डॉ.टी वी कुन्हा या ब्रगांसा
- अनिल राजिमवाले
‘‘गोवन राष्ट्रवाद के पिता’’ केरूप में जाने जाते हैं। उनका जन्म 2अप्रैल 1891 को गोवा के सालसेत तालुका के चांदोर नामक गांव में हुआ था। उनके पिता वकील थे। उनकापरिवार धनिकों में गिना जाता था।त्रिस्ताव की स्कूली शिक्षा पुर्तगालीमाध्यमिक शिक्षा प्रणाली के मुताबिक‘लेसेवे’ में हुई। पढ़ाई का माध्यमपुर्तगाली भाषा थी। उच्च शिक्षा के लिएत्रिस्ताव पांडिचेरी चले गए जोफ्रांसीसियों के अधीन था। इसलिए वहांपढ़ाई का माध्यम फ्रांसीसी था। त्रिस्तावने फ्रेंच भाषा में बी.ए. की पढ़ाई पूरीकी। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरीकरके पैरिस जाने का निर्णय लिया।1912 में 21 वर्ष की उम्र में वेपैरिस चले गए।फ्रांस में समाजवाद के संपर्क मेंफ्रांस में वे आगे चलकर समाजवादके संपर्क में आए। त्रिस्ताव में सर्बोनयूनिवर्सिटी में दाखिला लिया औरइलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्रीहासिल की। पैरिस में वे सुप्रसि( लेखकरोम्यां रोलां के ग्रुप के संपर्क में आए।इसके जरिए वे भारत की आजादी तथाविशेषतौर पर गोवा की मुक्ति का संदेशफैलाते रहे। योरप के लोगों कोजलियांवाला बाग की घटनाओं से अपनेलेखन के जरिए अवगत कराने वाले वेही थे।फ्रांस की सोशलिस्ट पार्टी प्रथमविश्यु( से पहले द्वितीय इंटरनेशनलसे संबंधित थी। यु( की समाप्ति केबाद वैचारिक-राजनैतिक संघर्ष केफलस्वरूप उसी के अंदर से कम्युनिस्टपार्टी का उदय हुआ।इस बीच कुन्हा सोवियत रूस होआए। उन्हें वहां की क्रांतिकारी घटनाएंदेखने को मिलीं। उन्होंने पैरिस मेंआजीविका के लिए शिक्षक का कामकरना आरंभ किया। उन्होंने लिखनेका काम भी ले लिया। वे ‘क्लार्ते और‘लुमानिते’ नामक अखबारों में लिखनेलगे। ‘लुमानिते’ पहले सोशलिस्ट पार्टीऔर फिर कम्युनिस्ट पार्टी का दैनिकमुखपत्र बना।त्रिस्ताव कुन्हा की मुलाकातसुप्रसि( लेखक और नोबेल पुरस्कारविजेता बदब्राउन से हुई। उनके अनुरोधपर कुन्हा ने महात्मा गांधी की जीवनीका फ्रेंच भाषा में अनुवाद किया। उसवक्त फ्रांस में गांधीजी के आंदोलन कीबड़ी चर्चा थी। उनके अनुवाद की हेनरीने बड़ी तारीफ की। इस प्रकार फ्रेंचभाषा पर उनकी पकड़ काफी मजबूतकम्युनिस्ट नेताओं की जीवनी-27डॉ. टी.बी. कुन्हाः ‘‘गोवा के राष्ट्रवाद के पिता’’हो गई थी। रोम्यां रोलां ने अन्य केसाथ मिलकर ‘साम्राज्यवाद-विरोधीलीग’ की स्थापना की। कुन्हा उसकेसदस्य बन गए।फ्रेंच कम्युनिस्ट पार्टी कीस्थापनाः हो ची-मिन्ह से मुलाकात25 दिसंबर 1920 को फ्रेंच सोशलिस्ट पार्टी का सम्मेलन तूर्स मातोवर्स ;ज्वनते में आरंभ हुआ। इसमें वियतनाम के भावी नेता हो ची-मिन्ह भी उपस्थित थे। वे पढ़ने के लिए पैरिस आए थे और जीविका के लिए विभिन्नकाम किया करते।इस कांग्रेस के दौरान बहुमत कम्युनिस्ट इंटरनेशनल में शामिल होनेके पक्ष में था। मार्सेल काशिन, सुवाराइन,फ्रांसार्ड और लोरिए के नेतृत्व में उसनेलेनिन का समर्थन किया। तीन-चौथाई प्रतिनिधियों ने ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का फ्रेंच सेक्शन’ स्थापित किया जो आगे चलकर 1921 में फ्रेंच कम्युनिस्ट पार्टी बन गया। ‘लुमानिते’अखबार भी इनके पास आ गया।