शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

अमीर हैदर खान अप्रीतम कम्युनिस्ट योद्धा


अमीर हैदर खान का जन्म झेलम नदी के किनारे रावलपिंडी के कालियान
सीलियान गांव में ;अब पाकिस्तान में 2 मार्च 1900 को हुआ था। वे पांच ही वर्ष के थे जब उनके पिता चलबसे। पिता की मृत्यु बाद मां की दूसरी शादी हो गई और अमीर हैदर का जीवन अधिक कठिन हो गया। सौतेले पिता
के अत्याचारों के अलावा एक बार उसकी मां ने उसे थप्पड़ जड़ दिया। अमीर हैदर घर से भाग निकला और
गोजरखान रेलवे स्टेशन पहुंच गया। वहां से वह बिना टिकट पेशावर चला गया। वह भूखा-प्यासा था। वह पेशावर
कैन्टोमेंट अपने भाई शेर अली से मिलने गया जो उसे देख चकित रह गया। वह उसे वापस गांव ले आया। उसे पढ़ने का मौका ही नहीं मिल रहा था। गांव के मौलवी उससे सारा काम कराते लेकिन पढ़ाने से बचते। मौलवी ने उसे चकरा भेज दिया, वहां खाना अच्छा मिलता लेकिन पढ़ाई नहीं मिलती। वह पढ़ाई का प्यासा था। वह अपनी पुस्तक और थैला लेकर चकरा से निकलकर एक गांव की मस्जिद में चला गया जहां एक हाफिज ने उसे कुछ धार्मिक शिक्षा दी। वहां बहुत कम खाना मिला करता, मात्र एक-चौथाई चपाती। हैदर अक्सर ही भूखे पेट रहा करता। कई मस्जिदों से होता हुआ वह 20 मील आगे बेवाल मुंशी देवीदत्त के स्कूल पहुंचा। उनकी मृत्यु के बाद
गोजरखान से ट्रेन पकड़ कलकत्ता 4 दिनों बाद पहुंचा। टिकट चेकर ने बड़ी सहायता की। स्टेशन पर उसे बिना टिकट पकड़ लिया गया लेकिन पेशाब करने के बहाने भाग निकला। वहां वह अपने भाई से मिला। वहां रहने और
पढ़ने लगा लेकिन पाया कि वह अफीम का अड्डा था। बंबई में इस बीच वह अपने गांव और फिर बंबई हो आया। वहां फौज में भर्ती की कोशिश की। अपनी खोली से भाग कर जहाज साफ करने का काम करने लगा जिसके लिए कुछ पैसे मिलते थे और फुटपाथ पर सोने लगा। उसका मित्र जिसने काम दिलवाया था, बिंदूलाल हिन्दू था और दोनों दोस्त बन गए। डबल शिफ्ट में भी काम करता था। कभी-कभी जहाज की चिमनी के अंदर उतरकर भी सफाई करनी पड़ती थी। अंदर गर्म पानी पहले भरा जाता और फिर निकाल दिया जाता। इसलिए अंदर बहुत गर्म हुआ करता। सारा बदन काला हो जाया करता, हाथ-पैर पर फफोले निकल आते। उन्हें सीढ़ियों से उतारा जाता। खांसीं या कफ और पाखाना तक काला हो जाया करता। ये सारे कामकाजी बच्चे ‘दादाओं’ के कंट्रोल में हुआ करते। वे समाज के विभिन्नि परिवारों के परित्यक्त बच्चे थे। उन्हें खाना कम और नशीले पदार्थ अधिक खिलाये जाते। चोरी करना आम बात थी। बीमार पड़ने पर बिंदू ने उसे अफीम खिलाई और वह ठीक हो गया। कई चोटें आईं। कुछ समय बाद दोनों ‘दादागिरी’ करके पैसे कमाने लगे लेकिन हैदर को यह बात अच्छी नहीं लगी और उसने काम छोड़ दिया। हैदर ने एक मर्चेट शिप में मजदूर का काम ले लिया। उस समय प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था। जहाज बंबई से चल पड़ा और बसरा पहुंचा। वहां कई भारतीय सैनिक भी थे। एक दिन बालोच रेजीमेंट को बगदाद पर आक्रमण करने का आदेश मिला लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ भावना फैल चुकी थी। रेजीमेंट ने आगे जाने से इंकार कर दिया। वे सभी गिरफ्तार कर लिए गए। हैदर का जहाज पूरे एक साल बसरा में रहा। फिर जहाज वापस बंबई
