शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

दुनिया के बादशाह को मुर्गा लडाने का शौक

पहले जमाने नवाबो व राजा महाराजाओं व बादशाहों को मुर्गों तीतर व बटेरें लडाने का शोक था और इन्हें बडी ही खातिर दारी के साथ पाल पास कर तैयार किया जाता था। आजकाल यही काम संसार में एक छत्र राज करने वाले अमरीका के द्वारा किया जा रहा है और अपने आर्थिक उद्देश्यो के लिए वह बराबर दो राष्ट्रों को पहले पाल पास कर सैन्य साजो सामानों से लैस कर के बाद में व्हाइट हाउस में बैठ कर कम्प्यूटर पर सैटेलाइट के माध्यम से अपने मुर्गो की भिडन्त का नजारा लेकर लुप्त अंदाज होता है।
सोवियत यूनियन के विद्यालय के पश्चात अन्तराष्ट्रीय स्तर पर एक छत्र वर्चस्व स्थापित करने वाले राष्ट्र अमरीका का किरदार इस समय एक शौकीन मिजाज नवाबे राजा या बादशाह सलामत की तरह हैं। पुराने जमाने के बादशाह व नवाब अपने मनोरंजन के लिए मुर्गे तीतर व बटेरें लडाया करते थे और बाकायदा बडे बडे मुकाबले आयोजित किए जाते थे कुछ राजा महाराजा पहलवान पालते थे उनकी खुराक का पूरा खर्चा वह उठाते थो फिर उन्हे लडा कर आनन्द मय होते थे चाहे रूस्तम व सोहराब हों या गामा पहलवान सभी राजा महाराजाओं व बादशाहों के पाले पास थे।
आजकल यही काम विश्व का राजा अमरीका करता दिखलायी दे रहा है। परन्तु यह काम वह अपने मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि अपनी आर्थिक आवश्यकताओं के लिए कर रहा है। कारण यह कि विश्व के सैन्य बाजार में उसकी तूती बोलती है। शस्त्रों के मामले में वह अब विश्व में नम्बर वन है पहले उसको कडा मुकाबला सोवियत यूनियन से करना पडता था परन्तू अस्सी के दशक के अन्त में सोवियत चुनौती देने वाला कोई नही बचा। फ्रांस चीन ब्रिटेन और कुछ हद तक उसका दस्तक पत्र इजराइल सैन्य बाजार में अपनी उपस्थित बनाए तो हुए है। परन्तु अमरीका का वर्चस्व पूरी तरह से इस क्षेत्र में कायम है।
स्पष्ट है कि अपने ग्राहक बनाए रखने के लिए उसे युद्ध का वातावरण को तैयार करना रहता है जो वह खूबी के साथ विगत दो इहाइयों से सफलता पूर्वक करता चला आ रहा है। इससे पूर्व द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जब अपने प्रतिद्वन्दी जापान व जर्मनी को ठंडा कर देने के बाद अमरीका ने पहले कोरिया में अपने नापाक इरादों का ठिकाना बनाया और लम्बे अर्शे तक कोरिया में उसने अशांति का वातावरण पैदा कर अपने सैन्य कौशल का प्रदर्शन कर शस्त्र बाजार में अपनी धाक जमाई। फिर वियतनाम में उसने अपना दूसरा ठिकाना बनाया और यहां की नए नए शस्त्रों का प्रदर्शन कर उसने अपनी अर्थ व्यवस्था को चमकाया उसे यह कारोबार तब बन्द करना पडता है। जब जनहानि से त्रस्त अमरीकी नागरिक आक्रोशित होकर सडको पर निकल पडते हैं।

-मोहम्मद तारिक खान

3 टिप्‍पणियां:

Akhilesh pal blog ने कहा…

bahoot achha

Kulwant Happy ने कहा…

खूब कही। नाईस। मोहम्मद तारिक खान जी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा। लिखते रहिएगा। आपको पहली बार पढ़ा अच्छा लगा। लोकसंघर्ष और लोकवेबमीडिया एवं सुमन जी का आभारी हूँ, जिनके बदौलत आपसे मिला।

दूसरी जगह भी छोड़ आया टिप्पणी शायद वहाँ न मिले। इसलिए यहाँ लिखे जा रहा हूँ।

Urmi ने कहा…

वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!

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