गुरुवार, 10 सितंबर 2020

आजादी के महानायक कॉ. एस.एस. मिरजकर


कॉ. एस.एस. मिरजकर बंबई और

भारत के मजदूर एवं कम्युनिस्ट

आंदोलन के असाधारण नेताओं में थे।

हालांकि इनका नाम अधिक नहीं जाना

जाता है, वे उन नेताओं में थे जिन्होंने

भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन की नींव

रखी। साथ ही वे बंबई में संगठित

मजदूर आंदोलन के निर्माणकर्ताओं में

थे ।

शांताराम सावलाराम मिरजकर का

जन्म 8 फरवरी 1899 को महाराष्ट्र

के रायगढ़ जिले के मनगांव तालुक के

खारावली गांव में हुआ था। उनके पिता

सावलाराम के पास जमीन का प्लॉट

अवश्य था लेकिन वह नाकाफी था।

परिवार की आय बहुत कम थी। इसलिए

पिता एक किराना और कपड़े की

छोटी-सी दुकान भी चलाया करते। आगे

बड़े भाई की नौकरी के कारण सारा

परिवार उरान चला गया। मिरजकर ने

अपनी वर्नाकुलर अंतिम परीक्षा ;मिड्लि

स्कूल परीक्षाद्ध वहीं से पास की।

परिवार की खराब आर्थिक स्थिति

के कारण उनकी मां बंबई में एक कपड़ा

मिल में काम करने लगीं। 13 वर्ष की

उम्र में मिरजकर एक दर्जी के पास

सहायक का काम करने लगे। 1914

में उन्होंने मराठा हाई स्कूल में दाखिला

लिया और मैट्रिक तक पढ़ाई की।

मजदूर आंदोलन में

प्रथम विश्वयु( के दौरान मजदूरों

की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी।

1917 में कपड़ा मिल मजदूरों और

डाकियों ने कई संघर्ष किए। स्कूली

शिक्षा पूरी करके मिरजकर ने मजदूरों

के बीच सक्रिय काम आरंभ किया। इस

बीच उन्होंने एक फ्रांसीसी बैंक में क्लर्क

का भी काम किया। एटक के स्थापना

सम्मेलन ;1920द्ध के अवसर पर

मिरजकर ने होटल और कपड़ा मजदूरों

के जूलूस का नेतृत्व भी किया।

वे तिलक और गांधीजी से गहरे

रूप में प्रभावित हुए और 1920 में वे

असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए।

शराब की एक दुकान की पिकेटिंग

करते समय वे गिरफ्तार कर लिए गए

और उन्हें 6 महीनों की सजा दी गई।

 1927 में बंबई की

मजदूर-किसान पार्टी की स्थापना की

गई। इसके प्रथम सचिव एस.एस.

मिरजकर बनाए गए। वास्तव में ‘कांग्रेस

लेबर पार्टी’ नाम से एक ग्रुप कांग्रेस के

अंदर काम कर रहा था। कांग्रेस हाउस

में एक बैठक में इसका नाम बदलकर

मजदूर-किसान पार्टी कर दिया गया।

उसी वर्ष उन्हें ‘भारत और चीन’

नामक पुस्तिका लिखने के लिए

गिरफ्तार कर लिया गया।

धुंदीराज ठेंगड़ी इसके अध्यक्ष

कम्युनिस्ट नेताआंे की जीवनी-22

एस.एस. मिरजकरः कम्युनिस्ट एवं टेªड यूनियन नेता

बनाए गए। इन दोनों के अलावा एस.

बी. घाटे, के.एन. जोगलेकर, निम्बकर,

जे.वी. पटेल, झाबवाला, इ. लोग भी

शामिल थे।

अप्रैल 1928 में बंबई में

ऐतिहासिक गिरणी कामगार हड़ताल हो

गई जो छह महीनों तक चली। इसी

दौरान गिराणी कामगार यूनियन का

गठन किया गया। मिरजकर इसके

अग्रणी नेता के रूप में उभर आए।

उन्होंने डांगे, जोगलेकर, निम्बकर, वी.

