सोमवार, 24 अगस्त 2020

ज्योतिषियों का पोंगापंथ और शनि के अंधविश्वास-



शनि को लेकर पोंगापंडितों ने तरह-तरह के मिथ बनाए हुए हैं और इन मिथों की रक्षा में वे तरह-तरह के तर्क देते रहते हैं। शनि से बचने के उपाय सुझाते रहते हैं। कुछ अप्सा पहले स्टार न्यूज के एक कार्यक्रम में एक ज्योतिषी ने कहा शनि का फल सबके लिए एक जैसा नहीं होता। कुंडली में अवस्था के अनुसार शनि का फल होता है।

      शनि के सामाजिक और व्यक्तिगत प्रभाव के बारे में जितने भी दावे ज्योतिषियों के द्वारा किए जा रहे हैं वे सभी गलत हैं और सफेद झूठ है। ज्योतिष में ग्रहों के नाम पर फलादेश का सफेद झूठ तब पैदा हुआ जब हम विज्ञानसम्मत चेतना से दूर थे।आज हम विज्ञानसम्मत चेतना के करीब हैं । ऐसी अवस्था में ग्रहों के प्राचीन काल्पनिक प्रभाव से चिपके रहना गलत है ।  


  शनि इस ब्रह्माण्ड में एक स्वतंत्र ग्रह है,उसकी स्वायत्त कक्षा है । भारत के ज्योतिषी यह बताने में असमर्थ रहे हैं कि शनि की पृथ्वी से कितनी दूरी है ? शनि का प्रभाव कैसे पड़ता है ? शनि के बारे में हमारी परंपरागत जानकारी अवैज्ञानिक है। हमें इस अवैज्ञानिक जानकारी से मुक्ति का प्रयास करना चाहिए।


   शनि एक ग्रह है। यह सच है। लेकिन इसका पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों पर प्रभाव  होता है यह धारणा गलत है। बुनियादी तौर पर किसी भी ग्रह का मनुष्य के भविष्य या भाग्य के साथ कोई संबंध नहीं है।

     शनि काला है न गोरा है,राक्षस है न शैतान है, वह तो ग्रह है। उसकी कोई मूर्ति नहीं है। शनि के नाम पर जो शनिदेवता प्रचलन में हैं वह पोंगापंथ की सृष्टि हैं। जिस दिन मनुष्य ने ग्रहों को देवता बनाया, उनकी पूजा आरंभ की,उनके बारे में तरह-तरह के मिथों की सृष्टि की उसी दिन से मनुष्य ने ग्रहों को अंधविश्वास , भविष्य निर्माण और विध्वंस के गोरखधंधे का हिस्सा बना दिया। उसके बाद से हमने ग्रहों के सत्य को जानना बंद कर दिया।

     शनि का सत्य क्या है ? शनि इस ब्रह्माण्ड का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। शनि में अनेक वलय बने हैं। अनेक वलय या रिंग के कारण शनि दूर से देखने में बेहद खूबसूरत लगता है। शनि के अलावा गुरू,नेपच्यून, यूरानस ग्रह में ही रिंग या वलय हैं।    स्टार न्यूज़ ने बताया शनि की दूरी  एक अरब 32 करोड़ किलोमीटर है। यह गलत है। नासा के अनुसार शनि की पृथ्वी से दूरी है 120,540 किलोमीटर। शनि ,सूर्य की परिक्रमा करता रहता है। सूर्य से शनि की परिक्रमा करते हुए दूरी 1,514,500,000 किलोमीटर से लेकर 1,352,550,000 किलोमीटर के बीच में रहती है।

    

