-अनिल राजिमवाले
वैसे तो शापुरजी सीधे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य नहीं थे
लेकिन भारतीय मजदूर एवं कम्युनिस्ट आंदोलन के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण
भूमिका रही। इसलिए यहां उनकी जीवनी विस्तार से प्रस्तुत कर रहे है।
शापुरजी भारत के बड़े औद्योगिक घराने टाटा परिवार से जुड़े हुए थे।
उनका जन्म बंबई में 28 मार्च 1874 को पारसी परिवार में हुआ था। वे अपनी मां के परिवार के जरिए टाटा परिवार से संबंधित थे। उनकी माता जेरबाई जे.एल. टाटा की बहन थीं। सकलतवाला
परिवार 1830 के दशक से ही बंबई का जाना-माना पारसी परिवार था।
उनके पिता दोराबजी प्रसिद्ध व्यापारी थे। परिवार जरथुष्टवादी था।
शापुरजी की पढ़ाई बंबई के सेन्ट जेवियर स्कूल और काॅलेज में हुई थी।
वे असाधारण प्रतिभा के विद्यार्थी थे
और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में आगे
रहते थे।
1890 के दशक में बंबई में फैले प्लेग महामारी में शापुरजी ने प्रसिद्ध
रूसी डाॅक्टर हाफ्किन की बड़ी सहायता की। काॅलेज छोड़ने के बाद वे उद्योग के कामों में शामिल हो गए। वे तीन वर्षों तक मध्य भारत के जंगलों में लोहा, कोयला, लाइमस्टोन इत्यादि की
खोज में घूमते रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि अपने मामा जे.एन. टाटा की
देखरेख में उन्होंने टाटा आयरन एंड स्टील लिमिटेड ;आगे चलकर टिस्को की स्थापना में प्रमुख भूमिका अदा की।
बिहार और उड़ीसा के जंगलों में लोहा अयस्क की खोज के दौरान वे आम आदिवासियों, ग्रामीणों और मजदूरों के संपर्क में आए। एक मौके पर उन्होंने पाया कि पुलिस ने आदिवासियों को डराकर बंधक के रूप में पुलिस थाने
में बंद कर रखा है। वे सीधे पुलिस स्टेशन गए। बातचीत के दौरान उनकी नजर थाने की चाबी पर पड़ी। मौका
पाते ही चाबी अपने कब्जे में कर ली
और पुलिसवालों को थाने में बंद कर दिया। उनका खाना-पीना बंद कर दिया। पुलिसवालों को एक-एक कर
तभी छोड़ा जब उन्होंने ग्रामीणों को रिहा किया। पुलिस ने गांववालों को
डरा रखा था कि ‘अंग्रेज’ आ रहे हैं!
यह वह दौर था जब राष्ट्रीय चेतना का विकास हो रहा था। उनकी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राजनीति में दिलचस्पी
बढ़ती जा रही थी और कभी-कभी अंग्रेजों से उनका टकराव भी हो जाया
करता। इसलिए उन्हें 1905 में टाटा के प्रतिनिधि के रूप में इंगलैंड भेजा शापुरजी सकलतवालाः टाटा उद्योग से कम्युनिज्म तक
दिया गया। वह वर्ष भारतीय राजनीति में अत्यंत सक्रियता का वर्ष था।
बंग-भंग तथा अन्य आंदोलन चल रहे थे।
इंगलैंड में वास्तव में इंगलैंड में ही शापुरजी सकलतवाला का राजनैतिक जीवन
आरंभ होता है। वे उदारवादी से
ब्रिटिश-विरोधी बन गए। पहले कुछ महीने उन्होंने टाटा के मैनचेस्टर आॅफिस
में काम किया। उसके बाद वे लंदन आए। वहां उनके परिवार ने उन्हें
नेशनल लिबरल क्लब का सदस्य बना
दिया। वहां उनकी मुलाकात आजादी
के आंदोलन से जुड़ी कई हस्तियों से
हुई। वहां उनकी मुलाकात लाॅर्ड मोर्ले
से भी हुई जो मिन्टो के साथ ‘मोर्ले-मिन्टो
सुधार’ प्रस्तावों से जुड़े हुए थे मोर्ले के
साथ उनकी तीखी बहस हो गई जिसका
परिणाम यह हुआ कि सकलतवाला ने
लिबरल क्लब से इस्तीफा दे दिया।
उनके लिए यह क्लब अर्थहीन था।
सकलतवाला धीरे-धीरे ‘इंडिपेंडेंट
लेबर पार्टी’ ;आर.एल.पी.द्ध के संपर्क में
आए। वे 1910 में इसके सदस्य बन
गए। वहां उनकी मुलाकात रजनी पाम
दत्त ;आर.पी.डी.द्ध से हुई जो आगे
चलकर ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के नेता
बने।
आई.एल.पी. का वामपंथ मैक्डोनल्ड
और स्नोडेन के दक्षिणपंथ से संघर्ष
कर रहा था। पार्टी को दूसरी इंटरनेशनल
से दूर रखने में वामपंथ को सफलता
मिली।
1920 मंे सकलतवाला, वाल्टन
न्यूबोल्ड, एमिली बन्र्स और आर.पी.
