गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

इंसाफ की देवी को शर्मिन्दा करते इंसाफ के देवता

देश के कानून मंत्री वीरप्पा मोयली ने न्यायालयों की जवाबदेही बनाए जाने का कानून बनाने का जिक्र करके एक लाईलाज और अति घातक बीमारी का दर्द उठाया है।
सभ्य समाज को पाप व दुराचार से पाक रखने के लिए ही न्यायिक व्यवस्था का गठन किया गया था पहले जब देश आजाद नहीं था तो अंग्रेजों के दो सौ वर्षों से ऊपर के शासनकाल और उससे पूर्व मुस्लिम शासकों के साढे़ पांच सौ साल व उससे पूर्व के हिन्दू राजा-महाराजाओं के शासनकाल में दरबार, शरई अदालते व कोर्ट में लार्डशिप जनता को न्याय देने का कार्य किया करते थे। इंसाफे जहांगीरी की चर्चा की खूब प्रशंसा इतिहासकारों ने की।
परन्तु प्रशंसा का आधार सदैव निष्पक्ष न्याय पर आधारित होता था जो बादशाह सलामत या राजाराम ने अपने दौरे हुकूमत या रामराज्य में किया। उस समय फरियादी व अपराधी के बीच वकील की भूमिका नहीं हुआ करती थी। फरियादी की फरियाद तथ्यों साझों के आधार पर न्याय की कुर्सी पर बैठकर हाकिमे वक्त सुनते थे और खून के रिश्तों, ऊँच नीच से ऊपर उठकर न्याय किया करते थे। जहांगीर ने तो अपने महल के बाहर एक घण्टा लटका कर चैबीसों घण्टे फरियादी को अपनी फरियाद दर्ज कराने की व्यवस्था की थी।
फिर मुस्लिम काल में शरई अदालतों का भी जाल पूरे देश में बिछा हुआ था और शहर काजी न्याय की कुर्सी पर बैठकर पवित्र कुरआन में दिए गये कानूनी प्राविधानों को ध्यान में रखकर इंसाफ किया करते थे।
न्यायिक प्रक्रिया में परिवर्तन अंग्रेजों के दौरे हुकूमत में शुरू हुए और आई0पी0सी0, सी.आर0पी0सी0 व सी0पी0सी0 जैसे अनेक कानून बनाकर सम्पूर्ण न्यायिक ढांचा तैयार किया गया जिसका केन्द्र प्रिवी कौंसिल के रूप में इंग्लैण्ड में होता था और देश के हर प्रान्त में उच्च न्यायालय व हर जिले में न्यायालयों के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। अंग्रेजों के ही दौर में वकील की भूमिका प्रारम्भ न्यायालयों में हुआ लोग बार एट लॉ
की सर्वोच्च पदवी लेने इंलैण्ड जाते और उच्च न्यायालयों में वकालत करते।
फिर देश आजाद हुआ। देश का संविधान बना और वर्तमान न्याययिक व्यवस्था स्थापित हुई। न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों व जजों की प्रतिष्ठा पर कोई प्रश्न चिन्ह काफी लम्बे समय तक नहीं रहा परन्तु चूंकि सर्वोच्च न्यायालयों में जजों व चीफ जस्टिस आफ इण्डिया की नियुक्ति पर जैसे-जैसे राजनीतिक दलों की स्वार्थ से ओत प्रोत बदनीयती का काला साया पड़ना प्रारम्भ हुआ इंसाफ के मंदिरों के इन देवताओं के चरित्र पर सवालिया निशान लगने प्रारम्भ हुए। राष्ट्रीय एवं संवैधानिक मुद्दों पर सर्वोच्च न्यायालयों की भूमिका पर प्रश्न उठे। न्यायालयों की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल खड़े हुए परन्तु बात देश वासियों के दिलों के भीतर ही कैद रही क्योंकि अवमानना का खौफ प्रश्न उठाने वालों को बेबस किये रहा।
न्यायालयों में भ्रष्टाचार का कीटाणु नीचे की अदालत से दाखिल हुआ। जिला स्तर पर जिलाधिकारी, उपजिलाधिकारी व अन्य मजिस्ट्रेटों के न्यायालयों में न्याय की खरीद फरोख्त का कार्य प्रारम्भ हुआ। फिर यह बीमारी जिला जजी व मुंसिफ मजिस्ट्रेटों, मुंसिफ व जज की आंखों के सामने उनकी बगल में बैठा कोर्ट का अहलकार वकील के माध्यम से मुटठी गर्म करने लगा फिर कोर्ट साहबान पेनेल लायर्स के माध्यम से इंसाफ का सौदा होना शुरू हुआ। हालत अब यहां तक आ पहुंचे है कि ईमानदार जजों व मजिस्ट्रेटों पर अदालतों में वकील साहबान की ओर से हमले इस बात पर किये जाने लगे कि वह उनसे सेट नहीं हो रहे उनके साथ चैम्बरिंग नहीं कर रहे।
अदालतों में निर्दोषों को सजाएं और दोषियों को आजादी मिलने लगी। विशेष अदालतों में तो न्याय की जगह केवल सजा ही मिलने लगी। इन सब के बीच फिल्मों में जज साहबान की कुर्सी के पीछे आंखों पर पट्टी बांधे इंसाफ का तराजू लिए खड़ी इंसाफ की देवी शर्मिंदा व रूसवा होती नजर आ रही है और लोग यह कहने को मजबूर हैं कि कानून अंधा होता है।

-मोहम्मद तारिक खान

1 टिप्पणी:

Urmi ने कहा…

सही लिखा है आपने! बहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!

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