रविवार, 4 फ़रवरी 2024

कहीं महिला कुश्ती गिरोह की वेदना थी-संसद में कविता

राम मंदिर से जुड़ी एनसीपी सांसद अमोल कोल्हे की एक कविता जिसे उन्होंने बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव को लेकर चर्चा के दौरान यह कविता सुनाई. तो किसी ने कहा बिना कलश के प्राण प्रतिष्ठा कैसे होगी किसी ने कहा कि चुनाव ही प्राण हो तो सोचो कौन सी प्रतिष्ठा दांव पर लगी होगी तो किसी ने कहा बिना कलश के प्राण प्रतिष्ठा कैसे होगी लोग तो कुछ कहेंगे लोगो का काम है कहना आप जन की बात मत सुनना सिर्फ मन की बात करना फिर भी खुश थे हम 500 साल का सपना जो पूरा हो रहा था हमारे अंदर का हिंदू भी पूरी तरह जाग गया था तो चल पड़े अयोध्या की ओर राम लला के दर्शन की आस लगाए जो सामने नजारा देखा वो देखकर दंग रह गए वो तीन मंजिलें 400खम्भे 32सीढियां जय श्री राम का नारा लगाते हुए हम सीढियां चढ़ने लगे राम लला से क्या गुहार लगाएं यह सोचने लगे पहली सीढ़ी पर याद आई महंगाई दूसरी पर देश में बढ़ती बेरोजगारी तीसरी पर पत्रकारिता की चरण चुम्बकता चौथी पर सेंट्रल एजेंसीज की संदिग्ध भूमिका हर सीढ़ी पर कुछ न कुछ याद आ रहा था कहीं 15लाख का जुमला कहीं किसानों का आक्रोश कहीं महिला कुश्ती गिरोह की वेदना थी कहीं सालाना दो करोड़ रोजगारों का वादा था कहीं बढ़ती सांप्रदायिकता थी तो कहीं चुनिंदा पूंजीपतियों पर मेहरबान हमारी सरकार का चेहरा था होश तो तब संभाला जब राम लला के दर्शन हुए इस वास्तविकता ने झंझोरने के बाद भी हम अंध भक्तो की तरह चलते गए हमे नतमस्तक देख राम लला मुस्कराते हुए बोले मैं कल भी था आज भी हूं और कल भी रहूंगा जितना इस मन्दिर में हूं उतना तुम्हारे मन में भी रहूंगा लेकिन याद रखना हमेशा मैंने त्रेता युग में रामराज्य चलाया था तुम कलयुग में जीते हो जहां संविधान ने गणराज्य चलाया है धर्म समाज का किनारा जरूर है लेकिन देश एक बहती धारा है किनारे को धारा के बीच में लाया तो प्रवाह अड़ जाता है प्रगति के पथ से हट जाता है इसलिए धर्म के ठेकेदार नही पहरेदार बनना चाहिए तुम रहो न रहो वो रहे न रहे ये देश रहना चाहिए देश का संविधान रहना चाहिए ये देश देश रहना चाहिए देश का लोकतंत्र रहना चाहिए

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