डी. की कमिटि आई.एल.पी. में बनाई
गई जिसका उद्देश्य था तीसरी
;कम्युनिस्टद्ध इंटरनेशनल से संब(ता
पर विचार करना। इन लोगों ने ‘कमिटि
फाॅर थर्ड इंटरनेशनल’ की ओर से एक
बुलेटिन ‘द इंटरनेशनल’ का प्रकाशन
आरंभ किया। मैक्डोनल्ड ने चाल चली
और प्रस्तावित किया कि आई.एल.पी.
न दूसरी, न तीसरी इंटरनेशनल में
बल्कि मध्यमार्गी ढाई इंटरनेशनल’ में
शामिल हो!
आई.एल.पी. का वामपंथ 1921
में कम्युनिस्ट पार्टी के एकता अधिवेशन
;कांगेसद्ध में शामिल हो गया।
लंदन में उन्होंने डर्बीशायर की एक
महिला मिस मार्श से शादी कर ली जो
अंत तक उनके साथ रहीं।
ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के गठन में
सकलतवाला ने सक्रिय हिस्सा लिया।
वे 1921 के सम्मेलन में शामिल
नहंीं हो पाए लेकिन समर्थन का पत्र
भेजा।
टेªड यूनियन आंदोलन में
सकलतवाला ने टेªड यूनियन
आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया। वे
लगातार इंगलेंड के विभिन्न हिस्सों और
मजदूर बस्तियों का दौरा करते रहे
और श्रमिकों को संगठित करते रहे।
उनके नाम से ही मजदूरों की भीड़ जुट
जाया करती। वे टेªन में जमीन पर ही
सो जाया करते। वे जनरल वर्कर्स
यूनियन तथा क्लक्र्स और कोआॅपरेटिव
यूनियनों में थे।
ब्रिटिश संसद में
वे 1922 में लंदन के बैटरसी
नाॅर्थ चुनाव क्षेत्र से चुने गए। वे टेªड्स
काउंसिल के कम्युनिस्ट उम्मीदवार के
रूप में लेबर पार्टी के समर्थन से लड़े।
1923 में वे थोड़े से मतों से पराजित
हो गए। लेकिन उनका वोट 9.1ø
बढ़ गया। 1924 में वे पुनः निर्वाचित
हुए और उनका वोट प्रतिशत फिर बढ़
गया। इस बार सकलतवाला ब्रिटिश
कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप
में लड़े।
शापुरजी सकलतवाला ब्रिटिन के
मजदूरों के बीच सबसे लोकप्रिय नेताओं
में एक थे।
ब्रिटेन की पार्लियामेंट में
सकलतवाला ने एक से बढ़कर एक
भाषण दिए। वे लगातार मजदूरों और
भारतीय जनता के आजादी के संघर्षों
की आवाज उठाते रहे उन्होंने खुलकर
ब्रिटिश साम्राज्यवाद के पाखंड का
पर्दाफाश किया। भारत की सबसे शोषित
और कुचली जनता, भूखे-नंगे बच्चों,
औरतों तथा मर्दों की स्थिति के लिए
उन्होंने पूरी तरह ब्रिटिश शासन को
जिम्मेदार ठहराया। सकलतवाला ने
ब्रिटिश संसद में कहा कि ब्रिटिश सरकार
भारत की जनता का अपमान कर रही
है।
सकलतवाला ने ब्रिटिश संसद में
अपने भाषण ;25 नवंबर 1927द्ध
के दौरान ‘अर्ल’ विन्टरटन को याद
दिलाया कि 25 साल पहले उन्हें
;सकलतवाला कोद्ध भारत में एक श्वेत
डाॅक्टर से प्लेग संबंधी बातचीत करने
जाने से श्वेतों के क्लब में रोका गया
था। आखिरकार उन्हें पिछले दरवाजे
से बेसमेंट में जाने दिया गया। क्या
ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त ‘इंडियन
स्टैच्यूटरी कमिशन’ इसमें बदलाव ला
पाएगा?
