बुधवार, 23 सितंबर 2009

या आंखों को दे दो भाषा....


सागर को संयम दे दो,
या पूरी कर दो आशा
भाषा को आँखें दे दो,
या आंखों को दे दो भाषा

तम तोम बहुत गहरा है,
उसमें कोमलता भर दो
या फिर प्रकाश कर में,
थोडी श्यामलता भर दो

अति दीन हीन सी काया,
संबंधो की होती जाए
काया को कंचन कर दो,
परिरम्भ लुटाती जाए

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

जय हो आपकी........
रचना में आनन्द आ गया..........

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

सागर को संयम दे दो,
या पूरी कर दो आशा।
भाषा को आँखें दे दो,
या आंखों को दे दो भाषा॥


बहुत ही सुन्दर. बेहतरीन पंक्तियाँ...........

हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

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