वी. गिरी वगैरह के साथ इस मजदूर

हड़ताल का सक्रिय नेतृत्व किया। वे

एक परिपक्व नेता के रूप में उभरे।

1927 में ही बंबई से क्रांति

नामक साप्ताहिक का प्रकाशन आरंभ

हुआ। इसके प्रथम संपादक एस.एस.

मिरजकर थे। यह पत्रिका मराठी में

प्रकाशित हुआ करती थी।

मेरठ षड्यंत्र केस में

1925 में भारतीय कम्युनिस्ट

पार्टी की स्थापना कानपुर में की गई।

इसका तेजी से प्रसार होने लगा और

प्रभाव बढ़ने लगा। ब्रिटिश सरकार

चिंतित हो उठी। उसने उभरते कम्युनिस्ट

आंदोलन को कुचलने की तैयारी कर

ली। 1929 में सारे देश से 32

शीर्षस्थ कम्युनिस्टों को गिरफ्तार कर

मेरठ की एक विशेष जेल में रखा गया।

यह मुकदमा मेरठ षड्यंत्र केस के नाम

से सुप्रसि( हुआ जो 1933 तक

चला।

एस.एस. मिरजकर को भी इसी

मुकदमे में गिरफ्तार कर लिया गया।

मुकदमे के दौरान अपने बयान में

मिरजकर ने कहा कि मजदूर-किसान

पार्टी का गठन क्रांति के जरिए भारत

को राष्ट्रीय आजादी दिलाना था।

मिरजकर को 10 वर्षों की सजा दी

गई लेकिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय

दबाव से मेरठ कैदियों को 1933 मंे

रिहा कर देना पड़ा।

पार्टी का पुनर्गठन, 1930 के

दशक का दौर

एस.एस. मिरजकर अपने इंटरव्यू

में बताते हैं कि जब वे सभी मेरठ जेल

में बंद थे तो बाहर संगठन की हालत

खराब हो गई थी। पार्टी बिखरी स्थिति

में आ गई और संकीर्णतावाद हावी हो

गया। कांग्रेस के प्रति नकारात्मक रूख

अपनाया गया हालांकि कांग्रेस के

दक्षिणपंथी तत्वों ने भी प्रतिक्रियावादी

रूख अपनाया था।

बाहर रणदिवे और एस.वी. देशपांडे

थे। उन्होंने दुस्साहसिक गतिविधियां कीं।

वे पार्टी संगठन पर हावी हो गए थे। वे

दोनों ही अच्छे पढ़े-लिखे साथी थे लेकिन

राजनीति और संगठन में उनके रूख

के कारण पार्टी को भारी नुक्सान उठाना

पड़ा। देशपांडे ने उसी दौरान अपनी

अलग पार्टी, ‘बोल्शेविक पार्टी’ बना ली।

मिरजकर के अनुसार, 1929 में

रणदिवे ने अचानक ही मजदूर हड़ताल

का अनावश्यक आवाहन किया। इससे

मालिकों को ही फायदा हुआ और

मजदूर संगठन टुकड़ों में बिखर गया।

पार्टी के पुनर्गठन के दौरान पहले

डॉ. अधिकारी फिर मिरजकर और फिर

सोमनाथ लाहिरी महासचिव बनाए गए

लेकिन वे सभी थोड़ी देर के लिए रहे।

फिर पी.सी. जोशी महासचिव बनाए गए।

इस बीच मिरजकर फिर गिरफ्तार कर

लिए गए और यरवदा जेल में रखे

गए। पार्टी ने कांग्रेस तथा अन्य संगठनों

के साथ राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की लाईन

अपनाई। इसमें मिरजकर की सक्रिय

भूमिका रही। 1934 में ‘यंग वर्कर्स

लीग’ के लिए मिरजकर तथा अन्य

साथियों ने एक ऑफिस का इंतजाम

किया। उसी वर्ष मिरजकर ने मजदूर

हड़ताल का नेतृत्व किया और उन्हें

तीन वर्षों के लिए जेल में बंद कर

दिया गया।

मिरजकर ने अन्य साथियों के साथ

मिलकर कांग्रेस के साथ संयुक्त मोर्चा

बनाने के तरीकों की खोज आरंभ की।

विश्वयु़( के संदर्भ में मिलजुल कर

लड़ने और प्रशिक्षण देने की बात की

गई।

