रविवार, 9 जनवरी 2011

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-२०१० (भाग-८)

.......गतांक से आगे बढ़ते हुए .....




आईये अब वर्ष की कुछ यादगार पोस्ट की चर्चा करते हैं , क्रमानुसार एक नज़र मुद्दों को उठाने वाले प्रमुख ब्लॉग पोस्ट की ओर-


ब्रजेश झा के ब्लॉग खंबा में ०१ जनबरी को प्रकाशित पोस्ट "आखिर भाजपा में क्यों जाऊं ? गोविन्दाचार्य " , जंगल कथा पर ०२ जनवरी को प्रकाशित ऑनरेरी टाईगर का निधन , नयी रोशनी पर ०२ जनवरी को प्रकाशित सुधा सिंह का आलेख स्त्री आत्मकथा में इतना पुरुष क्यों ? ,तीसरा रास्ता पर 02 जनवरी को एक कंबल के लिए ह्त्या, अपराधी कौन ? , इंडिया वाटर पोर्टल पर पानी जहां जीवन नहीं मौत देता है , नुक्कड़ पर ०४ जनवरी को प्रतिभा कटियार का आलेख नीत्शे,देवता और स्त्रियाँ ,

हाशिया पर ०४ जनवरी को प्रकाशित प्रमोद भार्गव का आलेख कारपोरेट कल्चर से समृद्धि लाने का प्रयास , ०६ जनवरी को अनकही पर रजनीश के झा का आलेख बिहार विकास का सच (जी डी डी पी ) , ०७ जनवरी को उड़न तश्तरी पर सर मेरा झुक ही जाता है, ०७ जनवरी को चर्चा पान की दूकान पर में बात महिमावान उंगली की , ०७ जनवरी को नारी पर दोषी कौन ?,०८ जनवरी को निरंतर पर महेंद्र मिश्र का आलेख बाकी कुछ बचा तो मंहगाई और सरकार मार गयी , ०८ जनवरी को भारतीय पक्ष पर कृष्ण कुमार का आलेख जहर की खेती ,शोचालय पर चांदी के चमचे से चांदी चटाई ,हिमांशु शेखर का आलेख कब रुकेगा छात्रों का पलायन ,१० जनवरी को आम्रपाली पर हम कहाँ जा रहे हैं ? , १० जनवरी को उद्भावना पर थुरुर को नहीं शऊर , हाहाकार पर अनंत विजय का आलेख गरीबों की भी सुनो , अनाम दास का चिट्ठा पर १७ जनवरी को पोलिश जैसी स्याह किस्मत , टूटी हुई बिखरी हुई पर मेरी गुर्मा यात्रा ,१२ जनवरी को ज़िन्द्ज्गी के रंग पर पवार की धोखेवाज़ी से चीनी मीलों को मोटी कमाई, अज़दक पर प्रमोद सिंह का आलेख बिखरे हुए जैसे बिखरी बोली , विनय पत्रिका पर बोधिसत्व का आलेख अपने अश्क जी याद है आपको , पहलू पर २६ जनवरी को ठण्ड काफी है मियाँ बाहर निकालो तो कुछ पहन लिया करो , १२ जनवरी को तीसरी आंख पर अधिक पूँजी मनुष्य की सामाजिकता को नष्ट कर देती है , १३ जनवरी को उदय प्रकाश पर कला कैलेण्डर की चीज नहीं है , भंगार पर ९१ कोजी होम , कल की दुनिया पर बल्ब से भी अधिक चमकीली, धुप जैसी सफ़ेद रोशनी देने वाले कागज़ जहां चाहो चिपका लो , १० जनवरी को दोस्त पर शिरीष खरे का आलेख लड़कियां कहाँ गायब हो रही हैं , १२ जनवरी को हमारा खत्री समाज पर अपने अस्तित्‍व के लिए संघर्ष कर रहा है 'कडा' शहर , १८ जनवरी को संजय व्यास पर बस की लय को पकड़ते हुए , नुक्कड़ पर कितनी गुलामी और कबतक , २१ जनवरी को गत्यात्मक चिंतन पर चहरे, शरीर और कपड़ों की साफ़-सफाई के लिए कितनी पद्धतियाँ है ?, ज़िन्दगी की पाठशाला पर किसी भी चर्चा को बहस बनने से कैसे रोकें ?, १८ जनवरी को क्वचिदन्यतोअपि..........! पर अपनी जड़ों को जानने की छटपटाहट आखिर किसे नहीं होती ? ,२१ जनवरी को प्राईमरी का मास्टर पर प्रवीण त्रिवेदी का आलेख यही कारण है कि बच्चे विद्यालय से ऐसे निकल भागते हैं जैसे जेल से छूटे हुए कैदी , २६ जनवरी को नुक्कड़ पर प्रकाशित अमिताभ श्रीवास्तव का आलेख मुश्किल की फ़िक्र और ३० जनवरी को मानसिक हलचल पर रीडर्स डाईजेस्ट के बहाने बातचीत ........

