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गुरुवार, 9 जून 2011

कोई सुबह नहीं है जिसकी शाम नहीं होती ....

फोटो सुलेखा से
कोई सुबह नहीं है जिसकी शाम नहीं होती
ऐसी भी जंग होती है जहाँ तलवार नहीं होती
पीछे हट जाने से भी देखो सदा हार नहीं होती
दुश्चक्रों में घिरकर सूरज रश्मि भी रोती है
आभा कम होती है पर अन्धकार नहीं होती
दरिया मुड़ता है टकराकर सख्त पहाड़ों से
सोचे न कोई भूल से उसमें धार नहीं होती
राजनीति भी रण है एक और नहीं है कुछ
बे-बस जन की आह भी बे-आवाज़ नहीं होती
बक्त करेगा न्याय अगर सत्ताधारी सोते हैं
कोई सुबह नहीं है जिसकी शाम नहीं होती

केदारनाथ "कादर"

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

वे सांप्रदायिक-राजनैतिक नहीं होते .........


लोग अक्सर पढ़े लिखे लोग चिल्लाते हैं

कभी राजनीति परए कभी धर्म पर

लिखते हैं बड़ी-बड़ी इबारतें काली

सफ़ेद पन्नो पर सच. झूठ रोज़ ही

चिल्लाते हैं बेहतर समाज के लिए

पर मेरा सत्य अनुभव कहता है
अनपढ़ लोग बेहतर हैं पढ़े लिखों से

वे सांप्रदायिक-राजनैतिक नहीं होते

-केदारनाथ
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