शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
संघियो पढ लो - संविधान सभा मे विश्म्भरदयाल त्रिपाठी ने समाजवाद शब्द जोडने लिए बहस की थी
संघियो पढ लो - संविधान सभा मे विश्म्भरदयाल त्रिपाठी ने समाजवाद शब्द जोडने लिए बहस की थी
आज उन्नाव के सपूत का उनका जन्मदिन है। प्रखर समाजवादी स्वतंत्रता संग्राम सैनिक लोकसभा के सदस्य रहे और संविधान सभा के बहुत महत्वपूर्ण सदस्य विशंभर दयाल त्रिपाठी ने समाजवाद के पक्ष में सबसे मजबूत जिरह की थी संविधान सभा में ।आज हमें इतिहास के सपूत को याद करने का दिन है। जो कहा उन्होंने उसका छोटा हिस्सा नीचे आप पढ़ सकते हैं।
21 जनवरी 1947 को समाजवाद के पक्ष में संविधान सभा में जिन इने गिने सदस्यों ने आग्रहपूर्ण जिरह की, उनमें एक अल्पज्ञात विश्म्भरदयाल त्रिपाठी का नाम बहुत महत्वपूर्ण है। त्रिपाठी ने नेहरू के लक्ष्य सम्बन्धी प्रस्ताव पर लगभग आक्रमण की मुद्रा में ही कहा जो शासक विधान हम बनायेंगे और उसके अनुसार जिस तरीके की सरकार बनेगी वह समाजवादी आधार पर होगी। वह निश्चय ही पूंजीवाद के आधार पर नहीं होगी। यह हमें स्पष्ट कर देना चाहिए। इसलिए मैंने सुझाव रखा था कि भारतवर्ष के पहले समाजवादी (सोशलिस्ट) शब्द जोड़ दिया जाय। जवाहरलाल नेहरू ने स्पष्ट सहमति दी थी कि आगे चलकर समाजवादी आधार पर ही शासन-विधान बनाना चाहते हैं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इस वक्त हम यह नहीं चाहते कि इस पर किसी तरीके का मतभेद पैदा हो। मैं अदब के साथ कहूंगा कि इसमें मतभेद का सवाल नहीं है। यह तो एक उसूल का सवाल है। अगर हम वास्तव में देश की गरीब जनता को लाभ पहुंचाना चाहते हैं। अगर हम चाहते हैं सिर्फ यही नहीं कि अंगरेज़ी हुकूमत यहां पर खत्म हो, बल्कि साथ ही साथ हमारा सामाजिक और आर्थिक ढांचा ऐसा बने जिसमें गरीब लोगों को पूरे तौर से आगे बढ़ने का मौका मिले, तो यह जरूरी है कि हम जो शासन विधान तैयार करें वह समाजवाद के आधार पर हो। हमारे बीच में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो समाजवाद के उसूलों को नहीं मानते हैं। जहां तक कांग्रेस का सम्बन्ध है वह समाजवाद के उसूलों को पहले ही मान चुकी है। उसने अपने चुनाव के घोषणापत्र में बहुत स्पष्ट कहा है कि हम सामन्तशाही के तरीके को खत्म करना चाहते हैं। यह भी घोषित किया है कि बड़े बड़े उद्योगों (इंडस्ट्रीज़) का भी राष्ट्रीयकरण करना चाहते हैं। कांग्रेस ने समाजवाद के प्रारम्भिक नियमों को पहले ही स्वीकार कर लिया है। हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम जो शासन विधान यहां बैठकर बनाएं वह उसी आधार पर हो।
त्रिपाठी ने 30 अगस्त 1947 को समाजवाद को लेकर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त कर दी थी। उन्होंने अपनी चिरपरिचित अपनी प्रतिबद्धता के साथ कहा थाः हमारा जो शासन विधान तैयार होगा और उस पर अमल होगा। उसमें यह नहीं होगा कि थोड़े से पूंजीपतियों और कुछ थोड़े से लोगों का साम्राज्य और शासन हो और गरीब आदमी और साधारण जनसमूह उनकी दया पर आश्रित रहे। मैं पंडित जवाहरलाल नेहरू के उन विचारों से सहमत हूं जो उन्होंने फंडामेंटल राइट्स पर बोलते हुए कहा था कि एक समय आयेगा कि जब देश और संसार में समाजवाद का बोलबाला होगा। एक तो अगर आप चाहें तो यह कर दें कि हमारा शासन विधान हमारे शासन का निर्माण और हमारी समाज रचना भविष्य में समाजवाद के आधार पर होगी लेकिन अगर आप समाजवाद शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं। तो आप यह कह सकते हैं कि उसमें हम किसी तरह का पूंजीवाद रखने के लिए तैयार नहीं हैं। साथ ही साथ जब तक हम पूंजीवाद को रखने के लिये मजबूर हैं, तब तक हम यह कर दें कि किसी भी बड़े सरकारी ओहदे पर वह शख्स नहीं हो सकता जो लाभ उठाने के कार्य में लगा हुआ हो।-कनक तिवारी
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