बुधवार, 20 नवंबर 2024

अंग्रेजों के मुखबिरों साथी सुनील मुखर्जी से सबक लो

कॉमरेड सुनील मुखर्जी जन्म 16 नवंबर 1914 - मृत्यु 30 मार्च 1993 सुनील दा , आपको कम्युनिस्ट ही नहीं ,सभी राजनीतिक दलों के नेता भी सुनील दा ही कहते थे। कोई मुख्यमंत्री हों ,सुनील दा से ही सबोधित करते थे। गौरव है कि आपके नेतृत्व में काम करने का महान अवसर पाया था। 30 मार्च,1993 को पटना के इन्दिरा गांधी ह्रदय संस्थान में जब आपने आखिरी सांस ली थी , मौजूद था। अस्पताल के पोर्टिको में शव के समक्ष खड़ा अश्रुपूरित नयनों से आपको निहारते हुए एक गौरवशाली इतिहास का स्मरण कर रहा था। आप तब भी अडिग रहे जब 1930 के दशक में कलकत्ता जेल की यातनाओं को झेल रहे थे,जहां बर्फ की सिल्लियों पर सुलाकर आपकी सभी उंगलियों में कीलें चुभाई गई थी। आपके 'युगांतर' नामक क्रांतिकारी संगठन के एक साथी को फांसी दे दी गई थी लेकिन सबूत के अभाव में आपको छोड़ा गया। जेल में ही का. भूपेश गुप्ता के साथ चार साल तक आपने मार्क्सवाद की शिक्षा ली थी। बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिह आपके पिता निरापद मुखर्जी के दोस्त और उनके नेतृत्व की कांग्रेसी सरकार के संसदीय सचिव और मंत्री थे। उन्होंने जेल में आपसे मार्क्सवादी दर्शन और वर्गसंघर्ष के सिद्धांत पर बहसों के दौरान कहा था , दोस्त का बेटा मेरा शिक्षक बन गया है ,तुमसे मैंने मार्क्सवाद का ज्ञान हासिल किया । आपको का. पी .सी . जोशी ने बंबई बुलाया और तीन माह तक मार्क्सवाद के प्रशिक्षण शिविर में वहां रहकरआपने गहन अध्ययन किया। इसके बाद बिहार में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से अलग होकर कम्युनिस्ट पार्टी के गठन की जिम्मेदारी आपको सौपी गई। गया के किसान सम्मेलन से लौटकर आपने 20 अक्टूबर 1939 को मुंगेर के गंगा घाट पर अवस्थित अपनी बड़ी बहन के घर में दशहरा के दिन पुलिस से बचते हुए कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की थी और पांच सदस्यीय कमिटी के आप ही सचिव बने थे।. सुनील दा , आपने जयप्रकाश और लोहिया की पार्टी से संबंध विच्छेद इसलिए तो किया था कि वे सोवियत संघ और वर्गसंघर्ष के विरोधी थे। सुनील दा , याद है मुझे ,आप 1968 के पटना पार्टी कांग्रेस के अवसर पर भोजन विभाग के प्रभारी थे और मैं वोलेंटियर। अवकाश के समय में आप रोचक ढंग से हमसबों को प्रशिक्षित भी कर रहे थे। एक बार सोशलिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी के अन्तर को लेनिन के कथन को उद्धृत करते हुए आपने समझाया था , जो वर्ण (जाति ) और वर्ग के अंतर को नहीं समझेगा, कम्युनिस्ट नहीं हो सकता है। सोशलिस्ट वर्णवादी हैं ,वर्गसंघर्ष को नकार कर वे पूंजीवाद की सहायता करते हैं। आपने विस्तार से बताया था,अज्ञान और अंधकार में डूबा रहने वाला मार्क्स के सिद्धांत को समझ नहीं पाएगा। वैसे लोग अंधविश्वासों और धार्मिक भावनाओं में कैद रहेगें,गुट बनाने में माहिर होगें और संगठन को मूल उद्देश्यों से दूर कर देगें । जातिवादी सोच से बाहर आना उसके लिए मुश्किल है और वे वैज्ञानिक ढंग से वर्ग संघर्ष की शिक्षा ग्रहण करने से भागते रहेगें। सुनील दा , सोशलिस्ट पार्टी अब रही नहीं ,अनेक जातिवादी ,वंशवादी पार्टियों में वह परिवर्तित हो गया है, लेकिन उससे ज्यादा दुखद है ,महान अक्टूबर क्रांति का संदेश जातिवादी सोच को स्थापित करते हुए अभी हाल मेंआपके नेतृत्व में ही निर्मित जनशक्ति भवन के केदारदास की स्मृति में बने भवन के सभागार में एक कम्युनिस्ट नेता ने दिया है ।वह राज्य सचिव मंडल और राष्ट्रीय परिषद का सदस्य है ,आधिकारिक वक्तव्य दिया है , मार्क्सवाद का वर्गसंघर्ष भारत केलिए गलत है । उसका वीडियो सुन शर्म से सिर झुक गया है। आज आपकी तस्वीर पर क्या वे फुल चढाने के लायक हैं ? संपूर्ण बिहार आपकी कर्मभूमि थी ।आपने कम्युनिस्ट आंदोलन को बीज से बट वृक्ष बनाया । 1947 के आरंभ में ही दैनिक जनशक्ति का प्रकाशण करके कम्युनिस्ट विचारधारा को फैलाया । बिहार के क्षेत्रीय बोलचाल की भाषा में आपने जनसंवाद बनाया । जमशेदपुर ,डालमियानगर ,गिरिडीह और धनबाद में मजदूरों को संगठित करके वर्ग संघर्ष का इतिहास रच दिया । टाटा के खिलाफ ऐतिहासिक हड़ताल का नेतृत्व किया ।वहां से मजदूरों ने आपको बिहार विधानसभा में विधायक बनाकर भेजा । 1962 में 12 विधायक बिहार में चुने गए थे और आप उसके विधानसभा में नेता बने थे। 1962 -67 और 19 69 से 77 तक आप बिहार सीपीआई दल के नेता थे । 1973 से 77 के दौरान बिहार विधानसभा में आप विरोधी दल के नेता थे और 1978 के बाद लंबे दिनों तक सीपीआई बिहार के सचिव रहे। जन्मदिन के अवसर पर आपके प्रति अब शब्दांजलि ही अर्पित कर सकने में समर्थ हूँ। आपकी शिक्षा को याद रख मार्क्सवादी बने रहने का निश्चय करता हूँ। सादर नमन। -राजेन्द्र राजन

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