हूं .
जो भी बिगड़े हालात अब रूस के,
मैं निपटने को उनसे भी तैयार हूं ..
बादशाह-
हुकुम फौजियों को कर दो ऐ सेनापति ,
तख्त का एक दुश्मन अब न बच सके .
जो है नंगे फटीचर तथा भुखमरे ,
उनको पाबंद कर दो न कुछ कर सकें..
सेनापति -
एक बागी न जिंदा बचे रूस में,
फौज को ऐसे ढंग से लगा देगें हम .
सारे झगड़े की जड़ तो ए कम्युनिस्ट है,
आप कहिए क्या इनको सजा देंगे हम..
बादशाह-
जितने रूपोश कम्युनिस्ट पकड़ मिल सके,
बंद जेलों में कर दो न कुछ कर सकें.
कत्ल नेता करो उनके जो मिल सके,
देख आंखों से ले तख्त से डर सकें..
उनकी कोशिश पर कुछ कारगर ,
लूट का राजा भी है सच जानिए .
गोकि हम दर्द मेहनत कसो के वो थे ,
फेल फिर भी हुए क्या वजह मानिए..
लेनिन -
बात सच्ची है पर मांग करके रकम,
सेठ लोगों से कुछ भी न वो कर सके.
इसी धनवान ने ना दिया धन उन्हें ,
आस पूरी न अपनी कभी कर सके.
वह थे हमदर्द मेहनत कशो के हैं सच,
राज मेहनत कशो को नहीं दे सके .
इसलिए काम उनका न पूरा हुआ,
वो लुटेरेसे खंजर नहीं ले सके ..
क्रुप्स काया -
मार्क्स की राह पर हम चले तुम चले ,
राज मेहनत कशो को दिलाएंगे हम.
पीढ़ियों से जो लूटते चले आ रहे,
ताज उनके सरो पर पिन्हायेगे हम ..
राज जिस वर्ग का हो रहे वह सुखी,
आम जनता को अब ए बताएंगे हम.
क्रांतिकारी कहे पर बताओ किसे,
साथ जिनके की मंजिल पर जाएंगे हम..
लेनिन-
क्रांति के मार्ग में सिर्फ वह रखे कदम,
धार तलवार पर चलना आता जिसे.
ना फिकर जिसको हो अपने परिवार की,
सेज कांटों पे सोनाहो आता जिसे..
चैन जीवन में जिसके न हो और रहे ,
दर्द मेहनत कशो का सताता जिसे.
लक्ष्य जीवन का हो क्रांति जब ध्यान में ,
अपना जीवन लुटाना हो आता जिसे ..
इसके साथ ही -
दर्द और कष्ट जिनके न संगी रहे,
और अभाव में जीवन बिताया नहीं.
भूखों नंगों के संग जो कभी न रहा ,
क्रांतिकारी कभी बन पाया नहीं..
क्रुप्स काया -
राह जीवन की दोनों के अब एक है ,
बात ऐसी समझ में है आती मुझे .
रूस आजाद हो और खतम लूट हो ,
हर फिजा है यही ढंग बताती मुझे..
लेनिन-
राज जनता का जब तक न हो रूस में ,
और उसमें जुल्म मिटते नहीं जान पाई हो तुम .
इस दौरे सजा जुल्म की आग पर,
मुक्ति की बनके बदली सी छाई हो तुम ..
क्रुप्स काया -
राहे जीवन में अब हम जो साथी रहे,
तो फिर नजदीक मंजिल बुला लेंगे हम.
कुछ तुम्हारा सहारा करेगा मदद ,
कुछ अपनी भी हिम्मत बढ़ा लेंगे हम..
है शोषण मिटाने की जो मुश्किलें ,
उनको आसान थोड़ा बनाएंगे हम .
क्रांति की राह में ये कटे जिंदगी,
अपने फर्जों को पूरा निभाएंगे हम ..
लेनिन-
ज्ञान और त्याग में इतना आगे बढ़ो,
लड़कियां कम ही देती दिखाई यहां.
मकसदे जिंदगी जो तुम्हारा बना,
लक्ष्य है साफ देता दिखाई वहां ..
