लो क सं घ र्ष !
लोकसंघर्ष पत्रिका
मंगलवार, 20 मई 2025
हो चिं मिन्ह अमरीकी सम्राज्यवाद की नींव उखाड़ने वाले नेता
अमरीकी सम्राज्यवाद की नींव उखाड़ने वाले नेता वहो चिं मिन्ह
विश्व में मार्क्स, ऐंगेल्स, लेनिन, स्टालिन की साम्यवादी परम्परा की एशियाई कड़ी माने जाने वाले विचारक हैं। वे वियतनाम के प्रथम राष्ट्रपति थे। उनके जीवन की प्रत्येक दृष्टि साम्यवादियों के लिए सर्वहारा क्रांति तथा राष्ट्रवादियों के लिए विश्व की प्रबलतम साम्राज्यवादी शक्तियों - फ़्रान्स और अमेरिका - के विरुद्ध संघर्ष की लम्बी शिक्षाप्रद कहानी रही है। इन सभी संग्रामों का प्रेरणास्रोत हो चि मिन्ह के इच्छापत्र के अनुसार मार्क्सवाद, लेनिनवाद और सर्वहारा का अंतरराष्ट्रीयतावाद ही रहा है। यदि लेनिन ने रूस में वर्ग संघर्ष का उदाहरण प्रस्तुत किया तो हो चि मिन्ह ने "राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष" का उदाहरण वियतनाम के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने स्पष्ट कहा, जिस प्रकार पूँजीवाद का अन्तर्राष्ट्रीय रूप साम्राज्यवाद है उसी प्रकार वर्गसंघर्ष का अन्तर्राष्ट्रीय रूप मुक्तिसंघर्ष है। यह बहुत ही अच्छे व्यक्ति थे, एवं इनका भारत से बहुत लगाव रहता था।
हो चि मिन्ह का जन्म मध्य वियतनाम के ङ्ये आन प्रांत के ग्राम में एक अध्यापक और चिकित्सक के परिवार में 19 मई सन् 1890 ई. को हुआ था।
हो चि मिन्ह जन्म के समय ङ्युएन शिन्ह कुंग के नाम से जाने जाते थे, किंतु 10 वर्ष की अवस्था में इन्हें ङ्युएन तत थाऐन्ह के नाम से पुकारा जाने लगा। इनके पिता ङ्युएन शिन्ह शक को भी राष्ट्रीयता के कारण गरीबी की जिंदगी बितानी पड़ी। उनका देहांत सन् 1930 ई. में हुआ। इनकी बहन ङ्युएन थि थाऐन्ह को कई वर्षों तक जेल की सजा तथा अंत में देशनिकाले का दंड दिया गया। ऐसे फ्रांसीसी साम्राज्यविरोधी परिवार में तथा भयंकर साम्राज्यवादी शोषण से पीड़ित देश, वियतनाम में, जहाँ देश का नक्शा लेकर चलनेवालों को देशद्रोह की सजा दी जाती थी, जन्म हुआ था।
सन् १९२१ में फ्रांस में कम्युनिस्ट कांग्रेस के अधिवेशन के समय का छायाचित्र
हो चि मिन्ह ने फ्रांस, अमेरिका, इंग्लैण्ड तीनों देशों की यात्रा में सर्वत्र साम्राज्यवादी शोषण को अपनी आँखों से देखा था। 1917 की रूसी क्रांति ने हो को अपनी ओर आकर्षित किया और सभी समस्याओं का हल हो को इसी अक्टूबर क्रांति में दिखाई पड़ा। हो ने तब मार्क्सवाद और लेनिनवाद का गहरा अध्ययन किया और फ्रांसीसी कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए। इसी कम्यूनिस्ट पार्टी की मदद और समर्थन से हो चि मिन्ह में एक क्रांतिकारी पत्रिका ले पारिया (फ़्रांसीसी: Le Paria) निकालना आरम्भ किया। ल पारिया फ्रांसीसी साम्राज्यवाद के विरुद्ध उसके सभी उपनिवेशों में शोषित जनता को क्रांति के लिए प्रोत्साहित करती थी। 1923 में पार्टी की तरफ से सोवियत यूनियन, जहाँ अंतरर्राष्ट्रीय कम्यूनिस्ट पार्टी का पाँचवाँ सम्मेलन आयोजित था, भेजे गए। वहीं पर 1925 में स्टालिन से मिले। हो को कम्यूनिस्ट अन्तर्राष्ट्रीय की ओर से चीन में क्रांतिकारियों के संगठन तथा हिंदचीन में राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष के लिए भेजा गया था। सन् 1930 में कम्युनिस्ट अन्तर्राष्ट्रीय की राय में हिंदचीन के सभी कम्यूनिस्टों को एक साथ मिलाकर हिंदचीन को कम्यूनिस्ट पार्टी तथा 1933 में वियत मिन्ह नामक संयुक्त मोरचा बनाया। हो 1945 तक हिंदचीन के कम्यूनिस्ट आन्दोलन तथा गोरिल्ला युद्ध के सक्रिय नेता रहे। लम्बे अभियान और जापान विरोधी युद्ध में भी उपस्थित थे। इस संघर्ष में इन्हें अनेक यातनाएँ सहनी पड़ीं। च्यांग काई शेक (वियतनामी : Tưởng Giới Thạch - चीनी भाषा: 蒋中正) की सेना ने इन्हें पकड़कर बड़ी की अमानवीय दशाओं में एक वर्ष तक क़ैद रखा जिससे इनकी आँखें अन्धी होते-होते बचीं।
2 सितंबर 1945 को हो ने 'वियतनाम जनवादी गणराज्य' की स्थापना की। फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों ने अंग्रेज़ साम्राज्यवादियों की मदद से इंडोचायना के पुराने सम्राट् बाऔ दाई की ओट लेकर फिर से साम्राज्य वापस लेना चाहा। भयंकर लड़ाइयों का दौर आरंभ हुआ और आठ वर्षों की खूनी लड़ाई के पश्चात् फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों को दियन बियेन फू (वियतनामी : Điện Biên Phủ) जीत के पास 1954 में भयंकर मात खानी पड़ी। तत्पश्चात् जिनेवा सम्मेलन बुलाना स्वीकार किया गया। इसी वर्ष हो-चि मिन्ह वियतनामी जनवादी गणराज्य के राष्ट्रपति नियुक्त हुए। फ्रांसीसियों के हटते ही अमेरिकनों ने दक्षिणी वियतनाम में बाऔ दाई का तख़्ता ङ्यो दीन्ह यियम नामक राष्ट्रपति के माध्यम से पलटवा कर वियत कोंग देशभक्तों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। युद्ध बढ़ता गया। दुनियाँ के सबसे शक्तिशाली अमेरिकी साम्राज्यवाद ने द्वितीय विश्वयुद्ध में यूरोप पर जितने बम गिराए थे, उसके दुगुने बम तथा जहरीली गैसों का प्रयोग किया। तीन करोड़ की वियतनामी जनता ने अमेरिकी साम्राज्यवादियों के हौसले पस्त कर दिए। मरने के एक दिन पूर्व 3 सितंबर 1969 ई. को हो चि मिन्ह ने अपनी जनता से साम्राज्यवादियों का टोनकिन की खाड़ी में डुबा देने की बात कही थी।
हो चि मिन्ह की विश्वसाम्राज्यवादियों की जड़ें उखाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनका कथन था वियतनामी मुक्तिसंग्राम विश्व-मुक्ति-संग्राम का ही एक हिस्सा है और मेरी जिंदगी विश्वक्रांति के लिए समर्पित है।
मलद्वार में फंसी पाकिस्तानी बिरयानी हड्डी

सोमवार, 19 मई 2025
नागपुरी जार्ज की पत्नी का देहांत
नागपुरी जार्ज की पत्नी का देहांत
नागपुर मुख्यालय के दुलारे समाजवादी नेता और पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस की पत्नी लैला कबीर दुनिया को अलविदा कह दिया। लैला कबीर पिछले 2 साल से कैंसर से जूझ रही थीं और उन्होंने अस्पताल में भर्ती नहीं होने का फैसला किया था। वह 88 साल की थीं।
