शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

पीएम मोदी की सभी गारंटी अरबपतियों के लिए

4 पीएम मोदी की सभी गारंटी अरबपतियों के लिए लोकसमा आम चुनाव 2024 की पूर्व संध्या पर, इस सप्ताह हमारे पास दो महत्वपूर्ण समाचार है-पहला, भारतीय दुनिया के सबसे दुखी लोगों में से है. और दूसरी बात, बायवा किये गये अच्छे दिन केवल देश के शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के लिए आये जो 2022-23 में लगभग 3,758 रुपये प्रति विन की औसत आय के साथ राष्ट्रीय आय का 57.7 प्रतिशत कमाने में सक्षम थे, लेकिन निचले 50 प्रतिशत लीग, जो केवल । 5 प्रतिशत ही कमा पाये थे, उनकी औसत आय प्रतिदिन 198 रुपये से कम थी। वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स के अनुसार, भारत ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स में 143 देशों में से 126वें स्थान पर है. जबकि वल्र्ड इनक्वालिटी लैब की रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी शासन के तहत भारत में असमानता उच्चतम ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गयी है. हालांकि हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेव मोदी इसे उभरता और विकसित होता हुआ भारत बताते है, और 2047 तक विकसित भारत की गारंटी वे रहे है, जिनमें उनको भी काफी कुछ मिलेगा जिन्हें अब तक नहीं मिला है। वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब द्वारा प्रकाशित नितिन कुमार मारती लुकास चांसल, बॉगरापिकेटी और अनमोल सोमाची द्वारा लिखित 'भारत में आथ और धन असमानता, 1922-23 उपशीर्षक व राइज ऑफ द बिलियनेयर राज शीर्षक वाली रिपोर्ट में बताया गया है कि 2014-15 और 2022-23 के बीच, सीर्ष स्तर की अत्तमानता में वृद्धि विशेष रूप से धन संकेंद्रण के संदर्भ में स्पष्ट हुई है। रिपोर्ट में पाया गया कि 2022-23 में, मध्य 40 प्रतिशत लोगों की औसत आय केवल 165,273 रुपये प्रति वर्ष (27. उप्रतिशत) थी, जबकि शीर्ष ० प्रतिशत (57.7 प्रतिशत) के लिए यह 13,52,985 रुपये थी। शीर्ष 1 प्रतिशत के लिए 53.00.549 रुपये (22.6 प्रतिशत) थी। निचले 50 प्रतिशत की औसत संपत्ति 1.73.184 रुपये (6.4 प्रतिशत), मध्य 40 प्रतिशत 9,63,560 रुपये (28.6 प्रतिरुत), शीर्ष 10 प्रतिशत की औसत संपत्ति 87.70.132 रुपये (65 प्रतिशत) और शीर्ष। प्रतिशत की 5,41,41,525 रुपये (40.1 प्रतिशत) थी। ऐसी असमानता कैसे पैदा हुई? रिपोर्ट में इस बात के संकेत मिले है कि शुद्ध संपति के नजरिये से देखने पर भारतीय आयकर प्रणाली प्रतिगामी हो सकती है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि भारत में आर्थिक डेटा की गुणवत्ता काफी खराब है और हाल ही में इसमें गिरावट देखी गयी है। इसलिए यह संभावना है कि हमारे परिणाम वास्तविक असमानता स्तरों की निचली सीमा का प्रतिनिधित्व करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, हम असमानता के अध्ययन को बढ़ाने और साक्ष्य आधारित सार्वजनिक बहस को सक्षम करने के लिए आधिकारिक डेटा तक बेहतर पहुंच और अधिक पारदर्शिता का आह्वान करते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है, कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि अपने वो कार्यकालों के दौरान, इसने (गोदी शासन ने) निर्णय लेने की शक्ति के केंद्रीकरण के साथ-साथ बड़े व्यवसाय और सरकार के बीच बढ़ती सांठगांठ के साथ एक सत्तावादी सरकार का नेतृत्व किया है। यह