मार्ग संघर्ष में भी मिलेगी मदद ,
साथ होगी तुम होगी लड़ाई जहां.
हर तरह पूरी जीवन हो पाकर तुम्हें,
हार जीवन में फिर दे दिखाई कहां ..
कवि -
बीच दोनों के इस तरह से जब करार हुआ,
संगठन मुक्ति का तब और असरदार हुआ .
दोनों ने लाल ध्वज को जब मिल कर लिया उठा ,
शोषकों के दिल में छुरा जैसे आर- पार हुआ .
लेनिन को "लाल शक्ति"रूप पत्नी मिल गई,
भविष्य के संघर्ष का तारा-ए- चमकदार हुआ.
कितने जवान हुस्न जिसे ढूंढ रहे थे ,
क्रुप्स काया के लिए आज वह दिलदार हुआ.
सौगंध ली कि जुल्म दो अब रूस से मिटा ,
मिलना नहीं तो दोनों का समझो कि फिर बेकार हुआ.
कवि दोबारा-
क्रांति कारियों पे तुमने थोड़ी निगाह डाली है ,
उधर जार का महल न होता इक पल को खाली है.
दरबारियों के चेहरे पर छाई यद्दपि लाली है,
मगर रूस के जार के दिल पर घबराहट बेहाली है .
परेशानी की हालत में संदेशा इक उठाया है ,
बुला सेनापति को जार ने ऐसे बताया है.
बादशाह -
सेनापति तुम रूस के में इसका सरताज ,
मिटने के दिन आ गए तुम्ही बचाओ लाज .
तुम्ही बचाओ लाज हमारी समझ न कुछ भी आता,
यश कीरत और जनाधार लेनिन का बढ़ता जाता .
दिन दूनी हो शाख न उसकी चाल समझ पाता,
भूखों नगों का लश्कर भी हर रोज है बढ़ता जाता.
गर इनको गया न रोका,
और तुमने बढ़ कर ना टोका .
सर पर चढ़कर फिर बोलेंगे ,
और ए बद तमीज इंसान ,
तख्त से कभी करेंगे धोखा .
सेनापति-
नाम अब रूस का बदनाम हुआ जाता है,
ए तख्त राज के लिए नाकाम हो जाता है.
पीढ़ियां खत्म हुई तख्त की खिदमत करते हैं,
उन्हीं लोगों को अब इलहाम हुआ जाता है.
ऐश था जिंदगी के साथ हुक्मरानों की,
अब जरा सी बात पर कुहराम हुआ जाता है.
आपके नाम से हर शख्स कांप जाता था ,
लेनिन का बढ़के आपसे अब नाम हुआ जाता है .
ताकत कोई दुनिया की न इस तख्त से टकरा पाई,
भूख मरों के हाथ से यह काम हुआ जाता है.
सहनी हमें पड़ेगी मजूरों की हुकूमत,
देख के हाल मगन "श्याम" हुआ जाता है .
बादशाह -
जो किया तुमने किस्सा बयां आज है ,
वह सारा का सारा है हम जानते.
जिंदगी भर से मेरा नमक खा रहे,
ऐसी बातें करो तुमको सौ लानते ..
बात सच्ची है लेनिन बहुत बढ़ चुका ,
फिर भी तुम्हारी न हम मानते .
हम मिटाते रहे हैं सदा से उन्हें'
जो रहे तख्त पर खंजरें तानते ..
सेनापति -
बात सच्ची है जो वह बयां कर दिया ,
हुक्म होगा जो हमको करेंगे वही .
जब तक जिंदा है तलवार है हाथ में ,
तख्त की हम हिफाजत करेंगे सही..
आज लेनिन तो क्या काल आ जाए खुद,
है भिडने की हिम्मत डरेंगे नहीं.
ताज सर पर चमकता रहे आपके ,
फर्ज -ए-बिन निभाये मरेंगे नहीं..
बादशाह-
काले पानी से तुमने रिहा कर दिया,
आज लेनिन विदेशों में है रह रहा .
उसके साथी प्रजा को रहे बरगला,
भुखमरों से बगावत को वह कह रहा..