लौटा। एक-दूसरे जहाज पर घूस देने के बाद उसे फायरमैन का काम मिला। शंघाई, बसरा, फिर बंबई।
एक अन्य छोटे जहाज में हैदर लंदन पहुंच गया। इसमें चावल था। लंदन पहुंचकर एक अन्य जहाज लिया। लेकिन उसका ‘सारंग’ अत्याचारी था। हैदर ने विद्रोह का नेतृत्व किया। उस व्यक्ति की जगह एक नया ‘सारंग’ इन्हीं साथियों में से चुना गया। तीन सप्ताह बाद जहाज न्यूयॉर्क पहुंचा। वहां से 45 दिनों की यात्रा के बाद वे रूस
व्लीदीवोस्तोक पहुंचे। इस प्रकार विभिन्न जहाजों पर काम और विश्वभर की यात्राएं उनका जीवन बन गया। इस बीच उन्होंने पीने के पानी के सवाल पर एक जहाज पर विद्रोह कर दिया जो सफल रहा। इसी बीच 1917 में रूसी क्रांति हो गई।
अमरीकी नागरिकताः सैनिकों के सार्वजनिक नीलामी का आंदोलन आखिरकार अमीर हैदर अमरीका
में रह गए। नाविकों की यूनियन की मदद से 1921 में उन्हें अमरीकी नागरिकता मिल गई। युद्ध  के बाद
स्थिति बुरी थी, भूतपूर्व सैनिक तथा कई अन्य अब भीख मांगने पर मजबूर थे।
एक दिन हैदर की मुलाकात जेम्स और हडसन से हुई। उन्होंने भूतपूर्व सैनिकों की ‘‘सार्वजनिक नीलामी’’ करने
का आंदोलन चलाया। यह बोस्टन से शुरू हुआ। भारी भीड़ इक्ट्ठा हो गई जिनमें अधिकतर बेरोजगार युवा थे।
हडसन, जेम्स और हैदर को भीड़ ने घेर लिया।हडसन ने भीड़ को संबोधित किया फिर उन्होंने हैदर से पहला आदमी नीलामी को लाने के लिए कहा। हैदर वह आदमी ले आए। उसका नाम फ्रैंक था। वह 20 साल का था और कबाड़ इकट्ठा करने का काम करता था। रात में पेड़ों के नीचे सो जाया करता। किसी ने कहा एक शाम का खाना दूंगा, किसी ने कहा दो शाम! किसी ने रहने की जगह भी।
फ्रैंक ने पूछा, कोई है जो मुझे नाश्ता भी दे दे? एक महिला सामने आई और हामी भरी। उसके पास ढेर सारी
बिल्लियां थीं उनकी देखभाल के लिए आदमी चाहिए था। वह उसे लिमोसीन कार में बिठाकर ले गई।
हैडली नीलामी के लिए दूसरा आदमी था।
नीलामी की खबरें सारे अमरीका में आग की तरह फैल गईं। फिर नीलामी न्यूयॉर्क में होनी थी। अधिकारीगण जाग गए और पुलिसवालों की छुट्टियां रद्दकरके नीलामी रोकने की तैयारियां आरंभ हो गई। नीलामी न्यूयॉर्क के ब्रियां पार्क के लेन ;गली नं. 42 में होनी थी।
पुलिस ने सारा इलाका घेर लिया।तनातनी चलती रही और भूतपूर्व सैनिकों पर लाठीचार्ज किया गया। हैदर, हडसन और अन्य ने पुलिस की चेतावनी नहीं
मानी। हैदर वहां एक गुप्ता नामक भारतीय व्यक्ति से मिले और उन्होंने बिजनेस शुरू करने का असफल प्रयास किया। फिर हैदर रेलवे में भर्ती हो गए। मालिकों के गुर्गों ने उन्हें रोकने की कोशिश भी की। आखिर मुक्केबाजी में हैदर ने उन्हें रोकने वाले जॉन की खूब अच्छी धुनाई करके हरा दिया। वे हीरो बन गए।
समाजवाद से परिचय
वहां उनकी मुलाकात फ्रैंक नामक  व्यक्ति से हुई जिसने उन्हें क्रांति और समाजवाद के बारे में बताया। हैदर के विचार बदलने लगे। फिर वे एक एविएशन कंपनी में काम करने लगे। उन्होंने ब्रिटिश लेबर पार्टी के वक्ता