संयुक्त मोर्चे में मिलकर काम करने

के सिलसिले में मिरजकर जयप्रकाश

नारायण, मीनू भसानी, अशोक मेहता

और युसुफ मेहरअली से भी मिले।

देवली कैम्प में

1940 में एस.एस. मिरजकर फिर

गिरफ्तार हो गए और इस बार उन्हें

देवली कैम्प भेज दिया गया। यह कैम्प

अजमेर-मरवारा ;आजकल राजस्थानद्ध

में ठीक रेगिस्तान के बीच स्थित था।

वहां मिरजकर को कैम्प नं. 2 में रखा

गया था। वहां लगभग 200 कैदी थे

जिनमें करीब 160 कम्युनिस्ट थे।

करीब 30 सोशलिस्ट भी थे।

देवली में मिरजकर के अलावा एस.

ए. डांगे, बी.टी. रणदिवे, सोली

बाटलीवाला, पाटकर, बी.पी.एल. बेदी,

रजनी पटेल तथा अन्य कई साथी थे।

वहां से फिर कुछ को दूसरे कैम्प में

ट्रांसफर कर दिया गया। इस पर बी.

टी. आर. ने फिर दुस्साहसवादी सुझाव

दिया। मिरजकर के अनुसार रणदिवे ने

पत्थर फेंकने, पिटाई करने, प्रदर्शन

करने वगैरह का सुझाव दिया। यदि

फायरिंग हो जाए और कुछ लोग मारे

जाएं तो कोई बात नहीं! अगले दिन से

प्रतिरोध’ आरंभ किया जाए।

इस पर मिरजकर ने कहा कि इस

सुझाव पर वोट लिया जाए। वोट में

रणदिवे प्रस्ताव खारिज कर दिया गयाः

कमिटि में उसे केवल दो मत मिले

और कैदियों में मुश्किल से 15-20

समर्थन में थे। यह सारा काम मिरजकर

ने ही संगठित किया।

मिरजकर बताते हैं कि 1942

की लाईन मूलतः देवली कैम्प के कुछ

साथियों की पहल पर आई थी। इसे

फिर पार्टी ने स्वीकार कर लिया। लेकिन

मिरजकर के अनुसार, यह लाइन

त्रुटिपूर्ण थी।

टी.यू. और पार्टी संघर्ष में

मिरजकर ने एटक को व्यापक

जनरूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा

की। उन्होंने बम्बई के म्युनिसिपल

मजदूरों को संगठित किया। आर.एस.

निम्बकर म्युनिसिपल वर्कर्स यूनियन

के महासचिव हुआ करते थे। 1928

में डांगे, मिरजकर, घाटे इ. ने बंबई के

कपड़ा मिल मजदूरों की हड़ताल

संगठित करने का निर्णय लिया। इसी

बीच कांग्रेस के अंदर का सोशलिस्ट

ग्रुप मजदूर किसान पार्टी में रूपांतरित

हो गया।

उस वक्त ‘‘गिरणी कामगार

महामंडल’’ नामक मजदूर संस्था थी।

इसी में मिरजकर तथा अन्य ने काम

करना आरंभ किया। पहले दादर के

कस्तूरचंद मिल मजदूरों ने हड़ताल

कर दी। दस दिनों के अंदर यह आम

हड़ताल में बदल गई। संयुक्त हड़ताल

में एन.एम. जोशी भी शामिल हो गए।

जोशी ने काफी हद तक पैसों का

इंतजाम कर दिया।

1927 में बंबई में पहली बार

‘लेनिन दिवस’ मनाया गया और चौपाटी

में आम सभा आयोजित की गई। इसी

वर्ष दो अमरीकी मजदूर नेताओं-

साक्को और वान्जेटी पर झूठे आरोप

लगाकर फांसी दिए जाने के विरोध में

बंबई में अभियान चला जिसमें

मिरजकर सक्रिय रहे। उन्होंने अन्य के

साथ मिलकर एक पुस्तिका प्रकाशित

और वितरित की।

भारत में पहली बार 1927 में

मजदूर-किसान पार्टी ने व्यापक पैमाने

पर मई दिवस मनाया। विभिन्न सड़कों

से होते हुए मजदूरों का एक बड़ा जुलूस

लाल झंडों के साथ निकाला गया। उसी

समय मिलों के मजदूर काम से बाहर

निकल रहे थे। इसलिए जुलूस में

हजारों लोग शामिल हो गए। ‘क्रांति’

