शनिवार, 11 जनवरी 2014

अमेरिका और भारत की भगाई भगावा

देवयानी प्रकरण में अमेरिका ने कूटनीतिक संरक्षण को आंशिक रूप से मानते हुए उनको वीजा 1 दे दिया और  अपने मुल्क से भगा दिया। जिस पर भारत ने अमेरिकी दूतावास के निदेशक स्तर के अधिकारी को संगीता रिचर्ड के अभिभावकों को अमेरिका ले जाने की प्रक्रिया में सहयोग करने के आरोप में भगा दिया और उसको भागने का समय 48 घंटे का दिया है। देवयानी को 12 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 250,000 अमेरिकी डॉलर के बांड पर रिहा किया गया था। गिरफ्तारी के बाद कपड़े उतारकर देवयानी की तलाशी ली गयी थी और उन्हें नशेड़ियों के साथ रखा गया था जिससे भारत और अमेरिका के बीच तनातनी बढ़ गई। भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिकी राजनयिकों के विशेषाधिकार कम कर दिए।
इस भगाई और भगावा में सबसे रोचक तथ्य यह है कि देवयानी खोबरगड़े के पति व बच्चे अमेरिकी नागरिक हैं। अब आप स्वयं समझ लीजिये की देवयानी साहिबा भारत को किस तरह से राजनयिक व कूटनीतिक तरीके से मजबूत कर रही थी और सबसे अच्छी बात यह भी है कि आदर्श होउसिंग घोटाले में देवयानी खोबरगड़े मौजूद हैं। 
             अब रही अमेरिका कि बात तो जब अटल बिहारी बाजपेयी के चेहरे के ऊपर बिल क्लिंटन ने वाइन छोड़ दी थी तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कोई विरोध नहीं किया। भारत में इसकी जानकारी काफी समय बाद आयी। रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज को नंगा करके तलाशी ली गयी उस समय कोई विरोध नहीं हुआ और भारत के नागरिकों को बहुत बाद में जानकारी हुई। अपने आज़म खान साहब के साथ क्या-क्या हुआ वह भी पूरी तरीके से देश को बताया नही गया लेकिन जब देवयानी का मामला आया तो विडियो फुटेज से उनकी तलाशी का तरीका सामने आया। हरदीप पूरी, निरुपमा राव के साथ भी बदतमीजियां हुई थी। अब सवाल उठता है कि यह सब होने के बाद आप अमेरिका क्या करने जाते हैं निश्चित रूप से कुछ न कुछ व्यक्तिगत स्तर पर प्राप्ति की कामना अमेरिका यात्रा के लिए यह सब सहने को मजबूर करती है। 
      अमेरिकियों के साथ आप मान्य का व्यवहार करते हैं जो उनके दूतावासों में होता है। उसको आप नजरअंदाज करते हैं उनकी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का समर्थन एक हिस्से द्वारा किया जाता है। जब उनका  अधिकारी आता है तो वह भारत सरकार के अधिकारीयों के बाद अपने एजेंटों से भी मिलता है। हद तो यहाँ तक हो जाती है कि वह राज्यों के मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत वार्ता भी करता है और आप चुप रहते हैं।  आज जरूरत इस बात की है कि उनको किसी भी विशेषाधिकार विधि के विरुद्ध देने कि जरूरत नहीं है। इससे उनके राष्ट्रविरोधी देशविरोधी गतिविधियों पर तुरंत लगाम लगेगी। अमेरिका कभी भी भारत का स्वाभाविक मित्र नही रहा है और न हो ही सकता है क्यूंकि अमेरिका सम्राज्यवादी मुल्क है और आप साम्राजयवाद पीड़ित। अगर वह एक राजनयिक के साथ दुर्व्यवहार करते हैं तो ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए यही विकल्प है।  विदेशों में तैनात भारतीय अधिकारीयों कि ईमानदारी व सतयनिष्ठा कि भी पहचान करनी चाहिए। अक्सर देखने में यह आया है कि हमारे अधिकारीयों कि निष्ठा देशनिष्ठ न होकर कुछ फायदों के लिए विदेशनिष्ठ हो जाती है। 

सुमन 
   

कोई टिप्पणी नहीं:

Share |