यहां डॉ. कुन्हा की मुलाकात होची-मिन्ह से हुई। दोनों के बीच काफी बातचीत हुई। आगे चलकर कुन्हा भी फ्रेंच कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए।इस प्रकार एक गोवा और दूसरा वियतनाम का क्रांतिकारी फ्रेंच कम्युनिस्टपार्टी में साथ काम करने लगे। पुर्तगालकी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना1921 में की गई। इस प्रकार दोनोंही देशों के कम्युनिस्ट, तथा अन्य प्रगतिशील लोग गोवा की आजादी केसंघर्ष का समर्थन करने लगे। 1925में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापनाकी गई।भारत में वापसीटी.बी. कुन्हा 14 वर्ष फ्रांस में रहे।वे 1926 में भारत लौटे। उन्होंने गोवामें ‘कोमिस्साओ दो कोंग्रस्सो दे गोवा’;गोवा कांग्रेस कमिटिद्ध की स्थापना की।कुन्हा नेहरू से मिले और इस संबंध मेंचर्चा की। उसे भारत से जोड़ा गया।कम्युनिस्ट पार्टी स्थापित करने कीकोशिश नहीं की गई क्योंकि इससेपुर्तगालियों का दमनचक्र तेज हो जाता।कुन्हा को कांग्रेस की कार्यसमितिमें शामिल किया गया। गोवा कांग्रेससमिति भूमिगत काम कर रही थी।लेकिन उन्हें कांग्रेस से उचित सहायतानहीं मिली। वे बंबई चले गए जहांगोवा से कई लोग रहा करते थे। वहांउन्होंने संगठन बनाने का काम शुरूकिया।बंबई में गोवा से मडकईकर,नारायण पालेकर, ज्यॉर्ज वाझ, जेराल्डपरेरा, मारियो रॉड्रिग्ज, काशीनाथतेंदुलकर, इत्यादि उपस्थिति थे। एम.एन. रॉय का भी प्रभाव था। बेलगांव केरॉयवादी गोवा में अध्ययन मंडलियांसंगठित करते। 1937 में मडकईकरने ‘गोमांतक हिंदू युवक संघ’ का गठनकिया जिसका नाम बाद में बदलकर‘गोमांतक तरूण संघ’ कर दिया गया।वे कसरत और शस्त्रास्त्रों की ट्रेनिंगदिया करते।पुर्तगाल की जेल में18 जून 1946 को राममनोहरलोहिया को गोवा में गिरफ्तार कर लियागया। उन्होंने गोवा आंदोलन की ओरसबका ध्यान खींचा। कुन्हा ने उनकीतब तक की एक विशालतम आमसभाआयोजित की लेकिन खुद एक दिनबाद ही आ पाए। उस दिन व्यापकसत्याग्रह आयोजित किया। कुन्हा बंबईसे गोवा आ गए थे। उन्होंने लोहियाकी गिरफ्तारी के विरोध में भाषण दिया।इस जुर्म में उन्हें मडगांव में गिरफ्तारकर लिया गया। पहले तो उन्हें गोवाके अग्वाडा जेल में अंधेरी नम कोठरीमें रखा गया। फिर पुर्तगाल भेज दियागया।बंबई में बड़ी संख्या में गोवन लोगरहा करते थे। 1950 में उनकी संख्याएक लाख थी। 1945 में डॉ. कुन्हाने ‘गोवन यूथ लीग’ की स्थापना की।जेराल्ड परेरा, जोआकिम डायस तथाअन्य इसमें शामिल हुए।उसी वक्त टी.बी. कुन्हा ने एकपुस्तक लिखी जिस शीर्षक था‘‘डीनैशनलाइजेशन ऑफगोवन्स’’;1944द्ध, अर्थात उनकाराष्ट्रीय हक छीने जाने की समस्या।उन्होंने पुर्तगली अत्याचारों का वर्णनकिया। इसके अलावा उन्होंने कुछ अन्यपुस्तिकाएं भी लिखीं। उनमें एक थी‘‘फोर हेड्रेड ईयर्स ऑफ फॉरेन रूल’’।पुर्तगालियों को उन्हें जेल भेजने काएक और मौका मिल गया। अन्य बहानेभी थे। उन्हें पुर्तगाल के ‘‘पैनिश’’ जेलमें रखा गया। उन्हें आठ वर्ष की कठोरश्रम की सजा दी गई। पुर्तगाल कीकम्युनिस्ट पार्टी के कई नेता भी उसजेल में बंद थे। कुन्हा प्रथम नागरिकव्यक्ति थे जिन पर सैनिक ट्रिब्यूनलद्वारा मुकदमा चलया गया। उन्हें कोर्ट-मार्शल किया गया था।