एक गंभीर व्यापक आर्थिक तस्वीर मी पेश करता है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'आधिकारिक आंकड़े मोदी के शासनकाल के दौरान धीमी आर्थिक वृद्धि का सुझाव देते हैं-आय की वास्तविक वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर 2015 और 2016 में 6 प्रतिशत से गिरकर 2017 और 2018 में 47 प्रतिशत और 4.2 प्रतिशत हो गयी और फिर नाटकीय रूप से 2019 में 16 गिर गयी। यह सब कोविड-19 महामारी की चपेट में आने से पहले था और 2020 में आप में 9 प्रतिशत की गिरावट आयी थी। 2021 में आधार वर्ष प्रभाव था और 2022 में आय में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आधिकारिक आंकड़ों पर आधारित अनुमान बताते है कि बचत और निवेश दरें 2017-18 तक एक दशक से अधिक समय तक लगातार गिरती रहीं निर्यात 2014-15 में गिरना शुरू हुआ और सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण और उद्योग की हिस्सेदारी 2013 और 2018 के बीच स्थिर रही। 'बेरोजगारी वर, विशेष रूप से युवाओं (15-29 वर्ष) के बीच, 2011-12 और 2017-18 के बीच काफी बढ़ गयी। पिछले लगभग एक दशक से विभिन्न क्षेत्रों में वास्तविक मजदूरी कमोबेश स्थिर रही है। आर्थिक मंदी में घौगचान देने वाला एक अन्य संभावित कारक नवंबर 2016 में अर्थव्यवस्था को दिया गया कठोर नोटबंदी झटका था, जब प्रचलन में लगभग 86 प्रतिशत मुद्रा राती रात वैध मुद्रा नहीं रह गयी थी। हालाँकि इस कदम का उद्देश्य मुढ़ा नोटों के रूप में संग्रहीत काले धन (बेहिसाब आय) से लड़‌ना था, लेकिन माना जाता है कि इससे अनौपचारिक क्षेत्र, छोटे-मध्यम व्यवसायों और गरीबों को काफी नुकसान हुआ है. अनुमानी के एक रोट से पता चलता है कि अल्पावधि जीडीपी में 2 प्रतिशत अंक की गिरावट आयी। मोदी सरकार ने निश्चित रूप से आवास, शौचालय, बिजली और बैंकिंग जैसे विभिन्न बुनियादी ढांचे के लाभों के कवरेज का विस्तार करने में निवेश किया है, जिसे कुछ लोगों ने भारत के दक्षिणपंथ का नया कल्याणबाव कहा है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इन निवेशी से बाजार में क्रय शक्ति में सुधार हुआ है या नहीं। इसके अलावा, हाल के वर्षों में किसी भी एनएसएसओ उपभोग सर्वेक्षण के अभाव में, यह स्पष्ट नहीं है कि भारत ने अत्यधिक गरीबी को कम करने में कितनी प्रगति की है। असमानता की गतिशीलता के संदर्भ में, 2014-2023 के मोवी वर्षों को 3 चरणों में विभाजित किया जा सकता है। 2014-2017. 2018-2020, और 2021 से आगे। पहले चरण में, अर्थव्यवस्था मामूली तेजी से बढ़ रही थी और आय और धन असमानता दोनों में वृद्धि जारी रही। दूसरे चरण में, 2017-18 से 2020 तक, विकास काफी धीमा हो गया और फिर 2020 में गिर गया। इस दूसरे चरण में, हम शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों की आय और संपत्ति में 1-2 प्रतिशत अंक की गिरावट आयी। इसकी सबसे अधिक संभावित व्याख्या ग्वालियर, 6 अप्रैल 20241 आज इंडियन एसोसिएशन ऑफ लॉयर्स द्वारा बाल भवन ग्वालियर में आयोजित तीन नए विधि कानून पर सेमिनार आयोजित किया गया जिसमें मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री प्रशांत भूषण, वरिष्ठ विक्ता श्री अरविंद श्रीवास्तव जबलपुर हाई कोर्ट, पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम, उच्च न्यायालय अभिभाषक संघ ग्वालियर के अध्यक्ष श्री पवन पाठक, वरिष्ठ एडवोकेट वेवेंद्र सिंह चौहान, इंडियन एसोसिएशन ऑफ लॉयर्स के प्रांतीय संयोजक