हमने अभी दो चुनाव नतीजे देखें हैं। एक अमेरिका में निरंकुश जन विरोधी, कारपोरेट समर्थक, नस्लवादी दक्षिणपंथी तानाशाह डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डमोक्रेट जो बाइडेन के हाथों मात। इसे उन सभी दक्षिणपंथी पार्टियों और उनके नेताओं को संदेश देना चाहिए, जो सत्ता हासिल करने के क्रम में लोगों को नस्ल, धर्म, समुदाय और रंग के आधार पर बांटने का प्रयास करते हैं। ट्रंप पर अमेरिकी लोकतंत्र के तीन स्तंभों आजादी, काननू का राज और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों को बर्बाद करने का आरोप है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी राजा नेकहा कि दूसरा चुनाव भारतीय राज्य बिहार में हुआ, जहां धर्मनिरपेक्ष, जनवादी ताकतों के एक गठजोड ने सांप्रदायिक विद्वेष, आरएसएस-भाजपा की हिंदुत्व मशीनरी के गठजोड और उनके सहयोगी जदयू को लगभग मात दे दी थी। हालांकि, एनडीए ने नीतीश कुमार, जिन्होने 2020 के विधानसभा को अपने बूट टांगने की घोषणा की थी, को मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपने नियंत्रण वाले सभी संसाधनों का इस्तेमाल करके सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की।
दोनों चुनावों ने कईं सबक सिखायें हैं और पूरी दुनिया में खासतौर पर भारत में वाम, जनवादी और धर्मनिरपेक्ष ताकतों के लिए अवसरों और चुनौतियों के नये द्वार खोले हैं। इन दो घटनाओं ने उन कईं विद्वानों के मत को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया जिन्होंने विचारधारा और विचारधारा आधारित राजनीति के खत्म होने की घोषणा की थी।
अमेरिकी चुनावों के बारे में उल्लेखनीय तथ्य वाम झुकाव वाले राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रहे बर्नी सैंडर्स द्वारा चलाए गए अभियान द्वारा वाम-प्रगतिशील मतदाताओं की लामबंदी था जिसने मिशिगन और जाॅर्जिया जैसे प्रमुख राज्यों में जीत दर्ज कराने के साथ जो बाइडन को राष्ट्रपति पद पर कब्जा करने में मदद की। भारत में, वामपंथियों ने बिहार में महागठबंधन को आवंटित 29 सीटों में से 16 पर जीत हासिल करके अपनी सार्थकता साबित की, हालांकि कई पर्यवेक्षकों ने बताया कि वामपंथियों की सीट का हिस्सा जमीन पर उनकी ताकत और जनसंपर्क से बहुत कम था। यह परिणामों से स्पष्ट हो गया है। फिर भी, वाम दलों, भाकपा, भाकपा ;एमद्ध और भाकपा ;एमएलद्ध ने आरएसएस-भाजपा के सत्ता में आने के गंभीर खतरे के कारण महागठबंधन के साथ गठजोड किया। वामपंथी, धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक ताकतों के साथ दृढता से खड़े रहे।
डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिका में उनके बडे पद ने अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर काफी संकट खडा किया और अमेरिका को नस्लीय और वर्गीय आधार पर बांटा। जो बाइडेन की जीत और उनके कार्यक्रम पर डेमोक्रेटस के वामपथियों यथा बर्नी सैंडर्स और अलेक्सेड्रिया ओकासियो काॅर्टेज ने करीबी निगाह रखी। वे बाइडेन प्रशासन पर भी करीबी निगाह रखेंगे। दुनिया आशा करती है कि वे सभी राष्ट्रों की बेहतरी के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय स्थिर व्यवस्था की तरफ जाने के लिए काम करेंगे, जो शान्ति और विकास को सुनिश्चित करेगा।