सेनापति-
हाथ से मेरे लेनिन गया है निकल ,
मैं खाता हूं मैं खतावार हूं मैं खाता हूं मैं खतावार हूं .
जो भी बिगड़े हालात अब रूस के,
मैं निपटने को उनसे भी तैयार हूं ..
बादशाह-
हुकुम फौजियों को कर दो ऐ सेनापति ,
तख्त का एक दुश्मन अब न बच सके .
जो है नंगे फटीचर तथा भुखमरे ,
उनको पाबंद कर दो न कुछ कर सकें..
सेनापति -
एक बागी न जिंदा बचे रूस में,
फौज को ऐसे ढंग से लगा देगें हम .
सारे झगड़े की जड़ तो ए कम्युनिस्ट है,
आप कहिए क्या इनको सजा देंगे हम..
बादशाह-
जितने रूपोश कम्युनिस्ट पकड़ मिल सके,
बंद जेलों में कर दो न कुछ कर सकें.
कत्ल नेता करो उनके जो मिल सके,
देख आंखों से ले तख्त से डर सकें..
अब ज़रा बेरहम है मुनासिब नहीं,
गर किया तो समझ लो न हम बच सकें.
घर उजाडो लगा आग दो हाथ से,
मुल्क में एक बागी न बच सकें ..
सेनापति -
कल सुबह लाल होगी सुनो रूस की ,
खून दरिया के मानिंद बह जायेगा .
इस जिसममें नमक है कि इस तख्त का,
बेवफा हमको कोई न कह पाएगा ..
मुझको सौगंध कदमों की अब आपके,
मुल्क में एक बागी न रह पाएगा.
कल से पूजा करें जो न सम्राट की,
वो तिनके सा धारा में बह जायेगा ..
रानी प्रवेश करके -
ऐसा मत बोलो सुनो सेनापती महान.
बहादुरी इस वंश की जाने सकल जहान ..
जानती है ए दुनिया कि तुम वीर हो ,
वीरताई में है कुछ कसर ही नहीं.
तख्त हासिल किया हमने तलवार से,
इससे अनजान कोई बशर ही नहीं..
सैकड़ों साल से राज हम कर रहे ,
कभी पैदा हुआ ऐसा डर ही नहीं .
हाल बदला है लेनिन ने जो इस रूस का ,
तुमको शायद है उसकी खबर ही नहीं..
सेनापति-
उनको लेनिन हमसे अलग कर रहा ,
जो नहीं पेट भर है कभी खा सके .
ए टुकाची हुकूमत को बदलेंगे क्या ,
शाही ताकत का एक्या पता पा सकें ..
रानी -
इस घराने की रक्षा थे जो कर रहे ,
आज तक जिनकी थी कुछ फिकर ही नहीं .
वो सिपाही भी अब साथ लेनिन के है ,
जिससे उसको हैखोफों खतर ही नहीं ..
ताज उतरेगा निश्चित अब शीश से ,
इसमें बाकी है कोई कसर ही नहीं,
कोई तरकीब तुमने जो सोंची नहीं ,
पास अपने बचे मालो जर भी नहीं ..
बादशाह -
बात तुमने सुनाई जो प्यारी हमें,
आज तक कोई खुफिया बता ना सका.
जो हमारे खिलाये और पाले बशर ,
यकीं उनकी बगावत पे ला न सका ..
फौज में भी है लेनिन का भारी दखल,
राज अब तक है हम तक ए आ ना सका .
हादसा है ए सच तो समझ साफ लो,
तख्त ऐसे में कोई बचा न सका ..
सेनापति-
जान जब तक सलामत है इस जिसम में ,
मूठ तलवार की जब तलक हाथ है .
हम लड़ेंगे ताजो तखत के लिए ,
क्या फिकर कि सिपाही नहीं साथ है ..
शाही खजाना है इतना भरा ,
कि बनाना नई फौज क्या बात है .
जब तक जिंदा है हम ताज उतरे नहीं,
इससे ज्यादा हमारी क्या औकात है ..
