शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

मोदी से नहीं डरे राहुल को ,कांग्रेस के नकाब में छिपे संघी डरा रहे हैं

मोदी से नहीं डरे राहुल को ,कांग्रेस के नकाब में छिपे संघी डरा रहे हैं - - - - - - - आजकल देख रहा हूँ बहुत कांग्रेस के शुभचिंतक सलाह दे रहे हैं कि कांग्रेस को नेहरू परिवार से बाहर का प्रेसिडेंट लाना चाहिये लेकिन इनको ये कहते हुये नही सुना कि संघ को भी अपना परम पूज्यनीय सरसंघ चालक चितपावन ब्राह्मण से बाहर का होना चाहिये , है न सोच का दोगलापन ? कांग्रेस की ही बात नही कर रहा हूँ ? कौन है देश में जो नेहरू परिवार की तरह कुर्बानी देने वाला, नेहरू ने अपना जीवन ही नही पूरी संपत्ति दे दी,१० साल अंग्रेजों की जेल मे कैदी रहे, तब भी सावरकर की तरह माफी मांगकर बीर नही बने, जिस अमेरिका मोदी तलुआ चाट रहे है उसकी औकात इंदिरा ने बंगला देश की लड़ाई मे बता दिया , राजीव ने अपनी जान दे दी, सोनिया ने अपना सिंदूर दे दिया, राहुल , प्रियंका का बचपन मे पिता का साया उठ गया, फिर भी सेकुलरिज्म से कभी समझौता तो नही किया। आये तो थे बाहर से नरसिम्हाराव , क्या किया? कांग्रेस के सेकुलर चरित्र को संघी अपराधियों के पास गिरवी रखकर बाबरी मस्जिद को नेस्तनाबूद करके सांप्रदायिक ताकतों को खुलेआम नंगा नाच करने का आंगन दे दिया । भाई लड़ाई व्यक्तियों का नही , school of thought का है, एक तरफ फासिस्ट संघ परिवार का हिटलर , मुसोलिनी सोच का फासिस्ट school of thought. तो दूसरी तरफ कांग्रेस परिवार का सेकुलर ब्रांड का Demcratic school of thought का नेहरू परिवार । असली तो संघ ही है bjp तो मुखैटा मात्र है। क्यूं नही बात करते संघ के मुखिया कि जो अपने जन्म से ही चितपावन ब्राह्मण को ही मुखिया बनाते है और गांधी की हत्या करने के बाद भी यहां तक आ गये है। कौन है संघ परिवार में जो चितपावनों की जगह लेने की औकात रखता है ? उसी तरह कौन है कांग्रेस मे जो नेहरू परिवार की जगह लेने की औकात रखता है? जरा हमे भी तो बता दो? कांग्रेस मे शुरू से ही नेहरू के समय से ही पटेल के नेतृत्व में हिंदू नेशनलिस्टों की भरमार रही, जो नकाब लगाकर रात के अंधेरे मे संघियों से भाई चारा रखते थे । इंदिरा को मजबूरी में प्र. मंत्री बनाना पड़ा क्यूंकि उनमे आपस मे सहमति नही थी और पूरे देश में कामराज से लेकर , एस. के. पाटिल, अतुल्य घोष , मोरारजी इत्यादि की औकात क्या थी? अत: सभी ने तात्कालिक अस्थायी व्यवस्था के तहत गूंगी गुंड़िया के नाम पर इंदिरा गांधी का नाम आगे किया कि बाद में चुनाव बाद उसे हटाकर सत्ता पर हिंदू नेशनलिस्ट . संघी दलाल कब्जा कर लेंगे? लेकिन इंदिरा नेहरू की बेटी थी , सावरकर की नहीं। आगे क्या हुआ बताना नही, ये वही सोच वाले कांग्रेसी लोग हैं जो नकाब तो कांग्रेस का लगाये हैं और दिल संघियों का, जो मांग कर रहे हैं कि कांग्रेस का प्रेसिडेंट नेहरू परिवार से बाहर का हो, क्यूं भाई? जब संघ परिवार का मुखिया चितपावन बाभन ही रहेगा तो कांग्रेस परिवार का मुखिया नेहरू परिवार से क्यूं