भारत से अंग्रेजों के 1947 में चले जाने के बाद भी देश के कुछ थोड़े-से हिस्सों पर फ्रांसीसियों तथा पुर्तगालियों का कब्जा बना रहा। फ्रेंच इंडिया भारत अर्थात पांडिचेरी,करइक्कल ;तमिलनाडु, यानाम ;आंध्र,माहे ;केरल और चंदननगर ;प. बंगाल पर फ्रांसीसियों का अधिकार था। उन्हें1954 में ही जाकर आजाद किया जा सका। फ्रेंच इंडिया की मुक्ति आंदोलन के नेता थे एक सुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट वी.सुब्बैय्या ̧। यह इतिहास बड़ा दिलचस्प है।फ्रेंच भारत का कुल क्षेत्रफल186 वर्गमील था और जनसंख्या19वीं सदी के अंत में 1,75,000थी।फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ;‘लारॉेयल कम्पागीन दे फ्रांस देस इंदेसओरिएन्ताल’ ने 1 सितंबर 1666को अपने पैर जमाए। पांडिचेरी पर फ्रांसीसी शासन स्थापित करने का काम फ्रान्क्वा मार्टिन ने 1674 तथा1706 में बीच किया। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के अंतिम वर्षोंं में यह इलाका अंग्रेजों के हाथों में आ गया और फिर फ्रांसीसियों को 1871 के पैरिस कम्यून के प्रभाव में फ्रेंच भारत को 10 कम्यूनों में विभाजित किया गया। उनकी अपनी म्युनिसिपैलिटी और मेयर हुआ करते।आगे चलकर फ्रेंच भारत को फ्रेंच संसद में एक प्रतिनिधि भेजने काअधिकार मिला। सुब्बैया फ्रेंच पार्लियामेंट में चुने जाने वालों में से एक थे। फिर भी भारतीयों को अधिकतर अधिकार प्राप्त नहीं थे और छोटी-छोटी बातों को लेकर उन पर दमन किया जाता था।आरंभिक जीवन वरदराजुलू कैलाश सुब्बै ̧या का जन्म 7 फरवरी 1911 को हुआ था। उनके दादा कोट्टईकुप्पम में पुलिस अफसर थे और पिता बिजनेस में।सुब्बै ̧या की स्कूली शिक्षा पहले तो‘पेतित सेमिनेयर’ में माध्यमिक शिक्षाके रूप में हुई ;1917-23द्ध। फिर1923-28 में कॉलेज काल्वे;पांडिचेरीद्ध में हाई स्कूल शिक्षा हुई।सितंबर 1927 में महात्मा गांधीइलाज के बाद कड्डालोर ;तमिलनाडुद्धआए। वे दक्षिण भारत का दौरा कर रहेथे। सुब्बै ̧या उस वक्त पांचवे फॉर्म मेंथे। वे साइकिल से पांडिचेरी सेकड््डालोर अपने दो मित्रों के साथगए। उन्हें वाई.एम.सी.ए.बिल्डिंग मेंप्रार्थना के वक्त लोगों को संबोधित करतेहुए देखा।कुछ महीनों बाद कांग्रेस का मद्रासकम्युनिस्ट नेताओं की जीवनी-25वी. सुब्बै ̧याः फ्रेंच भारत की मुक्ति के नेताअधिवेशन दिसंबर 1927 में हुआ।किसी तरह सुब्बै ̧या को मां की अनुमतिमिली और वे अपनी मित्र के साथमद्रास चले गए। इन घटनाओं नेसुब्बै ̧या के राजनैतिक एवं राष्ट्रीयविचारों के विकास में मदद की।1928 में जवाहरलाल नेहरूरचित सोवियत रूस संबंधी पुस्तकप्रकाशित हुई जिसे पढ़कर उन्हें नईदृष्टि मिली। उन्होंने रूसी क्रांति औरलेनिन संबंधी सिंगारवेलु के लेख भीपढ़े तथा कई अन्य पुस्तकें भी।