कौशल शर्मा एडवोकेट, संगठन के वरिष्ठ अधिवक्ता गुरुवत्त शर्मा एडवोकेट के संचालन में संपन्न हुआ। इंडियन एसेसिएशन ऑफ लॉयर्स के मध्य प्रदेश राज्य संयोजक मंडल सदस्य एडवोकेट कौशल शर्मा ने विज्ञाप्ति जारी कर बताया कि मुख्य अतिथि प्रशांत भूषण एवं वरिष्ठ विक्ता अरविंद श्रीवास्तव जबलपुर ने तीन नये कानूनों भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, असमान रूप से लाग होता है और मंत्री के दौरान उन्हें असमान रूप से नुकसान होता है। यह सबसे संभावित स्पष्टीकरण प्रतीत होता है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि हम इस चरण के दौरान आय और धन बोनी के लिए समान रुझान मिलते हैं। इसके अलावा, राष्ट्रीय आय के हिस्से के रूप में सबसे अमीर भारतीयों की संपत्ति में भी 2018 और 2020 के बीच गिरावट आयी है। ऐसे अन्य कारकों के बारे में सोचना मुश्किल है जो आय और धन बोनों के लिए इन रुझानों की व्याख्या करते हैं। अंततः अंतिम चरण में, लॉकडाउन हटाये जाने और कीविड-19 के आर्थिक प्रभाव समाप्त होने के बाव, हम पाते हैं कि शीर्ष लोगों की आय और सम्पत्ति 2021 और 2022 में अपने ऊंचे स्तर की और लौट आये है. जबकि निवले लोगों की हिस्सेदारी 2014 के स्तर पर वापस आ गयी है। 2014-2022 के बीच आय और धन के विकास घटना वक्र की जांच करने पर, हम पाते हैं कि हाल के वर्षों में वास्तविक लाभार्थी सुपर-रिच, शीर्ष। प्रतिशत प्रतीत होते हैं। यह विशेष रूप से शीर्ष पर धन संकेंद्रण के लिए सच है। यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था के आकलन को कुछ समर्थन देता है जिसने हाल के वर्षों में भारत में अर्थिक प्रणाली को गुटीय पूंजीवाद और कॉन्क्लेव अर्थव्यवस्था असमानता की प्रत्ति-चक्रीय प्रकृति है, के रूप में चित्रित किया है। 2022-23 तक, शीर्ष लोगों की आय और धन हिस्सेवारी क्रमशः 22.6 प्रतिशत और 40.1 प्रतिशत पर अपने उच्चतम ऐतिहासिक स्तर पर थी जो दुनिया में सबसे अधिक है. यहां तक कि वक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका से भी अधिक। रिपोर्ट में इस बात के अस्थायी सुबूत भी मिले हैं कि हाल के वर्षों में धन-से-आय अनुपात, धन वितरण के निचले सिरे पर 30 प्रतिशत 40 प्रतिशत तक कम हो सकता है, जबकि वितरण के शीर्ष पर 4600 प्रतिशत से अधिक हो सकता है। रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, 'हमारे यानी अमीरी को तेजी की अवधि से बैंचमार्क अनुमानों के अनुसार, भारत के आधुनिक पूंजीपति वर्ग के नेतृत्व वाला अरबपति राज अब उपनिवेशवादी ताकतों के नेतृत्व वाले ब्रिटिश राज की तुलना में अधिक असमान है। असमानता के इतने उच्च स्तर से चिंतित होने का एक कारण यह है कि आय और धन की अत्यधिक संकेंद्रण से समाज और सरकार पर असंगत प्रभाव पड़ने की संभावना है। कमजोर लोकतांत्रिक संस्थानों के संदर्भ में तो यह और भी अधिक है। इस संबंध में उत्तर-औपनिवेशिक देशों के बीच एक रोल मॉडल होने के बाव, हाल के वर्षों में भारत में विभिन्न प्रमुख संस्थानों की अखंडता से समझौता किया गया प्रतीत होता है। इससे भारत के चनतंत्र की और खिसकने की संभावना और भी अधिक वास्तविक हो जाती है।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

भाजापा शासित मोदी राज पूँजीवादी व्यवस्था बेहद मजबूत है। इसमे कोई शक नही है। आम जनमानस गरीबी तंगहाली बदहाली का जीवन जीने को मजबूर है।

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