1970-71 में ऑक्सफोर्ड से वापस आकर लैला कबीर रेड क्रॉस में शामिल हुई थीं। लैला कबीर और जॉर्ज फर्नांडिस की जब शादी हुई, उस वक्त जॉर्ज उभरते हुए नेता थे जबकि लैला रेडक्रॉस में ऑफिसर थीं। उस दौरान ही बांग्लादेश बनने की लड़ाई चल रही थी और लैला कहती थीं कि बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई उन्हें साथ लेकर आई ह
विमान में हुई पहली बार लंबी बात
विमान से कोलकाता से दिल्ली आते वक्त जॉर्ज और लैला कबीर ने पहली बार काफी देर तक बात की थी। तब फर्नांडिस अपनी सीट बदलकर लैला के पास ही बैठ गए थे। जब विमान दिल्ली पहुंचा तो डिनर पर मिलने को लेकर बात हुई और इसके तीन हफ्ते बाद ही शादी का प्रस्ताव आ गया।
22 जुलाई, 1971 को जॉर्ज और लैला ने शादी कर ली। 10 जनवरी, 1974 को उनके बेटे ‘सुशांतो कबीर फर्नांडिस’ का जन्म हुआ।
25 जून, 1975 को जब वे लोग ओडिशा में समुद्र के किनारे गोपालपुर में छुट्टियां मना रहे थे। इस दौरान फर्नांडिस को सूचना मिली कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी का ऐलान कर दिया है। फर्नांडिस जानते थे कि पुलिस उन्हें पकड़ सकती है इसलिए वह अंडरग्राउंड हो गए और 1 साल तक यहां से वहां घूमते रहे घूमते रहे। हालांकि इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।
बेटे के साथ अमेरिका चलीं गई लैला
जॉर्ज के अंडरग्राउंड होने के बाद लैला अपने बेटे के साथ अमेरिका चली गईं और वहां भी उन्होंने इमरजेंसी का विरोध किया। उन्हें इस बात का डर था की जॉर्ज की हत्या हो सकती है। अमेरिका में रहने के दौरान लैला प्रमुख अखबारों के संपादकों से मिलीं और कई बैठकों में शामिल हुईं।
इमरजेंसी खत्म होने के 22 महीने बाद ही लैला और जॉर्ज एक-दूसरे से मिल सके।
जनता पार्टी की सरकार में मंत्री बने थे जॉर्ज
जब लैला भारत लौटीं और इंदिरा गांधी के सत्ता से हटने के बाद देश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो लैला को अलग किस्म के हालात देखने पड़े। जॉर्ज जेल से ही 1977 का चुनाव लड़े और जीते और जनता पार्टी की सरकार में उद्योग मंत्री बने। तब जॉर्ज फर्नांडिस से मिलने के लिए सैकड़ों लोग उनके घर पर जमा रहते थे और लगातार चाय का दौर चलता रहता था।
ऑपरेशन सिंदूर पर दिए थे विवादित बयान, अब नेताओं के लिए ‘स्पेशल पाठशाला’ चलाएगी बीजेपी
लैला ने एक बार कहा था, “मुझे बहुत मुश्किल तब होती है जब कई लोग सुबह 6 बजे हमारे बेडरूम में आ जाते हैं और उन्हें यह भी नहीं लगता कि इसमें कुछ असामान्य है।”
1979 में जब जनता पार्टी में दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर घमासान चल रहा था तब फर्नांडिस ने संसद में मोरारजी देसाई सरकार के समर्थन में शानदार भाषण दिया लेकिन 2 दिन बाद ही वह पूरी तरह पलट गए और सरकार को गिराने के लिए समाजवादियों के साथ चले गए। तब लैला ने मुझसे कहा था, “मुझे नहीं पता कि जॉर्ज पर मधुर लिमये का क्या असर है।” इसके कुछ सब वक्त बाद ही जनता पार्टी की सरकार गिर गई थी।
लैला और जॉर्ज फर्नांडिस 25 साल तक एक-दूसरे से अलग रहे लेकिन लैला ने कभी भी जॉर्ज के बारे में सार्वजनिक रूप से गलत नहीं बोला। उन्होंने ऐसा तब भी नहीं किया जब वे एक-दूसरे के साथ नहीं थे। एक बार जॉर्ज के अनुरोध करने पर वह उनके लिए बिहार के मुजफ्फरपुर में प्रचार करने भी गई थीं।
वीपी सिंह सरकार में भी मंत्री बने थे जॉर्ज
इसके बाद जॉर्ज 1989 में वीपी सिंह की सरकार में फिर से मंत्री बने। उस वक्त लैला शपथ ग्रहण समारोह को देखने के लिए अपने दोस्तों के साथ जॉर्ज के घर आई थीं और तब उन्होंने जॉर्ज को मिलने वाले मंत्रालयों को लेकर बात की थी। तब जॉर्ज फर्नांडिस को रेल मंत्रालय मिला था।
जॉर्ज ने कभी नहीं मांगा तलाक
मतभेदों के बावजूद जॉर्ज फर्नांडिस ने कभी भी लैला से तलाक देने के लिए नहीं कहा जबकि लैला ने इसकी पेशकश की थी। 2009 में जब उनका बेटा अमेरिका से वापस लौटा और उसने पिता के साथ रहने का फैसला किया, तब लैला कबीर फिर से जॉर्ज फर्नांडिस की जिंदगी में लौटीं।
लैला ने जॉर्ज के भाइयों और दोस्तों को जया जेटली के पास आने से रोका। लैला तब तक जॉर्ज के साथ रहीं और उनकी देखभाल करती रहीं, जब तक 2019 में इस समाजवादी नेता की मृत्यु नहीं हो गई।
एक बार जब जॉर्ज बीमार थे और लैला उनकी देखभाल कर रही थीं, तब उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि उन्होंने संकल्प लिया था कि वह किसी मुस्लिम या हिंदू से शादी नहीं करेंगी। लैला ने कहा था, “बंटवारे की यादें मेरे मन में ताज़ा थीं। मेरे पिता मुस्लिम थे और मेरी मां ब्रह्मो समाज से थीं। मैं न तो यह थी, न वह।”
जॉर्ज ने पादरी बनने की ट्रेनिंग ली थी, विद्रोह किया था और वह समाजवाद की लड़ाई में कूद पड़े थे। जब उनकी मुलाकात लैला से हुई तब वह ईसाई बन चुके थे जबकि लैला कबीर मुस्लिम पिता और हिंदू मां की बेटी थीं।
लैला एक बात को लेकर बेहद निराश थीं कि जॉर्ज बीजेपी के साथ क्यों गए क्योंकि तब जेडीयू ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया था। लैला ने एक बार द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि जब भी इस दिग्गज समाजवादी नेता की सेहत खराब होती थी तो जॉर्ज उन्हें बुलाते थे।
शुक्रवार, 16 मई 2025
सफेद सुवर उधर क्यों
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भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम का श्रेय ले रहे हैं। इस बीच ट्रंप के बार-बार संघर्ष विराम के लिए पाकिस्तान की पैरवी करने की बड़ी वजह सामने आई है। बताया जा रहा है कि ट्रंप ने संघर्ष विराम की आड़ में पाकिस्तान के साथ बड़ा क्रिप्टो समझौता किया है।इस समझौता नहीं है टम्प के परिवार को एकतरफा लाभ देना है
गुरुवार, 1 मई 2025
पी ओ के तुरंत देश में मिला लेना चाहिए - अफजाल अंसारी
पी ओ के तुरंत देश में मिला लेना चाहिए - अफजाल अंसारी
गाजीपुर से समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद अफजाल अंसारी ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद देश में कई स्थानों पर मुसलमानों और कश्मीरी छात्रों को निशाना बनाए जाने की निंदा करते हुए आरोप लगाया कि नफरत फैला रहे 'सरकार समर्थित' लोगों और आतंकवादियों की मानसिकता एक ही जैसी है।
पहलगाम हमला मोदी सरकार की नाकामी: अफजाल अंसारी