मॉर्गन जॉन की सार्वजनिक सभा में रंगभेद तथा भारत की आजादी के प्रश्न पर खिंचाई की। जॉन को हॉल के पिछले रवाजे से भागना पड़ा। भारतीयों ने भांगड़ा नाचना शुरू कर दिया। एक अमेरिकन जिसने पहला सवाल किया था वह हैदर से मिलने आया। हाथ मिलाने के बाद उसने अपना नाम ब्राउन बताया और हैदर से वर्कर्स पार्टी के ऑफिस आने का निमंत्रण दिया। उनकी  मुलाकात गदर पार्टी वालों से भी हुई जिनका अखबार भी उन्होंने बेचा।
कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यालय में डेट्रॉयट में अमीर हैदर वर्कर्स पार्टी कार्यालय गए। अमरीकी कम्युनिस्ट पार्टी
पर पाबंदी लगने के बाद उसका नाम वर्कर्स पार्टी कर दिया गया था। वहां मार्क्स, एंगेल्स और लेनिन के फोटो
लगे हुए थे। वहां उनकी मुलाकात पार्टी नेता ओवेन से हुई। वर्कर्स पार्टी ने रूस में ‘‘पूर्व के मेहनतकशों की यूनिवर्सिटी’’ में पढ़ने के लिए सात सदस्यों का चुनाव किया
जिनमें अमीर हैदर खान, कलकत्ता के शमसुल हुदा और गदर पार्टी के पांच लोग शामिल थे। उन्हें दस्तावेज देने
के बाद न्यूयॉर्क में केंद्रीय समिति कार्यालय में पार्टी सचिव लूथर फोर्ड से मिलने का आदेश दिया गया। न्यूयॉर्क
से मॉस्को जाने का ‘इंतजाम’ किया गया।
कई देशों और कई दिनों की जहाजी यात्रा के बाद वे सभी ट्रेन से 20 मार्च 1926 को ओडेसा से मास्को पहुंचे।
हैदर का नाम बदलकर ‘सखारोव’’ कर दिया गया और यूनिवर्सिटी में भर्ती किया गया। वहां पहले उन्होंने रूसी
सीखी। हैदर को कई सोवियत नेताओं, विभिन्न देशों के कम्युनिस्टों, क्लिमेंस दत्त, राजा महेंद्र प्रताप, इत्यादि से
मिलने और उन्हें सुनने का मौका मिला। ‘‘पूर्व के मेहनतकशों का विश्वविद्यालय’’ अमीर हैदर खान की पढ़ाई और ट्रेनिंग आरंभ हो गई। वे मास्को में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के कार्यालय भी गए और वहां भारतीय सेक्शन के
इंचार्ज लोहानी से मिलने का प्रयत्न किया पर असफल रहे।
1927 में अमीर हैदर सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए। फिर लाल फौज के एक सीनियर अफसर की देखरेख में वे तथा अन्य 10 दिनों की सोवियत यात्रा पर निकले। मास्को में ढाई वर्ष रहने के बाद हैदर पूरी तरह बदल चुके थे। अगले दिन कॉमिन्टर्न हेडक्वार्टर में इब्राहिमोव उनसे मिले।
जहाज बंबई पहुंचा। साथ में अली मर्दान भी थे जिनका एक कमरा ‘खोली’ बंबई में था, मदनपुरा में कॉमिन्टर्न ने अमीर हैदर को डांगे से मिलने के लिए कहा था। उस समय बंबई में कपड़ा मिल मजदूरों की हड़ताल चल रही थी और डांगे इसके नेता थे। हैदर की मुलाकात पी.सी. जोशी से हो गई और उन्होंने बताया कि डांगे कहां मिलेंगे। हैदर
मजदूर-किसान पार्टी के दफ्तर गए जहां डांगे मिल गए। ‘‘मैं डांगे से मिलना चाहता हूं’’ हैदर ने कहा। ‘‘मैं ही डांगे
हूं’’, डांगे ने जवाब दिया। दोनों ने हाथ मिलाया। उनके साथ बेन ब्रैडले और एस.वी. घाटे से भी मुलाकात हो
गई। हैदर ने कॉमिन्टर्न के दस्तावेज
सौंपे। उन्होंने कहा कि वे 14 वर्षों
वाद भारत लौटै हैं। कॉमिन्टर्न और