     शनि के बारे में यह मिथ है कि उसकी गति धीमी है,सच यह है कि शनि तेज गति से सूर्य की परिक्रमा करता है,ग्रहों में शनि से ज्यादा तेज गति सिर्फ गुरू की है। ब्रह्माण्ड का शनि  एक चक्कर 10 घंटे 39 मिनट में पूरा करता है। यानी इतने समय का उसका एक दिन होता है। जबकि पृथ्वी को चक्कर पूरा करने में 24 घंटे लगते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि शनि पर बड़े पैमाने पर गैस भंडार हैं। लेकिन उन्हें सतह पर देखना संभव नहीं है। इसके अलावा पानी,अमोनिया,लोहा,मिथाइन आदि के भंडार हैं। शनि पर हाइड्रोजन और हीलियम गैसें भी हैं। 


     वैज्ञानिकों को अभी तक शनि पर किसी भी किस्म के जीवन के संकेत नहीं मिले हैं। शनि पर मौसम में अनेक किस्म का अंतर मिलता है शनि की  सर्वोच्च शिखर पर तापमान माइनस 175 डिग्री सेलसियस तक रहता है। शनि पर पृथ्वी की तुलना में वजन बढ़ जाता है, 100 पॉण्ड वजन बढ़कर 107 पॉण्ड हो जाता है। शनि में कई रिंग या वलय हैं। सात बड़े रिंग हैं। ये वलय शनि से काफी दूर हैं। सात बड़े रिंग के अलावा सैंकड़ों छोटे वलय भी हैं। शनि पर वलय का पता 16वीं सदी में इटली के वैज्ञानिक गैलीलियो ने किया था।

    शनि के प्रभाव के बारे में यदि ज्योतिषी बातें करते हैं तो शनि के  उपग्रहों के प्रभाव के बारे में बातें क्यों नहीं करते ? कभी ज्योतिषियों ने शनि के उपग्रहों का विस्तार से वर्णन क्यों नहीं किया ? शनि की मैगनेटिक धरती हमारी पृथ्वी से 10 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। सन् 1973 में अमेरिका ने शनि और गुरू की वैज्ञानिक खोज का काम किया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत के किसी भी संस्कृत विश्वविद्यालय में आधुनिक वेधशाला नहीं है और नहीं आधुनिक अनुसंधान की किसी भी तरह की व्यवस्था है।  किसी भी ज्योतिषी ने अभी तक कोई आधिकारिक रिसर्च ग्रहों पर नहीं की है। पुराने ज्योतिषी ग्रहों के बारे में अनुमान से जानते थे उनके सारे अनुमान गलत साबित हुए हैं। सिर्फ पृथ्वी से विभिन्न ग्रहों की दूरी को ही लें तो पता चल जाएगा कि पुराने ज्योतिषी सही हैं या आधुनिक विज्ञान सही है। आशा है इंटरनेट पर उपलब्ध ग्रहों के बारे में वैज्ञानिक जानकारी को कृपया पढ़ने की कृपा करेंगी। सिर्फ अंग्रेजी में नाम मात्र लिख दें हजारों पन्नों की जानकारी घर बैठे मुफ्त में मिल जाएगी,आज जितनी जानकारी ग्रहों के बारे में विज्ञान की कृपा सें उपलब्ध है उसकी तुलना में एक प्रतिशत जानकारी भी प्राचीन और आधुनिक ज्योतिषी उपलब्ध नहीं करा पाए हैं।


   आज विज्ञान से हमें पता चला है कि किस ग्रह पर किस रास्ते से जाएं, जाने में कितना समय लगेगा,कितनी दूरी पर ग्रह स्थित है, जाने-आने में कितना खर्चा आएगा, वैज्ञानिक खोज रहे हैं कि ग्रहों पर जीवन है या नहीं,इस संदर्भ में क्या संभावनाएं हैं, ये बातें हम पहले नहीं जानते थे। विज्ञान यह भी बताता है कि ग्रहों को खोज निकालने का तरीका क्या है,ग्रहों का अनुसंधान क्यों किया जा रहा है। इन सारी चीजों को पारदर्शी ढ़ंग से विज्ञान के जानकारों से कोई भी व्यक्ति सहज ही जान सकता है।  