विद्यार्थी आंदोलन मेंजब सुब्बै ̧या काल्वे कॉलेज में छठेफॉर्म में थे तब 1928 में उन्होंनेविद्यार्थियों की एक हड़ताल मद्रासविश्वविद्यालय की मैट्रिक परीक्षा कीट्रेनिंग के निम्न स्तर के विरोध में संगठितकी। हड़ताल तीन सप्ताह चली। सुब्बै ̧याको छह महीनों के लिए बाहर निकालदिया गया तथा 21 अन्य को भी।सुब्बै ̧या ने इस पर अभिभावकों कीऐसोसिएशन बनाई। वे फ्रांसीसी पुलिसके रिकॉर्ड में दर्ज कर लिए गए।सुब्बै ̧या ने 1929 में ‘म्यूचुअलब्रदरहुड’ के नाम से एक साहित्यिकऔर वाद-विवाद समिति का गठन भीकिया। 1930 में उन्होंने ‘यूथ लीग’बनाई। 1931में काल्वे कॉलेज मेंओल्ड ब्वायज ऐसोसिएशन का गठनकिया गया।जल्द ही सुब्बै ̧या ‘आत्म-सम्मानआंदोलन’ के संपर्क में आए।फ्रेंच भारत में ‘यूथ लीग’ कासंगठनवापस लौटकर सुब्बै ̧या ने फ्रेंचभारत में ‘यूथ लीग’ का गठन आरंभकिया जिसमें बड़ी संख्या में युवा शामिलहुए।प्रथम युवा सम्मेलन 1931 मेंऔर दूसरा 1932 में आयोजित कियागया। उसी दौरान कुछ मजदूर परिवारोंके युवाओं ने ‘रामकृष्ण रीडिंग रूम’की स्थापना की। बाद में सुब्बै ̧या इसकेअध्यक्ष बने।फ्रांसीसी साम्राज्यवादी शासन केतहत संगठन और विचार-स्वातंत्र्य परकाफी दमन था। मसलन, किसी भीसभा या खेलकूद क्लब के नियमों मेंराजनीति पर बात करने संबंधी पाबंदीथी।रामकृष्ण रीडिंग रूम के सदस्यसुब्रमण्य भारती के देशभक्तिपूर्ण गीतोंतथा भजनों के जरिए लोगों तक राष्ट्रीयभावनाएं पहुंचाया करते।1931 में उन्हें एक बीमा कंपनीमें ब्रांच मैनेजर का काम मिल गया।हरिजन सेवक संघपांडिचेरी में हरिजन सेवक संघ कीस्थापना की गई जिसके सुब्बै ̧या सचिवबने। साथ ही करइक्कल में भी इसकीएक शाखा खोली गई। अरंगस्वामीनाइकर, मौरिस क्लारियन, डी.दोरइराज, कृष्ष्णस्वामी पिल्लै, इ. इसकेमहत्वपूर्ण व्यक्ति थे।इस बीच गांधीजी 17 फरवरी1934 को पांडिचेरी आए। पहले तोउन्होंने अपना कार्यक्रम श्री अरबिन्दोके उपलब्ध नहीं होने के कारण रद्दकर दिया था। वे दक्षिण भारत की यात्रापर थे। वे कुन्नूर में ठहरे हुए थे जहांबहुत ठंड थी। सुब्बै ̧या उन्हें मनानेवहां गए। वहीं वे बंगले के एक कमरेमें ठहरे। ठंड के मारे उनके बुरा हालथा लेकिन देखा कि गांधीजी एकसाधारण खटिया पर खुले में सोए हुएथे!वे गांधीजी के साथ पैदल घूमनेगएऋ गांधीजी इतनी तेज चला करतेथे कि एक नौजवान के लिए भी उनकेसाथ चलना कठिन हो गया। वहां ठक्कर बाबा भी थे जो अ.भा. हरिजन सेवकसंघ के सचिव थे। सुब्बै ̧या ने कहा कि आप श्री अरबिन्दो का कार्यक्रम रद्द किए जाने पर कैसे समूचे पांडिचेरी का कार्यक्रम रद्द कर सकते हैं? गांधी जीने तुरंत स्वीकार कर लिया।ओडियन सलाई मैदान में हजारोंलोगों के सामने गांधीजी का भाषण हुआ। पांडिचेरी के गवर्नर ज्यॉर्जेस बूकेने इस कार्यक्रम में काफी सहायता की।उन्होंने दूर से गांधीजी के ‘दर्शन’ किए वे उनके प्रशंसक थे।