मंगलवार, 31 दिसंबर 2024
हिंदू राष्ट्र की बात करने पर रोक नहीं, पर संविधान इसकी इजाजत नहीं देता-जस्टिस लोकुर
हिंदू राष्ट्र की बात करने पर रोक नहीं, पर संविधान इसकी इजाजत नहीं देता-जस्टिस लोकुर
न्यायपालिका की आजादी आज भी खतरे
इन्होंने तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए थे। यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को ऑर्डर में नहीं लाया गया तो देश में लोकतंत्र नहीं बचेगा।
2018 में हमने तब के CJI को पत्र भी लिखा था। 7 साल बाद भी चुनौतियां वही हैं। आज भी न्यायपालिका की आजादी खतरे में है। मास्टर ऑफ रोस्टर का मुद्दा जस का तस है।
सेक्युलरिज्म संविधान का बुनियादी ढांचा है। यह नहीं बदला जा सकता। बाकी जिसको जो कहना है, वह कहने को आजाद है। कोई कह सकता है कि यह हिंदू राष्ट्र है, कोई कह सकता है कि प्रधानमंत्री वास्तव में प्रेसिडेंट है। कहने में क्या है…।
ये कहना है सुप्रीम काेर्ट के रिटायर्ड जस्टिस मदन भीमराव लोकुर का, जिन्हें हाल ही में UN इंटरनल जस्टिस काउंसिल का चेयरमैन चुना गया है। वे 2028 तक इस पद पर रहेंगे। लोकुर फिजी की सुप्रीम कोर्ट में पहले भारतीय जज भी रह चुके हैं। दैनिक भास्कर से खास बातचीत में उन्होंने भारत की मौजूदा न्यायपालिका और उससे जुड़े मुद्दों पर बात की। पढ़िए पूरा इंटरव्यू...
सवाल: आपने 2018 में, लोकतंत्र और न्यायिक स्वतंत्रता पर जो चिंता जताई थी, कुछ बदला क्या तब से? जवाब: कुछ खास नहीं बदला। हमने ‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’ का मुद्दा उठाया था। इसमें CJI के पास किसी भी जज को कोई केस सौंपने की शक्ति होती है। वह समस्या आज भी है। CJI कोई भी केस किसी भी जज को दे सकते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। अगर किसी बेंच के सामने केस आ भी जाए तो उसे बाद में किसी खास जज या बेंच को ट्रांसफर कर दिया जाता है।
इंडिपेंडेंस ऑफ ज्यूडीशियरी की चर्चा हो रही है, लेकिन उसे बहुत खतरा है। जो अपॉइंटमेंट हो रहे हैं या जो रोके गए हैं, उनमें प्रॉब्लम है। खासकर ज्यादातर जो रोके गए हैं, उनमें। भारत सरकार उन्हें अपॉइंट क्यों नहीं कर रही, उसकी वजह हमें पता नहीं है। फाइलें दफ्तरों में पड़ी हैं, किसी को नहीं पता, कब होंगी।
सवाल: ऐसा कोई उदाहरण... जवाब: सौरभ कृपाल का नाम सुना होगा। उनका केस पांच या छह साल से पेडिंग है। पता नहीं, उनको क्यों नहीं अपॉइंट किया। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट के चार या पांच जजेज के नाम गए थे। तीन-चार महीने हो गए, अपॉइंटमेंट नहीं किया। और जो सुप्रीम कोर्ट ने उसके बाद रिकमंड किया, वे पहले अपॉइंट हो गए। ऐसा क्यों हो रहा है?