साप्ताहिक का विशेषांक निकाला गया

जिसे मिरजकर, फिलिप स्प्रैट तथा अन्य

साथियों ने सड़कों पर बेचा। एन.एम.

जोशी भी शामिल हुए। विशाल आम

सभा को मिरजकर तथा अन्य साथियों

ने संबोधित किया।

1928 के बंबई मिल मजदूर

हड़ताल ने भारत में वर्ग-संघर्ष को

व्यापक पैमाने पर प्रेरित किया।

मजदूर-किसान पार्टी द्वारा 1927

में साइमन कमिशन के बायकाट संबंधी

आंदोलन के नेताओं में थे।

साइमन कमिशन के खिलाफ

कम्युनिस्ट पार्टी, मजदूर-किसान पार्टी

तथा युवा सम्मेलन ने 50 हजार से

भी अधिक का जुलूस निकाला। उसमें

कमिशन के सात सदस्यों ;‘साइमन

सेवन’द्ध के सात पुतले जलाए गए।

मिरजकर इसमें बड़े ही सक्रिय रहे।

साइमन कमिशन का इतना व्यापक

बायकाट कर दिया गया कि कमिशन

बंबई में प्रवेश भी नहीं कर पाया और

सीधे पूना चला गया। इसके दौरान

विद्यार्थी आंदोलन बड़े पैमाने पर

उभरकर आया।

1946 में बंबई में भारतीय

नौसैनिकों का सुप्रसि( विद्रोह हुआ।

इसके समर्थन में बंबई के मजदूरों ने

व्यापक आंदोलन छेड़ दिया जिसमें

मिरजकर की सक्रिय भूमिका रही।

मिरजकर ने भा.क.पा. की दूसरी

कांग्रेस ;1948द्ध में भाग लिया। इसमें

वे कंट्रोल कमिशन में चुने गए।

मदुरै ;1953-54द्ध में वे केंद्रीय

समिति में चुने गए।

1950 के दशक में वे एटक के

अध्यक्ष चुने गए। साठ के दशक के

मध्य में संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन छिड़

गया। बंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन में

वामपंथ के बहुमत मिला। 3 अप्रैल

1958 को एस.एस. मिरजकर बंबई

के मेयर चुने गए। वे उस वक्त एटक के

अध्यक्ष थे। उन्हें मेयर के रूप में काफी

कठिन समस्याओं का सामना करना

पड़ा जब सोशलिस्टों ने 5/रू. डी.ए.

बढ़ाने के प्रश्न पर मजदूरों को भड़काने

की कोशिश की वामपंथी समिति की

कारपोरेशन में लगातार मजदूरों के वेतन

बढ़ाए। लेकिन सरकार से उसे कोई

मदद नहीं मिली। अगला डी.ए. पूरी

तरह बढ़ाना कठिन हो गया। सोशलिस्टों

ने हड़ताल करवा दी जो खिंचती चली

गई। एस.ए. डांगे और एस.एम. जोशी

ने हस्तक्षेप किया। मिरजकर के साथ

मिलकर समस्या सुलझाई गई।

मिरजकर ने अपने कार्यकाल में जनता

के पक्ष में कई कदम उठाए।

उनकी मृत्यु 15 फरवरी 1980

को हो गई। उनकी मृत्यु का शोक व्यापक

तौर पर मनाया गया जिसमें लगभग

सभी टेªड यूनियनें और पार्टियां शामिल

हुई। वे अत्यंत ही सम्मानित कम्युनिस्ट

एवं मजदूर नेता थे।

अनिल राजिमवाले

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