रामकृष्ष्ण रीडिंग रूम और फ्रेंच इंडिया यूथ लीग ने हरिजन सेवक संघक के साथ मिलकर हरिजन बच्चों और वयस्कों के लिए बस्तियों में रात्रि पाठशालाओं की स्थापना की। नालियांसाफ करना, गंदे बच्चों को नहलाना,इत्यादि गतिविधियां आयोजित की गईं।विद्याथियों ने बस्तियों के स्कूलों मेंपढ़ाने का काम किया।सुब्बै ̧या हरिजनों, खेतिहर मजदूरोंऔर टेक्सटाइल मजदूरों के संपर्क मेंआए तथा उन्हें उनके बीच काम करनेलगे।इस दौरान सुब्बै ̧ा वेल्लोर जेलजाया करते जहां बड़ी संख्या मेंराजनैतिक कैदी रखे गए थे, और उन्हेंचिट्ठियां और संदेश पहुंचाया करते।अमीर हैदर खान से मुलाकातसुब्बै ̧या जुलाई 1934 में मद्रासमें अमीर हैदर खान और सुंदरै ̧या सेमिले। सारी रात बैठकर मद्रास प्रदेशमें कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना परविचार किया गया। इंजीनियरिंग कॉलेजके कुछ विद्यार्थियों के साथ मिलकर विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन का साहित्य इकट्ठा करने का काम किया। धीरे-धीरेसुब्बै ̧या मार्क्सवाद की ओर झुकनेलगे।ट्रेड यूनियन आंदोलन में पांडिचेरी में ट्रेड यूनियन बनाना गैर-कानूनी था। जुलाई 1934 सेसुब्बै ̧या ने गुप्त रूप से मुदलियारपेट,अरिनकुप्पम तथा अन्य स्थानों पर रातमें मजदूरों के बीच रहते हुए ट्रेड यूनियन बनाना शुरू किया। जून 1934 में मासिक पत्रिका ‘‘स्वदान्थिरम’ उन्होंनेआरंभ किया। इसकी 8000 से भीअधिक प्रतियां छपती थी और पांडिचेरीके अलावा मद्रास, श्रीलंका, दक्षिणअफ्रीका, मलाया, बर्मा तक जाती थी।‘स्वदान्थिरम’ ने पांडिचेरी में मजदूरवर्ग के प्रचारक और संगठनाकर्ता कीभूमिका अदा की। इसमें महाकविसुब्रमण्य भारती की कविताएं भीप्रकाशित होतीं।इस बीच सुब्बै ̧या का संपर्कशक्तिशाली फ्रांसीसी ट्रेड यूनियन संगठनसी.जी.टी. ;‘कोनफेडराशियों गेनेराल दुत्रावेल’-श्रमिकों का व्यापक संघद्ध केसाथ हुआ। इससे पांडिचेरी के मजदूरआंदोलन को बड़ी सहायता मिली।4 फरवरी 1935 को पांडिचेरीके सवाना मिल्स ;बाद में स्वदेशी कॉटनमिल्सद्ध में असीमित कार्यकाल के विरोधमें हड़ताल हो गई। उन दिनों पांडिचेरीमें तीन टेक्साटाइल मिलें थीं जिनमेंसूर्योदय से सूर्यास्त तक काम चलाकरता। श्रमिकों के बच्चे सिर्फ रविवारके ही अपने माता-पिता को देख पाते।सवाना मिल्स के मजदूरों ने दसघंटे कार्य दिवस की मांग करते हुएतथा वेतन बढ़ाने एवं महिलाओं कारात्रि कार्य बंद करने को लेकर हड़तालकी।मिल का मालिक बालोत था जिसनेलॉक-आउट कर दिया। वह रोजसायरन बजवाता था ताकि मजदूरवापस आ जाएं। इस तरह 84 दिनबीत गए लेकिन मिल कमिटि नहीं झुकी।