           भारत में ज्योतिषी ग्रहों के प्रभाव के जितने दावे करते रहते हैं वे सब गलत हैं। सवाल उठता है अंतरिक्ष अनुसंधान के यंत्रों के बिना ग्रहों को कैसे जान पाएंगे ? ज्योतिष हमें ग्रहों फलादेश बताता है इसका अनुमान से संबंध है, इसका सत्य से कोई संबंध नहीं है। वह फलादेश है। फलादेश विज्ञान नहीं होता। विज्ञान को दृश्य से वैधता प्राप्त करनी होती है। जो चीज दिखती नहीं है वह प्रामाणिक नहीं है।विज्ञान नहीं है।

     असल में ज्योतिषी लोग आधुनिक रिसर्च का अर्थ ही नहीं समझते। ऐसे में ज्योतिष और विज्ञान के बीच संवाद में व्यापक अंतराल बना हुआ है। ज्योतिषी लोग सैंकड़ों साल पहले रिसर्च करना बंद कर चुके थे। वे वैज्ञानिक सत्य को वराहमिहिर के जमाने में ही अस्वीकार करने की परंपरा बना दी गयी थी।  तब से वैज्ञानिक ढ़ंग से ग्रहों को देखने का काम ज्योतिषी छोड़ चुके हैं। ज्योतिष के अधिकांश विद्वान बुनियादी वैज्ञानिक तथ्यों को भी नहीं मानते। मसलन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है या पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा कर रही है,इस समस्या पर ज्योतिष और विज्ञान दो भिन्न धरातल पर हैं। ज्योतिषी ज़वाब दें वे किसके साथ हैं विज्ञान के या परंपरागत पोंगापंथ के? ज्योतिषी यह भी बताएं कि ग्रहों का प्रभाव होता है तो यह बात उन्होंने कैसे खोजी ? इस खोज पर कितना खर्चा आया ? पद्धति क्या थी ?  ग्रहों का प्रभाव होता है तो सभी ग्रहों का प्रभाव होता होगा ? ऐसी अवस्था में सिर्फ नौ ग्रहों के प्रभाव की ही चर्चा क्यों ? बाकी ग्रहों को फलादेश से बाहर क्यों रखा गया ? अधिकांश  टीवी चैनलों पर  अंधविश्वास के प्रचार की आंधी चली हुई है।यहां एक नमूना पेश है।

   ‘स्टार न्यूज’ वाले अंधाधुंध अंधविश्वास का प्रचार करते रहे हैं। अंधविश्वास के प्रचार का  नमूना है दीपक चौरसिया के द्वारा 11जून 2010 को पेश किया गया कार्यक्रम। इस कार्यक्रम का शीर्षक था ‘शनि के नाम पर दुकानदारी’। इस कार्यक्रम में ज्योतिषी, तर्कशास्त्री,वैज्ञानिक सबको बुलाया गया,सतह पर यही लग सकता है कि ‘स्टार न्यूज’ वाले संतुलन से काम ले रहे हैं। लेकिन समस्त प्रस्तुति का झुकाव शनि और अंधविश्वास की ओर था।


       सवाल किया जाना चाहिए क्या अंधविश्वास और विज्ञान के मानने वालों को समान आधार पर रखा जा सकता है ? क्या अंधविश्वास और विज्ञान को संतुलन के नाम पर समान आधार पर रखना सही होगा ? क्या इस तरह के कार्यक्रम अंधविश्वास की मार्केटिंग करते हैं ? क्या यह शनि के बहाने ‘स्टार न्यूज’ की दुकानदारी है ? क्या इस कार्यक्रम में शनि के बारे में तथ्यपूर्ण और वैज्ञानिक जानकारियों का प्रसारण हुआ ? क्या इस तरह के कार्यक्रम अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं ? आदि सवालों पर हमें गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए।