मिली जानकारी के मुताबिक, अंसारी ने बलिया से सपा सांसद सनातन पांडेय के आवास पर एक मांगलिक कार्यक्रम में कहा कि पहलगाम की घटना केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की विफलता है। उन्होंने कहा कि जहां पर घटना हुई, वह स्थान पाकिस्तान की सीमा से 150 किलोमीटर दूर है। उन्होंने कहा कि आतंकवादियों में इतना साहस कहां से आ गया कि वह इतनी दूर से चलकर पहलगाम पहुंच गए? यह समय है उन्हें जवाब देने का। अगर मिलीभगत नहीं है तो भारत को चढ़ाई करनी चाहिए। पाकिस्तान के कब्जे के कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाना चाहिए। उन्होंने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिम समाज और कश्मीरी छात्रों को निशाना बनाने की निंदा की है।
कश्मीरी छात्रों और मुस्लिमों पर हमलों की सपा सांसद ने निंदा की
सपा सांसद ने कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद पंजाब के पटियाला में कश्मीरी छात्रों पर कुछ दक्षिणपंथी समूहों के कार्यकर्ताओं ने हमला किया था। उनके अनुसार, हरियाणा में भी मुसलमान की दुकानों में तोड़फोड़ किए जाने की घटना सामने आई। देश में कई अन्य जगहों पर भी इसी तरह की वारदात हुई हैं। अंसारी ने कहा कि पाकिस्तान से आकर निरीह लोगों की हत्या करने वाले आतंकवादियों और देश में धर्म और जाति के नाम पर नफरत फैलाने का प्रयास कर रहे लोगों की मानसिकता एक ही है। देश की जनता इन्हें पहचान चुकी है।
'सरकार संरक्षित तत्व देश में फैला रहे नफरत- अफजाल अंसारी का आरोप
उन्होंने दावा किया कि एक तरफ विदेशी आक्रमणकारी हैं तो दूसरी तरफ सरकार द्वारा प्रायोजित और प्रशिक्षित नफरती और शरारती तत्व हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ऐसे तत्वों को संरक्षण प्रदान कर रही है, जिसके कारण ये देश के विभिन्न हिस्सों में धर्म और जाति के नाम पर गुंडागर्दी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कहीं कश्मीरी छात्रों और मुस्लिमों को उत्पीड़ित किया जा रहा है तो कहीं दलित सांसद राम जी लाल सुमन को धमकाया जा रहा है।''
POK को भारत में मिलाने की वकालत, जाति जनगणना पर भी बोले अंसारी
अंसारी ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को वापस लेने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि पूरा भारत एक मत है। जो पाक अधिकृत कश्मीर है उसको भारत में मिला लेने का यह अच्छा अवसर है। उनके गुनाहों की सजा भी उनको दी जाएगी और जो भारत का ही है, उसे भारत में मिला लिया जाए। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को हम भारत का हिस्सा मानते हैं। सपा सांसद ने केंद्र सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना कराए जाने के निर्णय को पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के दबाव का नतीजा बताते हुए कहा कि आने वाले समय में सरकार को जाति आधारित जनगणना के निष्कर्ष के अनुसार अब तक वंचित रहे लोगों को उनका हक देना पड़ेगा।
सोमवार, 28 अप्रैल 2025
संघ और बच्चों का मानसिक बधियाकरण
संघ और बच्चों का मानसिक बधियाकरण
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देश में संघ की जितनी भी शाखाएं हैं, जितने भी संगठन हैं और जितने भी कार्यक्रम हैं, उनके माध्यम से बच्चों से लेकर जवान और बुड्ढों तक को सांप्रदायिक वैमनस्यता, नफ़रत और दंगों, तथा मुसलमान, मस्जिद और पाकिस्तान के प्रति दुश्मनी का शिक्षण और प्रशिक्षण दिए जाते हैं। इन संगठनों के माध्यम से संघ भारत की एक बृहद आबादी का मानसिक बधियाकरण के साथ ही लंपटीकरण, अमानवीयकरण और अपराधीकरण कर चुका है, जो एक बोली पर बिना कुछ सोचे-समझे सियार की तरह हुआं हुआं बोलने लगते हैं।
इनके पास कुछ सोचने-समझने की अपनी बुद्धि तो होती नहीं, ये सिर्फ ऊपर के आदेश का पालन करना जानते हैं। भारत में मूर्खता के मार्तंड ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है। इनके लिए इंसान और इंसानियत, प्रेम, दया, करूणा, सहानुभूति, भाईचारा, सदाशयता, समझदारी, ईमानदारी और परस्पर विश्वास जैसी बातों का कोई मतलब ही नहीं होता। ऐसे लोग सिर्फ विनाश और विध्वंस ही कर सकते हैं, निर्माण और विकास नहीं।
मूर्खों, अज्ञानियों, जाहिलों, अनपढ़ों, भ्रष्टों और लूटेरों की यह जमात बुद्धि, ज्ञान-विज्ञान, आधुनिकता, प्रगतिशीलता, गतिमानता, विवेकशीलता, तार्किकता, नवोन्मेष और सत्यान्वेषण के दुश्मन होती है। ऐसे ही लोगों की भीड़ के माध्यम से संघ, भाजपा और मोदी सरकार अपनी सांप्रदायिक सोच और कार्यक्रम को अमलीजामा पहनाते हैं। धर्म और अंधराष्ट्रवाद के माध्यम से इनको सामाजिक स्वीकृति और राजनीतिक प्रश्रय मिलता है।
कुछ ऐतिहासिक पात्रों के माध्यम से इन्हें राष्ट्रवाद की शिक्षा दी जाती है। इन्हीं ऐतिहासिक पात्रों को वे राष्ट्र और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक और प्रतिमान मानते हैं। ऐतिहासिक तथ्यों की इन्हें न तो कोई जानकारी होती है और न ही वे ऐतिहासिक तथ्यों का खुद से विश्लेषण ही कर सकते हैं, क्योंकि संघ की शाखाओं में सिर्फ आदेश का पालन करना ही सिखाया जाता है, प्रश्न करने की सख्त मनाही होती है।
इन शाखाओं के अलावा सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालयों में जिस तरह की शिक्षा देश के नौनिहालों को दी जाती है, वह सांप्रदायिक, अंधराष्ट्रवादी, अवैज्ञानिक, अतार्किक, धार्मिक उन्माद और अंधविश्वास से भरे होते हैं। आज ऐसे लोगों का जमावड़ा सबसे ज्यादा मंदिरों और धर्मस्थलों के ईर्द-गिर्द ही होता है। धर्म और धर्मस्थल इनके अमानवीय व्यवहारों का औचित्य सिद्ध करने के सबसे बेहतर साधन और जगह हैं।
ऐसे लोगों के जीवन यापन के लिए संघ को सरकार और पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों से अच्छी-खासी रकम भी मिलती है। संघ ने इसी प्रक्रिया द्वारा भारतीय समाज और व्यवस्था का अपराधीकरण, लंपटीकरण, अमानवीयकरण और बाजारीकरण किया है, जिसका दुष्परिणाम हम सब भुगत रहे हैं।
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राम अयोध्या सिंह, 27.04.2025
शनिवार, 26 अप्रैल 2025
मोदी वैसे जैसे घीसू-माधव ने कफन के पैसे से शराब पी,
हमारा “लहालोट” शासक !