मजदूरों को गांवों से सहायता मिल रहीथी। आखिर मजदूर नेताओं को बुलाकर29 अप्रैल 1935 को समझौताकिया गया। पांडिचेरी के इतिहास मेंपहली बार मजदूरों का कार्यदिवस तयकिया गया, 10 घंटे। मजदूरों कादैनिक वेतन तीन आना से 6 आनाकिया गया और गर्भवती महिलाओं कोएक महीने की छुट्टी तथा उस दौरानआधा वेतन तय किया गया।इस सफलता के फलस्वरूपपांडिचेरी का ट्रेड यूनियन आंदोलनअधिक सक्रिय हो उठा। कोडियर मिलऔर गोबले मिल ;अब भारती मिल्सद्धके प्रबंधन को भी ये ही शर्तें लागूकरनी पड़ी ताकि मजदूर हड़ताल नकर दें।सुब्बै ̧या के अलावा इस आंदोलनके नेताओं में थे-दुबॉय डेविड, अलामोर,पेरियानायस्वामी, सुब्बारायुलु, इ.।3 जून 1935 को पांडिचेरी मेंपहली बार मजदूरों की मीटिंग हुई।इसकी अनुमति के लिए सुब्बै ̧या कोबड़ी कोशिशें करनी पड़ी। फ्रेंच रिटायर्डफौजी अफसर बाबोलोने ने भी इसेसंबोधित किया। पांडिचेरी में आम सभाकी अनुमति आमतौर पर नहीं दी जातीथी।सुब्बै ̧या ने पांडिचेरी के मजदूरआंदोलन तथा फ्रांस से उसके संबंधोंका विस्तृत वर्णन ‘स्वदान्थिरम’ मेंप्रकाशित किया।17 अक्टूबर 1936 को सुब्बै ̧याजवाहरलाल नेहरू, सत्यमूर्ती और के.कामराज को विलुपुरम से पांडिचेरी कारमें लाए। उस वक्त पांडिचेरी में मुश्किलसे चार या पांच कारें हुआ करतीं जोधनी लोगों की थी। यह कार नानै ̧याभागवथर की थी जो व्यापारी थे लेकिनराष्ट्रीय आंदोलन से सहानुभूति रखाकरते। मॉरिस क्लैरियन एक अन्यव्यापारी थे तथा हरिजन सेवक संघ केअध्यक्ष थे। उनकी कार में गांधीजी कोलाया गया था।जब वी.वी. गिरी और गुरूस्वामीमद्रास से पांडिचेरी आए तो फ्रेंचअधिकारियों ने उन्हें उसी दिन ;10मई 1936द्ध को दोपहर डेढ़ बजे तकपांडिचेरी छोड़ने का आदेश दिया। वेफ्रेंच भारत के मजदूरों का सम्मेलनसंबोधित करने आए थे। यह इस बातके बावजूद कि सुब्बै ̧या ने अनुमति लेली थी। अनुमति नहीं मिलने पर उन्होंनेतथा अन्य नेताओं ने मजदूरों सेसीमापार ब्रिटिश भारत के गांव ;पेरम्बईद्धके मैदान में इकट्ठा होने को कहा।बड़ी सभा हुई जिसकी अध्यक्षता लैम्बर्टसरवने ने की।इस बीच 1936 में फ्रांस मेंअनिल राजिमवालेवी. सुब्बै ̧याश्10मुक्ति संघर्ष साप्ताहिक4 - 10 अक्टूबर, 2020पॉपुलर फ्रंट ;जन मोर्चाद्ध चुनाव जीतगया और उसने सरकार गठित की।यह घटना कई मायनों में पांडिचेरी कीजनता के लिए अनुकूल साबित हुई।मजदूर संघर्षः मशीनगनों सेसामना1936 के जुलाई महीने मेंपांडिचेरी में ऐतिहासिक मजदूरआांदोलन हुआ। पुलिस ने मशीनगनतथा अन्य हथियार विलियानूर तथाकड्डालोर के मार्गांं पर तैनात कर दिए।बिना वजह गोलियां चलाई जाने पर12 मजदूरों की मौत हो गई। गुस्से मेंमजदूरों ने सवाना मिल को आग लगादी। सुब्बै ̧या और वी. रामनाथन किसीतरह भाग निकले।फ्रांस के प्रधानमंत्री लियोन ब्लूमसे तुरंत हस्तक्षेप की मांग की गई।मद्रास में बड़ी विरोध सभाएं की गई।30 जुलाई 1936 की इन दुखदघटनाओं का सवाल फ्रेंच संसद में फ्रेंचकम्युनिस्ट पार्टी के गैब्रिल पेरी नेउठाया। फ्रांस की पॉपुलर फ्रंट सरकारने तुरंत हस्तक्षेप किया।