यज्ञदत्त शर्मा का जन्म 1 मार्च 1918 को जिला सोनीपत के
जखोली नामक गांव में हुआ था ;इस वक्त पंजाब, वर्तमान में हरियाणा। वे एक पढ़े-लिखे मध्यमवर्गीय परिवार के
थेः माता और पिता दोनों ही अध्यापक थे। माता का नाम पार्वती था और पिता का मंसाराम।
1930 में वे दिल्ली आ गए। वे अपने बड़े भाई जनार्दन शर्मा के साथ रहने लगे। उनके भाई राजनीति में सक्रिय थे। वे अपने गांव के पहले वकील थे और कांग्रेस के ब्लॉक सचिव थे। वे आगे चलकर दिल्ली की कम्युनिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन के नेता बने।
यज्ञत्त पहले दरियांगज के रामजस स्कूल में भर्ती हुए। उसके बाद उन्होंने श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में दाखिला
लिया। 1940 में उन्होंने सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में एम.ए. फर्स्ट क्लास में पास किया। गांव के प्रथम
एमए थे। इस कारण उन्हें रामजस कॉलेज में अर्थशास्त्र में लैक्चरर का काम मिल गया। सेंट स्टीफेंस में ही
एआईएसएफ तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के भावी नेता मुकीम फारूकी भी पढ़ रहे थे। दोनों के बीच आगे चलकर लम्बे समय के लिए दोस्ती हो गई।
1936 में दिल्ली में ‘स्वदेशी लीग’ की स्थापना की गई जिसमें वाई.डी. शर्मा, शंकरा, कंवरलाल शर्मा, आदि शामिल थे।
1936 में अगस्त में लखनऊ में एआईएसएफ ;ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की स्थापना की गई। इसका
प्रभाव दिल्ली समेत समूचे देश पर पड़ा। वाई.डी. शर्मा ने नवम्बर 1936 में एआईएसएफ के लाहौर सम्मेलन में भाग लिया। नवम्बर 1936 में ही उन्होंने श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में स्टूडेंट्स यूनियन बनाई जिसके वे
अध्यक्ष चुने गए। साथ ही दिल्ली प्रांतीय प्रोविंशियल स्तर पर दिल्ली प्रोविंशियल स्टूडेंट्स फेडरेशन ;डीपीएसएफ या यूनियन की स्थापना की गई। दिल्ली स्टूडेंट्स यूनियन का नाम बदलकर डीपीएसएफ कर दिया गया। इसमें मीर मुश्ताक, ईश चंद्र, के पी शंकरा, कंवरलाल शर्मा, हुकम सिंह राणा, ईत्यादि विद्यार्थी थे। यज्ञदत्त शर्मा इसके
उपाध्यक्ष चुने गए। अली सरदार जाफरी भी उन दिनों दिल्ली में ही थे और एंग्लो-अरेबिक कॉलेज में थे। नवम्बर
1937 में वाई.डी. दिल्ली प्रादेशिक एसएफ के महासचिव चुने गए।
1937-41 के दौरान यज्ञदत्त दिल्ली प्रोदशिक स्टूडेंट्स फेडरेशन के महासचिव चुने गए। एसएफ का ऑफिस
उन दिनों भागीरथ पैलेस में हुआ करता। 1-3 जनवरी 1938 को मद्रास में एआईएसएफ का तीसरा सम्मेलन हुआ।
उसमें वाई.डी. शर्मा ने दिल्ली एसएफ के महासचिव के रूप में भाग लिया। उसमें वाईडी संयुक्त सचिव चुने गए।
इसके अलावा उन्होंने मध्य प्रदेश में स्टूडेंट्स फेडरेशन बनाने में सक्रिय सहयोग किया।
12 से 14 नवम्बर 1938 को दिल्ली प्रादेशिक एस.एफ का दूसरा सम्मेलन आयोजित किया गया। 1 से 2 जनवरी 1940 को एआईएसएफ का पांचवां सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया गया। इसमें यज्ञदत्त शर्मा ने सक्रिय भूमिका अदा की। वे भाकपा के महासचिव पी.सी. जोशी तथा अन्य नेताओं से मिले। वे कम्युनिस्ट फ्रैक्शन