- Dainik Bhaskar
सवाल: पूर्व CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने PM मोदी को गणपति पूजा पर अपने घर बुलाया था, क्या यह सही था? जवाब: देश के प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस का किसी ऑफिशियल फंक्शन में मिलना आम है। लोकपाल के चुनाव जैसे कई मौके आते हैं, जहां दोनों की मौजूदगी जरूरी है। बच्चों की शादी या घर में किसी के देहांत होने पर भी PM या जज किसी के घर जाते हैं। इसमें कोई दिक्कत नहीं है।
हालांकि, निजी फंक्शन में दोनों की मुलाकात ठीक नहीं है। हमारे देश में तो हर महीने कोई न कोई त्योहार आता है। ऐसे तो समस्या हो जाएगी। सभी जज पर्सनल फंक्शन में चीफ मिनिस्टर या गवर्नर को अपने घर बुलाने लगेंगे।
सवाल: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव ने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में कहा कि देश बहुमत के अनुसार चलेगा। क्या यह बयान CJI का PM से सार्वजनिक जुड़ाव से प्रेरित लगता है? जवाब: उन्हें गणपति पूजा से प्रेरणा मिली या नहीं, यह तो नहीं कह सकता, इतना जरूर पूछना चाहूंगा कि विश्व हिंदू परिषद का कार्यक्रम इलाहाबाद हाईकोर्ट के परिसर में क्यों हुआ? वहां पर कार्यक्रम नहीं होना चाहिए था। वह (जस्टिस शेखर यादव) जिस जगह बोल रहे थे, जिस कार्यक्रम में बोल रहे थे, उनके बयान का पूरा कॉन्टेक्स्ट देखेंगे, तो पता चलता है कि अच्छा मैसेज नहीं गया।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर आपत्ति जताई थी। जस्टिस शेखर यादव को बुलाया भी गया। बंद कमरे में क्या बातें हुईं, यह तो नहीं पता, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को सोचने की जरूरत है कि ये सब क्यों हो रहा है। जब कोई नेता ऐसा भाषण देता है, तो पार्टियां कहती हैं कि गलत तरीके से बयान पेश किया गया। हो सकता है कि इस मामले में भी ऐसा हुआ हो।
सवाल: पूर्व CJI ने न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हटवा दी। क्या यह निष्पक्षता और न्याय के आदर्शों में बदलाव का संदेश है? जवाब: डी वाई चंद्रचूड़ क्या संदेश देना चाहते थे, पता नहीं। न्याय की देवी की आंखों पर 150-200 सालों से पट्टी बंधी थी। इसके पीछे एक मैसेज था कि न्याय सभी के लिए बराबर है। फिर चाहे सामने कोई भी हो। हो सकता है कि पट्टी निकालने से आप देख पाएंगे कि कटघरे में बड़ा आदमी या पॉलिटिशियन है तो उसके फेवर में फैसला आने लगे।
सवाल: देश के 3 नए क्रिमिनल कानून और टेलिकम्यूनिकेशन कानूनों पर पुलिस की शक्तियों और सामूहिक निगरानी को लेकर चिंता जताई जा रही हैं। आपका कोई मत? जवाब: इससे आम जनता को संविधान से मिलने वाले फंडामेंटल राइट्स पर रोक लगेगी। जैसे सर्विलांस की बात हो रही है, पेगासस सॉफ्टवेयर कई लोगों के फोन में डाला गया था। अगर उस टाइप का सर्विलांस हुआ, तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। आप खुलकर लोगों से बात नहीं कर पाएंगे।
तीन नए क्रिमिनल कानूनों ने पुलिस को काफी शक्तियां दी हैं। इससे प्रॉब्लम हो सकती है। पुलिस वैसे भी कई मामलों में कानून को मिस इंटरप्रेट कर रही है या मिस यूज कर रही है। अगर उनको ये एडिशनल पावर मिल गई, तो यह मिस यूज और बढ़ेगा।
सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले हेट स्पीच पर राज्यों को तुरंत FIR का आदेश दिया था। फिर भी हेट स्पीच जारी है। अधिकांश आरोपी जमानत पर हैं। आदेश लागू क्यों नहीं हो पाता है? जवाब: इसमें दो चीजें हैं। पहली, सुप्रीम कोर्ट को ऐसे डायरेक्शन देने ही नहीं चाहिए, जिन्हें वह लागू नहीं करवा सकता। अगर सुप्रीम कोर्ट कहे कि देश में कोई हत्या नहीं करेगा, तो इसका पालन कैसे होगा। क्या राज्य सरकार या पुलिस करवा पाएगी। मेरे हिसाब से ऐसे आदेशों के कोई मायने ही नहीं हैं।
दूसरी बात यह है कि हेट स्पीच कहीं भी हो, वह गैर कानूनी ही है। पुलिस को FIR दर्ज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जरूरत होनी ही नहीं चाहिए। हां अगर पुलिस केस दर्ज न करे और मामला हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाए, तो इस पर फैसला होना चाहिए। यह सही है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हेट स्पीच जारी है।
सवाल: बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का आदेश तो देश भर में लागू हो गया। फिर हेट स्पीच पर ऑर्डर लागू क्यों नहीं हुआ? जवाब: हेट स्पीच किसी व्यक्ति, उसकी बातों से जुड़ा मामला है। बुलडोजर सरकार और प्रशासन से जुड़ा है। यह आदेश व्यक्ति के लिए नहीं है। सीधा, सरकार के लिए है। कोई सरकार सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने से मना नहीं कर सकती। सरकार पालन नहीं करेगी तो कोर्ट की अवमानना का मामला हो जाएगा, जो गैरकानूनी और गैर संवैधानिक है।
बुलडोजर जस्टिस के नाम पर कोई आकर कह देगा कि आपका घर सरकारी जमीन पर है। अब किसे पता कि है भी या नहीं। अगर आप कहेंगे कि यह नियमों के खिलाफ है, तो पूछा जाएगा कौन सा नियम, किसने बनाया, किसने फैसला दिया। ये तो गलत बात है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाकर ठीक किया।
सवाल: पुलिस वाले बदमाशों के हाथ-पैर बांधकर सड़कों पर घुमाते हैं, पिटाई करते हैं, यह कितना ठीक है? जवाब: यह जवाबदेही का मामला है। जवाबदेही तय नहीं है। कानून पुलिस को मंजूरी नहीं देता कि वह बदमाश को खंभे से बांधकर पीटे या सड़कों पर घुमाए। थाने में किसी की पिटाई कर दी, हाथ–पैर तोड़ दिए और मर गया तो एक जांच कमेटी लगा देंगे। उसके बाद कुछ नहीं होता। ज्यादा से ज्यादा ट्रांसफर और कुछ नहीं।
यही काम कोई आम आदमी करे तो उसके खिलाफ केस हो जाएगा, जेल भेज दिया जाएगा। पुलिस वाले जेल क्यों नहीं जाते। उनके खिलाफ केस क्यों नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट को कहना चाहिए कि आप अधिकारी हो या कोई और, हैं तो देश के नागरिक ही। आप पर भी कानून समान रूप से लागू होगा। जिस दिन पुलिस अफसरों की जवाबदेही तय हो गई, तो ऐसी घटनाएं रुक जाएंगी।
सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक घोषित की, फिर भी SIT से जांच कराने की याचिका खारिज कर दी, क्यों? जवाब: सुप्रीम कोर्ट को इस पर एक्शन लेना चाहिए था। कई शेल कंपनियों, घाटे में जा रही कंपनियों ने इलेक्टोरल बांड के जरिए राजनीति पार्टियों को चंदा दिया। कई कंपनियों ने 50 करोड़, 60 करोड़, 100 करोड़ के बॉन्ड खरीदे।
जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बांड असंवैधानिक हैं, तो उसे पूछना चाहिए था कि कंपनियों के पास इतने पैसे कहां से आए। कंपनियों ने राजनीतिक पार्टियों को पैसे क्यों दिए? क्या कंपनियों ने यह इनकम डिक्लेयर की थी? क्या आयकर विभाग ने जांच की थी या नहीं?