गवर्नर सोलोनियाक ने बातचीत केलिए गिरी को मद्रास से बुलाया। उनकेसाथ गुरूस्वामी भी आए। बातचीत केदौरान सुब्बै ̧या इतने गुस्से में थे किगवर्नर द्वारा दिया गया सॉफ्ट डिं्रकउन्होंने पीने से इंकार कर दिया। फिरसोलोनियाक और गिरी ने उन्हें किसीतरह मनाया।30 जुलाई 1936 की घटनाओंने पांडिचेरी में मुक्ति आंदोलन की नईमंजित का आरंभ किया।समझौतों में पहली बार काम केघंटे घटाकर आठ घंटे किया गया औरअन्य कई मांगें मानी गई।फ्रांस मेंनेहरू की सलाह पर सुब्बै ̧या फ्रांसकी सरकार से मिलने मार्च 1937 मेंपैरिस के लिए चल पड़े। उनकीअनुपस्थिति में एस.वी. घाटे और एस.आर. सुब्रमण्यम ने पांडिचेरी में कामसंभाला। नेहरू उन्हें लगभग हर सप्ताहपत्र लिखते रहे और उन्हें ढेर-सारेपरिचय पत्र दिए।फ्रांस में साम्राज्यवाद-विरोधी लीगके प्रमुख फ्रान्क्वा जुर्दान, मार्क्स केपोते लोन्गेवेन, क्लीमेंस दत्त, पिएरेकोत, मैडम आंद्रे वायली तथा अन्यकई हस्तियों से उनकी मुलाकात हुई।वहां कम्युनिस्ट पार्टी के गैब्रिल पेरीतथा विभिन्न ट्रेड यूनियनों के नेताओंसे मुलाकात हुई। पेरी को 1941 मेंहिटलर की फौजों ने फ्रांस में गोलीमार दी।सुब्बै ̧या के पांडिचेरी में मित्र, माहेके माधवन मिशेलोत, जो हरिजन सेवकसंघ में भी थे, पैरिस के सर्बोर्न यूनिवर्सिटीके छात्र थे और 1937 में पैरिस मेंलगभग हर शाम दोनों साथ-साथ घूमनेजाया करते। माधवन फ्रेंच कम्युनिस्टपार्टी के सदस्य बन गए, अंडरग्राउंडआंदोलन में शामिल हो गए और बादमें नाजियों द्वारा मारे गए।मैडम लुई मोरिन से सुब्बै ̧या की1938 से ही पांडिचेरी और दिल्लीसे मित्रता थी। उनका पैरिस का घरभारतीयों के लिए खुला रहता। वहांइंदिरा गांधी भी आया करतीं।सुब्बै ̧या ने फ्रेंच भारत कीराजनैतिक परिस्थितियों पर पैरिस केइंडियन स्टूडेंट्स ऐसोसिएशन के समक्षभाषण दिया। डॉ. केसकर इसके अध्यक्षथे। क्लिमेंस दत्त ने सुब्बै ̧या को फ्रेंचकम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव मौरिसथोरे से मिलाया। मई दिवस के समारोहमें भाग लेने का और पॉपुलर फ्रंट कीसरकार का कामकाज देखने का भीमौका मिला।सुब्बै ̧या फ्रांस के औपनिवेशिकमामलों के मंत्री माउरी मूतेत से मिले।फ्रेंच इंडिया के लिए लेबर कोड तैयारहुआ, जो आदेश बना। सुब्बै ̧या काएक उद्देश्य पूरा हुआ। आदेश से मजदूरऔर ट्रेड यूनियन आंदोलन संगठितकरने में बढ़ावा मिला। 1 जनवरी1938 से 8 घंटे का कार्यदिवस लागूहो गया।वापसी पर स्वागत6 जुलाई 1937 को पांडिचेरीपहुंचने पर सुब्बै ̧या का भारी स्वागतकिया गया जिससे वे आश्चर्य - चकितरह गए। बहुत सारे नेता पहुंचे थे। रोडपर दोनों और हजारों लोग झंडे लेकरखड़े थे। 800 लोग लाल बैंड पहनेयूनिफॉर्म में थे। हजारों महिलाएं खड़ीथीं।