भारतीय कम्युनिस्टों के बीच संबंध
कायम होने चाहिए।
इस बीच वे रावलपिंडी के नजदीक
अपने गांव गए और बीमार मां को देख
आए। वापस बंबई लौटने पर वे घाटे से
मिले जो उस वक्त पार्टी के महासचिव
थे। लाल बावटा यूनियन ऑफिस में
यूनियन फंड देने के लिए मजदूरों की
लंबी कतारें लगी हुई थी।
आर्थिक तंगी चहुं ओर थी। जोशी
डांगे परिवार के साथ रहा करते, डांगे
यूनियन के महासचिव थे, मिरजकर
की स्थिति भी अच्छी नहीं थी।
गिरणी कामगार यूनियन ने
आत्मरक्षा यूनिटें बनाईं। ‘‘रेड गार्ड्स’’
गठित किए गए जिनकी लाल वर्दी थी
अनिल राजिमवाले

और जिन्हें ठीक से प्रशिक्षित किया गया
था।
गिरणी कामगार यूनियन के नेतृत्व
में हड़ताल समाप्त होने के बाद
सांप्रदायिक तत्वों ने मजदूरों को
विभाजित करने के लिए बंबई तथा
अन्य जगहों में ‘‘दंगे’’ शुरू कर दिया।
इनका सामना करने में ‘‘रेड गार्ड्स’’
और अमीर हैदर ने महत्वपूर्ण भूमिका
अदा की।
कॉमिन्टर्न के ‘प्रतिनिधि’
पूर्व के विश्वविद्यालय’ से निकाले
गए एक साथी ‘‘वारिस’’ हैदर से
मिलने बंबई आए और एम.एन. रॉय
का पत्र लाया। इसमें रॉय ने भारतीय
कम्युनिस्टों को सहायता की पहल की
और कॉमिन्टर्न की कार्यकारिणी में
खाली स्थान पर किसी को भेजने का
प्रस्ताव रखा। अन्यथा रॉय को ही
नामजद करने को कहा।
हैदर ने वारिस को घाटे से
मजदूर-किसान पार्टी के दफ्तर में
मिलाया। वारिस ने पत्र देते हुए कहा
अमीर हैदर खानः रोमांच भरा जीवन
कि वे जवाब वापस जाते समय ले
जाएंगे। घाट, डांगे और अन्य ने उत्तर
में रॉय से कहा कि आपकी गतिविधियों
से हमें हानि पहुंची है और हम कॉमिन्टर्न
की कार्यकारिणी में किसी को भी नहीं
भेज सकते। हैदर एम.एन. रॉय तथा
वारिस पर बहुत बिगड़े।
जनरल मोटर्स में यूनियन
अमीर हैदर जनरल मोटर्स में अच्छा
काम कर रहे थे और उनकी तनख्वाह
भी बढ़ रही थी। इस बीच पी. सी.
जोशी की सलाह से उन्होंने वहां यूनियन
बनाना शुरू किया। जोशी, ब्रैडले तथा
अन्य ने मजदूरों की सभा को संबोधित
किया।
अमीर हैदर पार्टी को सक्रिय बनाने
के लिए घाटे, डांगे, डॉ. अधिकारी तथा
अन्य की बैठकों में भी शामिल हुए।
गोवा में
इस बीच हैदर पर वारंट जारी हो
गया। मेरठ षड्यंत्र ;1929-33द्ध में
उनका भी नाम था लेकिन वे भाग
निकले। मास्को चले गए। सुहासिनी
चट्टोपाध्याय एवं अन्य की सहायता
से वे गोवा पलायन कर गए। उनका
नाम अब फ्रांसिस्को फर्नान्डिज था। वहां
से वे नेपल्स ;इटलीद्ध होते हुए हैम्बर्ग
;जर्मनीद्ध पहुंच गए। वहां से वे मास्को
चले गए। एक बार फिर भारत का
चक्कर लगाकर वे सोवियत पार्टी की
कांग्रेस और कॉमिन्टर्न की गतिविधियों
में शामिल हुए। वहां हैदर पर काफी
भरोसा किया जा रहा था।
1931 में बंबई में पार्टी बिखरी
पड़ी थी। बी.टी. आर तथा कुछ अन्य
साथी अवास्तविक काम कर रहे थे।
कॉमिन्टर्न के नाम पर कुछ संदेहास्पद
तत्व घुसपैठ कर रहे थे। छोटे-छोटे
कम्युनिस्ट गुट अपने ढंग से कॉमिन्टर्न
तक पहुंचने का प्रयास कर रहे थे।
अमीर हैदर पर पुलिस का दबाव
बढ़ रहा था। वे मद्रास चले गए और
सुहासिनी की मदद से रहने लगे। हैदर
‘शंकर’ के नाम से रहने लगे।
