बुधवार, 30 नवंबर 2011

आज की रात बहुत गरम हवा चलती है


आज की रात बहुत गरम हवा चलती है
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी।
सब उठो, मै भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी।

ये जमीन तब भी निगल लेने पे आमादा थी
पाँव जब टूटी शाखों से उतारे हम ने।
इन मकानों को खबर है ना मकीनो को खबर
उन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हम ने।

हाथ ढलते गए सांचे में तो थकते कैसे
नक्श के बाद नए नक्श निखारे हम ने।
कि ये दीवार बुलंद, और बुलंद, और बुलंद,
बाम-ओ-दर और जरा, और सँवारा हम ने।

-कैफ़ी आजमी

2 टिप्‍पणियां:

SANDEEP PANWAR ने कहा…

खूबसूरत रचना

कुमार संतोष ने कहा…

सुंदर नज़्म !
आभार !!

मेरी नई कविता "अनदेखे ख्वाब"

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