शापुरजी सकलतवाला ने ब्रिटिश
संसद में पूछा कि क्या ब्रिटेन को इसी
तरह का कमिशन फ्रांस के लोगों की
स्थिति ‘जानने’ के लिए भेजने की
हिम्मत है और क्या यह पूछने की
हिम्मत है कि फ्रांसीसियों का अपने ही
देश में शासन चलाना आता है या नहीं?
शायद सकलतवाला आधुनिक युग
के प्रथम सांसद ;एम.पी.द्ध थे जिन्होंने
खुलकर ब्रिटिश राजतंत्र पर संसद के
अंदर आक्रमण किया। उन्होंने
कहाः‘‘कुछ ही परिवार शाही शासकों
की वैसे ही सप्लाई करते हैं जैसे कुछ
बिस्कुट फैक्टरियां समूचे योरप में
बिस्कुट की सप्लाई करती
हैं।’’;1926द्ध
उन्होंने अंग्रेजों से भारत छोड़कर
चले जाने को कहा। उन्होंने कानपुर
वोल्शेविक षड्यंत्र मुकदमों का प्रश्न
उठाया।
नेहरू के अनुसार, सकलतवाला
ने लगातार भारत की आजादी की
वकालत की। उन्होंने भारत में मजदूरों
के टेªड यूनियन अधिकारों का सवाल
उठाया। ये सकलतवाला ही थे जिन्होंने
भारत में टेªड यूनियन एक्ट बनाने का
सवाल इंगलैंड में उठाया। इससे पहले
1920 में ही वे भारत के सेक्रेटरी
आॅफ स्टेट मान्टेग्यू से मिले और भारत
में टेªड यूनियन कानून बनाने पर जोर
दिया।
लंदन में सकलतवाला का घर
भारत की आजादी के आंदोलन का
एक केंद्र बन गया। सकलतवाला,
श्रीनिवास अय्यंगर और मौलाना
मोहम्मद अली ने लंदन कांग्रेस कमिटि
का गठन किया।
सकलतवाला को भारत आने या
अमरीका जाने का वीसा नहीं दिया गया,
जबकि वे ब्रिटिश एम.पी. थे!
टाटा कंपनी से इस्तीफा
टाटा परिवार के होते हुए भी
सकलतवाला उसके कारोबार में ज्यादा
दिनों तक नहीं रह पाए। लंदन में टाटा
के एक फर्म में, जिसकी अधिकृत पूंजी
40 लाख पाउंड थी, सकलतवाला
डिपार्टमेंटल मैनेजर थे। सकलतवाला
ने महसूस किया कि वहां पदासीन रहते
हुए वे मजदूर वर्ग के मुक्ति तथा पूंजीवाद
की तीखी आलोचना नहीं कर सकते
थे। दोनों बातें साथ-साथ ज्यादा देर
नहीं चल सकती थीं।
सकलतवाला ने 1925 में अपने
पद से इस्तीफा दे दिया। बाद के दिनों
में वे अक्सर गरीबी की स्थिति में एक
छोटे-से फ्लैट में परिवार सहित रहने
लगे।
1926 में सारे ब्रिटेन में मजदूरों
का विशाल विद्रोह फूट पड़ा और आए
दिन हड़तालें होने लगीं। सकलतवाला
इस मजदूर आंदोलन की अगली पांतों
में बने रहे।
सकलतवाला की भारत यात्रा,
1927
इस यात्रा की योजना काफी समय
से बन रही थी। सकलतवाला को
1925 में ही भारत आना था और
कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापना सम्मेलन
का उद्घाटन करना था। लेकिन उन्हें
आने की इजाजत अंग्रेज सरकार ने
नहीं दी। उन्होंने कानपुर सम्मेलन को
शुभकामना संदेश भेजा। 1927 में
उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को एक कड़ी
चिट्ठी लिखी। इसमें उन्होंने याद
दिलाया कि वे ब्रिटिश संसद के सदस्य
हैं और इसके अलावा एक नागरिक की
हैसियत से भी उन्हें अपने विचार रखने
और उन्हें प्रचारित करने का अधिकार
है। ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य
होने के नाते उनके साथ अन्य पार्टियों
के सदस्यों से अलग भेदभाव करने
सरकार को कोई अधिकार नहीं है।
सरकार को एक एम.पी. के कार्यकलापों
में दखल देना बंद करना चाहिए।
आखिर इंगलैंड की सरकार को
मजबूर होकर उन्हें पासपोर्ट देना पड़ा
और वे भारत की यात्रा पर निकल
पड़े।
वे 14 फरवरी 1927 को जहाज
से बंबई पहुंचे भारत में सकलतवाला
का भारी स्वागत किया गयाा। बहुत
कम ही लोगो ंको ऐसा स्वागत किया
गया हो। ऐसोसिएटेड प्रेस आॅफ इंडिया
ने 1 जनवरी 1927 को लाहौर से
लिखा कि अखिल भारतीय कम्युनिस्ट
सम्मेलन का दूसरा अधिवेशन 17 से
20 मार्च ;1927द्ध को लाहौर में
होगा और इसकी सकलतवाला द्वारा
अध्यक्षता करने की संभवना है।
किन्हीं कारणों से वह अधिवेशन
नहीं हो पाया।
मद्रास के ट्राम-वे मजदूरों की
यूनियन को एक पत्र में उन्होंने कहा
कि मैं अपनी मातृभूमि की यात्रा करने
और पुराने मित्रों से मिलने भारत आया
हूं।
बंबई में उनके स्वागत के लिए
एक व्यापक समिति का गठन किया
गया। इसमें सरोजिनी नायडू और बी.
