मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर देश अमरीकी गुलामी की ओर

 2014 में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर चुनाव लड़कर सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी की आर्थिक नीतियाँ देश को बेबसी की ओर ले जा रही हैं। बुलेट ट्रेन के नाम पर जापान से लिए गए कर्ज से देश कर्ज के मकड़जाल में फंसता जा रहा है तो वहीं जापान सरकार ने हस्ताक्षर होने के बाद तुरन्त ही कहा कि आप परमाणु टेस्ट नहीं कर सकते हैं अगर परमाणु टेस्ट किया तो हमको समझौते के ऊपर सोचना पड़ेगा। यह उसी तरीके की बात है कि जब तारापुर परमाणु संयत्र को शर्ते न मानने के कारण फ्रांस ने यूरेनियम की सप्लाई रोक दी थी। अमरीकी साम्राज्यवादी मुल्कों या उनके सहयोगी देशों से कर्ज लेने का मतलब है इस देश की जनता को गिरवी रखने का काम होता है। देश का ज्यादा से ज्यादा पैसा कर्जे का ब्याज चुकाने में देना होगा। जिससे आर्थिक बुनियादी ढांचा कमजोर होगा।
    वहीं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नारा  संघ आगे बढ़कर उन्माद के स्तर पर लगा रहा है। देश के अंदर भुखमरी, बेरोजगारी, महंगाई, उत्पीड़न सभी का इलाज हिन्दू-मुसलमान के आधार पर देखा जायेगा। इसी सोच के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता पूरे देश में साम्प्रदायिक उन्माद फैला रहे हैं। साम्प्रदायिक उन्माद से नागरिकों की किसी भी बुनियादी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। युवाओं के दिमाग को विषाख्त करने का काम अवश्य किया जा रहा है। अपने कर्मो  को छिपाने के लिए  सीबी आई को उपयोग कभी मुख्यमंत्री वीरभद्र के घर पर छापे की लिए या आज केजरीवाल के कार्यालय पर छापा.
इरफ़ान इंजीनियर ने लिखते है कि हिन्दुवत राष्ट्रवादी अपनी बेजा हरकतों को उचित ठहराने के लिए राष्ट्रवाद और देशभक्ति की अवधारणाओं का सहारा ले रहे हैं। जो भी ऊँची जातियों की जीवनशैलीए संस्कृति व विचारों के विरूद्ध या शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के सिद्धांत के अनुरूप हैए वे उसे राष्ट्रविरोधी व देशद्रोह बता रहे हैं। हिन्दुवत राष्ट्रवादियों के लिए राष्ट्रवाद का अर्थ है एक संस्कृति और एक विचार का वर्चस्व। इसी आधार पर हिंदू राष्ट्रवादी,तार्किकता व मानवतावाद को खारिज करते हैं।  हिन्दुवत  धर्म इन दोनों अवधारणाओं को खारिज नहीं करता।  आज आवश्यकता है राष्ट्रवाद की परिकल्पना के विखण्डन की।
-रणधीर सिंह सुमन

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