शनिवार, 29 अगस्त 2020

सोम नाथ लाहिडी क्रान्ति के महानायक

-अनिल राजिमवाले 

का. सोमनाथ लाहिडी


का जन्म 1

सितंबर 1909 को बंगाल में हुआ

था। वे रामतनु लाहिरी के परिवार से थे

जो ईश्वरचंद्र विद्यासागर के समकालीन

थे।

उन्हें कलकत्ता के प्रेसिडेन्सी काॅलेज

से विज्ञान में बी.एस.सी. की डिग्री मिली।

उनका मुख विषय रसायन शास्त्र था

जिसमें वे बहुत तेज थे। वे पढ़ने में बड़े

ही मेधावी थे। 12 वर्ष की उम्र में वे

असहयोग और खिलाफत आंदोलनों

से बड़े ही प्रभावित हुए। वे 1930 के

सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल

हुए। वे सुप्रसि( क्रांतिकारी और स्वामी

विवेकानंद के भाई भूपेंद्रनाथ दत्त के

संपर्क में आए। उनसे ही उन्होंने

माक्र्सवाद सीखा। 1930 में एम.एस.

सी. पढ़ते तक उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी

और कांग्रेस में शामिल हो गए।

सोमनाथ लाहिरी ने कलकत्ता के

मजदूरों को संगठित करना आरंभ किया।

उन्होंने ट्राम मजदूरों के बीच काम

करना शुरू किया। 1931 में ईस्ट

बंगाल रेलवे वर्कर्स यूनियन का गठन

किया। वे ही 1933 में जमशेदपुर के

‘टिस्को’ मजदूरों की प्रथम यूनियन के

संगठनकर्ता थे।

1931 आते-आते सामनाथ की

मुलाकात अब्दुल मोमिन से हुई। उन

दोनों ही ने कांग्रेस के काराची अधिवेशन

में भाग लिया। वहां उन्होंने भगतसिंह,

सुखदेव और राजगुरू को फांसी दिए

जान के विरोध में निकाले गए प्रदर्शन

में भाग लिया।

कम्युनिस्ट आंदोलन में

मेरठ षड्यंत्र केस ;1929-32द्ध

में भारत के सर्वोच्च 32 कम्युनिस्ट

नेता पकड़े गए। बाहर रह गए

कम्युनिस्टों ने विभिन्न तरीकों से

कम्युनिस्ट गतिविधियां बरकरार रखने

की कोशिश की। कलकत्ता में 1930

में अखिल बैनर्जी, रानेन सेन, अवनी

चैधरी और रमेन बसु ने ‘कलकत्ता

समिति’ का गठन किया। जल्द ही

अब्दुल हलीम और सोमनाथ लाहिरी

भी शामिल हो गए।

1933 में सारे देश के पैमाने पर

कम्युनिस्ट पार्टी का पुनर्गठन किया जाने

लगा। इसके लिए विशेष सम्मेलन

बुलाया गया जिसकी पहल प्रमुखतः

पी.सी. जोशी, गंगाधर अधिकारी, इ. ने

की। ‘कलकत्ता समिति’ की ओर से

इसमें सोमनाथ लाहिरी, अब्दुल हलीम

और रानेन सेन उपस्थित हुए।

1935 में वे पार्टी केंद्र में काम

कम्युनिस्ट नेताओं की जीवनी-21

सोमनाथ लाहिरीः संविधान सभा के सदस्य

करने बंबई चले गए। एस.एस. मिरजकर

की गिरफ्तारी के बाद सोमनाथ लाहिरी

भा.क.पा. के थोड़े समय के लिए

महासचिव बनाए गए।

1936 में उन्हें बंबई की एक

मजदूर ‘चाल’ से गिरफ्तार कर लिया

गया जहां वे छिपे हुए थे। उनके साथ

तेजा सिंह ‘स्वंततर’ और दर्शन सिंह

‘कैनेडियन’ भी गिरफ्तार कर लिए गए।

वे लाहौर ले जाए गए और कुख्यात

लाहौर किला जेल में रखे गए। उन्हें

फिर 1939 में गिरफ्तार किया गया।

बंकिम मुखर्जी के बाद सोमनाथ

बंगाल में मजदूरों के बीच सबसे

लोकप्रिय वक्ता थे। वे 1935 से

1948 के बीच कंेद्रीय समिति के

सदस्य रहे। 1948-50 के दौरान

वे पाॅलिट ब्यूरो में रहे।

1938 में बंकिम मुखर्जी और

मुजफ्फर अहमद के साथ

1938-39 में वे अखिल भारतीय

कांग्रेस कमिटि के सदस्य रहे। सुभाषचंद्र

बोस की कांग्रेस अध्यक्षता के दौरान वे

कांग्रेस के अंदर ‘वाम एकीकरण समिति’