दक्षिण भारत के कम्युनिस्ट
आंदोलन में अमीर हैदर की भूमिका
दक्षिण भारत, विशेषकर मद्रास
प्रेसीडेंसी में कम्युनिस्ट आंदोलन को
पुनः जीवित करने में अमीर हैदर खान
की विशेष भूमिका रही। उन्हें मेरठ षड्यंत्र
केस में शामिल करने का प्रयत्न किया
गया था लेकिन आखिरकार उन्हें दो
वर्ष मद्रास में सीमित रखा गया। उन्होंने
मद्रास में ‘शंकर’ के नाम से काम करना
आरंभ किया।
मद्रास में उनकी देखरेख में इसी
दौरान यंग वर्कर्स लीग का गठन किया
गया। यह 1932 की बात है। इसे
अंग्रेजों द्वारा तोड़ने का प्रयत्न किया
गया। 1932 में उन्हें डेढ़ वर्ष की
सजा मिली जिसे बाद में मद्रास
प्रेसीडेंसी की सीमाओं में रहने के आदेश
में बदल दिया गया।
अमीर हैदर के काम के फलस्वरूप
कई ग्रुप बने और कई कम्युनिस्ट तैयार
हुए। राजावादिवेलु, उनके भाई भाणिकम
तथा अन्य ने मजदूरों और विद्यार्थियों
को संगठित किया।
इनमें से एक थे पी. सुंदरैय्या नामक
एक कांग्रेसी जिनकी हैदर से जेल में
मुलाकात हुई थी। उन्होंने मद्रास और
आंध्र में कम्युनिस्ट पार्टी के गठन में
सहायता की। श्रीनिवासन रेड्ड्ी, के.
भाष्यम, ए.एस.के. तथा अन्य ने हैदर
का साथ दिया और कई उनके प्रभाव
में आए। 1936 में एस.वी. घाटे भी
आ गए।
इन सबने मिलकर मद्रास लेबर
प्रोटेक्शन लीग गठित किया और मई
दिवस मनाया एस.ए. डांगे ने तमिलनाडु,
सेल्फ-रेसपेक्ट समधर्म सम्मेलन का
उद्घाटन त्रिचिरापल्ली में 1 नवंबर
1936 को किया। इनमें से कई
कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए।
मद्रास में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी
उफ्तर 2/65 ब्रोडवे ;वास्तव में एक
अत्यंत संकरी गली!द्ध में सक्रिय हो गया
जिसके प्रमुख कर्ता-धर्ता कम्युनिस्ट
ही थे। नेहरू भी वहां आए। रामचंद्र
रेड्डी ;सुंदरैय्या के भाईद्ध,
बालदंडायुधम, सी.एम. ;सी.
सुब्रमणियमद्ध, इत्यादि इकट्ठा हो गए।
घाटे ने अंग्रेजी मासिक न्यू एज
निकालना शुरू किया। फिर तमिल
साप्ताहिक जनशक्ति प्रकाशित होने
लगा। पी. राममूर्ति ने ‘टॉडी ;ताड़ीद्ध
टैपर्स यूनियन’ का नेतृत्व किया।
1936 में एम.एन. रॉय मद्रास
पहुंचे और सिंगारवेलु के घर गए। बाद
में वे होटल में रहने लगे। तब तक वे
कॉमिन्टर्न और कम्युनिस्ट आंदोलन से
अलग हो चुके थे। सिंगारवेलु ने उनके
विचार मानने से इंकार कर दियाः रॉय
एक नई पार्टी बनाना चाहते थे।
इस बीच अमीर हैदर ने सेलम,
राजामुन्ड्री, अम्बाला तथा कई अन्य
जेलों की यात्रा की।
सी.एस.पी. कार्यालय में कई दफ्तर
काम कर रहे थे- पार्टी के प्रदेशिक,
जिला और स्थानीय कार्यालय, विभिन्न
ट्रेड यूनियनों के दफ्तर इ. थे। पांडिचेरी
के वी. सुब्बैय्या अमीर हैदर के संपर्क
में थे और अकसर ही मद्रास आया
करते थे।
मद्रास जेल में अमीर हैदर सुभाष
बोस और मुकुंदलाल सरकार के संपर्क
में आए। हैदर को जुलाई 1934 में
रिहा किया गया।
रामगढ़ कांग्रेस में, 1940
अमीर हैदर को 1939 में बंबई
प्रदेश कांग्रेस कमिटि का सदस्य बना
लिया गया।
वे कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन के
लिए डेलीगेट चुने गए। सुहासिनी ने