माना कि कई कंपनियों ने इसलिए चंदा दिया होगा, क्योंकि वो किसी खास राजनीतिक पार्टी की विचारधारा को मानते होंगे, लेकिन उनका क्या, जिन्हें चंदा देने के बाद फायदा हुआ, कॉन्ट्रैक्ट मिला। ऐसे मामलों की जांच होनी चाहिए थी।
सवाल: हिंदू राष्ट्र की मांग का संवैधानिक आधार क्या है, क्या यह संभव है? जवाब: हमारे संविधान में साफ लिखा है कि हमारा देश सेक्युलर है। अगर कोई कह रहा है कि भारत हिंदू राष्ट्र होना चाहिए, तो यह उसकी विचारधारा है। संविधान उसको सपोर्ट नहीं करता, लेकिन उसको जेल में भी नहीं डाल सकते।
लोग तो ये भी कहते हैं कि देश में प्रधानमंत्री का सिस्टम ठीक नहीं है। अमेरिका की तर्ज पर प्रेसिडेंशियल सिस्टम होना चाहिए, लेकिन हमारा कानून इसकी इजाजत नहीं देता। जो लोग हिंदू राष्ट्र की मांग पर बहस करना चाहते हैं, वो जरूर करें, लेकिन इसकी आड़ में लोगों को भड़काना गलत है।
सवाल: अब भी वही प्रश्न है, क्या संविधानिक बदलाव के बाद भारत हिंदू राष्ट्र घोषित हो सकता है? जवाब: संविधान इतनी आसानी से नहीं बदल सकता। मुमकिन ही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेक्युलरिज्म संविधान का बुनियादी ढांचा है। देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए संविधान बदलना होगा। मेरे हिसाब से यह नहीं हो सकता, क्योंकि बहुमत नहीं है।
बाकी जिसको जो कहना है, वह कहने के लिए आजाद है। कोई कह सकता है कि यह हिंदू राष्ट्र है, कोई कह सकता है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री वास्तव में प्रेसिडेंट है। कहने में क्या है, कोई भी कुछ कह सकता है।
सवाल: मस्जिदों, दरगाहों के सर्वे के लिए लगाई जा रही याचिकाओं के लिए किसे जिम्मेदार मानते हैं? जवाब: एक केस में CJI ने टिप्पणी कर दी और याचिका दायर होनी शुरू हो गई। अब किसको जिम्मेदार बताएंगे। सुप्रीम कोर्ट में वरशिप कानून काे चुनौती दी गई है। लोअर कोर्ट में बहुत से मामले चल रहे हैं। ऐसे में यह भी देखना चाहिए कि वे कोई आदेश जारी कर सकते हैं या नहीं।
सर्वे को गैरकानूनी बताते हुए भी सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर हुई हैं। इन याचिकाओं पर जल्द सुनवाई करनी चाहिए। अगले महीने में ही, या फरवरी तक फैसला आ जाना चाहिए। अगर इसमें देर हुई तो देश के सामाजिक सद्भाव पर असर पड़ेगा। माहौल बिल्कुल बिगड़ जाएगा। अखबारों में आया है, कि आने वाले समय में ऐसे 800 केस फाइल हो जाएंगे।
सवाल: कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठ रहे हैं। जजों की नियुक्ति में सुपरसीड के मामले सामने आ रहे हैं। इस पर क्या कहेंगे? जवाब: सुपरसीड के मामले बहुत कम हैं। हाईकोर्ट के जज सुप्रीम कोर्ट में आते हैं, तो ऐसा हो सकता है कि 5 नंबर का जज पहले आ जाए और पुराने जज छूट जाएं। हालांकि, ऐसा होने की वजह बतानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का फैसला गलत भी हो सकता है।
अगर सुप्रीम कोर्ट ने 20 नंबर के जज को लाने का फैसला किया तो क्यों, यह बताना चाहिए, क्योंकि इससे 19 जजों का आत्मविश्वास कम होता है। वो भी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस हैं। वो तो कहेंगे कि आप लोग हमें क्यों भूल गए।