‘‘पैनिश’’ एक प्रकार कायातना-शिविर था। उस समय पुर्तगालपर सालाजार नामक फासिस्ट तानाशाहका शासन था। उसका फौजी खुफियाविभाग ‘पिडे’ ;च्प्क्म्द्ध कहलाता था।’पिडे’ का ढांचा नाजी गेस्टापो के समानबनाया गया था। उसने भयानकअत्याचार करते हुए हजारों बंदियों औरलोगों की हत्या की।ऐसे ही यातना-शिविर में टी.बी.कुन्हा को 1950 तक रख गया।इसके विरोध में सारे योरप और विश्वभरमें विरोध आंदोलन चल पड़ा। साथ हीएमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी आवाजउठाई और सहायता की। फलस्वरूप उन्हें रिहा कर दिया गया। लेकिन उन्हें पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में हीसीमित कर दिया गया और बाहर जानेकी इजाजत नहीं थी। इसलिए उन्हें दोसाल लिस्बन में ही बिताने पड़े। वहांके कम्युनिस्टों ने उनकी बड़ी सहायताकी। उनके लिए एक पासपोर्ट काइंतजाम कर दिया। उसके सहारे वेलिस्बन से निकलकर पैरिस चले गए।वहां उनके बहुत-सारे जान-पहचानके लोग थे। फ्रेंच भाषा पर महारथहासिल थी इसलिए वहां रहने में कोईपरेशानी नहीं हुई।कुन्हा 4 सितंबर 1953 को बंबईवापस आ गए। 1946 से 1953के बीच परिस्थिति काफी बदल चुकीथी। आंदोलन में फूट पड़ चुकी थीऔर कई गुट काम कर रहे थे। बंबईमें कई दफ्तर खुल गए। डॉ. कुन्हा नेइन सबको इकट्ठा करने का कामआरंभ किया। वे ही इसके लिए सबसेसक्षम थे। सभी गुटों में उनका बड़ासम्मान था।कुन्हा ने सबों को इकट्ठा करके‘गोवा ऐक्शन कमिटि’ का गठन किया।इसमें गोवन पीपल्स पार्टी के नारायणपालेकर, ज्यॉर्ज वाझ और जेराल्ड परेराभी शामिल थे। कुन्हा ने काफी कामकिया। उन्होंने ‘आजाद गोय’ नामकएक अखबार रोमन कोंकणी लिपि मेंप्रकाशित किया। बेलगांव से फुर्तादो‘फ्री गोवा’ नामक अखबार चला रहे थेजिसका संपादन डॉ. कुन्हा करने लगे।13 जुलाई 1954 को उन्होनेभारतीय जनता का एक वक्तव्य के जरिएआवाहन किया कि गोवा भारत काअभिन्न अंग है, इसलिए भारतीय जनताको गोवा मुक्ति संघर्ष कर सक्रिय समर्थनकरना चाहिए और हर तरह से उसकीसहायता करनी चाहिए।दादरा-नगर हवेली का मुक्ति संग्रामगोवा मुक्ति आंदोलन का एकमहत्वपूर्ण पड़ाव है दादरा-नगर हवेलीका मुक्ति संघर्ष। यह महाराष्ट्र- गुजरातकी सीमा पर स्थित है और गोवा कीतुलना में बहुत छोटा है। इसकी मुक्तिपर विचार करने के लिए गोवन पीपल्सपार्टी और भा.क.पा. की संयुक्त बैठकेंबंबई में हुईं। इसमें मिरजकर ने पहलकी। दादरा और नगर-हवेली पिछड़ेआदिवासी क्षेत्र के बीच थे और बंबईसे मात्र 80 किमी की दूरी पर। अत्यंतपिछड़े सामंती, आदिवासी तथा पुर्तगालीशासन ने जनता पर भयंकर अत्याचारकिए। 1953 में डहाणू में अ.भा.किसान सभा के अधिवेशन में यहयोजना अधिक मजबूत हुई। यह तयपाया गया कि वरली आदिवासियों,किसानों और साधारण जनता कोगोलबंद कर पुर्तगालियों से दादरा-नगरहवेली मुक्त कराई जाए। वहां सशस्त्रआक्रमण की योजना भा.क.पा. तथागोवन पी.पी. के नेतृत्व में बनी।कुछ कांग्रेसियों ने यूनाइटेड फ्रंटऑफ गोवन्स गठित किया और मोरारजीदेसाई की सहायता से वे दादरा मेंप्रवेश कर गए। लेकिन इस कार्रवाईका मुख्य निशाना था आंदोलन कीमुख्यधारा से ध्यान हटाना और उसमेंफूट डालना।टी.बी. कुन्हा पं. नेहरू से मिले औरसेना तथा पुलिस भेजने का अनुरोध किया। मोरारजी देसाई की कार्रवाई से पुलिस सतर्क हो चुकी थी। नगर हवेली की जनसंख्या लगभग 40 हजार थी।