कभी मधुबनी की धरती पर, जहां मैथिली की मिठास और हिंदी की सरलता गूंजती थी, एक “वैश्विक नेता” ने टेलीप्रॉम्प्टर की कृपा से अंग्रेजी में डायलॉग मारा: “We will track and punish every terrorist!”
जनता हैरान है कि भाई ये अंग्रेजी में क्या बखान कर रहे हैं? हिंदी में तो पहले ही समझ आ गया था! मधुबनी में टेलीप्रॉम्प्टर से बोले गये कथन, कि “आतंकियों को धरती के किसी कोने में नहीं छोड़ेंगे”, में वास्तव में कोई रोमांच नहीं था । यह वही पुराना “घुस कर मारा” वाला जुमला था, जो बालाकोट की सुर्खियों से निकलकर अब सचमुच थक चुका है।
फिर भी हम कहेंगे कि मोदी का यह कोई साधारण भाषण नहीं था । यह एक अनोखी “भाषिक फैंटेसी” थी जिसकी ओट में देश का प्रधानमंत्री यथार्थ से मुँह चुरा रहा था ।
गौर करने की बात है कि उसी मंच पर मोदी-नीतीश का एक नाटक लहालोट भी चल रहा था। मोदी-नीतीश, दोनों प्रेमचंद के घीसू-माधव की तरह, हंसी-ठिठोली में मस्त थे, मानो पहलगाम के 26 शहीदों का दुख कोई पुराना गाना हो, और पंचायती राज का “हलुआ-पूड़ी” उनके आज का आनंद। आख़िर वे वहाँ पंचायती राज दिवस मनाने के लिए ही इकट्ठे हुए थे !
दरअसल हमारे शासकों की यह अश्लील हंसी-ठिठोली सिर्फ मधुबनी तक सीमित नहीं है। यह उस “अय्याश और अशक्त बूढ़े शासक” की कहानी है जो जनता के प्रति पूरी तरह से “निष्ठुर और निर्दयी” हो चला है।
जनता पूछ रही थी: “साहब, आतंकियों को छोड़ने की बात छोड़ो, पहले बताओ कि कश्मीर में सुरक्षा क्यों नहीं?” पर शासक तो अपनी ही मौज में उलझा हुआ है, वैश्विक मंच पर इंग्लिश में “डायलॉगबाजी” करने की पीनक में, ताकि दुनिया ताली बजाए।
लेकिन वे नहीं जानते कि दुनिया में आज इनको पूछता कौन है ? ट्रंप की “चरणवंदना” और चीन से “सौदेबाजी” में उलझे “अतिरिक्त चालाक” मोदी आज भू-राजनीति के तूफान में दिशाहारा हैं । “मेक इन इंडिया” का ढोल पीटते-पीटते भारत को “मेड इन चाइना” का गुलाम बना डाला है । इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर सैन्य उपकरण तक, सब कुछ चीन से आता है । और नतीजा? कश्मीर में सुरक्षा चूक, क्योंकि स्वदेशी हथियारों का सपना अभी भी “प्रोजेक्ट इन प्रोग्रेस” है।
जनता पूछ रही है: “आत्मनिर्भरता का क्या हुआ?” और जवाब में उनके पास टेलीप्रॉम्प्टर की चमक और “लहालोट” हंसी है ।
यह मसला सिर्फ विदेश नीति या रक्षा का नहीं। यह उस “दुर्भाग्य” की कहानी है, जिसमें एक चरम “अशक्त” टीम को देश सौंप दिया गया है। मधुबनी का मंच तो बस एक झलक था—जहां शहीदों के दुख को भूलकर “हलुआ-पूड़ी” के सपने बांटे जा रहे थे । असल खेल तो दिल्ली में है, जहां लोकतंत्र और भाईचारा हर दिन खतरे में पड़ रहा है।
जैसे घीसू-माधव ने कफन के पैसे से शराब पी, वैसे ही ये शासक लोकतंत्र के कफन पर सांप्रदायिकता का जश्न मना रहे हैं ।
—अरुण माहेश्वरी
रविवार, 20 अप्रैल 2025
ट्रम्प गंदगी से भरे हैं। टॉयलेट्स को उनसे जलन हो रही है।
अमेरिका में हजारों लोगों ने राष्ट्रपति आवास घेरा:सभी 50 राज्यों में प्रदर्शन, पोस्टर में लिखा- ट्रम्प को अल सल्वाडोर जेल भेजें
विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने व्हाइट हाउस का घेराव किया।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों के खिलाफ हजारों प्रदर्शनकारी एक बार फिर सड़कों पर उतर आए। ये प्रदर्शन सभी 50 राज्यों में हुए। प्रदर्शनकारी ट्रम्प की टैरिफ वॉर की नीतियों, सरकारी नौकरियों में छंटनी का विरोध कर रहे हैं।
इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति आवास व्हाइट हाउस का घेराव किया। लोगों ने ट्रम्प पर नागरिक और कानून के शासन को कुचलने का आरोप लगाया। इस आंदोलन को 50501 नाम दिया गया है, जिसका मतलब '50 विरोध प्रदर्शन, 50 राज्य, 1 आंदोलन' है।
फ्लोरिडा में टेस्ला शोरूम के बाहर विरोध जताती महिला प्रदर्शनकारी। पोस्टर पर लिखा- न कोई राजा है, न कोई कुलीन है, अपना टैक्स चुकाएं।
ट्रम्प और मस्क की नीतियों के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन
राजधानी वॉशिंगटन डीसी समेत सभी राज्यों में प्रदर्शन की बड़ी वजह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और कारोबारी इलॉन मस्क की आक्रामक नीतियां हैं। इलॉन मस्क का दक्षता विभाग लगातार सरकारी विभागों में छंटनी कर रहा है।
अब तक हजारों सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा चुका है। दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रम्प की अप्रवासियों पर कार्रवाई और दूसरे देशों पर टैरिफ लगाने की सख्त पॉलिसी भी इन प्रदर्शनों की एक बड़ी वजह है।
ट्रम्प के टैरिफ वॉर से अमेरिका में दूसरे देशों से आने वाली चीजों के दाम बढ़े हैं। इसका सीधा असर आम लोगों की जेब पर पड़ रहा है।
ट्रम्प के विरोध में तख्ती लेकर पहुंची महिला प्रदर्शनकारी। लिखा- ट्रम्प गंदगी से भरे हैं। टॉयलेट्स को उनसे जलन हो रही है।
न्यूयॉर्क में हजारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर ट्रम्प के विरोध में रैलियां निकालीं।
ट्रम्प के काम से खुश हैं 45% वोटर्स
अमेरिकी सर्वे एजेंसी गैलप के मुताबिक 45% अमेरिकी वोटर्स ट्रम्प के पहले 3 महीने के कामकाज से खुश हैं, जबकि ट्रम्प के पहले कार्यकाल के शुरुआती 3 महीनों में 41% वोटर्स ही उनके कामकाज से संतुष्ट थे।
हालांकि यह बाकी राष्ट्रपतियों की तुलना में बेहद कम है। 1952 से 2020 के बीच सभी राष्ट्रपति की पहली तिमाही की औसत रेटिंग 60% है। इसकी तुलना में ट्रम्प की रेटिंग कम दिख रही है। एजेंसी के मुताबिक ट्रम्प के पदभार संभालने के वक्त उनकी रेटिंग 47% थी। इसमें भी गिरावट दर्ज हुई है।
शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025
"हरकारा" पर रामदेव की पोल खोल
रामदेव ठग को धोखाधड़ी के धंधे से बिजनेस टायकून बनाने में किसने और कब मदद करी
"हरकारा" पर रामदेव की पोल खोल
कहीं रसूख का इस्तेमाल, कहीं कानून से किनारा
जानते कितना हैं योग और आयुर्वेद की दुकान चलाने वाले रामकिशन यादव को आप?
