गुरुवार, 22 नवंबर 2012

ठाकरे संकीर्ण राजनीती के पुरोधा



बाल ठाकरे के निधन की घोषणा ;17 नवम्बर 2012 से मानो पूरा मुंबई शहर थम सा गया। ज्यादातर टी.वी . न्यूज चैनल उनकी अंतिमयात्रा का अनवरत प्रसारण कर रहे थे और उनके ऊँचे राजनैतिक कद के बारे में धाराप्रवाह प्रवचन दे रहे थे। पिछले कम से कम तीन दशकों से मुंबई पर ठाकरे का लगभग पूर्ण नियंत्रण था। जिन तरीकों से उन्होंने यह नियंत्रण स्थापित किया था और उसे बनाए रखा था,उन तरीकों के समर्थक कम थे और उनसे आतंकित लोगों की संख्या कहीं ज्यादा थी। ठाकरे के समर्थक तोड़फोड़ और हिंसा करने में जरा भी नहीं हिचकते थे। यह कहना मुश्किल है कि मुंबई की जिंदगी उनकी मृत्यु से क्यों रूक गई . उनके प्रति सम्मान के भाव के कारण या उनके समर्थकों के भय से।
कुछ लोगों का मानना है कि ठाकरे परिवार मूलतः बिहार से है और महाराष्ट्र में आकर बस गया था। बाल ठाकरे के चर्चा में आने के पीछे मुख्यतः उनका ष्धरतीपुत्रों नौकरियां दिलवाने का अभियान था। इसी अभियान के तहत उन्होंने पहले दक्षिण भारतीयों, उसके बाद गुजरातियों और फिर बिहारियों को निशाना बनाया। इसके पहले उन्होंने कांग्रेस के कुछ नेताओं व उद्योगपतियों के एजेन्ट बतौर वामपंथी ट्रेड यूनियनों को तोड़ने का  काम किया था। इस दौर में वामपंथी ट्रेड यूनियनों और ठाकरे के समर्थकों के बीच जमकर हिंसा हुई थी। इस प्रतिद्वंदिता का चरम था भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के शीर्ष ट्रेड यूनियन नेता कृष्णा देसाई की हत्या। इस धक्के से वामपंथी ट्रेड यूनियनें उबर नहीं सकीं।
बाद में वे हिन्दुत्व के रथ पर सवार हो गए। उन्होंने बाबरी मस्जिद के ढ़हाए जाने का खुलकर समर्थन किया और मुंबई के 1992.93 के दंगों में जमकर हिस्सेदारी की। शिवसेना के मुखपत्र ष्सामना में उनका लेखन अत्यंत उत्तेजक रहता था और निश्चित तौर पर ष्दो समुदायों के बीच घृणा फैलाने की कानूनी परिभाषा में आता था परंतु इसके बाद भी उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई और वे बिना किसी रोकटोक के मुसलमानों के खिलाफ अपने लेखन और भाषणों में जहर उगलते रहे। हां, चुनाव आयोग ने उन्हें छःह साल के लिए मताधिकार से वंचित जरूर किया था। बाबरी कांड के बाद जब यह आरोप लगा कि मस्जिद  गिराने के लिए शिवसैनिक जिम्मेदार थे तो उन्होंने तुरंत इस आरोप को स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि अगर शिवसैनिकों ने यह किया है तो उन्हें उन पर गर्व है।
बाबरी कांड के बाद मुंबई में हुए दंगों की जांच, श्रीकृष्ण आयोग ने की थी। आयोग ने अपनी रपट में शिवसेना प्रमुख को दोषी पाया था। शिवसेना ने धारावी सहित कई इलाकों में बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने की खुशियां मनाने के लिए रैलियां निकालीं थीं। आयोग ने अपनी रपट में कहा.
  शिवसेना  की इन रैलियों में गुंडा तत्व शामिल थे जो श्मुसलमान के दो ही स्थान पाकिस्तान या कब्रिस्तान जैसे भड़काऊ नारे लगा रहे थे। इसके जवाब में मुसलमानों ने ष्जो हमसे टकराएगा वो मिट्टी में मिल जाएगाष्जसे नारे लगाए।