जनवरी महीने के प्रमुख पोस्ट के बाद अब उन्मुख होते हैं फरवरी माह की ओर , प्रतिभा कुशवाहा की इस कविता के साथ , कि -
ओ! मेरे संत बैलेंटाइन
आप ने ये कैसा प्रेम फैलाया
प्रेम के नाम पर कैसा प्रेम "भार" डाला
आप पहले बताएं
प्यार करते हुए आप ने कभी
बोला था अपने प्रिय पात्र से
कि .....
आई लव यू...

यह कविता १४ फरवरी २०१० को ठिकाना पर प्रकाशित हुई , शीर्षक था वो मेरे वेलेन्टाय़इन .... यह दिवस भी हमारे समाज के लिए एक मुद्दा है , नि:संदेह !०२ फरवरी को आओ चुगली लगाएं पर गंगा के लिए एक नयी पहल ,०३ फरवरी को भारतनामा पर रहमान के बहाने एक पोस्ट संगीत की सरहदें नहीं होती , ०३ फरवरी को यही है वह जगह पर प्रकाशित आलेख राष्ट्रमंडल खेल २०१०-आखिर किसके लिए? ,खेल की खबरें पर शाहरूख का शिव सेना को जवाब , रोजनामचा पर अमर कथा का अंत , ०४ फ़रवरी को अजित गुप्ता का कोना पर अमेरिकी-गरीब के कपड़े बने हमारे अभिनेताओं का फैशन , पटियेवाजी पर ठाकुर का कुआं गायब , जनतंत्र पर माया का नया मंत्र, विश करो , जिद करो , दीपक भारतदीप की हिंदी सरिता पत्रिका पर प्रकाशित आलेख विज्ञापन तय करते हैं कहानी आलेख , ०५ फरवरी को कल्किऔन पर पेंड़ों में भी होता है नर-मादा का चक्कर, एक खोज , नारीवादी बहस पर स्त्रीलिंग-पुलिंग विवाद के व्यापक सन्दर्भ , ०५ फरवरी को लखनऊ ब्लोगर असोसिएशन पर लोकसंघर्ष सुमन द्वारा प्रस्तुत प्रेम सिंह का आलेख साहित्य अकादमी सगुन विरोध ही कारगर होगा , ०२ फरवरी को राजतंत्र पर प्रकाशित आलेख हजार-पांच सौ के नोट बंद होने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा , १४ फरवरी को कबाडखाना पर नहीं रहा तितली वाला फ्रेडी तथा २२ फरवरी को विचारों का दर्पण में आधुनिकता हमारे धैर्य क्षमता को कमजोर कर रही है आदि ।