नई पार्टी की स्थापनानेहरू की सलाह से अगस्त1937 में सुब्बै ̧या ने पांडिचेरी मेंमहाजन सभा की स्थापना की जोकांग्रेस का ही एक रूप था। इसमें यूथलीग, रीडिंग रूम, हरिजन सेवक सभा,ट्रेड यूनियनों इ. के लोग शामिल हुए।लियों सेंट ज्यां की मदद से करइक्कलमें भी इसकी शाखा खोली गई। माह केअंत में इसका सम्मेलन पांडिचेरी मेंकिया गया। सभा में हैंडलूम का प्रचारकरने घर-घर जाकर बेचा जिसकानेतृत्व सुब्बै ̧या ने किया।1937 में चुनाव हुए लेकिनसरकार द्वारा धोखाधड़ी के फलस्वरूपमहाजन सभा को बहुमत नहीं मिलनेदिया गया।फलस्वरूप पंचायत स्तर परसमानांतर जन सरकारों या प्रशासनका गठन किया जाने लगा।1938 में सुब्बै ̧या कांग्रेस केहरिपुरा अधिवेशन में शामिल हुएऋ वहसूरत के पास ताप्ती नदी के किनारेसंपन्न हुआ। नेहरू से खूब बातें हुईं।वापसी पर वे शहीद रामै ̧या संबंधीतथा अन्य मुद्दों पर गिरफ्तार कर लिएगए और अत्यंत खराब हालात में जेलमें रखे गए। रिहा होने पर उन्हें पांडिचेरीसे बाहर कर दिया गया।द्वितीय विश्वयु( के दौरान फ्रेंचभारत1939 में द्वितीय विश्वयु( छिड़गया जो 1945 तक चला। 1940में फ्रांस नाजी जर्मनी के कब्जे में आगया। नतीजन फ्रांस का फ्रेंच भारत सेसंबंध टूट गया। इसका परिणाम यहहुआ कि गवर्नर बोविन का प्रशासनव्यावहारिक रूप से भारत में ब्रिटिशसरकार के नियंत्रण में आ गया।पांडिचेरी में यु(-विरोधी आंदोलनने जोर पकड़ा।वेल्लोर में गिरफ्तारीविश्वयु( के दौरान सुब्बै ̧या मद्रास,तंजौर तथा अन्य जगहों में सक्रिय थे।जनवरी 1941 में उन्हें गिरफ्तारकरके वेल्लोर सेंट्रल जेल में बंद करदिया गया। वहां 400 कम्युनिस्टगिरफ्तार थे जिसमें एस.वी. घाटे,जीवानंदम, ए.के. गोपालन,बालदंडायुधम, इ. शामिल थे। कईकांग्रेस तथा अन्य भी थे जिनमें पट्टभिसीतारमै ̧या, के. कमराज, एन.संजीवरेड्डी, इ. थे।कैदियों ने विभिन्न कमिटियां बनाईं।9 सदस्यों की एक स्टैंडिंग कमिटि भीबनाई गई जिसके मेयर सुब्बै ̧या बनाएगए। कम्युनिस्ट तथा राष्ट्रीय साहित्यछिपाकर अंदर लाया जाता। 19 दिनोंतक भूख- हड़ताल भी चली।सितंबर 1942 में सभी को रिहाकर दिया गया।कम्युनिस्ट पार्टी का गठनजेल से रिहा होने के बाद सुब्बै ̧यापांडिचेरी में कम्युनिस्ट पार्टी गठित करनेमें लग गए। इसके अलावा वेकरइक्कल, माहे और चंदननगर भीगए। चंदननगर में वे कालीचरण घोष,तिनकोरी मुखर्जी, भवानी मुखर्जी तथाअन्य साथियों से मिले। उन्होंने जूटमजदूरों को भी संबोधित किया।सुब्बै ̧या ने फ्रांस के नाजी-विरोधीप्रतिरोध आंदोलन से संपर्क स्थापितकिया। जनरल डी गॉल ने लंदन में1943 में ‘फ्री फ्रेंच सरकार’ कीस्थापना की थी। इसका केंद्र ओरान,एल्जियर्स, स्थानांतरित होने के बादभी उनका संपर्क स्थापित हो गया था।वहां ‘कॉम्बैट’ ;लड़ाईद्ध नामकनाजी-विरोधी संगठन कायम किया गयाथा।