में भी सक्रिय थे।
कम्युनिस्ट राजनीति में यज्ञदत्त शर्मा का विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति से सम्बंध था, जैसा कि हम देख आए हैं। वे एआईएसएफ में अत्यंत सक्रिय थे जैसा कि ऊपर की घटनाओं से पता चलता है। उनकी स्वभाविक संज्ञान राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर थी। दिल्ली कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में एक बहाल सिंह मार्च 1939 में उन्हें दर्शक के रूप में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में ले गए।
वहां कम्युनिस्टों ने ‘नेशनल फ्रंट’ के नाम से अपना अलग ग्रुप बना रखा था। वहां वाई डी शर्मा की मुलाकात
पी.सी. जोशी, जेड.ए. अहमद, के.एमअशरफ जैसे कम्युनिस्टों से हुई।
2-3 जुलाई 1939 को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का सम्मेलन हुआ। इसके आयोजनकर्ताओं में वाई.डी. शर्मा, बाबा रामचंद्र तथा अन्य के साथ शामिल थे। मीनू मसानी ने इसकी अध्यक्षता की।
1939 में ही दिल्ली में भाकपा की संगठन समिति का गठन किया गया। उस समय पार्टी गैर-कानूनी थी। बहाल
सिंह इसके सचिव बनाए गए। वे साथ ही दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सचिव और एआईसीसी के सदस्य भी थे।
अक्टूबर 1939 में नागपुर में अ.भा. साम्राज्यवाद-विरोधी सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें वाईडी.
शर्मा ने भी फारूकी, बहाल सिंह, आदि के साथ हिस्सा लिया। इस सम्मेलन के फैसलों को अमल में लाने के लिए
बहाल सिंह ने विद्यार्थी नेताओं को कांग्रेस दफ्तर में बुलाया। इसमें वाई.डी. शर्मा भी शामिल हुए।
1-2 जनवरी 1940 को दिल्ली में एआईएसएफ का पांचवां सम्मेलन हुआ। 26 जनवरी 1940 को दिल्ली में युद्ध विरोधी दिवस बड़े पैमाने पर मनाया गया। इसकी तैयारी में यज्ञदत्त बहुत सक्रिय थे। 25 जनवरी 1940 को ही डीआईआर के तहत उनपर वारंट जारी कर दिया गया। 4 फरवरी को उनके भाई जनार्दन शर्मा के घर पर छापा मार कर यज्ञदत्त शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया। इस समय वे दिल्ली पार्टी के सचिव थे। विधिवत पार्टी बनने के बाद वे प्रथम कम्युनिस्ट थे जो पकड़े गए। तलाशी में गैरकानूनी साहित्य पकड़ा गया जिसमें केन्द्रीय पार्टी का गुप्त मासिक ‘कम्युनिस्ट’ भी था।
यज्ञदत्त को जमानत पर छुड़ाया गया। तब उन्होंने एमए की परीक्षा दी, वे प्रथम श्रेणी में पास हुए। सरकार को
अपनी ही कमियों के कारण मुकदमा वापस लेना पड़ा। कुछ ही दिनों पहले इंद्रजीत गुप्त सेंट स्टीफेंस कॉलेज से
पास होकर निकल चुके थे। दिल्ली में पार्टी के गैर-कानूनी अखबार और साहित्य के वितरण का जिम्मा वाई.डी. का था। यह साहित्य इंद्रजीत गुप्त और अरूण बोस लाया करते। साप्ताहिक ‘‘नेशनल फ्रंट’’ 50-80 तक बंटता था।
एमए पास करने के पास वाईडी रामजस कॉलेज में पढ़ाते हुए ीी पार्टी और एआईएसएफ में सक्रिय रहे।