;लेफ्ट कन्साॅलिडेशनद्ध के सदस्य बनाए

गए। वे 1938 और 1939 के

दौरान बंगाल प्रादेशिक कमिटि की

कार्यकारिणी के सदस्य थे।

उन्होंने गांधी जी के समर्थन में

पार्टी द्वारा आयेाजित एक आमसभा में

;1944द्ध उनासे भूख हड़ताल न

करने की अपील की! उन्होंने गांधी जी

को ‘हमारे पिता और हमारे गुरू’ कहा।

यह पी.सी. जोशी द्वारा गांधीजी को

‘राष्ट्रपिता’ कहने से पहले की बात है।

सुभाषचंद्र बोस के होते हुए भी बंकिम

मुखर्जी और सोमनाथ लाहिरी की सलाह

बड़ा महत्व रखती थीं।

1940 में सरकार में कम्युनिस्टों

को गिरफ्तार करना शुरू किया। लाहिरी

तथा अन्य को कलकत्ता तथा

आस-पास के औद्योगिक क्षेत्रों से बाहर

जाने का आदेश दिया गया। रिहाई के

बाद वे अंडरग्राउंड चले गए और दो

साल गुप्त रहे। पाबंदी हटने के बाद वे

1943 में कलकत्ता कारपोरेशन लेबर

सीट से लड़े और भारी मतों से जीत

गएऋ उन्हें 10 हजार वोट मिले जबकि

उनके प्रतिद्वंद्वी को केवल दो हजार।

उन्होंने ए.आई.एस.एफ. में भी सक्रिय

भूमिका अदा की। उन्होंने विद्यार्थियों

की सभाओं में भाषण दिए।

1944 में उन्होंने म्युनिसिपल

कारपोरेशन के ऐतिहासिक सफाई

कर्मचारियों के हड़ताल का नेतृत्व किया।

उन्होंने जूट मजदूरों के बंीच 15 वर्षों

तक काम किया। मो. इस्माईल,

चतुरअली तथा अन्य के साथ उन्होंने

बंगाल की सबसे अच्छी यूनियन, ट्राम

मजदूर यूनियन का गठन किया।

1945 में वे बीमार हो गए, फिर

भी ट्राम और कारपोरेशन मजदूरों का

नेतृत्व करते रहे।

सोमनाथ लाहिरी मजदूरों के

एकमात्र दैनिक अखबार ‘स्वाधीनता’