गौरव नौड़ियाल;
रूह अफ़ज़ा शरबत को लेकर नफरती बयान देने का वीडियो जारी होने के बाद ‘हरकारा’ ने पतंजलि आयुर्वेद कंपनी के मालिक और खुद को योग गुरु बताने वाले रामदेव के बारे में थोड़ा रिसर्च और किया और पिछले कई सालों से उनके संग चल रहे विवादों की एक लिस्ट बनाई है. किसी और देश में ये सब होता, तो कानून कब का उन्हें टांग चुका होता. ये रामदेव के बारे में जितना है, उतना ही हम सबके बारे में भी है, जो न सिर्फ इस तरह की बेवकूफियों, भ्रष्टाचार, झूठ, छलावे और दुष्प्रचार को सह रहे हैं, बल्कि उसे बढ़ावा और चढ़ावा भी दिये जा रहे हैं. यह फेहरिस्त पूरी नहीं है. पर इसकी जरूरत है. ताकि सनद रहे और आगे आने वाली पीढ़ियां भी हमें आश्चर्य से देखें कि रामदेव को ये सब कैसे करने दिया गया. आपके होते हुए.
साधारण से जोगी से जेट वाले कारोबारी बाबा तक रामदेव के इस सफर में घालमेल ही घालमेल है. रामदेव को साल 2014 के लोकसभा इलेक्शन में भाजपा का चुनाव प्रचार करने के एवज में अलग-अलग राज्यों में न केवल बेशुमार जमीनें मिली, बल्कि पोस्ट ऑफिस से माल की बिक्री से लेकर फौज की कैंटीन तक रामदेव की धमक बढ़ी. रामदेव के विज्ञापनों से बंधे बड़े-बड़े मीडिया हाउसेज ने रामदेव के प्रोडक्ट पोस्ट ऑफिस से बेचने की खबरों को ऐसे प्रसारित किया, मानों भारत सरकार की कोई महत्वाकांक्षी योजना हो. रामदेव के ही विज्ञापनों का असर है कि बाबा के बड़े-बड़े कांड हो जाने पर भी मुख्यधारा के मीडिया में अक्सर सन्नाटा ही पसरा रहता है. ये एक किस्म से रामदेव के कारोबार को सीधा समर्थन देना था.
हालांकि, फौज ने प्रोडक्ट की गुणवत्ता को देखकर जल्द ही पतंजलि के कुछ उत्पादों से हाथ खींच लिए थे. रामदेव पर सरकार किस कदर मेहरबान थी, उसे समझने के लिए जरा 'जनसत्ता' की साल 2017 की इस हेडलाइन को देखिए- 'नरेंद्र मोदी राज के तीन साल में बाबा रामदेव की ‘पतंजलि’ को मिली 2000 एकड़ जमीन, 300 करोड़ की छूट भी'!
बड़े मीडिया हाउसेज भले ही विज्ञापनों की चमक में खबरों की नब्ज़ ढूंढ़ने में नाकामयाब हों, लेकिन रामदेव के खिलाफ गुमनाम स्वतंत्र पत्रकारों की रिपोर्ट से यूट्यूब पर कई जिंदा दस्तावेज़ मौजूद हैं, जहां पीड़ित खुद बता रहे हैं कि कैसे रामदेव के साम्राज्य विस्तार ने उन्हें न्याय के दरवाजे तक से वंचित कर दिया है. बाबा रामदेव पर हरिद्वार में जमीनें कब्जाने के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन बाबा की धमक और पहुंच के आगे पीड़ित हासिल कुछ नहीं कर पा रहे. हां, कभी कोई गुमनाम पत्रकार उनसे मिलता है तो वो साल 2007 से अपनी खरीदी हुई जमीनों और अब खंडहर हो रहे घरों के दु:ख के बीच, कानून का मजाक उड़ाती हुई रामदेव की कहानी सुना देते हैं.
ऋषिकेश और हरिद्वार की सड़क, घाट, बाजारों में घूमकर जड़ी बूटियां बेचने वाले रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव आज ऐसे ही 'पूछ फाड़ लेगा क्या' की धमकी नहीं देते, बल्कि अपनी ऊंची राजनीतिक रसूख का उपयोग बाबा ने अपने से छोटे लोगों को कुचलने के लिए कई दफा किया है.
पहुंच रामदेव की, गुंडागर्दी भाई राम भरत की
योगगुरु बाबा रामदेव के भाई राम भरत पर पतंजलि योगपीठ में काम करने वाले एक युवक के अपहरण और मारपीट का आरोप भी लगा और उसकी ‘भूल’ महज इतनी थी कि वह पतंजलि से काम छोड़कर कहीं और चला गया था. इसके अलावा साल 2015 में फ़ूड पार्क में काम की मांग कर रहे स्थानीय ट्रक यूनियन के प्रदर्शनकारियों और पतंजलि कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़प में ट्रक ड्राइवर दलजीत सिंह की मौत के बाद उस पर हत्या का आरोप लगाया गया और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. दिलचस्प बात तो ये है कि ट्रक ड्राइवर की हत्या में आरोपी, गुंडागर्दी करने वाला और फैक्ट्री में मजदूरों को बंधक बनाकर पीटने वाला रामभरत यादव पतंजलि के उसी आयुर्वेदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट का सीईओ है, जिसका उद्घाटन करने भारत के प्रधानमंत्री पहुंच जाते हैं. गुजरी जनवरी में ही पतंजलि आयुर्वेदिक लिमिटेड यूनिट-3 के डिप्टी मैनेजर को बंधक बनाकर मारपीट करने और डरा-धमकाकर संपत्ति हड़पने के मामले में अदालत ने आठ लोगों के खिलाफ नोटिस जारी किए थे, जिनमें बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव का भाई रामभरत भी शामिल था. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि धर्म और गुंडागर्दी के दम पर पतंजलि कैसे कानूनों का खुला मखौल उड़ा रही है.
‘न्यूजलॉन्ड्री’ की एक रिपोर्ट कहती है कि रामदेव के परिवार को जानने वाले 24 वर्षीय दीपक सिंह ने आरोप लगाया, "उन्होंने देश के लिए जो कुछ भी किया हो, उन्होंने यहां के लोगों के लिए कुछ नहीं किया. उनके परिवार के सदस्यों ने गांव की पंचायत की जमीन हड़पने की कोशिश की है. उन्होंने एक सरकारी तालाब पर कब्जा कर लिया है और किसी को वहां से मिट्टी भी नहीं लेने देते." एक बुजुर्ग ग्रामीण ने बताया कि सैदलीपुर में, जिसकी आबादी करीब 3,000 है, ज़्यादातर शिक्षित लोग बेरोज़गार हैं, “लेकिन कोई भी पतंजलि नहीं जाना चाहता”. “कोई भी उन्हें अपना नहीं मानता. रामदेव और उनके परिवार की हालत इतनी खराब है कि अगर वे सरपंच का चुनाव लड़ते हैं, तो उनके परिवार के अलावा कोई भी उन्हें वोट नहीं देगा.” रामदेव और उनके परिवार द्वारा कथित शोषण की ऐसी कहानियां सैदलीपुर में प्रचुर मात्रा में हैं, जो कि रामदेव का मूल गांव है.