ठाकरे की हिंसा में मिलीभगत और उनकी भूमिका के बारे में श्रीकृष्ण आयोग की रपट कहती है ष्1 जनवरी 1993 को श्सामनाश् में ष्हिन्दूनी आक्रामक व्याला हवेष् ;हिन्दुओं को अब आक्रामक बनना चाहिएद्ध शीर्षक से छपे एक लेख ने हिन्दुओं को हिंसा करने के लिए उकसाया।ष् ;खण्ड.1ए पृष्ठ.13द्ध
आयोग की रपट में एक अन्य सनसनीखेज टिप्पणी यह थी कि ष्ष्उसने वहां ;महानगर के रिपोर्टर युवराज मोहिते नेए ठाकरे के घर पर दंगों के दौरानद्ध जो बातें सुनींए उससे यह साफ है कि ठाकरेए शिवसेना के शाखा प्रमुखों और अन्य कार्यकर्ताओं को निर्देश दे रहे थे कि वे मुसलमानों पर हमले करें ताकि जैसे को तैसा जवाब जा सके और ष्एक भी लंड्याश् ;मुसलमानों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अपमानजनक शब्दद्ध गवाही देने के लिए जिन्दा न बचेष् ;खण्ड.1ए पृष्ठ 21.22द्ध। एक अन्य स्थान पर आयोग की रपट कहती है ष्ष्जनवरी ;1993द्ध में हिंसा का नेतृत्व शिवसेना और उसके नेताओं ने संभाल लिया। ये नेता अपने वक्तव्योंए लेखनए गतिविधियों व शिवसेना प्रमुख ठाकरे के निर्देशों के अनुसार साम्प्रदायिक हिंसा फैलाते रहे।ष् यह ठाकरे और शिवसेना की मुंबई हिंसा में भूमिका का एक छोटा सा उदाहरण मात्र है। मुंबई हिंसा के बाद ठाकरे को ष्हिन्दू हृ्दय सम्राटश् की उपाधि से नवाजा गया और उन्होंने शिवसेना पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली। उनकी कथनी और करनी का समाज पर क्या असर पड़ता हैए इसकी उन्हें तनिक भी फिक्र न थी। ष्टाईमश् पत्रिका को दिए गए अपने प्रसिद्ध साक्षात्कारए जिसका शीर्षक था ष्किक देम आऊटश्ए में उन्होंने मुसलमानों को हर तरह की गालियां दींए उनके बारे में घृणास्पद बातें कहीं और जमकर जहर उगला। उस समय मुसलमान मुंबई छोड़कर भाग रहे थे। ठाकरे ने कहा कि मुसलमानों को सबक सिखाना जरूरी था। अगर वे खुद ही मुंबई से भाग रहे हैं तो यह अच्छी बात है वरना उन्हें लात मारकर मुम्बई से बाहर फेंक दिया जाना चाहिए।
ठाकरे हमेशा से भारत.पाक मित्रता के खिलाफ थे। चाहे दोनों देशों के बीच क्रिकेट मैच का सवाल हो या पाकिस्तानी गजल गायकों के मुंबई में कार्यक्रम काए शिवसेना ने हमेशा ष्सीधी कार्यवाहीष्की। शिवसैनिकों ने फीरोजशाह कोटला क्रिकेट मैदान की पिच खोद दी थी और मुंबई में गजल की एक महफिल में जमकर तोड़फोड़ की थी। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और स्वामी असीमानंद जैसे हिन्दुत्व आतंकियों का पर्दाफाश होने के बहुत पहले ठाकरे ने हिन्दुओं के ष्आत्मघाती दस्तेश्नाने की वकालत की थी। ठाकरे यह स्वीकार करते थे कि वे हिटलर के प्रशंसक हैं और गर्व से कहते थे कि उनमें हिटलर के बहुत सारे गुण हैं। वे कहते थे कि वे ष्ठोकशाही में विश्वास करते हैं ष्लोकशाही  में नहीं।
