लोग अक्सर पढ़े लिखे लोग चिल्लाते हैं
कभी राजनीति परए कभी धर्म पर
लिखते हैं बड़ी-बड़ी इबारतें काली
सफ़ेद पन्नो पर सच. झूठ रोज़ ही
चिल्लाते हैं बेहतर समाज के लिए
पर मेरा सत्य अनुभव कहता है
अनपढ़ लोग बेहतर हैं पढ़े लिखों से
वे सांप्रदायिक-राजनैतिक नहीं होते
कभी राजनीति परए कभी धर्म पर
लिखते हैं बड़ी-बड़ी इबारतें काली
सफ़ेद पन्नो पर सच. झूठ रोज़ ही
चिल्लाते हैं बेहतर समाज के लिए
पर मेरा सत्य अनुभव कहता है
अनपढ़ लोग बेहतर हैं पढ़े लिखों से
वे सांप्रदायिक-राजनैतिक नहीं होते
-केदारनाथ
2 टिप्पणियां:
बिना पढ़ा लिखा कैसे साम्प्रदायिक हो सकता है?
satya vachan...samaj ka katu satya
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