उन्हें खर्च के लिए 50/-रु. दिए थे,
वह किसी ने पॉकेट मार लिए। उनके
मित्र उन्हें सुप्रसि( कलाकार जद्दन
बाई के पास ले गए और उन्होंने
100/रु. दिए। उनका फिल्मी दुनिया
में बड़ा नाम और संपर्क था। वे वामपंथी
एवं कम्युनिस्ट आंदेलन के संपर्क में
भी थीं। वे गौहर बाई की उत्तराधिकारी
थीं।
हैदर कांग्रेस के बाद पी.सी. जोशी
और डॉ. अधिकारी से मिले। हैदर ने
बंबई के चौपाटी में यु(-विरोधी सभा
में भाषण दिया। सभा में ही वे गिरफ्तार
किए गए। वहां डांगे, मिरजकर तथा
अन्य साथी पहले से ही बंद थे। हैदर
फिर नासिक जेल भेज दिए गए। वे
14 जुलाई 1942 को रिहा किए
गए।
आजादी से ठीक पहले वे रावलपिंडी
अपने गांव चले गए और पढ़ाने का
काम करने लगे। एक स्कूल स्थापित
करने के लिए उन्होंने 1946 में वहीं
जमीन खरीदी।
आजादी के बाद
1947 में भारत की आजादी और
देश के विभाजन के बाद वे पाकिस्तान
में अपने गांव में रह गए। उस वक्त वे
रावलपिंडी में थे। उन्होंने वी.डी. चोपड़ा
से पार्टी ऑफिस का चार्ज ले लिया।
उन्होंने पार्टी ऑफिस पर लाल झंडा
फहराया। वे गांव से काम और शिक्षा
की खेज में आनेवाले युवाओं के लिए
खाना बनाकर खिलाते और उनकी
मदद करते। उन्हें रावलपिंडी जेल में
सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप में बंद
कर दिया गया। वे 15 महीने बंद रहे।
1950 के मई दिवस की सभा के
बाद फिर गिरफ्तार कर लिए गए। उन
पर ‘रावलपिंडी षड्यंत्र केस’ चलाया
गया। उन्हें लाहौर जेल स्थानांतरित
कर दिया गया। वहां सज्जाद जहीर,
फैज अहमद फैज, वगैरह लोग मिले।
फिर मियांवली जेल भेजा गया। मार्शल
अय्यूब खां की तानाशाही के दौरान वे
1958 में फिर गिरफ्तार कर लिए
गए।
1964 में हैदर ने अय्यूब खां के
खिलाफ फातिमा जिन्ना का समर्थन
किया लेकिन अय्यूब चुनाव जीत गए।
अमीर हैदर खान को पाकिस्तान
में कई बार गिरफ्तार किया गया क्योंकि
वे वहां जनतंत्र बहाल करने के लिए
लड़ रहे थे। फलस्वरूप उनका स्वास्थ्य
काफी खराब हो गया।
वे भारत में साथियों से मिलना चाहते
थे। लेकिन भारत के लिए पासपोर्ट के
उन्हें दस साल लड़ना पड़ा। वे लगभग
1988 के आसपास भारत आए और
भा.क.पा. हेडक्वार्टर ‘अजय भवन’ में
करीब सात महीने रहे। उन्हें भा.क.पा.
की राष्ट्रीय परिषद ने विशेष तौर पर
सम्मानित किया। वे मई दिवस समारोह
में भी शरीक हुए।
पाकिस्तान लौटने पर एक दिन एक
बस पकड़ने की कोशिश में वे गिर पड़ेऔर उन्हें गंभीर चोटें आईं। उनका
इलाज मेडिकल इंस्टीच्यूट में हुआ। सारे
इलाज के बावजूद उनकी 26 दिसंबर
1989 को रावलपिंडी में मृत्यु हो
गई। उनका शोक भारत और पाकिस्तान
में व्यापक तौर पर मनाया गया।
पाकिस्तान के अखबारों और टी.वी. में
काफी जगह मिली। सारे प्रगतिशील
और वामपंथी हलकों में उन्हें याद किया
गया। विभिन्न पार्टियों के लोगों ने उन्हें  श्रध्यानजलि अर्पित की। भारत में भी उन्हें
व्यापक तौर पर याद किया गया।
अमीर हैदर खान अद्वितीय
क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट थे।


 -अनिल राजिमवाले

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