जवाहरलाल नेहरू की गिरफ्तारी के विरोध में एआईएसएफ ने दिल्ली में विद्यार्थियों की हड़ताल संगठित की।
इसमें यज्ञदत्त बड़े ही सक्रिय रहे। वाईडी शर्मा ने एआईएसएफ के नागपुर सम्मेलन ;दिसम्बर 1940 में सक्रिय हिस्सा लिया। वे ‘कम्युनिस्ट फ्रैक्शन’ में सक्रिय थे। वे कहते हैं कि शाह ग्रुप को रोकने के लिए कम्युनिस्ट
ग्रुप ने एम. फारूकी को खड़ा किया। फारूकी दिल्ली वि.वि. के ‘ग्वायर मामले’ में सुप्रसिद्ध हो चुके थे। मौरिस
ग्वायर वाइस-चांसलर थे। उनका पुतला जलाने के बाद फारूकी की डिग्री छीन ली गई थी। 24 से 26 मई 1941 को दिल्ली प्रदेश एसएफ का तीसरा सम्मेलन आयोजित किया गया। इसका उद्घाटन प्रो. रणधीर सिंह ने किया
और अध्यक्षता के.एम. अध्यक्ष थे। जुलाई 1939 में दिल्ली में तीन दिनों का ‘समर स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स’ आयोजित किया गया। 1941 में देहरादून में भी स्कूल हुआ। इनमें वाईडी ने भाग लिया।
31 दिसंबर 1941 को पटना में एआईएसएफ का 7वां सम्मेलन हुआ। इसमें वाईडी शर्मा भी गए। अप्रैल 1942 में सर स्टैफर्ड क्रिप्स के दिल्ली आगमन पर वाईडी फारूकी और के एम अहमद ने उनसे मुलाकात की। इस समय वाईडी ने दिल्ली पार्टी में राजनैतिक शिक्षा का काम संभाल रखा था। उन्होंने ‘अध्ययन मंडलियों’ में कई क्लास लिए।
24 जुलाई 1942 को पार्टी पर पाबंदी हटाए जाने के बाद उसने खुले तौर पर काम करना आरंभ किया। वाईडी.
फ्रेंड्स ऑफ सोवियत यूनियन में भी सक्रिय हो गए।
सितंबर 1942 में बम्बई में पार्टी का एक विशेष ‘प्लेनम’ ;अधिवेशन हुआ। इसमें वाईडी ने दिल्ली पार्टी की संगठन
समिति के सचिव की हैसियत से भाग लिया। दिल्ली के चीफ कमिश्नर ने दिसंबर 1943 में वाईडी को कॉलेज में नौकरी से निकलवा दिया। इससे पहले दिल्ली ने एआईएसएफ के साथ मिलकर 1942 का जुलूस चांदनी चौक में
निकाला। वाईडी पार्टी सचिव थे। इस जुलूस पर लाठी चार्ज, आंसू गैस और गोलियों का प्रयोग हुआ।
मई 1943 में वाईडी और बहाल सिंह भाकपा की प्रथम कांग्रेस ;1943 में भाग लेने बम्बई गए। इसके बाद दिल्ली पार्टी का प्रथम सम्मेलन 23 से 25 जनवरी 1944 को गांधी ग्राउंड में सम्पन्न हुआ। वाईडी शर्मा सचिव और फारूकी सह सचिव चुने गए। लेकिन सरकार ने दिसंबर 1943 में उन पर पाबंदी लगा दी थीऋ इसलिए वे किसी भी
गतिविधि में भाग नहीं ले पाते थे। 12 दिसंबर 1943 को गांधी ग्राउंड में हजारों लोगों की एक विशाल सभा हुई जिसे बहाल सिंह, मोहम्मद यामीन और वाई डी शर्मा ने सम्बोधित किया। इसमें बंगाल के महा-अकाल, जापानियों के आक्रमण और अन्य प्रश्नों पर अंग्रेज सरकार की आलोचना की गई।
जुलाई 1944 में वाईडी को प्रांतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। 1945 में उन्होंने पार्टी की ओर से दिल्ली म्युनिसिपल कमिटि के चुनाव लड़े। 1946 के जनसंघर्षों में वाईडी ने सक्रिय ीूमिका अदा की। वे
डाक-तार कर्मचारियों के संघर्ष में गिरफ्तार कर लिए गए। दिसंबर 1946 में उन्होंने गाजियाबाद में रेलवे मजदूरों की हड़ताल को संगठित किया। दरियागंज में दिल्ली पार्टी कम्यून में ही भाकपा की केन्द्रीय समिति की बैठक