;बंगलाद्ध के सम्पादक थे।

संविधान सभा में

संविधान सभा के चुनाव हुए। इसका

उद्देश्य था भारत का संविधान तैयार

करना। संविधान सभा ने भारत की

पहली ‘अंतरिम सरकार’ का गठन किया

जिसके प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू

बनाए गए।

इस संविधान सभा में एकमात्र

कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिरी थे

जो बंगाल से चुने गए थे। वे ‘कलकत्ता

एंड सब-अर्बन लेबर’ चुनाव क्षेत्र से

लड़े थे। उनके अलावा बंगाल से छह

अन्य कम्युनिस्ट उम्मीदवार भी थे।

चुनाव से पहले सोमनाथ लाहिरी के

घर पर गुंडों ने हमला करके घर

तहस-नहस कर दिया। इसकी

कार्रवाईयों में उन्होंने अत्यंत सक्रियता

से भाग लिया। संविधान सभा के सदस्य

के रूप में उन्होंने एक प्रस्ताव के जरिए

मांग की कि एक अस्थाई सरकार का

गठन किया जाय जो व्यस्क मताधिकार

के आधार पर एक नई संविधान सभा

का गठन करे। इस प्रस्ताव पर विचार

नहीं किया गया क्योंकि इसे अध्यक्ष ने

‘आउट आॅफ आॅर्डर’ करार दे दिया।

जनवरी 1947 में सोमनाथ

लाहिरी ने एक प्रस्ताव के जरिए सबको

आश्चर्य में डाल दिया। उन्होंने बजट

में संशोधन प्रस्तावित किए जिसमें मांग

की गई कि मंत्रियों और अफसरों के

वेतन में कटौती की जाय तथा साथ ही

निम्नतर स्टाॅफ के वेतन में बढ़ोतरी की

जाय। साथ ही उन्होंने मांग की कि

स्वयं संविधान सभा के सदस्यों के

अलाउंस इत्यादि में कटौती की जाय

और वे आम सदस्यों की तरह रहें।

जाहिर है उनकी मांगे नहीं मानी

गई।

उन्होंने मूलभूत अधिकारों पर अपने

गंभीर विचार प्रकट किए। प्रेस की

आजादी का उल्लेख तक नहीं किया

गया है। उन्होंने सरदार पटेल के राजद्रोह

संबंधी विचारों का विरोध करते हुए

कहा कि इंगलैंड में भी अधिक अधिकार

हैं। यदि पटेल की चले तो विरोध का

कोई भी स्वर, खासकर समाजवादी

विचार, कुचल दिया जाएगा।

उनका नाम स्टीयरिंग कमिटि के

13 सदस्यों में थाऋ केवल 11 का ही

चुनाव होना थाऋ सोमनाथ लाहिरी और

लक्ष्मीनारायण साहु ने अपने नाम वापस

ले लिए।

सोमनाथ ने संविधान सभा में

नागरिकों को सरकार के मुकाबले कम

अधिकार प्रदान किए जाने का कड़ा

विरोध किया। हर अधिकार के पीछे

एक शर्त लगा दी गई है।

अपने एक भाषण में सोमनाथ

लाहिरी ने पं. नेहरू को भारत की जनता

की आत्मा को ‘स्वाधीनता’ के संपादक

के रूप में उन्होंने पत्रकारिता में नई

रूझान पैदान की। कम्युनिस्ट पत्रकारिता

और सामान्य प्रत्रकारिता में नए आयाम

खुले। उनकी देखरेख में कई नए

पत्रकार प्रशिक्षित हुए।

आजादी के बाद

देश की आजादी के बाद पार्टी

अत्यंत कठिन दौर से गुजरी। देश

सांप्रदायिक दंगों तथा अन्य समस्याओं

से ग्रस्त था। पार्टी ने आजादी का स्वागत

किया। गांधी जी की हत्या कर दी गई।

लेकिन जल्द ही पार्टी पर संकीर्ण

दुस्साहिक आत्मघाती ‘बी.टी.आर.

लाईन’ हावी हो गई। पार्टी बिखर गई।

इस संकट से उबरने में उसे कुछ समय

लग गया।

पार्टी को सही रास्ते पर लाने में

सोमनाथ लाहिरी की बड़ी भूमिका रही।

वे पं. बंगाल की असेम्बली में 1957

में चुने गए। वे 1977 तक एम.एल.

ए. बने रहे। 1967 और 1969 में

वे राज्य सरकार में बनी सरकार में

मंत्री बने, वे सूचना और स्थानीय

प्रशासन के मंत्रालय को संभाल रहे

थे। वे 1973 में प. बंगाल के पी.ए.

सी. ;पब्लिक अकाॅउन्ट्स कमिटिद्ध के

अध्यक्ष नियुक्त हुए।

वे असाधारण रूप से प्रखर वक्ता

थे। वे दूसरे कई नेताओं से ऊपर थे।

उनकी लेखनी बहुत ही शक्तिशाली थी।

उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या ;30

जनवरी 1948द्ध के संबंध में

स्वाधीनता में लिखाः ‘‘शोक नहीं,

क्रोध’’। वे बहुत ही सादा रहते और

विविध प्रकार की दिलचस्पी रखतेः

फिल्म, कवित, संगीत, उपन्यास, इ.।

वे खुद कहानियां और उपन्यास लिखा

करते।

उन्होंने निखिल चक्रवर्ती के साथ

मिलकर काफी काम किया था। आजादी

के आंदोलन के अंतिम दिनों में सारे

दिन की पत्रकारों द्वारा रिपोर्टिंग के बाद

जब सभी ‘स्वाधीनता’ के दफ्तर पहुंचे

तो सोमनाथ लाहिरी ने पूछा कि

दिन-भर की घटनाओं की सबसे विशेष

बात क्या है? निखिल ने कहा कि पहली

बार उन्होंने लोगों को गोली चलाने

वाली पुलिस की ओर भागते देखा।

लाहिरी ने तुरंत कहाः ‘‘यही , यही है

सबसे खास बात! लोगों का डर खत्म

हो गया है। यही जन-विद्रोह का लक्षण

है और पूरी-पूरी रिपोर्टिंग होनी चाहिए।’’