रानी-
करो तुम जान जो कुर्बा,ए फर्ज अपना निभाने में ,
तुम्हारा नाम रोशन होगा , इस सारे जमाने में .
लाख गर्दिश के अंधियारे जमाने पे जो छा जायें,
तुम्हारा नाम चमकेगा सदा शाही फसाने में .
जो समझे वक्त की धारा जमाना उसको झुकता है,
नहीं जलता दिया वरना कभी उसके घराने में.
पीढ़ियों से वफादारी तुम्हारी हम पे साबित है,
कि वक्ते आखिरी में क्या है फिर से अजमानें में .
ए सिंहासन हमें अब छोड़ना बिल्कुल ही तय समझो ,
घिरे हम आम जनता के है गुस्से के निशाने में.
बादशाह-
किस कदर रंजो गम में पड़ा आज हूं ,बात आती समझ में है कोई नहीं .
लाख दिक्कत परेशानियां हो गई, पर कभी अक्ल ऐसी है खोई नहीं..
रानी -
जोर देने से ज्यादा नहीं बात है, वक्त अपनी हुकूमत का है अब नहीं.
फौज जनता तथा कारखाने सभी ,साथ अपने तो बिल्कुल ही है अब नहीं ..
जान अपनी बचे खैर बच्चों की हो, किस शहंशाह ने ए किया कब नहीं.
ताज प्यारा तो अब छोड़ना हो , पड़े राह दूजी है कोई बची जब नहीं ..
बादशाह -
ताज पहना दूं लेनिन को खुद हाथ से, क्या तुम्हारी समझ में है आता यहीं.
कत्ल मुझको करे और घराना मिटे ,क्या है मन को तुम्हारे अब भाता यहीं
रानी -
आज गुस्से में प्यारे बहक तुम गए ,ए इल्जाम मुझ पे लगाते हो तुम.
तुम अगर रूस पर राज करते रहो ,शान मेरी भी इससे बढ़ाते हो तुम..
कौन कहता है लेनिन कि को तुम ताज दो ,बात को क्यों यहां तक के लाते हो तुम.
छीन ले ताज लेनिन इससे प्रथम ,क्यों न हमदर्द के सर पिन्हाते हो तुम ..
बादशाह -
कोई मैंने सिंहासन खरीदा नहीं ,ताज को अपने हाथों गढ़ाया नहीं.
रूस पे पर मैंने सारे किया राज है ,अपनी ताकत से पर इसको पाया नहीं
लाल, हीरे ,महल और खजाना सभी ,मेरी तलवार ने है दिलाया नहीं .
जिसमें मेरा नहीं हक है रानी सुनों ,देना औरों को है भाया नहीं ..
शेष ----------------------------
गर किया तो समझ लो न हम बच सकें.
घर उजाडो लगा आग दो हाथ से,
मुल्क में एक बागी न बच सकें ..
सेनापति -
कल सुबह लाल होगी सुनो रूस की ,
खून दरिया के मानिंद बह जायेगा .
इस जिसममें नमक है कि इस तख्त का,
बेवफा हमको कोई न कह पाएगा ..
मुझको सौगंध कदमों की अब आपके,
मुल्क में एक बागी न रह पाएगा.
कल से पूजा करें जो न सम्राट की,
वो तिनके सा धारा में बह जायेगा ..
रानी प्रवेश करके -
ऐसा मत बोलो सुनो सेनापती महान.
बहादुरी इस वंश की जाने सकल जहान ..
जानती है ए दुनिया कि तुम वीर हो ,
वीरताई में है कुछ कसर ही नहीं.
तख्त हासिल किया हमने तलवार से,
इससे अनजान कोई बशर ही नहीं..
सैकड़ों साल से राज हम कर रहे ,
कभी पैदा हुआ ऐसा डर ही नहीं .
हाल बदला है लेनिन ने जो इस रूस का ,
तुमको शायद है उसकी खबर ही नहीं..
सेनापति-
उनको लेनिन हमसे अलग कर रहा ,
जो नहीं पेट भर है कभी खा सके .
ए टुकाची हुकूमत को बदलेंगे क्या ,
शाही ताकत का एक्या पता पा सकें ..