नही? संघ परिवार एक विचार है ,उसी तरह नेहरू परिवार एक विचार है न कि व्यक्ति? क्या करियेगा ,हम समझ रहे हैं कांग्रेस के नेताओं के सब्र का बाँध टूटने लगा है। सत्ता से दूरी कांग्रेसियों से बर्दाश्त नहीं होती है। लेकिन सत्ता की वापसी के लिये जनता में जाने, अपनी कमियां ढूंढने के बदले वे आपस में ही एक दूसरे से लड़ने लगे हैं। ये संघी सोच के हिंदू नेशनलिस्ट कांग्रेसी सेकुलर खोल का नकली नकाब लगाकर कभी राहुल को मंदिर जाने का, कभी जनेऊ धारण कर हिंदू बनने की सलाह देते रहते हैं , ये नही बताते की नेहरू किसी मंदिर में नही गये, फिर भी देश के हीरो रहे। कांग्रेस खासकर नेहरू परिवार सेकुलरिज्म का असली ब्रांड एंबेस्डर रही है , तभी तो गांधी ने कहा था कि मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे मरने के बाद नेहरू ही मेरी भाषा बोलेंगे, वह किस भाषा कि बात कर रहे थे ? यही सेकुलरिज्म वह भाषा थी।यह देश विभिन्न धर्मों ,जातियो, संप्रदायो, विभिन्न बोलियों वाला देश है , सेकुलरिज्म उसकी भाषा ही नही , आत्मा है। नेहरू परिवार ने कभी भी गांधी को निराश नहीं किया और आज ये दलाल कांग्रेसी राहुल को मंदिर जाने और जनेऊ धारण करने की सलाह देकर क्या बताना चाह रहे थे? कभीदेश की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा समय सत्ता में रही पार्टी पिछले छह साल से अपनी हार पर विलाप कर रही है, एक दूसरे पर ताने मार रही है और अब तो लगता है कि उसे इसे रोने धोने में मजा आने लगा है। आदत पड़ गई है। वह इस सिलसिले को छोड़ने को तैयार नहीं दिखती। यूपीए सरकार में मंत्री रहे नेताओं ने सार्वजनिक रूप से ट्वीट करके जो सवाल उठाए हैं उनसे अधिकांश कांग्रेसी आश्चर्यचकित है कि ये मुद्दे हैं कहां? इनका आज की तारीख में क्या औचित्य है? पिछले कुछ दिनों से फिर प्याले में तूफान उठा हुआ है! क्या यह इसलिए है कि 10 अगस्त बीच चुका है ? सोनिया गांधी का एक साल पूरा हो गया है। पिछले 2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष छोड़ना पड़ा था। उन्हें लगा था कि पार्टी में वे अकेले पड़ गए। पार्टी अध्यक्ष को जो समर्थन मिलना चाहिए था उन्हें नहीं मिला। ऐसे में उत्पन्न हुई असमंजस की स्थिति में कांग्रेस ने कई प्रयोग करने की कोशिशें की। 2014 फिर 2019 की हार के कारणों की पड़ताल के लिए तो कोई कमेटी बनाई नहीं मगर नए अध्यक्ष की खोज, उस खोज की प्रक्रिया के लिए जाने कितनी औपचारिक और अनौपचारिक कमेटियां बना डालीं। आज ये सलाहकार लोग जिस यूपीए की उपलब्धियों की बिना प्रसंग चर्चा कर रहे हैं उसे तो कभी मीडिया पर बता नहीं पाए मगर नए अध्यक्ष के लिए परिवार के बाहर का होना क्यों जरूरी है इस पर पचासों स्टोरियां मीडिया में प्लांट करवा दीं । अब दस अगस्त के बाद क्या होगा? सोनिया गांधी को हटने नहीं दिया जायेगा? अस्वस्थता की हालत में ही उन्हें कंटिन्यू करवाया जाएगा? मगर कब तक? राहुल ,प्रियंका को ये स्वीकार नहीं करना चाहते लेकिन मोदी से या संघ परिवार से इनको कोई एतराज नहीं, कांग्रेस को