   ‘स्टार न्यूज’ के इस कार्यक्रम में एंकर दीपक चौरसिया अतार्किक सवाल कर रहे थे। एंकर जब अतार्किक सवाल करता है तो वह कुतर्क को बढ़ावा देता है। बक-बक को बढ़ावा देता है। सही सवाल करने पर सही जवाब खोज सकते हैं। दीपक चौरसिया का प्रधान सवाल था ‘शनि के नाम पर दुकानदारी हो रही है या नहीं’,कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति से यह सवाल पूछा गया जाहिरा तौर पर जबाब होगा ‘हां’, अगला सवाल था  शनि से ड़रना चाहिए या नहीं ? उत्तर था ‘नहीं’। पहले सवाल के जबाब में वक्ताओं ने शनि के नाम पर दुकानदारी का विरोध किया। दूसरे सवाल के जवाब में कहा शनि से नहीं डरना चाहिए।

            कायदे से देखें तो इन दोनों सवालों में ‘स्टार न्यूज’ वालों की शनि भक्ति और आस्था छिपी है। ये दोनों सवाल यह मानकर चल रहे हैं शनि है, रहेगा और शनि को मानो। सिर्फ शनि के धंधेबाजों से बचो, शनि से डरो मत ,शनि को मानो। पूरे कार्यक्रम में दीपक चौरसिया एकबार भी यह नहीं कहते कि शनि पूजा मत करो,शनि को मत मानो, शनि अंधविश्वास है, उनकी चिंता शनि के नाम पर हो रही दुकानदारी और भय को लेकर थी। एंकर द्वारा शनि की स्वीकृति अंधविश्वास का प्रचार है।

     ‘स्टार न्यूज’ ने कार्यक्रम के आरंभ में शनि की पूजा के विजुअल दिखाए गए । पूजा के विजुअल प्रेरक और फुसलाने का काम करते हैं।मोबलाईजेशन करते हैं। ये विजुअल शनि अमावास्या के पहले वाली रात को प्राइम टाइम में दिखाए गए हैं। इस कार्यक्रम में मौजूद ज्योतिषियों ने ज्योतिष के बारे में,शनि के बारे में जो कुछ भी कहा उसे अंधविश्वास की कोटि में ही रखा जाएगा।

     मजेदार बात यह हैकि ज्योतिषियों को अपनी पूरी बात कहने का अवसर दिया गया और वैज्ञानिकों को आधे-अधूरे ढ़ंग से बोलने दिया गया और कम समय दिया गया। एक वैज्ञानिक जब शनि के बारे में वैज्ञानिक तथ्य रखने की कोशिश कर रहा था तो उसे बीच में ही रोक दिया गया।

     समूचे कार्यक्रम में एंकर की दिलचस्पी शनि के बारे में वैज्ञानिक जानकारियों को सामने लाने में नहीं थी। बल्कि वह तो सिर्फ यह जानना चाहता था कि शनि के नाम पर जो दुकानदारी चल रही है ,उसके बारे में वैज्ञानिकों की क्या राय है ? वे कम से कम शब्दों में राय दें।

     एंकर कोशिश करता रहा कि वैज्ञानिक विस्तार के साथ न बोल पाएं। एक वैज्ञानिक ने कहा शनि का समाज पर कोई प्रभाव नहीं होता,दूसरे ने कहा शनि पूजा के नाम पर भय पैदा किया जा रहा है,अंधविश्वास फैलाया जा रहा है। तीसरे वैज्ञानिक ने कहा शनिपूजा अपराध है। बालशोषण है। शनि के नाम पर बच्चों से भिक्षावृत्ति कराई जा रही है। यह अपराध है।

      इस बहस का सबसे मजेदार पहलू था एक ज्योतिषी द्वारा शनि ग्रह पर अपनी किताब को दिखाना, इस किताब के कवर पेज पर जो चित्र था उसके बारे में ज्योतिषी-लेखक ने कहा यह शनि का चित्र है,इसका तुरंत वैज्ञानिकों ने प्रतिवाद किया और कहा यह शनि ग्रह का फोटो नहीं है। ज्योतिषी एक क्षण के लिए बहस में उलझा लेकिन वैज्ञानिकों के खंडन के सामने उसके चेहरे की हवाईयां उड़ने लगीं।