चीनी आक्रमण के बारे में

1962 के चीनी आक्रमण के

संदर्भ में सोमनाथ लाहिरी ने कालांतर

साप्ताहिक के जनवरी 1963 के अंक

में बड़ा ही सुंदर लेख लिखा। उन्होंने

कहा कि हम हर साल गणतंत्र बचाने

का संघर्ष आगे बढ़ाते हैं। ‘‘एकता और

संघर्ष’’ की नीति उसी का एक अंग है।

लेकिन चरम कठमुल्लापन यह सब

भूलकर और साथ ही पंचशील एवं

गुटनिरपेक्षता त्यागकर काली शक्तियों

की सहायता में उतर आया। उन्होंने

लिखा, चीन ने भारत पर आक्रमण कर

दिया। प्रतिक्रियावाद के खेमे में खुशी

की लहर दौेड़ गई। बाहर से चरम

वामपंथ ने वह कर दिखाा जो देश के

अंदर चरम दक्षिणपंथ नहीं कर पाया

था। हमने देश की रक्षा के लिए उचित

कदम उठाए। भारत की राष्ट्रीय भावना

मरी नहीं। हमें प्रधानमंत्री तथा जनता

की सच्ची भावना के पीछे गोलबंद होना

चाहिए।

हम देश का निर्माण अपने तरीके

से करेंगे। हम शांति के लिए लड़ेंगे।

सम्मानजनक शांति हमारे गणतंत्र का

प्रमुख उद्देश्य होगा। संुदर शब्दों में प्रकट

करने के लिए बधाई दी। नेहरू ने

कहा था कि किसी भी प्रकार के दबाव

का जनता द्वारा विरोध होगा। लाहिरी

ने कहा कि असली बात अमल है।

अभी भी अंग्रेज मौजूद हैं और उनकी

छाया का असर कई घटनाओं पर पड़

रहा है। अंग्रेज अलग ही किस्म का

संविधान चाहते हैं और इसके लिए

दबाव बनाए हुए हैं।

सोमनाथ लाहिरी ने रोजगार, भूमि

के राष्ट्रीयकरण, इ. के संदर्भ में मूलभूत

अधिकारों संबंधी महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत

किए।


सोमनाथ लाहिरी न सिर्फ ‘स्वाधीनता’ बल्कि अन्य पार्टी अखबारों से भी जुड़े

हुए थे, जैसे ‘नेशनल फ्रंट’, ‘न्यू एज’, इ. सत्तर के दशक में ‘न्यू एज’ के लिए

नियमित लिखा करते थे।

उन्होंने ‘कलियुगेर गल्प’ नाम से बंगला में कहानियांे का संकलन लिखा।

उन्होंने ‘साम्यवाद’ नामक माक्र्सवाद और समाजवाद पर बंगला में प्रथम पुस्तक

लिखी। उन्होंने लेनिन की रचना ‘राज्य और क्रांति’ का बंगला अनुवाद किया।

दिलीप बोस ने ही प्रो. हीरेन मुखर्जी को सोमनाथ लाहिरी से मिलाया था।

सोमनाथ लाहिरी की पत्नी बेला बोस की मृत्यु उनसे दो वर्ष पूर्व ही हुई थी।

लाहिरी इससे बहुत विचलित हुए थे। उस दौरान उन्होंने अपनी एकमात्र कविता

लिखी जो बाद में ‘कालांतर’ में प्रकाशित हुई। सोमनाथ 1961,1964 और

1968 में भा.क.पा. की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य थे।

उस जमाने में तथा आजादी के बाद भी भवानी सेन जेसे प्रभावशाली व्यक्तित्व

भी हुआ करते थे लेकिन सोमनाथ लाहिरी का अपना अलग ही प्रभाव था। वे

जनसभा में प्रभावशाली तो थे ही वे माक्र्स संबध्ंाी सेमिनारों में भी उतने ही

असरदार हुआ करते।

उनकी मृत्यु 19 अक्टूबर 1984 को हो गई। उनकी मृत्यु का शोक

व्यापक तौर पर मनाया गया। कलकत्ता वि.वि. के वाइस -चांसलर और अन्य े भी

शोक सभा में हिस्सा लिया।

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