'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' के लिए तपस्या की रिपोर्ट है कि रामदेव की संस्था ‘योगक्षेम संस्थान’ ने वर्षों तक कोई चैरिटी नहीं की, बल्कि टैक्स-फ्री ढांचे का उपयोग निवेश पार्किंग के लिए किया. 2016 में स्थापित योगक्षेम संस्थान को योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में टैक्स में छूट दी गई थी. छह वर्षों तक इस संस्था ने कोई भी सामाजिक सेवा या चैरिटी का कार्य नहीं किया, बल्कि इसका उपयोग पातंजलि समूह की निवेश संपत्तियों को पार्क करने के लिए किया गया. संस्था को बालकृष्ण और अन्य कंपनियों से 2 करोड़ शेयर (₹79.8 करोड़ मूल्य) दान में मिले, पर ये शेयर पहले से बैंकों को गिरवी रखे गए थे, जिसका बाद में ट्रांसफर रद्द करना पड़ा. इसके बावजूद योगक्षेम को टैक्स छूट मिलती रही और जांच एजेंसियों की नजर से यह बची रही.
योगक्षेम संस्थान ने रुचि सोया (अब पातंजलि फूड्स) में निवेश को गुप्त रखने का माध्यम बनाया. 2020-21 में, योगक्षेम को 6 करोड़ शेयर रुचि सोया के (₹42 करोड़ मूल्य) दान में मिले, जिससे वह कंपनी का 20.28% मालिक बन गया. यह निवेश पहले दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट, फिर पातंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट और अंत में पातंजलि फूड एंड हर्बल पार्क्स प्रा. लि. को ट्रांसफर होता रहा, जिससे मालिकाना हक और लाभार्थी की पहचान छिपी रही. 2022-23 में योगक्षेम ने रुचि सोया से ₹30 करोड़ का डिविडेंड कमाया, जिसमें से केवल ₹19.43 करोड़ चंद अज्ञात संस्थाओं को दान में दिया गया, और ₹10.48 करोड़ टैक्स चुकाया. फिर भी, योगक्षेम 16.52% हिस्सेदारी रुचि सोया में रखे हुए है और अब भी चैरिटेबल संस्था का दर्जा रखता है.
हरियाणा में तो बाबा रामदेव और पतंजलि समूह द्वारा की गई कथित ज़मीन खरीद-फरोख्त और नीतिगत लाभ के कई मामले हैं, लेकिन कोई पूछने वाला नहीं. ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ की ही एक रिपोर्ट कहती है कि 2015 में हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने रामदेव को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की पेशकश की, जिसे रामदेव ने यह कहकर ठुकरा दिया कि "अब पीएम हमारे हैं, पूरा कैबिनेट हमारा है." रामदेव का बीजेपी से गहरा नाता, विशेषकर नरेंद्र मोदी को समर्थन देने के बाद, पतंजलि को नीतिगत लाभ मिला.
अरावली की ज़मीन में हेराफेरी : हरियाणा सरकार ने अरावली की पहाड़ियों में स्थित संवेदनशील वन भूमि को संरक्षण से बाहर रखा. सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेशों की अनदेखी की गई, ताकि ज़मीनें निजी हाथों में जाएं.
शेल कंपनियों के ज़रिए ज़मीन की खरीद-फरोख्त : रामदेव से जुड़ी कम से कम 14 कंपनियों और 2 ट्रस्टों ने फरीदाबाद के मंगर गांव में ज़मीन खरीदी और बेची. इन कंपनियों ने "औद्योगिक संयंत्र लगाने" के नाम पर ज़मीन ली, पर उद्योग नहीं लगाया. सिर्फ ज़मीन बेचकर भारी मुनाफा कमाया.
एक सौदा, 365% लाभ : "कंकाल आयुर्वेद प्रा. लि." नामक शेल कंपनी ने 2.66 करोड़ रुपये की ज़मीन 12.38 करोड़ में बेची. यह कंपनी कभी अपने घोषित उद्देश्य (आयुर्वेदिक उत्पाद बनाना) में सक्रिय नहीं रही.
नीति का दुरुपयोग : हरियाणा सरकार ने जानबूझकर जंगल क्षेत्र की पहचान को टालते हुए उन्हें "गैर मुमकिन पहाड़" के रूप में वर्गीकृत किया. इन वर्गों की ज़मीन पर संरक्षण कानून लागू नहीं होते, जिससे रियल एस्टेट का रास्ता साफ हो गया.
कानूनी खामियों का लाभ : 2023 में केंद्र सरकार ने "फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट" में संशोधन कर ‘डीम्ड फॉरेस्ट’ की रक्षा को हटा दिया. इससे ऐसी तमाम ज़मीनें, जिन्हें जंगल माना जा सकता था, अब कानूनी संरक्षण से बाहर हो गईं, जिसका सीधा लाभ पतंजलि और अन्य रियल एस्टेट समूहों को मिला.
पैसे का घुमाव : ज़मीन बेचकर जो पैसा आया, उसे अन्य पतंजलि कंपनियों में निवेश किया गया या ‘एडवांस’ के नाम पर लोगों को दिया गया. एक नेपाल की एयरलाइन (गुणा एयरलाइंस) में भी निवेश किया गया.
जवाबदेही से बचाव : सरकार और कंपनियों को भेजे गए सवालों के जवाब टालमटोल वाले थे. सबने वही कॉपी-पेस्ट जवाब भेजा कि “हमने सभी कानूनों का पालन किया है.”
पारदर्शिता की कमी : इन शेल कंपनियों की गतिविधियों की सार्वजनिक तौर पर कोई जांच नहीं हुई है. पिछली बार 2012 में यूपीए सरकार के समय इस प्रकार की जमीन लेन-देन पर सवाल उठे थे.
छुपा हुआ रियल एस्टेट साम्राज्य : योग और आयुर्वेद की आड़ में पतंजलि ने एक गुप्त रियल एस्टेट बिज़नेस खड़ा कर लिया है, जिसे अब तक जनता की नज़रों से दूर रखा गया है.
इसके अलावा भी रामदेव ने विज्ञान, उपभोक्ता और नैतिकता के साथ खासा घालमेल किया हुआ है.
कोरोनिल का दावा : 2020 में पतंजलि ने 'कोरोनिल' नामक उत्पाद को COVID-19 के इलाज के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे बाद में आयुष मंत्रालय ने केवल 'इम्यूनिटी बूस्टर' के रूप में मान्यता दी.
एफएसएसएआई लाइसेंस की कमी : 2015 में पतंजलि ने इंस्टेंट आटा नूडल्स लॉन्च किया वो भी भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) से आवश्यक लाइसेंस प्राप्त किए बिना, जिसके कारण उन्हें कानूनी नोटिस का सामना करना पड़ा.
आंवला जूस और घी की गुणवत्ता : 2015 में कैन्टीन स्टोर्स डिपार्टमेंट ने पतंजलि के आंवला जूस को पीने के लिए अनुपयुक्त बताया और अपने स्टोर्स से हटा दिया. उसी वर्ष, हरिद्वार में पतंजलि घी में फंगस और अशुद्धियां मिलने की शिकायतें भी सामने आईं.
भ्रामक विज्ञापनों पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी : सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को भ्रामक विज्ञापनों के लिए फटकार लगाई और चेतावनी दी कि यदि ऐसे विज्ञापन जारी रहे तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
बिना शर्त माफी की अस्वीकृति : सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा मांगी गई बिना शर्त माफी को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि उनके भ्रामक दावों से जनता को नुकसान हो सकता है.
एलोपैथी को 'मूर्खतापूर्ण विज्ञान' कहना : बाबा रामदेव ने एलोपैथी को 'मूर्खतापूर्ण और दिवालिया विज्ञान' कहा, जिससे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की.