रानी -
इस घराने की रक्षा थे जो कर रहे ,
आज तक जिनकी थी कुछ फिकर ही नहीं .
वो सिपाही भी अब साथ लेनिन के है ,
जिससे उसको हैखोफों खतर ही नहीं ..
ताज उतरेगा निश्चित अब शीश से ,
इसमें बाकी है कोई कसर ही नहीं,
कोई तरकीब तुमने जो सोंची नहीं ,
पास अपने बचे मालो जर भी नहीं ..
बादशाह -
बात तुमने सुनाई जो प्यारी हमें,
आज तक कोई खुफिया बता ना सका.
जो हमारे खिलाये और पाले बशर ,
यकीं उनकी बगावत पे ला न सका ..
फौज में भी है लेनिन का भारी दखल,
राज अब तक है हम तक ए आ ना सका .
हादसा है ए सच तो समझ साफ लो,
तख्त ऐसे में कोई बचा न सका ..
सेनापति-
जान जब तक सलामत है इस जिसम में ,
मूठ तलवार की जब तलक हाथ है .
हम लड़ेंगे ताजो तखत के लिए ,
क्या फिकर कि सिपाही नहीं साथ है ..
शाही खजाना है इतना भरा ,
कि बनाना नई फौज क्या बात है .
जब तक जिंदा है हम ताज उतरे नहीं,
इससे ज्यादा हमारी क्या औकात है ..
रानी-
करो तुम जान जो कुर्बा,ए फर्ज अपना निभाने में ,
तुम्हारा नाम रोशन होगा , इस सारे जमाने में .
लाख गर्दिश के अंधियारे जमाने पे जो छा जायें,
तुम्हारा नाम चमकेगा सदा शाही फसाने में .
जो समझे वक्त की धारा जमाना उसको झुकता है,
नहीं जलता दिया वरना कभी उसके घराने में.
पीढ़ियों से वफादारी तुम्हारी हम पे साबित है,
कि वक्ते आखिरी में क्या है फिर से अजमानें में .
ए सिंहासन हमें अब छोड़ना बिल्कुल ही तय समझो ,
घिरे हम आम जनता के है गुस्से के निशाने में.
बादशाह-
किस कदर रंजो गम में पड़ा आज हूं ,बात आती समझ में है कोई नहीं .
लाख दिक्कत परेशानियां हो गई, पर कभी अक्ल ऐसी है खोई नहीं..
रानी -
जोर देने से ज्यादा नहीं बात है, वक्त अपनी हुकूमत का है अब नहीं.
फौज जनता तथा कारखाने सभी ,साथ अपने तो बिल्कुल ही है अब नहीं ..
जान अपनी बचे खैर बच्चों की हो, किस शहंशाह ने ए किया कब नहीं.
ताज प्यारा तो अब छोड़ना हो , पड़े राह दूजी है कोई बची जब नहीं ..
बादशाह -
ताज पहना दूं लेनिन को खुद हाथ से, क्या तुम्हारी समझ में है आता यहीं.
कत्ल मुझको करे और घराना मिटे ,क्या है मन को तुम्हारे अब भाता यहीं
रानी -
आज गुस्से में प्यारे बहक तुम गए ,ए इल्जाम मुझ पे लगाते हो तुम.
तुम अगर रूस पर राज करते रहो ,शान मेरी भी इससे बढ़ाते हो तुम..
कौन कहता है लेनिन कि को तुम ताज दो ,बात को क्यों यहां तक के लाते हो तुम.
छीन ले ताज लेनिन इससे प्रथम ,क्यों न हमदर्द के सर पिन्हाते हो तुम ..
बादशाह -
कोई मैंने सिंहासन खरीदा नहीं ,ताज को अपने हाथों गढ़ाया नहीं.
रूस पे पर मैंने सारे किया राज है ,अपनी ताकत से पर इसको पाया नहीं
लाल, हीरे ,महल और खजाना सभी ,मेरी तलवार ने है दिलाया नहीं .
जिसमें मेरा नहीं हक है रानी सुनों ,देना औरों को है भाया नहीं ..
शेष ----------------------------
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