भा.क.पा. के कैप्टन गोले, पालेकर,वाज, इ. कम्युनिस्टों के नेतृत्व में धनइकट्ठा किया गया। वे सभी कुन्हा से मिले और काम तेज हो गया।23 जुलाई 1854 को गोवन पीपल्स पार्टी तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दस्ते नगर-हवेली में प्रवेशकर गए। गोदावरी परूलेकर भी काफीसक्रिय थीं। तीन दिशाओं से आक्रमणकिया गया। गोवन पीपल्स पार्टी ने 43गांवों पर कब्जा कर लिया।एक अन्य पार्टी आजाद गोमंतक पार्टी ने मोरारजी देसाई तथा आर.एस.एस.की मदद से पीपल्स पार्टी को न सिर्फ रोकने की कोशिश की बल्कि उन केनेताओं की गिरफ्तारियां तक करवाईं।राजधानी सिलवासा के गिर्द तनाव बढ़नेलगा। भा.क.पा./जी.पी.पी. के ज्यॉर्ज वाजको पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया औरसिलवासा की जेल में बंद कर दिया।दादरा-नगर हवेली की मुक्ति केसमारोह में 15 अगस्त को डॉ. टी.बी.कुन्हा को झंडोत्तोलन के लिए बुलायागया। वहां पहुंचने पर उन्हें स्थितिसमझ में आई। उन्होंने कहा कि जबतक जी.पी.पी. के कार्यकर्ता रिहा नहींहोते तब तक झंडोत्तोलन नहीं करेंगे।आश्वासन मिलने पर ही उन्होंने झंडाफहराया।लेकिन कैदियों को आसानी से रिहानहीं किया गया। इस प्रकारमुक्तियो(ाओं को एक ओर पुर्तगालियोंसे लड़ना पड़ा तो दूसरी ओर मोरारजीकी बंबई सरकार से।डॉ. टी.बी. कुन्हाः ‘‘गोवा के राष्ट्रवाद के पिता’’‘दमन’ में सत्याग्रह करने का निर्णय गुजरात की कम्युनिस्ट पार्टी नेलिया। दिउ में भी पार्टी ने यही निर्णयलिया। पुर्तगाल की सरकार अफ्रीका से सैनिक गोवा स्थानांतरित करने लगीःउनके द्वारा अत्यंत बर्बर एवं क्रूर1200 अतिरिक्त अफ्रीकी सैनिक वहां लाए गए।गोवा तथा अन्य पुर्तगाली उपनिवेशोंमें सशस्त्र संघर्ष तथा सत्याग्रह संबंधी तैयारियों के संबंध में अक्टूबर 1954में भा.क.पा. की एक बैठक बेलगांव मेंहुई।8 जून 1955 को पणजी केगवर्नर पैलेस पर ध्वजस्तंभ पर पांचयुवा कम्युनिस्टों ने तिरंगा फहराया।उन्हें पकड़ लिया गया और थाने मेंउनकी जमकर पिटाई की गई। फिरउन्हें अधमरे हालत में सीमा पर छोड़दिया गया। इसके बाद सुप्रसि(सत्याग्रह आरंभ हो गया।गोवा मुक्ति आंदोलन के ‘पितामह’डॉ. टी.बी. कुन्हा की मृत्यु 20 सितंबर1958 को बंबई में हो गई। जयप्रकाशनारायण उनकी अर्थी संभालने वालों मेंएक थे। 25 वर्षो बाद उनकास्मृति-कलश पणजी लाया गया जहांउसे आजाद मैदान में रखा गया है। वेगोवा सत्यागह के वक्त स्वयं ही सीमापारउपस्थित थे। उनका निधन गोवा कीमुक्ति ;1961 से पहले ही हो गया।उनकी याद में भारत सरकार नेएक डाक टिकट भी जारी किया। उनके नाम से गोवा में शिक्षण संस्थाएं भी हैं।उनकी एक प्रतिमा उनके पुश्तैनी गांव कुएलिम, कान्सिउलिम, में स्थापितकी गई है। वहां एक खेल परिसर भीउनके नाम से स्थापित किया गया।2011 में गोवा की मुक्ति की स्वर्णंजयंती के अवसर पर उनका चित्र भारतीय संसद में अनावरित किया गया।पणजी का एक प्रमुख मार्ग ‘‘टी.बी.कुन्हा’’ रोड है। विश्व शांति परिषद ने1959 में जनगणों के बीच शांतिऔर मित्रता बढ़ाने में उनके योगदानके लिए मृत्यु-उपरांत स्वर्ण-पदक प्रदानकिया।
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर।
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