जी. हॅर्निमन थे। स्वागत समिति ने
मजदूर बस्तियों और मिल इलाकों में
उनकी सभाओं का आयोजन किया।
उनके भाषणों एवं संबोधनों की भाषा
सरल और सीधी हुआ करती। उन्होंने
अनिल राजिमवाले
शेष पेज 12 परभारत के मजदूरों से कहा कि विश्व के
अन्य मजदूरों के समान वे भी विश्व
का प्रकाश और समृ(ि हैं। 18 जनवरी
1927 को शापुरजी सकलतवाला का
कावसजी जहांगीर हाॅल में सार्वजनिक
सम्मान किया गया। वहां असाधारण
भीड़ इकट्ठा हो गई और पूरा हाॅल
ऊपर से नीचे तक खचाखच भरा हुआ
था। लगातार तालियों की गड़गड़ाहट
के बीच सरोजिनी नायडू ने उनकी
भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि वे
13 वर्षों बाद भारत वापस आए हैं।
इस पर श्रोताओं के बीच से किसी ने
कहाः ‘‘पांडवों के समान’’! इतना सम्मान
था उनका। तालियों की तुमुल
गड़गड़ाहट के बीच सकलतवाला दो
धंटे तक बोलते रहे।
हाॅर्निमन, ब्रेल्की, शौकत अली तथा
अन्य ने उनका स्वागत किया।
16 जनवरी को बंबई प्रदेश कांग्रेस
कमिटि ने एक ‘गार्डन पार्टी’ में
सकलतवाला और श्रीनिवासन अय्यंगर
का स्वागत किया। 21 जनवरी
;1927द्ध को वे अहमदबाद पहुंचे।
स्वयं सरदार वल्लभभाई पटेल ने स्टेशन
शापुरजी सकलतवालाः टाटा उद्योग से कम्युनिज्म तक
पर उनका स्वागत करते हुए उन्हें माला
पहनाईं। उस वक्त सरदार पटेल गुजरात
प्रदेश कांग्रेस कमिटि के अध्यक्ष थे। वे
गांधी आश्रम गए। 22 जनवरी को
कांग्रेस द्वारा आयोजित एक विशाल रैली
को संबोधित करते हुए उन्होंने स्पष्ट
उद्देश्य न अपनाने के लिए कांग्रेस की
आलोचना की। उन्होंने इस बात पर
जोर दिया कि कांग्रेस पूर्ण स्वराज का
ध्येय अपनाए और इसमें
मजदूरों-किसानों का सहयोग ले।
सकलतवाला ने गांधीजी तथा
सरोजिनी नायडू, अली बंधु, नेहरू
इत्यादि को ‘काॅमरेड’ कहकर संबोधित
किया।
कलकत्ता में उनका भारी स्वागत
हुआ। वे वी.वी. गिरी के साथ खड़गपुर
गए। सकलतवाला ले टाटा आयरन एंड
स्टील कंपनी ;टिस्कोद्ध के प्रबध्ंान को
एक कड़ी चिट्ठी लिखते हुए इस बात
का विरोध किया कि टाटा प्रबध्ंान इस्पात
उत्पादन से आए हुए धन का प्रयोग
मजदूरों की हड़ताल तोड़ने के लिए
कर रहा है। उन्होंने लिखा कि वे मजदूरों
की समस्याओं का अध्ययन करने 25
तारीख को जमशेदपुर पहुंच रहे हैं।
उन्हें खड़गपुर में आम सभा करने
की इजाजत नहीं मिली।
कलकत्ता में उनका सार्वजनिक
स्वागत किया हालांकि अंग्रेज सदस्यों
और कुछ अन्य ने इसका विरोध किया।
बंबई कारपोरेशन ने बहुमत से उनके
स्वागत का विरोध किया। लेकिन मद्रास
कारपोरेशन ने उनका पुरजोर स्वागत
किया।
मद्रास आगमन
सकलतवाला 24 फरवरी
1927 को मद्रास पहुंचे। उन्होंने