आदिसेन, एल्जियर्स में फ्रेंच कॉलेजके प्रोफेसर, पांडिचेरी के थे और सुब्बै ̧याके मित्र थे। फ्री फ्रेंच सरकार ने उन्हेंमार्च 1944 में ‘कॉम्बैट’ संगठितकरने पांडिचेरी भेजा जिसका अध्यक्षसुब्बै ̧या को बनाया गया, प्रो. लैम्बर्टसरवने महासचिव। हाईकोर्ट के फ्रांसीसीजज, पांडिचेरी सशस्त्र सेनाओं केकमान्दान्त आउगे तथा अन्य इसकेसदस्य थे।राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चे कागठनयु( की समाप्ति के बाद जनवरी1946 में कम्युनिस्ट पार्टी की पहलपर सभी प्रगतिशील और देशभक्तशक्तियों को एक मंच पर लाकर ‘राष्ट्रीयजनतांत्रिक मोर्चे’ ;एन.डी.एफद्ध का गठनकिया गया।26 जून 1946 कोम्युनिसिपैलिटियों के चुनाव हुए। साथही कोंसेल गेनेराल’ ;प्रतिनिधि सभा याअसेम्बलीद्ध के चुनाव भी हुए। एन.डी.एफ. को 44 में से 34 सीटें प्रतिनिधिसभा में मिलीं।नवंबर 1946 के फ्रेंच पार्लियामेंटके चुनाव में फ्रेंच इंडिया से एन.डी.एफ. के प्रो. लैम्बर्ट सरवने चुने गए।वी. सुब्बै ̧या और करइक्कल केपक्किरीस्वामी पिल्लै फ्रेंच पार्लियामेंटके ऊपरी चेम्बर ;जैसे हमारी राज्यसभाद्ध ‘‘काउंसिल ला रिपब्लिक’’ केलिए 26 जनवरी 1947 को चुनेगए।9 अगस्त 1947 को पांडिचेरीमें ‘भारत छोड़ो’ दिवस मनाया गया।जब भारत की आजादी की घोषणाकी गई तो फ्रेंच सरकार ने कहा किइसका फ्रेंच भारत पर कोई असर नहींपड़ेगा। वी.सुब्बै ̧या की पहल पर 15अगस्त का दिन पांडिचेरी तथा अन्यफ्रेंच क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनायागया।15 अगस्त 1947 कोचंदननगर के लोगों ने फ्रेंच प्रशासकको भगाकर तिरंगा फहराया औरसांकेतिक तौर पर प्रशासन अपने हाथोंमें ले लिया। आगे चलकर चंदननगरने जनमत संग्रह हुआ जिसके बाद 2मई 1950 को सत्ता हस्तातंरण केइरादे की घोषणा की गईऋ 2 मई1952 को वास्तविक हस्तांतरण हुआ।14 जनवरी 1950 को पुलिसने सुब्बै ̧या के घर पर छापा मारा। वहींकम्युनिस्ट पार्टी तथा फ्रेंच इंडियन लेबरस्टोर’ भी था। कई गिरफ्तार कर लिएगए। पूरा इलाका सील कर दिया गया।सुब्बै ̧या अंडरग्राउंड थे। ब्रिटिश भारतमें भी उनके खिलाफ वारंट था। सारेपांडिचेरी में दमन का दौर चल पड़ा।माहे में शांतिपूर्ण जनविद्रोह हुआ।इस बीच ‘पांडिचेरी विलयन समिति’का गठन किया गया। जून 1953 मेंघायलों से लदा हुआ एक जहाजइंडोचाइना से पांडिचेरी आया। उसमेंअधिकतर फ्रेंच सैनिक थे। 1954 मेंवियतनाम में दिएन बिएन फू की लड़ाईमें फ्रांसीसी सैनिकों की बुरी तरह पराजयहुई। इन घटनाओं से फ्रेंच इंडिया,खासकर पांडिचेरी में प्रशासकों मेंपस्त-हिम्मती छा गई और आम जनतामें खुशी की लहर दौड़ गई।भारत में विलयन का संघर्षजनवरी 1954 के आरंभ में फ्रेंचइंडिया के भारत में विलयन का संघर्षआरंभ हो गया। सुब्बै ̧या, सरवने तथाअन्य ने सारे मतभेद भुलाकर व्यापकमोर्चा बनाने की अपील की। वी. सुब्बै ̧याके नेतृत्व में मुक्ति समिति गठित कीगई। सुब्बै ̧या भा.