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बाबा रामचंद्र |
बाबा रामचंद्र का जन्म 1875 में ग्वालियर,मध्यप्रदेश के एक ग़रीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका जीवन बड़ा घटना प्रधान रहा था। इन्हें औपचारिक शिक्षा का अवसर नहीं मिला, किंतु 'रामचरित मानस' का इन्होंने अध्ययन किया।
बाबा रामचंद्र अपने यौवनकाल में शर्तबंद कुली बन कर फिजी पहुंचे। ये अपने रामायण ज्ञान और भाषण देने की क्षमता के कारण वहां बसे हुए भारतीयों में शीघ्र ही लोगप्रिय हो गए। अंग्रेज
जो भारतीयों को कुली बनाकर ले गए थे, उन पर बड़े अत्याचार करते थे। बाबा
रामचंद्र ने इसके विरोध में आवाज उठाई और लोगों को संगठित किया। इस पर
उन्हें 1918 में भारत वापस भेज दिया गया।
बाबा रामचंद्र ने भारत आने पर पहले उत्तर प्रदेश में जौनपुर को फिर प्रतापगढ़ ,बाराबंकी और रायबरेली
को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। ये गांव-गांव घूमकर किसानों को विदेशी सरकार
के अत्याचारों के विरुद्ध संगठित करते थे। रामायण की कथा के नाम पर वहा
लोगो की भीड़ एकत्र होती और बाबा रामचंद्र
'जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी,
से नृप अवसर नरक अधिकारी' कह कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध वातावरण का माहौल
बनाते। जिससे इनकी सभाओं में हजारों की भीड़ जमा होती और ये अपनी ऊंची
आवाज में लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में समर्थ होते थे। एक बार ये किसानों
की भीड़ लेकर इलाहाबाद में जवाहरलाल नेहरू
के पास पहुंचे और उन्हें गांवों में जाकर किसानों की दशा देखने के लिए
प्रेरित किया। नेहरू जी ने अपनी आत्मकथा में इसका उल्लेख किया है।
अयोध्या से लौटते समय बाबा रामचंद्र बाराबंकी के काशी प्रसाद के निमंत्रण पर जो अयोध्या किसान कांग्रेस में भाग लेने आए थे बाराबंकी की ओर से आए थे .बाराबंकी शहर में बाबा का भव्य स्वागत हुआ .डरे हुए भू स्वामियों ने संयम बरतने का संकेत दिया .भयारा के जमींदार 26 दिसंबर 19 20 को बाबा के साथ बैठक के बाद अवैध करो को न वसूलने की बात की . चौधरी मोहम्मद अली ने भी नजराना और बेकार न लेने की घोषणा की. गदिया , शाहपुर और बाकर हुसैन राज ने बाबा रामचंद्र को अपने यहां बुलाया .तालुकेदारों से अच्छे बनाने के बाद बाबा ने रुदौली में 29 दिसंबर को सभा की और सरकारी अफसरों की बात की .अब बाबा पूरी तरह से कांग्रेसी राजनीति के अनुसार चलने लगे थे. उन्होंने तालुकेदारों के जुल्म का उल्लेख नहीं किया .उन्होंने स्वदेशी और सूती कपड़े के इस्तेमाल की बात की, तथा पंडित सूरज प्रसाद की अध्यक्षता में जिला किसान सभा का गठन कराया .बाराबंकी के कुछ छोटे जमींदारों ,जो असहयोग आंदोलन से जुड़े थे, उन्होंने बाबा रामचंद्र का सहयोग किया .राष्ट्रीय स्कूल खोलने का विचार का समर्थन मलिक मोहम्मद अफजल जमींदार पारा कामरू थाना सफदरगंज ने किया था उन्होंने जमीन भी दान दी थी .बाबा रामचंद्र स्कूल लिए धन जमा करने के कई तरीके अपनाएं .उन्होंने अपनी धोती का टुकड़ा 450 रुपएमें नीलाम किया .अपने एक रुपएके नोट को ,जो उन्होंने स्कूल के लिए दान में दिया था. उसे नीलाम कर रुपए 500 जमा किया . साथ ही साथ तब तक उपवास रखा जब तक कि नवाबगंज के स्कूली बच्चों ने 15000 रुपए इकठ्ठा नहीं कर लिए .
बाबा ने बाराबंकी के नागेश्वरनाथ मंदिर में 8 और 11 जनवरी को क्रमशः३००० और 1500 की भीड़ को संबोधित किया. सी .आई . डी. रिपोर्ट में बाराबंकी भाषण के अंश इस प्रकार है ' 12 जनवरी 1921' भनकू तालाब के पास बाबा रामचंद्र ने गाली पूर्ण भाषण दिया. सरकार को बराबर 'फूफा' कहकर संबोधित किया.गवर्नर को क्रोधित होकर लाट साहब की जगह 'झांट साहब' कहा .सम्राट के खा कि बदजात काफ़िर को सम्राट नहीं मानना चाहिए . आशा है कि इस मामले को राज्यपाल समक्ष रख कर इस व्यक्ति को तत्काल दंडित किया जाएगा.यह बहुत ही बुरा है कि इस जनपद में ऐसा व्यक्ति खुले आम डेढ़ -दो हजार लोगों की सभा में ऐसी भाषा का प्रयोग करें.
बाबा रामचंद्र अपने नेतृत्व के पद कितने निर्भय तथा वीर थे इसका एक उदाहरण सरकार के सीआईडी विभाग में सुरक्षित है. बाबा रामचंद्र ने 12 जनवरी 1921 को बाराबंकी में एक भाषण दिया था, जिसकी रिपोर्ट सीआईडी ने सरकार को भेजी थी वह निम्न प्रकार है:-
भनकू तालाब पर 12 तारीख को रामचंद्र के सम्मान में छात्रों ने सभा की ; उसके साथ जुलूस निकाला ,जुलूस के बैनर, झंडे भी निकाले गए .जुलूस के बाद श्री सज्जाद अली वकील की अध्यक्षता में नागेश्वर नाथ में सभा हुई अध्यक्ष ने लंबा भाषण दिया जो आपत्तिजनक न था.
फिर रामचंद्र ने गालीपूर्ण भाषण दिया. उन्होंने सरकार को बराबर फूफा कहकर पुकारा और वर्तमान गवर्नर को क्रोधित होकर 'झांट साहब' कहा. बादशाह के लिए कहा-"बदजात काफ़िर को बादशाह न मानना चाहिए" . आशा है कि प्रकरण को , राज्यपाल के समक्ष रखकर इस व्यकित तत्काल दंडित करेंगे , जैसा कि यह बहुत ही बुरा है कि इस जनपद में ऐसा व्यक्ति हो जो खुले -आम डेढ़ -दो हजार की सभा में ऐसी भाषा का प्रयोग करें. पुलिस अधीक्षक बाराबंकी 1921
बाबा रामचंद्र ने कांग्रेस के हर आंदोलन भाग लिया और जेल भी गए। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वे नैनी जेल में बंद किये गये। 1950 में इनका देहांत हो गया।
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