सुपरसेशन होते हैं, इसमें कोई शक नहीं है। क्यों होते हैं, यह पता नहीं। कई सुपरसेशन तो कह सकते हैं कि ठीक है। साउथ का कोई नहीं है तो वहां के जज को बनाया या नॉर्थ ईस्ट का नहीं है तो वहां के जज को बना दिया।
सवाल: क्या इलेक्शन कमिश्नर सिलेक्ट करने वाली कमेटी से CJI को हटाना सही है? जवाब: यह बहस का मुद्दा है। CJI हर सिलेक्शन कमेटी में रहना चाहेंगे, तो यह कैसे पॉसिबल है। उन पर कोर्ट की भी जिम्मेदारियां होती हैं। लोकपाल, चुनाव आयुक्त, CBI चीफ, इन सबके सिलेक्शन में CJI को क्यों होना चाहिए। मुझे समझ नहीं आता। CJI तो उन अधिकारियों के नाम तक नहीं जानते होंगे, जिनको अध्यक्ष के तौर पर चुना जाता है।
लोग सोचते हैं कि CJI ने किसी को चुन लिया है, तो ठीक ही होगा। तो क्या कमेटी के अन्य सदस्य जो फैसला लेते हैं, वो गलत है। बिल्कुल नहीं। अगर दो सदस्य चीफ इलेक्शन कमिश्नर के लिए किसी एक नाम पर सहमति जता दें और CJI की असहमति हो तो क्या फर्क पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर की सिलेक्शन कमेटी में CJI होने चाहिए, लेकिन सरकार ने उनकी बात नहीं मानी। संसद ने नया कानून बना दिया। अब सुप्रीम कोर्ट क्या संसद को जेल में डाल देगी? सुप्रीम कोर्ट को ऐसे आदेश सोच-विचार के बाद ही देने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का दायरा कहां तक है, इस पर सोचना जरूरी है।
सवाल: क्या सुप्रीम कोर्ट को फैसला लेने के लिए विशेषाधिकार देने वाले आर्टिकल 142 का रिव्यू होना चाहिए? जवाब: देखिए, आर्टिकल 142 सब्सटेंटिव जस्टिस (मौलिक न्याय) के लिए है। अगर किसी मामले में बहुत गड़बड़ हो तो सुप्रीम कोर्ट इसका इस्तेमाल करती है। हालांकि, पिछले कुछ सालों ने 142 का इस्तेमाल बढ़ गया है। पहले सुप्रीम कोर्ट इक्का-दुक्का मामले में ही अपनी इस शक्ति का इस्तेमाल करता था। मुझे लगता है कि विशेषाधिकार का इस्तेमाल रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस में ही होना चाहिए।
सवाल: हाल ही में AI इंजीनियर अतुल सुभाष के सुसाइड के बाद सेक्शन 498 ए के दुरुपयोग की काफी चर्चा है। क्या ज्यूडिशियरी घरेलू हिंसा जैसे मामलों को संभालने के लिए तैयार है? जवाब: सेक्शन 498 ए दहेज विरोधी कानून है। इसमें दहेज लेने या देने, दोनों के खिलाफ केस करने और जेल भेजने का प्रावधान है। कानून पहले से मौजूद हैं, लेकिन सरकारें इसे लागू नहीं करवा पा रही हैं। जब सरकार काम नहीं कर पाती हैं तो मामले कोर्ट में आते हैं।
अगर सरकारें शादी के समय ही दहेज प्रथा पर कार्रवाई करेंगी, तो प्रताड़ना या सुसाइड तक मामला जाएगा ही नहीं। कोर्ट में केस आने के बाद मामला लंबा चलता है। इससे आदमी और औरत, दोनों परेशान होते हैं और सुसाइड कर लेते हैं। दहेज प्रताड़ना के मामलों में 6 महीने के भीतर फैसला होना चाहिए।