हिन्दुत्व की बांटने वाली राजनीति को उनका समर्थन और धरतीपुत्रों के आसपास बुनी गई उनकी पहचान की राजनीति के चलते यह स्वाभाविक ही था कि वे समाज के वंचित वर्गों की भलाई के लिए उठाए गए हर सकारात्मक कदम का विरोध करते। उन्होंने मंडल आयोग की रपट को लागू किए जाने का विरोध किया और वे शायद देश के एकमात्र ऐसे बड़े नेता थे जिसने अपना यह विरोध बिना किसी लागलपेट के खुलकर व्यक्त किया। मंडल की एक अन्य धुरविरोधी पार्टी भाजपा भी कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण के खिलाफ है परंतु मंडल आयोग का सीधे विरोध करने की बजाए उसने राममंदिर आंदोलन खड़ा कर मंडल के मुद्दे को पीछे ढकेलना बेहतर समझा। ठाकरे दलित महत्वाकांक्षाओं के भी मुखर विरोधी रहे हैं। जब महाराष्ट्र सरकार ने बाबा साहेब अम्बेडकर की पुस्तक ष्रिड्लस ऑफ राम एण्ड कृष्ण प्रकासित     की तब शिवसेना ने इसका विरोध किया और उस दौर में दलितों और शिवसेना समर्थकों के बीच हिंसक झड़पें भी हुईं। जब मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम अम्बेडकर के नाम पर रखने का प्रस्ताव आया तब भी ठाकरे ने इसके विरोध में आवाज उठाई और नतीजे में तनाव व हिंसा फैली। यह सचमुच त्रासद है कि ठाकरे के इतने स्पष्ट दलित विरोधी एजेन्डे के बावजूद कुछ दलित पार्टियां शिवसेना के साथ चुनावी गठबंधन करने को आतुर प्रतीत होती हैं।
उनके अंतिम संस्कार में जुटी भारी भीड़ से यह निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि वे मराठी मानुस की आवाज थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि मराठियों का एक तबका उनको पूजता था। परंतु महाराष्ट्र के गरीब किसान, श्रमिक और दलित यह अच्छी तरह से समझते थे कि ठाकरे उनकी महत्वाकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते। महाराष्ट्र का दरिद्र वर्ग इतनी समस्याओं से जूझ रहा है कि आवश्यकता इस बात की है कि ठाकरे और उनके जैसों की पहचान की राजनीति से फोकस हटे और देश का ध्यान रोटी, कपड़ा,मकान और रोजगार जैसे मूल मुद्दों पर केन्द्रित हो। हिन्दू राष्ट्र और मराठी मानुस की राजनीति, भारतीय संविधान में निहित स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व के मूल्यों की विरोधी है। ठाकरे का मूल्यांकन इन मूल्यों की कसौटी पर किया जाना चाहिए। 
-राम पुनियानी

3 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

उनके अंतिम संस्कार में जुटी भारी भीड़ से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वे मराठी मानुस की आवाज थे।,,,,

recent post : प्यार न भूले,,,

Neetu Singhal ने कहा…

सरकार एक आतंकवादी के फाँसी का दृश्य प्रस्तुत कर संसद रूपी

छवि गृह में अपने घोटालों के काले कारनामों पर पटाक्षेप नहीं कर

सकती जनता के पास भी विलक्षण द्रष्टि व अद्भुत कान हैं जो इन के

'नृत्य नटी' के कार्यकलापों के देख व सुन रही है.....

बेनामी ने कहा…

EK HAIN JANAB OWAISI JO KHULEAAM CAMERE PAR DESH KO AATANKVAD ME JHONKNE KI BAATEN KARTE HAIN. KYA UN K TARAF AAP LOGON KA DHYAN NAHI JATA. AGAR AP KO UNKI TAKREERON K VIDEO CHAHIYE TO MAIN SABOOT APKO UNK LINK DE SAKTA HOON.

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