डॉक्टरों पर आरोप : रामदेव ने दावा किया कि एलोपैथी दवाओं के कारण लाखों मरीजों की मौत हुई है, न कि ऑक्सीजन की कमी से, जिससे चिकित्सा समुदाय में आक्रोश उत्पन्न हुआ.
बच्चों के लिए उत्पाद विवाद : "शिशु केयर किट" को फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) द्वारा बिना अनुमोदन के बेचे जाने के आरोप.
गाय के दूध विवाद : मदर डेयरी और अमूल पर भ्रामक दावे करने के आरोप.
विज्ञापन विवाद : कई गैर-वैज्ञानिक और अतिशयोक्तिपूर्ण दावों के लिए एडवरटाइज़िंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) द्वारा आलोचना.
स्पष्ट लेबलिंग का अभाव : कुछ उत्पादों पर पूर्ण सामग्री सूची का अभाव.
नेपाल में पतंजलि उत्पादों पर प्रतिबंध : नेपाल के ड्रग रेगुलेटर ने योग गुरु रामदेव के पतंजलि उत्पादों का निर्माण करने वाली दिव्य फार्मेसी को ब्लैक लिस्ट कर दिया है. अब ये कंपनी नेपाल में अपनी दवा नहीं बेच पाएगी. नेपाल ने इस कंपनी को बैन करने के पीछे विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के मानदंडों का पालन नहीं करने का हवाला दिया, हालांकि भारत में बाबा धड़ल्ले से कुछ भी बेचता है और सालों से लैबों में एक नहीं, दो नहीं बल्कि कई-कई उत्पाद टेस्ट में फेल हो रहे हैं.
आयकर विभाग विवाद : 13 साल पहले की बात है जब आयकर विभाग ने बाबा रामदेव से जुड़े ट्रस्टों की आय वर्ष 2009-10 में 120 करोड़ रुपए आंकी और इसके आधार पर ट्रस्ट से 58 करोड़ रुपए का कर मांगा. बाबा से जुड़े ट्रस्टों को मिलने वाली छूट भी समाप्त कर दी गई थी. यह छूट ट्रस्टों को कल्याणकारी व धर्मार्थ कार्यों के लिए दी जाती थी, लेकिन जैसे ही बाबा रामदेव व अन्ना हजारे ने दिल्ली में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला था, उत्तराखंड में रामदेव के काले कारनामें एक के बाद एक बाहर आने लगे थे. टैक्स पर छूट लेकर रामदेव एक ओर धंधा बढ़ाता रहा और दूसरी ओर सरकार बदलते ही तमाम तरह की रियायतें हासिल करने की ताकत पा ली.
भूमि अधिग्रहण विवाद : सबसे चौंकाने वाला है बार-बार बाबा रामदेव का जमीनों को कब्जाने या हेर-फेर में उछलने वाला नाम, लेकिन इसके बावजूद पसरी चुप्पी. मानों बाबा के आगे कानून नतमस्तक हो. पिछले कुछ साल पहले छोटानागपुर लॉ कॉलेज की ओर से सरकार को जमीन देने के लिए दिए गए आवेदन की अनदेखी कर झारखंड सरकार ने पतंजलि योगपीठ को दे दी थी. यहां रामदेव ने अस्पताल बनाने का झांसा देकर औने-पौने दाम पर जमीन ले ली थी.
न्यूजलॉन्ड्री ने तो बाबा के जमीन कब्जाने पर ही एक पूरी रिपोर्ट की हुई है. बसंत कुमार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है- 'उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में तेलीवाला नाम का एक गांव है. तेलीवाला, औरंगाबाद और इसके आस पास के गांवों में सैकड़ों बीघा जमीन पतंजलि के पास है. एक विश्व प्रसिद्ध योग गुरु खासकर जो एक समय में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला चुका है, उसके द्वारा जमीनें खरीदने के लिए ऐसा कुछ भी किया जा सकता है, यह विश्वास से परे लगता है. कहीं ग्रामसभा की जमीन पर कब्जा तो कहीं बरसाती नदी को भरकर कब्जा. कहीं दलितों की जमीन खरीदने के लिए दलितों को ही मोहरा बनाया गया.'
ऐसे ही स्वामी रामदेव से जुड़ी पतंजलि योग लिमिटेड को नोएडा में ‘फूड पार्क’ स्थापित करने के लिए दी गई 4,500 एकड़ जमीन पर भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामला पहुंचा. हाई कोर्ट ने यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी से पूछा था कि क्या फूड पार्क स्थापित करने के लिए रामदेव, उनके किसी सहयोगी या उनकी कंपनी को परोक्ष-अपरोक्ष रूप से जमीन आवंटित की गई थी? असफ खान नाम के व्यक्ति ने हाई कोर्ट में याचिका डालकर पतंजलि को जमीन आवंटन पर सवाल उठाए थे. याचिका में कहा गया था कि इस जमीन पर लगे 600 पेड़ काटे जाने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा.
अवैज्ञानिक बयान विवाद : गर्भ में बच्चे के लिंग चयन के बारे में अवैज्ञानिक दावे. फिर बाद में 'पुत्रजीवक बीज' दवा को लेकर उठे विवाद पर बाबा रामदेव ने सफाई भी पेश की थी.
काला धन विवाद : राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर काले धन से संबंधित बयानों को लेकर विवाद. रामदेव ने साल 2012 में काला धन को लेकर ट्वीट किया था कि काला धन वापस आने के बाद पेट्रोल 30 रुपए प्रति लीटर बिकने लगेगा.
GST चोरी के आरोप : पतंजलि पर कर चोरी के आरोप और टैक्स अधिकारियों द्वारा जांच के एक-दो नहीं, बल्कि कई मामले हैं. जीएसटी इंटेलीजेंस महानिदेशालय (DGGI) ने पतंजलि ग्रुप की कंपनियों - पतंजलि आयुर्वेद और पतंजलि फूड्स को जीएसटी पेमेंट न करने और गलत तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) क्लेम करने के लिए 19 अप्रैल, 2024 को पतंजलि ग्रुप की कंपनियों- पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और पतंजलि फूड्स लिमिटेड को दो कारण बताओ नोटिस भेजे थे. डायरेक्टर जनरल ऑफ गुड्स एंड सर्विस टैक्स इंटेलीजेंस जीएसटी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी है, जो देशभर में जीएसटी की चोरी पर नजर रखती है.
साल 2012 में भी सरकार ने योग गुरु रामदेव द्वारा चलाए जाने वाले ट्रस्ट योग शिविरों के लिए कथित तौर पर सेवा कर के भुगतान के संबंध में पांच करोड़ रुपये का डिमांड नोटिस जारी किया था. अधिकारियों ने तब कहा था कि हरिद्वार के पतंजलि योग पीठ और दिव्य योग ट्रस्ट द्वारा आयोजित शिविर वाणिज्यिक गतिविधि है, इसलिए राजस्व विभाग ने योग सीखने वाले व्यक्तियों से आयोजित शुल्क पर 5.14 करोड़ रुपये का नोटिस जारी किया गया.
12 साल पहले योगगुरु रामदेव के फर्मों पर सेंट्रल एक्साइज और कस्टम विभाग के अधिकारियों ने छापेमारी की थी और तब अधिकारियों ने दावा किया था कि छापे के दौरान 20 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी सामने आई. छापेमारी में पता चला है कि पतंजलि के कई कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स पर एक्साइज ड्यूटी अदा नहीं की गई थी.
भ्रामक प्रमाणपत्र विवाद : कुछ उत्पादों पर लगाए गए "प्रमाणित" या "अनुमोदित" जैसे दावों की वैधता पर सवाल.
