सोमवार, 25 नवंबर 2024
समय है अब भी सुधार कर लो हमारे कम्युनिस्ट नेताओं
समय है अब भी सुधार कर लो
हमारे कम्युनिस्ट नेताओं
इतिहास के सबक
उत्कर्ष और पराभव
महान इतिहासकार प्रोफेसर रामशरण शर्मा हमारे आग्रह पर आए थे। वे ठेठ बेगूसराई लोकभाषा में बता रहे थे, आज हम मर्सिया गा रहे हैं ,सोवियत संघ न रहा और पूरी दुनिया के कम्युनिस्ट आंदोलन में गिरावट आ गई।
कैसे सोवियत संघ बना और दुनिया के अधिकांश देशों में कम्युनिस्ट पार्टी कैसे बनी थी ,इस पर कोई सोचता ही नहीं है। इसी में जबाब है।
क्यों हुआ पतन और सभी जगहों में गिरावट क्यों आ गई , पूछा जाय तो सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगते हैं।
अरे ,एक समय था , लाल झंडे की पार्टी में विचारधारा की अटूट एकता थी , कम्युनिस्टों के नेतृत्व में अन्याय के मुकाबले लड़ने -मरने को तैयार गरीब जनता थी और नेताओं , कार्यकर्ताओं का एक दूसरे पर अपूर्व विश्वास था। इसके अनुरूप उनका जीवन था। सिद्धांत कितने लोग समझते थे ,नेता और कार्यकर्ताओं को पढते थे।
तर्क और बहस से फैसले लिए जाते थे।
आज हालत उल्टी है। नेता अफसर बन गए ,हुक्म देते हैं । संगठन तंत्र भ्रष्टाचार मुक्त न रहा । जहां शासन बना ,निरंकुशता और भ्रष्टाचार का संबंध गाढा बन गया । आदर्श छाती चीर भाषणों का लुभाऊ हिस्सा बन गया। सुविधाभोगियों में इनकी गिनती होने लगी ।
सोवियत संघ में हुकूमत सैन्यशक्ति पर टिक गई।
तर्क और बहस की पद्धति मर गई या कमजोर हो गई।
प्रस्तावों पर बहस खत्म , हाथ उठा समर्थन देना पद पर बने रहने केलिए जरूरी हो गया। झूठे आंकड़े का बोलवाला ,चापलूसी का प्रचलन ,अनैतिक आचरण में वृद्धि और गुट -गिरोहों का बोलवाला हो गया।
विचारों की एकता मुहावरे बन गए ,अनुशासन के डंडे का इस्तेमाल सच और तर्क को मारने केलिए हुआ ।
प्रत्येक नेता अपनी -अपनी निजी सेना उजड्ड ,चापलूस और मक्कार किस्म के लोगों को लेकर बना लिए।
विश्वासी बनो या बाहर जाओ। तर्क और बहस फालतू हो गए । सेकेंड में प्रस्तावों को पास किया जाने लगा।
मानो तो रहोगे ,नहीं तो निकाल बाहर ।
उत्कर्ष कैसे हुआ , इतिहास है , इतिहास से जो सबक नहीं लेता है ,इतिहास के कूड़ेदान का हिस्सा बन जाता है।
-राजेन्द्र राजन
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1 टिप्पणी:
दिलके बहलाने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है। समझने-समझने का सिलसिला जारी रहे
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