टेक्सटाइल और रेलवे मजदूरों की आम
सभाओं को संबोधित किया। कारपोरेशन
ने भी उनका नागरिक अभिनंदन किया।
सत्यमूर्ति के सभापतित्व में उन्होंने
ट्रिप्लिकेन ‘बीच’ पर सभा को संबोधित
किया। फिर गोखले हाॅल मंे बु(िजीवियों
को कम्युनिज्म के उद्देश्यों पर संबोधित
किया।
सिंगारवेलु लगातार उनके साथ रहे
और उनका कार्यक्रम तैयार करते रहे।
उन्होंने और थिरू कल्याणसुंदरम ने
उनके भाषणों का तमिल में अनुवाद
किया।
सकलतवाला की मद्रास यात्रा ने
बु(िजीवियांे, मजदूरों और कम्युनिस्टों
में जोश भर दिया।
सकलतवाला ने 1927 में मद्रास
में आयोजित एटक के अखिल भारत
अधिवेशन में भी भाग लिया। अधिवेशन
ने सकलतवाला का खूब अभिनंदन
किया। सकलतवाला ने भारत की
आजादी का पुरजोर समर्थन किया।
दिल्ली यात्रा में मोतीलाल नेहरू
तथा अन्य कई राष्ट्रीय नेताओं ने उनका
स्वागत किया। उनकी अध्यक्षता में
सकलतवाला का स्वागत करते हुए आम
सभा की गई।
बंबई में मुस्लिम समुदाय एक
विशाल सभा आयोजित की गई जिसमें
6 हजार से भी अधिक लोग शामिल
हुए।
इस बीच 1927 मे गांधीजी और
सकलतवाला के बीच पत्राचार भी चला।
8 अप्रैल 1927 को
सकलतवाला बंबई से लंदन के लिए
चल पड़े। भारत यात्रा के दौरान लोगों
ने उन्हें 14 हजार 3 सौ रूपए इकट्ठा
करके दिए। अपनी भारत यात्रा के
दौरान उन्होंने भारत की आजादी,
मजदूर वर्ग की भूमिका और कम्युनिज्म
के विचारों का खूब प्रचार किया। अंग्रेजी
दैनिक ‘अमृत बाजार पत्रिका’ तथा
अन्य अखबारों में उनके बारे में खूब
लेख एवं संपादकीय तथा खबरें
प्रकाशित हुर्इं।
भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन को
उनकी यात्रा से बड़ी सहायता मिली।
इंगलैंड वापस लौटने पर
सकलतवाला सक्रिय राजनैतिक कार्यों
में फिर लग गए। भारत में दिए गए
भाषणों तथा गतिविधियों के कारण वापस
इंगलैंड लौटने पर अंग्रेज सरकार ने
उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया।
मार्च-अप्रैल 1936 में वे
आॅक्सफोर्ड मजलिस के वार्षिक ‘डिनर’
में मुख्य अतिथि के रूप में आनेवाले
थे। लेकिन एकाएक उनकी मृत्यु लंदन
में 16 जनवरी 1936 को 62 वर्ष
की उम्र में हो गई।
उनकी मृत्यु पर जवाहरलाल नेहरू,
ज्याॅर्जी दिमित्रोव, एस.ए ब्रेल्वी ;बाॅम्बे
क्रांॅनिकलद्ध, इवान माइस्की ;राजदूतद्ध,
लान्स्बरी, क्लीमेंट एटली, कांग्रेस
सोशलिस्ट पार्टी, सुभाषचंद्र बोस, हैरी
पाॅलित और विश्व भर के अन्य महत्वपूर्ण
व्यक्तियों एवं संगठनों ने अपना शोक
प्रकट किया।
शापुरजी सकलतवाला एक महान योद्धा थे।
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