भारत में वामपंथ का कार्यक्रम देश में बेआवाजों, हाशिये पर पडे, दबे कुचलों और मेहनकशों की आवाज बनना है। यह निश्चितता के साथ दावा किया जा सकता है कि जब से आरएसएस-भाजपा गठबंधन ने भारत में सत्ता पर कब्जा किया है, वह वामपंथी ही रहे हैं जिन्होंने उनकी सभी विभाजनकारी, जनविरोधी नीतियों और चालों का विरोध किया और वे लोकप्रिय आंदोलनों का नेतृत्व करते रहे हैं। देश के दलितों और महिलाओं के साथ भेदभाव है, एक समुदाय को राष्ट्र विरोधी की तरह पेश करना अथवा सरकार की किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ वामपंथ ने देश में दक्षिणपंथी सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ आंदोलनों का नेतृत्व किया है और बिहार में वामपंथ का शानदार प्रदर्शन उसी का नतीजा है।
इन जीतों ने जनता में वामपंथ से आशाओं में बढोतरी की है। उभरते हुए हालात ने भारत में वामपंथ के सामने कईं चुनौतियां रख दी हैं। जो बाइडेन की जीत और बिहार में महागठबंधन के प्रभावी प्रदर्शन ने दिखा दिया है कि 2008 की वित्तीय मंदी के बाद से उभरे दक्षिणपंथी ताकतों के उभार को रोका जा सकता है यदि प्रगतिशील और जनवादी ताकतें जनता के अधिकारों और लोकतंत्र के सवाल पर एक साथ आयें। यद्यपि, ट्रंप ने बाइडेन को कडी टक्कर दी और भाजपा बिहार में एक प्रमुख ताकत बनकर उभरी है, तो यह कहा जा सकता है कि जनता को सांपद्रायिक, जाति और नस्ल के आधार ध्रुवीकरण और विखंडन को खत्म करने के लिए प्रगतिशील ताकतों को अधिक काम करने की जरूरत है।
भारत में कारपोरेट समर्थक भाजपा अपने गठबंधन सहयोगी से अधिक सीटें पाकर और सभी सीटों और क्षेत्रों में अधिक उपस्थिति दर्ज कर अब अखिल भारतीय पार्टी होने का दाव करेगी। हालांकि, यह साफ है कि भाजपा का कार्यक्रम भारतीय गणराज्य को हिंदू राष्ट्र में बदलने का है। वह पहले ही देश में धर्म, क्षेत्र और जातियों और राज्यों के आधार पर विभाजन कर चुकी है।
वामपंथ को उत्तर भारत के एक प्रमुख राज्य बिहार में महत्वपूर्ण सीट और वोट में इजाफे के बाद धर्मनिरपेक्ष-जनवादी ताकतों की बडी और व्यापक एकता पर अधिक ध्यान देना चाहिए। ना केवल बिहार में बल्कि पूरे देश में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के धर्मनिरपेक्ष-जनवादी दलों को उनकी विचारधारा और राजनीतिक अवस्थिति का गंभीर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। वे दक्षिणपंथी अथवा दक्षिणपंथी मध्यमार्ग की राह नही ले सकते हैं। यदि वे वाम मध्यमार्गी लाइन नहीं लेते हैं तो भी उन्हें कम से कम मध्यमार्गी स्थिति में ही बने रहना चाहिए। उन्हें उनकी नव उदारवादी आर्थिक नीतियों की अवस्थिति का आत्मावलोकन करना चाहिए जोकि देश को मौजूदा विनाशक स्थिति में ले गयी है और देश को एक मंदी की तरफ धकेल रही है।
वामपंथ को स्वतंत्र रूप से और अन्य धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताकतों के साथ भी विनाशकारी एजेंडे के खिलाफ उन लोगों द्वारा किए गए विनाश के खिलाफ संघर्ष को तेज करना चाहिए। वामपंथियों का कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि वे देश भर में भाजपा की जनविरोधी और ध्रुवीकरण की नीतियों के खिलाफ लोकप्रिय आंदोलनों को एक साथ लाएं और उन्हें मजबूत करें। वामपंथ को भारतीय राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और जन समर्थक ताकतों को बांधने वाला वह तत्व होना चाहिए जो वर्ग, जाति और लिंग आधारित भेदभाव के खिलाफ अधिक जज्बे और संवेदनशीलता के साथ बढ़ रहा है।
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