    असल बात यह कि ज्योतिषी यह तक नहीं जानता था कि शनि ग्रह देखने में कैसा है ? शनि को इमेज मात्र से नहीं पहचानने वाले ज्योतिषी को शनि का कितना ज्ञान होगा आप स्वयं कल्पना कर सकते हैं ? इसके विपरीत पैनल में मौजूद वैज्ञानिकों को अपनी पूरी बात कहने का मौका ही नहीं दिया गया। दीपक यौरसिया का सवाल था शनि से डरना चाहिए या नहीं ? एक ही जवाब था नहीं। सवाल डरने का नहीं है।

   सवाल यह है कि शनि को विज्ञान के नजरिए से देखें या अंधविश्वास के नजरिए से देखें ? विज्ञान के नजरिए से शनि एक ग्रह है,उसकी अपनी एक कक्षा है। स्वायत्त संसार है। वैज्ञानिकों के द्वारा सैंकड़ों सालों के अनुसंधान के बाद शनि के बारे में मनुष्य जाति की जानकारी में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। इसके लाखों चित्र हमारे पास हैं। शनि में क्या हो रहा है उसके बारे में उपग्रह यान के द्वारा बहुत ही मूल्यवान और नई जानकारी हम तक पहुँची है।

     इसके विपरीत ज्योतिषियों ने विगत दो -डेढ़ हजार साल पहले शनि के बारे में ज्योतिष ग्रंथों में जो अनुमान लगाए थे वे अभी तक वहीं पर ही अटके हुए हैं।

       कार्यक्रम में शनि के बारे में नई जानकारियों को सामने लाने में एंकर की कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह बार-बार ज्योतिषियों से काल्पनिक बातें सुनवाता रहा। ज्योतिषियों को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि उनके पास शनि के बारे में क्या नई प्रामाणिक जानकारियां हैं ?

     मैंने ज्योतिषशास्त्र का औपचारिक तौर पर नियमित विद्यार्थी के रूप में संस्कृत के माध्यम से 13 साल प्रथमा से आचार्य तक अध्ययन किया है और ज्योतिषशास्त्र के तकरीबन सभी स्कूलों के गणित-फलित सिद्धान्तकारों को भारत के श्रेष्ठतम ज्योतिष प्रोफेसरों के जरिए पढ़ा है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि सैंकड़ों सालों से ग्रहों के बारे में ज्योतिष में कोई नयी रिसर्च नहीं हुई है।

     ज्योतिषियों की ग्रहों के नाम पर अवैज्ञानिक बातों के प्रचार में रूचि रही है लेकिन रिसर्च में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रही है। जब सैंकड़ों सालों से फलित ज्योतिष से लेकर सिद्धान्त ज्योतिष के पंड़ितों ने ग्रहों को लेकर कोई अनुसंधान ही नहीं किया तो क्या यह ज्योतिषशास्त्र की  असफलता और अवैज्ञानिकता का प्रमाण नहीं है ? हम जानना चाहेंगे कि जो ज्योतिषी ग्रहों के सामाजिक प्रभाव के बारे में तरह-तरह के दावे करते रहते हैं वे किसी भी ग्रह के बारे में किसी भी ज्योतिषाचार्य द्वारा मात्र विगत सौ सालों में की गई किसी नई रिसर्च का नाम बताएं ? क्या किसी ज्योतिषी ने कभी किसी ग्रह को देखा है ? ज्योतिष की किस पुरानी किताब में ग्रहों का आंखों देखा  वर्णन लिखा है ? सवाल उठता है जब ग्रह को देखा ही नहीं,जाना ही नहीं,तो उसके सामाजिक प्रभाव के बारे में दावे के साथ कैसे कहा जा सकता है।

-जगदीश्वर चतुर्वेदी

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