शुद्धता से नीचे का कतई दावा न करने वाले बाबा का घी तक मिलावटी निकला. पतंजलि ब्रांड गाय के घी का सैंपल फेल पाया गया है. यह सैंपल उत्तराखंड राज्य की प्रयोगशाला के बाद केंद्रीय प्रयोगशाला में भी सैंपल फेल पाया गया. जिसके बाद टिहरी जनपद के खाद्य सरंक्षा और औषधि विभाग के द्वारा पतंजलि कंपनी के खिलाफ एडीएम कोर्ट में वाद दायर किया गया.
अतिरंजित विज्ञापन दावे : वजन घटाने और रोग निवारण के दावों पर नियामक संस्थाओं द्वारा आपत्ति.
पतंजलि नूडल्स विवाद : खाद्य सुरक्षा मानकों के उल्लंघन के आरोप और बाद में वापसी.
मधुमेह उपचार दावा विवाद : मधुमेह को ठीक करने के दावों पर चिकित्सा संस्थानों द्वारा आपत्ति.
प्रतिस्पर्धी व्यवसायों पर अनुचित टिप्पणियां : अन्य FMCG कंपनियों के खिलाफ विवादास्पद बयानबाजी. हाल ही में ‘शरबत जिहाद’ का मामला, जो अब तूल पकड़ चुका है.
पतंजलि और बाबा रामदेव को विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जो ज्ञात भूमि आवंटन या लीज पर दी गई हैं, उनमें कुछ इस प्रकार हैं :
हरिद्वार, उत्तराखंड : पतंजलि योगपीठ और विश्वविद्यालय के लिए बड़े पैमाने पर भूमि आवंटन
नोएडा, उत्तर प्रदेश : पतंजलि फूड और हर्बल पार्क के लिए भूमि आवंटन, जहां रियायती दरों पर जमीन दी गई.
महाराष्ट्र : विदर्भ क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण इकाई और अन्य परियोजनाओं के लिए भूमि.
असम : पतंजलि हर्बल और फूड पार्क के लिए जमीन.
मध्य प्रदेश : औषधीय और खाद्य उत्पादों के लिए विभिन्न स्थानों पर भूमि आवंटन.
छत्तीसगढ़ : जड़ी-बूटी खेती और औद्योगिक इकाइयों के लिए भूमि लीज.
हरियाणा : कृषि और औद्योगिक प्रयोजनों के लिए भूमि आवंटन.
राजस्थान : विशेष आर्थिक क्षेत्र और औद्योगिक इकाइयों के लिए जमीन
गुजरात : औद्योगिक इकाइयों के लिए भूमि आवंटन
इनमें से कई भूमि आवंटन रियायती दरों पर किए गए और कुछ मामलों में विवादास्पद रहे हैं, जहां आरोप लगाया गया कि सामान्य प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया या विशेष लाभ दिए गए. हालांकि, सरकारों ने इन्हें आमतौर पर निवेश और रोजगार सृजन के लिए प्रोत्साहन के रूप में न्यायोचित ठहराया है. कुछ मामलों में, भूमि के उपयोग या आवंटन की शर्तों के उल्लंघन के आरोप भी लगे हैं, जिससे विवाद उत्पन्न हुए हैं. कुल मिलाकर बाबा की दादागिरी सिर्फ दूसरी कंपनियों को धर्म के नाम पर बदनाम करने या अपना माल बेचने के लिए एलोपैथी को निशाने पर लेने और भ्रामक दावों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि बाबा के साम्राज्य की नींद में मजदूरों की पिटाई से लेकर जमीनें कब्जाने और सरकारी रसूख का इस्तेमाल कर टैक्स चोरी के भी बेशुमार किस्से ही किस्से हैं. भारत का कानून कभी बाबा को शिकंजे में लेगा, ये जरूर देखने वाली बात होगी.
Pankaj Chaturvedi
आज यह सब आज पोस्ट कर पा रहा हूं क्योंकि बहुत से पर्दे फ़ाश हो चुके हैं नहीं तो मेरे शहर में रहने वाले इसके अंधभक्त घर पर आकर हमला कर देते।
सरकार न्यायिक स्वतंत्रता को समाप्त करना चाहती है - डी राजा
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा हाल ही में राष्ट्रपति और राज्यपालों जैसे संवैधानिक पदाधिकारियों को निर्देश देने के सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार पर सवाल उठाने वाली टिप्पणियों पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखती है। हमारी राजनीति में, संविधान सर्वोच्च है - कोई व्यक्तिगत पद नहीं - जो सर्वोच्च है। लोकतांत्रिक ढांचे के लिए जाँच और संतुलन की संवैधानिक योजना आवश्यक है। सर्वोच्च न्यायालय ने उचित रूप से उन विधेयकों के लिए रास्ता साफ कर दिया जो निर्वाचित राज्य सरकारों की विधाई इच्छा को कमजोर करते हुए बाधित या विलंबित थे। अनुच्छेद 74(1) यह स्पष्ट करता है कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं। राष्ट्रपति, सर्वोच्च संवैधानिक पद पर रहते हुए, ऐसे मामलों में स्वतंत्र विवेक का प्रयोग नहीं करते हैं। उपराष्ट्रपति की टिप्पणी संघ -भाजपा द्वारा विपक्ष के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों को कमजोर करने के लिए राज्यपाल की शक्तियों के दुरुपयोग को वैध ठहराती प्रतीत होती है - एक प्रवृत्ति जो हाल के वर्षों में खतरनाक रूप से बढ़ गई है। यह बेहद चिंताजनक है कि द्रौपदी मुर्मू, जो इस पद पर आसीन होने वाली पहली आदिवासी महिला हैं, के राष्ट्रपति पद का इस्तेमाल संविधानवाद और संघवाद की भावना का उल्लंघन करने वाले स्पष्ट रूप से पक्षपातपूर्ण डिजाइनों को छिपाने के लिए किया जा रहा है। जबकि एक न्यायाधीश के आवास से नकदी बरामद होने जैसी घटनाएं गंभीर जांच और सुधार की मांग करती हैं, न्यायपालिका को बदनाम करने के लिए ऐसे मामलों का चयनात्मक आह्वान वास्तविक एजेंडे को उजागर करता है: न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करना।
उपराष्ट्रपति ने स्वयं, राज्यसभा के सभापति के रूप में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश की स्पष्ट सांप्रदायिक और विभाजनकारी टिप्पणी पर चर्चा की अनुमति नहीं दी थी -भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सहित 55 संसद सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव के बावजूद - इस चयनात्मक आक्रोश को सबसे अच्छी तरह से दर्शाता है।भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का दावा है कि इस तरह के हस्तक्षेप अलग-थलग नहीं हैं, बल्कि न्यायिक स्वतंत्रता को खत्म करने, संघवाद को कमजोर करने और बढ़ती हुई सत्तावादी कार्यपालिका के हाथों में सत्ता को केंद्रीकृत करने की एक व्यापक, खतरनाक रणनीति का हिस्सा हैं।
चादर छोटी कभी साहेब नंगे - कभी अडानी
पीएम नरेंद्र मोदी, बीजेपी और उद्योगपति अडानी पर एक्टर प्रकाश राज ने बड़ा हमला बोला है. प्रकाश राज ने तंज भरे लहजे में कहा कि ईमानदारी की चादर इतनी छोटी है कि अडानी को ढको तो साहब नंगे और साहब को ढको तो अडानी नंगा. दोनों को ढको तो पूरी पार्टी नंगी.
Actor Prakash Raj launched a sharp attack on Prime Minister Narendra Modi, the BJP, and industrialist Adani. In a sarcastic tone, he said:
"The sheet of honesty is so short that if you cover Adani, the 'Sahab' is exposed; if you cover the 'Sahab', Adani is exposed. And if you try to cover both, the entire party stands exposed."
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