इन 1947 में हुई। यह वाई डी का मकान था। इसके अलावा बर्मा की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में एक थेन जो पत्रकार थे, नियमित वाई डी से मिला करते। इस बीच भयानक दंगे हुए। इसमें वाई डी शर्मा तथा अन्य साथियों ने दंगा पीड़ितों के राहत के लिए सक्रिय कार्य किया।
आजादी के बाद
15 अगस्त 1947 को देश को मिली आजादी का पार्टी ने स्वागत किया। बाद में 1948 में बीटी रणदिवे लाइन के पार्टी पर हावी होने के बाद वाई डी शर्मा, फारूकी, सरला शर्मा तथा शकील अहमद को नेतृत्व से हटा दिया गया।
वाई डी शर्मा को 4 मार्च 1949 को गिरफ्तार कर दिया गया। अगस्त 1949 में जब पहली पत्नी के निधन पर उन्हें पैरोल पर छोड़ा गया तो पार्टी के आदेश पर भूमिगत हो गए। वे 20 मार्च 1951 तक भूमिगत रहे, फिर आत्मसमर्पण करने पर जमानत पर छोड़ दिए गए। 1951 में उन्होंने बम्बई में अ.भा. सम्मेलन में भाग लिया। अक्टूबर 1952 में एशिया-पैसिकल शांति सम्मेलन में भाग लेने बीजिंग गए। 1951 में वाई डी शर्मा ने गुप्त अ.भा. पार्टी समायोजन ;कलकत्ता में भाग लिया। इसमें पार्टी नीति में परिवर्तन हुआ। अजय घोष के सुझाव पर वे भाकपा की केन्द्रीय समिति में चुने गए। 1957 में उन्हें पार्टी की राष्ट्रीय परिषद में चुना गया। वे छठी पार्टी कांग्रेस ;1961, विजयवाड़ा तक लगातार राष्ट्रीय परिषद में चुने जाते रहें
1953 में उनका विवाद दिल्ली पार्टी की जानी-मानी नेता सरला शर्मा से हुआ।
ट्रेड यूनियन आंदोलन में
1952 के बाद वाई डी शर्मा ने अपना अधिकतर समय ट्रेड यूनियन तथा मजदूर आंदोलन में लगाया। पहले भी वे टीयू का काम कर चुके थे। उन्होंने तेल और प्रोट्रोलियम उद्योगों के मजदूरों, खासकर पब्लिक सेक्टर में बड़ा काम
किया। वे इस क्षेत्र के विशेषज्ञ माने जाने लगे। खासकर एस ए डांगे के साथ मिलकर उन्होंने भारत तथा सोवियत संघ, समानिया, पोलैंड, आदि देशों में तेल की खदानों, उसकी सफाई तथा उत्पादन का गहरा अध्ययन किया। उन्होंने अन्य साथियों के साथ मिलकर भारत सरकार को इनसे संबंधित कई सुज्ञान दिए। वे पेट्रोलियम वर्कर्स यूनियन के निर्माताओं में थे। तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण करवाने में उनकी अहम भूमिका रही।
इसके अलावा उन्होंने इंजीनियरिंग, चाय, टायर, बीमा, होटल,आदि क्षेत्रों के मजदूरों एवं कर्मचारियों के बीच भी काम किया। 1954 में वे एटक की राष्ट्रीय परिषद में चुने गए। 1973 से 1987 के बीच ने एटक के सचिव और बाद
में उपाध्यक्ष रहें वे 15 वर्षों तक दिल्ली टीयूसी के सचिव और अध्यक्ष रहे। उन्होंने दूकान कर्मचारियों के लिए कानून बनवाने और उन्हें संगठित करने का महत्वपूर्ण काम किया।
भारत की स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर वाई डी शर्मा का स्वतंत्रता सेनानी का ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया। उनकी मृत्यु 11 जनवरी 2004 को हो गई
-अनिल राजिमवाले
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