सवाल: अंबेडकर ने कहा था कि कितना भी अच्छा संविधान बना दें, अगर चलाने वाले बुरे लोग होंगे ताे कोई फायदा नहीं होगा। आज के हालात में इस पर क्या कहेंगे? जवाब: सही बात है। अगर देश चलाने वाले अच्छे हों, तो बुरा संविधान भी अच्छा बन सकता है। अगर नेता बुरे हों, तो अच्छे से अच्छा संविधान देने का भी फायदा नहीं है। हमारे राज्यपालों को ही देख लीजिए। कितना ढीला काम करते हैं। विधानसभा ने कानून पास किया तो उस पर राज्यपाल के सिग्नेचर चाहिए होते हैं। सरकार राज्यपाल के पास जाती है तो वे कहते हैं कि जब मर्जी होगी तब साइन करेंगे।
कई मामलों में स्पीकर कहते हैं कि संविधान में कहां लिखा है कि हमें 10 दिन में फैसला लेना है। माना कि संविधान में नहीं लिखा है कि आपको जल्दी साइन करना है या जल्दी फैसला लेना है, लेकिन संवैधानिक नैतिकता नाम की भी काेई चीज होती है कि नहीं। साइन नहीं करना या फैसला देर से लेना गैरकानूनी नहीं है। आपको सजा नहीं होगी, पर यह नैतिकता के खिलाफ है।
सवाल: हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 41 साल पुराने मामले के फैसले में देरी के लिए माफी मांगी। अदालतों में 5 करोड़ से ज्यादा केस पेंडिंग है। ये कैसे हल होगा? जवाब: सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को सोचना चाहिए कि मामले आगे क्यों नहीं बढ़ रहे हैं। इसमें सरकार की मदद भी लेनी चाहिए। इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी देखना चाहिए। कोर्ट, कचहरी की बिल्डिंग्स बहुत पुरानी हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में मंजूर जजों की संख्या 150 से 160 के बीच है। अगर सभी की नियुक्ति हो गई तो उनके बैठने की जगह नहीं है।
दूसरी समस्या जजों की नियुक्ति नहीं होना है। हाईकोर्ट में 30% वैकेंसी है। 20% डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में हैं। फिर भी नियुक्तियां नहीं हो रही हैं। क्यों? लॉ कमीशन ने कहा था कि देश में जजों की संख्या 50 हजार होनी चाहिए, लेकिन हमारी संख्या सिर्फ 23 हजार है। इसमें भी 4-5 हजार पद खाली हैं।
समस्या यहीं खत्म नहीं होती। अगर 50 हजार जजों को अपॉइंट करेंगे तो गुणवत्ता का सवाल भी उठेगा। अच्छे क्वॉलिटी वाले जज मिलेंगे या नहीं। मिल भी गए तो ये 50 हजार जजों को बैठाएंगे कहां। फिर स्टॉफ भी चाहिए होंगे, पेशकार, स्टेनो सबकी नियुक्ति करानी पड़ेगी।
सवाल: फिजी सुप्रीम कोर्ट में काम करने का अनुभव कैसा था? भारतीय और फिजी के सुप्रीम कोर्ट में क्या अंतर लगा? जवाब: बहुत फर्क है। यहां केसों की संख्या बहुत ज्यादा है। सोमवार और शुक्रवार को मिसलेनियस केस की संख्या ही 60-60 के करीब होती है। जब मैं सुप्रीम कोर्ट में था, तब 70 हजार के करीब केस पेंडिंग थे, आज 80 हजार से ऊपर है।
यह फिजी में बिल्कुल अलग है। कोविड के बाद एक सिटिंग में बताया गया कि काफी ज्यादा केसेस लगे हैं। वहां ज्यादा का मतलब था 16 केस। वहां सुनवाई की समय सीमा तय है। दोनों पक्षों को 40-40 मिनट मिलते हैं।
सवाल: क्या फिजी के सुप्रीम कोर्ट का कोई नियम भारत में लागू हो सकता है? जवाब: हां, यहां भी टाइम लिमिट लागू हो जाए तो अच्छा हो जाएगा। यहां सुप्रीम कोर्ट में जज केस पढ़कर आते हैं, रिटन सबमिशन भी होते हैं। अगर ये लिखित दस्तावेज पहले दे दिए जाएं और जज पढ़ लें तो डाउट या क्लैरिफिकेशन 20 या 40 मिनट में हो सकता है। यहां 3 से 4 दिन बहस चलती है। यह एक दिन में या कुछ ही घंटों में खत्म हो सकती है।