क.पा. की केंद्रीयसमिति से मिलने दिल्ली गए। 7 अप्रैल1954 से मुक्ति के लिए सीधा सघ्ांर्षआरंभ करना तय पाया गया। 100से भी अधिक प्रेस वालों को सुब्बै ̧याऔर अजय घोष ने संबोधित किया।सभी कम्यूनों और गांवों में शांतिपूर्णआंदोलन फैल गया। पार्टी ने सशस्त्रवालंटियर दस्ते संगठित किए। मेजरजयपाल सिंह की देखरेख में पांडिचेरीसीमा पर शस्त्रास्त्रों की ट्रेनिंग दी जानेलगी।मन्नादिपेट ;थिरूबुवावाइद्ध कम्यूनप्रथम था जिसने आजाद होने की घोषणाकर दी। पुलिस से हथियार छीन थानेपर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया। वहांआजाद सरकार की घोषणा की गईऔर स्वागत में विशाल जुलूस निकला।इसके बाद अन्य कम्यूनों ने एक-एककरके ख्ुुद को आजाद घोषित कर दिया।पांडिचेरी पर तिरंगाअप्रैल 1954 में पहली बारपांडिचेरी पर तिरंगा फहराया गया औरभारत के साथ विलयन की मांग कीगई। कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस तथा अन्यने जुलूस निकाले। फ्रेंच सरकार नेसाइगोन ;वियतनामद्ध से आए सैनिकमैदान में उतरे। फ्रेंच इंडिया कीकम्युनिस्ट पार्टी ने आंदोलन तेज करदिया। फ्रेंच थोड़ा-थोड़ा करके अपनीसैन्य शक्ति और तैयारियां बढ़ा रहे थे।9 अगस्त 1954 को पूर्णहड़ताल रही। नेहरू और मेंदेस-फ्रांसे;फ्रेंच प्रधानमंत्रीद्ध ने शांतिपूर्वक सत्ताहस्तांतरण करना तय किया।18 अक्टूबर 1954 को फ्रेंचइंडिया के 178 म्युनिसिपलकाउंसिलर्स और असेम्बली प्रतिनिधियोंमें से 170 ने भारत के साथ फ्रेंचइंडिया के विलयन की घोषणा की। चारोंओर खुशी छा गई। 21 अक्टूबर 54को समझौता हुआ और 1 नवंबर1954 को सत्ता हस्तांतरित हो गई।पांडिचेरी में भारत केकाउंसुल-जनरल केवल सिंह तथाअन्य कोट्टकुप्पम में मुक्ति कैम्प मेंसुब्बै ̧या से मिलकर उन्हें घटनाओं सेअवगत कराते रहे।यहां से सुब्बै ̧या को सजे हुए रथ में उनकी माता और पत्नी के साथ बिठाकर पांडिचेरी ले जाया गया।आजादी के बादसुब्बै ̧या 1964-69 तक पांडिचेरी में विधानसभा में कम्युनिस्ट ग्रुप के नेता रहे। 1969-73 मेंपांडिचेरी में ए.आई.ए.डी.एम.के. के साथ बनी मिली-जुली सरकार में वे कृषिमंत्री रहे। उनकी पत्नी सरस्वती सुब्बै ̧याभी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की विधायक रहीं।1993 में उनकी मृत्यु के बादउनकी मूर्ति नेल्लीथेन में स्थापित कीगई। उनके घर का प्रयोग समाजशास्त्रीय शोध के लिए किया जा रहाहै। भारत सरकार ने उनकी याद मेंस्टाम्प जारी किया। वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य भी रहे।वे स्वतंत्रता आंदोलन के ताम्रपत्र प्राप्तकर्ता भी थे।उनकी मृत्यु 10 सितंबर 1993को पांडिचेरी में हो गई।
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