इन सवालों के जवाब चाहिए कि सोनिया ही क्यूं , राहुल ,प्रियंका क्यों नही , क्या उनमे कांग्रेस के सेकुलरिज्म का जीन नही है? इस सवाल की जगह वे छह साल पुरानी सरकार जिसे खुद इन सबने मिलकर डुबोया है के लिए एक दूसरे पर सवाल उठा रहे हैं। कांग्रेस ऐसी नाव हो गई है कि पार उतारने की चिंता के बदले सब एक दूसरे को धकेलने में लगे हैं। इस बात से बेफिक्र कि कहीं इस चक्कर में नाव ही न डूब जाए। आज जिस दस साल के शासन का बात कर रहे हैं उसमें और क्या किया? यही किया! दस साल सबसे बड़े मंत्री और राष्ट्रपति रहे प्रणव मुखर्जी ने क्या किया? जिस समय राहुल संघ से सवाल कर रहे थे उस समय प्रणव मुखर्जी नागपुर के संघ मुख्यालय में हाजरी लगा रहे थे। और कांग्रेस के कुछ नेता उनकी इस नागपुर यात्रा का समर्थन कर रहे थे। कांग्रेस के मंत्रियों ने दस साल खूब मजे किए, कभी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की साफ सुथरी इमेज की चिन्ता नहीं की लेकिन आज अचानक से मनमोहन सिंह की नई प्रतिमा गढ़ने लग गए। क्या बताएं? भाजपा को सत्ता में आए 8 साल हुए हैं। कभी किसी चुनाव में पैसे की कमी पड़ी? दस साल सरकार में रहने के बाद जब कांग्रेस 2014 का चुनाव लड़ रही थी तो प्रत्याशियों से कहा जा रहा था कि पैसे नहीं है। एक प्रदेश में विधानसभा चुनाव थे वहां के कांग्रेस अध्यक्ष और उनके साथ एक बड़े नेता कांग्रेस मुख्यालय में रो रहे थे। उनसे कहा गया था कि चुनाव के खर्च के लिए खुद व्यवस्था करें! उस समय कांग्रेस के 24 अकबर रोड मुख्यालय में कहा जाता था कि कांग्रेस गरीब पार्टी है, मगर कांग्रेसी देश के सबसे अमीर नेता! पिछले छह साल में बीजेपी के पास पैसा आया, बीजेपी के नेताओं के पास नहीं। और कांग्रेस के दस साल में कांग्रेस का खजाना नहीं भरा, नेताओं की तिजोरियां भर गईं। कहा जाता था कि अगर कोई कांग्रेस का नेता कहीं से सौ रु. लाता था तो उसमें से दस भी बड़ी मुश्किल से पार्टी फंड में जमा कराता था। जबकि भाजपा का कोई पुराना धाकड़ नेता ही ऐसा होगा जो सौ के सौ ही पार्टी फंड में नहीं देकर 80 या 90 जमा करवाए। बाकी अधिकांश पूरा पैसा पार्टी की जानकारी में लाते हैं। यूपीए सरकार में प्रणव मुखर्जी के मुकाबले के दूसरे सबसे बड़े मंत्री के पास एक बार संगठन के एक बड़े नेता गए। पार्टी को कुछ पैसों की जरूरत थी। मंत्री जी सुनते ही चिल्लाए “ एम आई ए थीफ? “ क्या में चोर हूं? वरिष्ठ नेता बेचारे उल्टे पाँव भागे। अपने स्वार्थों में कांग्रेसी नेता इतने पागल हो गए कि आपसी लड़ाई में मनमोहन के उस प्रसिद्ध कथन को हथियार बना रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था इतिहास मेरे साथ ज्यादा न्यायपूर्ण और उदार होगा। मिलिंद देवड़ा जी यह बात उन्होंने उस समय के विपक्ष और मीडिया के लिए कही थी। कांग्रेस के लोगों के लिए नहीं। मनमोहन सिंह के नाम का इस्तेमाल करने वाले क्या उन्हें राहुल गांधी या नेहरू गांधी परिवार के सामने खड़ा करने की कोशिश नहीं कर रहे थे ? क्या वे कांग्रेसी खुद इतिहास भूल