सवाल: कोर्ट जाने का खर्च बहुत ज्यादा है, गरीब न्याय की उम्मीद कैसे करें? जवाब: हमारे पास नेशनल लीगल सेल अथॉरिटी (NALSA) है। किसी की सालाना आमदनी 3-4 लाख तक है, तो उसे फ्री में कानूनी सहायता मिलती है। सरकार इसे 5 लाख तक बढ़ा दे, ताकि ज्यादा लोगों को मदद मिल सके। NALSA का फ्री लीगल सेल हर राज्य में मजबूत होना चाहिए। तब लोग कोर्ट आएंगे कि हमें फ्री में वकील मिलेगा। इसमें भी अच्छे वकीलों की नियुक्ति होनी चाहिए।
सवाल: भारत के जेलों में हजारों लोग बंद हैं, उनको बेल क्यों नहीं मिल रही? जवाब: जेलों में बंद 75% लोग अंडरट्रायल हैं। 100 कैदी वाली जेलों में 130 या 200 से भी ज्यादा कैदी बंद हैं। जेल में कोई सुविधाएं नहीं हैं। वहां जाने वाले लोगों की भी इज्जत है, अपनी गरिमा है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर साईबाबा 90% दिव्यांग थे। उन्हें जेल में व्हीलचेयर तक नहीं दी गई। स्टेनस्वामी को जेल में स्ट्रॉ तक नहीं मिली।
कोर्ट को बेल देनी चाहिए। लोगों को जेल में रखने से क्या फायदा। सिर्फ इसलिए क्योंकि पुलिस जांच कर रही है तो आरोपी जेल में रहेंगे। उस आदमी के बारे में सोचिए, उसकी फैमिली के बारे में सोचिए।
कानून तो यह भी है कि अगर किसी अपराध की सजा 10 साल है, और आरोपी ने एक तिहाई यानी तीन साल जेल में काट लिया, तो बेल मिलनी चाहिए। फिर भी आरोप सिद्ध हुए बिना 3 साल तो जेल में रहना पड़ेगा ना। अगर आपने कुछ किया नहीं है, काेई सबूत नहीं है, तो तीन साल जेल में क्यों रहें।
तीन साल से काेई जेल में है, तो यह कोर्ट को कौन बताएगा। यह काम जेलर और NALSA के वकीलों को करना चाहिए। कुछ केसों में ऐसा हो रहा है, पर सब में नहीं। अंडरट्रायल रिव्यू कमेटी हैं, पर ठीक से काम नहीं कर रही हैं। इसलिए लोग जेल में बैठे हुए हैं।
पूर्व CJI बोले- रिटायर होते ही पॉलिटिक्स जॉइन न करें जज: कल आप कोर्ट में थे और आज राजनीतिक पार्टी में, लोग क्या सोचेंगे
क्या जजों को रिटायरमेंट के तुरंत बाद राजनीतिक पद स्वीकार करने चाहिए? क्या इससे उनकी निष्पक्ष न्यायमूर्ति की छवि प्रभावित नहीं होती है? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनके जवाब कयासों के रूप में हमारे और आपके बीच तैरते रहते हैं। पूर्व CJI जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में इन सवालों के जवाब दिए। यह इंटरव्यू चंद्रचूड़ के CJI पद पर रहते हुए ली गई थी। पूरी खबर पढ़ें...
बुलडोजर जस्टिस पर SC का फैसला, दोषियों का भी घर नहीं गिरा सकते; कल की सबसे बड़ी खबर पर जानिए सब कुछ
सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर को बुलडोजर एक्शन पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अफसर न्याय करने का काम अपने हाथ में नहीं ले सकते। वे किसी व्यक्ति को कोर्ट में मुकदमा चलाए जाने से पहले ही दोषी नहीं ठहरा सकते। वे जज नहीं बन सकते। सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के घरों में रहने के मौलिक अधिकार को खत्म करने के लिए बुलडोजर एक्शन के ‘डरावने मंजर’ की बात कही।
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