मार्च में हिंदी ब्लॉग पर महिला आरक्षण की काफी गूँज रही । समाजवादी जनपरिषद, ध्रितराष्ट्र ,नया ज़माना आदि ब्लॉग इस विषय को लेकर काफी गंभीर दिखे । ०५ मार्च को नारी में ना..री..नारी ,०९ मार्च को वर्त्तमान परिस्थितियों पर पियूष पाण्डेय का सारगर्भित व्यंग्य आया मुझे दीजिये भारत रत्न .......,०६ मार्च को प्रतिभा की दुनिया पर बेवजह का लिखना, १० मार्च को यथार्थ पर क़ानून को ठेंगा दिखाते ये कारनामे ,१० मार्च को अक्षरश: में महिला आरक्षण ,१२ मार्च को ललित डोट कौम पर महिला आरक्षण,१४ मार्च को साईं ब्लॉग पर अरविन्द मिश्र का आलेख बैंक के खाते-लौकड़ अब खुलेंगे घर-घर आकर , १५ मार्च को प्रवीण जाखड पर उपभोक्ता देवो भव: , १८ मार्च को अनुभव पर शहर के भीतर शहर की खोज,१६ मार्च को काशिद पर कौन हसरत मोहानी ?,१८ मार्च को संवाद का घर पर उपभोक्ता जानता सब है मगर बोलता नहीं ,२३ मार्च को लखनऊ ब्लोगर असोसिएशन पर अशोक मेहता का आलेख आतंकवाद की समस्या का समाधान आदि ।

ये तो केवल तीन महीनों यानी वर्ष के प्रथम तिमाही की स्थिति है , क्या आपको नहीं लगता कि हिंदी ब्लॉग जिसतरह मुद्दों पर सार्थक बहस की गुंजाईश बनाता जा रहा है , यह समानांतर मीडिया का स्वरुप भी लेता जा रहा है ? आईये इस बारे में प्रमुख समीक्षक रवीन्द्र व्यास जी की राय से रूबरू होते हैं ।
रवीन्द्र व्यास का मानना है कि "हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया फैल रही है, बढ़ रही है। इसे मिलती लोकप्रियता आम और खास को लुभा रही है। इसे संवाद के नए और लोकप्रिय माध्यम के रूप में जो पहचान मिली है उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि सीधे लोगों तक पहुँच कर आप उनसे हर बात बाँट सकते हैं, कह सकते हैं।"

आज की चर्चा को विराम देने से पूर्व आईये चलते-चलते एक नए ब्लॉग पर नज़र डालते हैं ...
इस तकनीक के नवीन युग में अपनी बात कहने के माध्यम भी बदल गये हैं पहले लोगों को इतनी स्वतन्त्रता नहीं थी कि वह अपनी बात को खुले तौर पर सभी के सामने तक पंहुचा सके लेकिन आज के इस तकनीकी विकास ने यह संभव कर दिया है इन्ही नए माध्यमों में एक नया नाम ब्लाग का भी है ये कहना है लखीमपुर खीरी के अशोक मिश्र का जो इसी वर्ष अगस्त में हिंदी ब्लॉगजगत से जुड़े हैं ,आईये चलते हैं उनके ब्लॉग निट्ठले की मजलिस
में, जहां इन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय दक्षिण परिसर में पत्रकारिता पाठ्यक्रम से जुड़े छात्रों के ब्लाग की जानकारी दी है ।

.....जारी है विश्लेषण मिलते हैं एक विराम के बाद .......!

रवीन्द्र प्रभात

परिकल्पना ब्लॉग से साभार

1 टिप्पणी:

Amit ने कहा…

आज भी भारत में कई होनहार लेखक मौजूद हैं। लोक संगर्ष पत्रिका भी इसी बात का जीता जागता एक उदहारण है। लोक संगर्ष पत्रिका की तरह ही हमने भी हमारी हिंदी वेबसाइट Jhakas को शुरू किया है। आप हमारी वेबसाइट पर जा कर विभिन्न क्षेत्रों की जानकारियां पढ़ सकते हैं।

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