गए? सोनिया, राहुल, प्रियंका तीनों ने जैसा मनमोहन सिंह को समर्थन दिया है वैसी मिसाल इतिहास में कम मिलेगी। न्यूक्लीयर डील के समय सोनिया ने कहा था सरकार जाए तो जाए हम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ खड़े हैं। लेफ्ट के समर्थन वापसी की चेतावनी के कारण जब मनमोहन सिंह भारी तनाव में थे तो राहुल और प्रियंका ने भी यही बात दोहराई थी। मनमोहन सिंह के पहले प्रेस एडवाइजर संजय बारू ने सोनिया और राहुल के खिलाफ कैसी साजिशें कीं। क्या क्या नहीं कहा, लिखा। मगर मनमोहन सिंह के सम्मान की खातिर परिवार ने कभी सच्चाई बताने की भी कोशिश नहीं की। उन मनमोहन सिंह के नाम का इस्तेमाल किसे डराने के लिए किया जा रहा था ? राहुल गांधी को? जो राहुल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूरी केन्द्र सरकार, मीडिया, ट्रोल आर्मी से नहीं डर रहा हो वह इन कांग्रेसियों से डर जाएगा? कभी नहीं. कांग्रेस को इस समय लड़ने की जरूरत है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा से। मगर उन्हें आपसी लड़ाईयों से फुर्सत नहीं है। कांग्रेस के बारे में कहा जाता है कि जब भी कोई कांग्रेसी नेता घर से चना सत्तू बाँध के निकलता है उसकी पत्नी या घर वाले समझ जाते हैं कि अब वह विरोधी को निपटाए बिना घर वापस नहीं आएगा। विरोधी मतलब भाजपा या दूसरी पार्टी का नेता नहीं, बल्कि कांग्रेस में उसका प्रतिद्वंद्वी। कांग्रेसी, कांग्रेसी को निपटाने में माहिर है। कांग्रेस के इस सबसे बुरे समय में भी वह सत्तारूढ़ पार्टी से लड़ने की नहीं सोच रहा बल्कि पार्टी के आन्तरिक गड़े मुद्दे उखाड़कर आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। कांग्रेस मे संघी दलाल ,कांग्रेस की टोपी लगाकर आजकल बाहर का, बाहर का प्रेसिंडेंट होने का नारा लगा रहे हैं...अगर कांग्रेस बची है तो नेहरू परिवार से ,और देश टुकड़े टुकड़े होने से बचा है तो कांग्रेस से , नही तो ये पटेल के संघी सोच वाले कब का देश तोड़ चुके होते। जब जब नेहरू परिवार कमजोर हुआ है तब तब संघी मजबूत हुये हैं और इनको मजबूत करने मे सबसे ज्यादा हाथ लोहिया , जे. पी. जैसे संघी सोच वाले समाजवादियों का रहा है ,जो १९६३, ६७, ७७, ८९, ९८ में संघियों के साथ मिलकर कांग्रेस को ही नही ,इस देश के सेकुलर ताना बाना को कमजोर करके देश की सत्ता पर गांधी के हत्यारों को स्थापित कर दिया। जार्ज, शरद, पासवान, नितिश , ये किसकी राजनितिक संतान है ? उसी लोहिया , जे. पी की। आपको शक होगा , हमें कत्तई रत्ती भर भी नहीं। राहुल अगर किसी दूसरे को भी प्रेसिडेंट बनाते हैं भी तो कल ये हरामी अपनी भाषा को बदल कर कहेंगे कि सोनिया, राहुल , प्रियंका का दरबारी है , स्वतंत्र नहीं हैं। मनमोहन सिंह के बारे में क्या कहते थे ये लोग? अर्जुन सिंह तो कभी मनमोहन सिंह को सलाम तक नही किया प्र. मंत्री रहते। कहते थे कि मेरा चपरासी था , भले ही जोड़ जुगाड़ से p m बन गया तो क्या मैं इसको सलाम करूं। ये सोच है कांग्रेसियों की। फिर भी मनमोहन सिंह ने कभी बुरा नहीं माना। क्या मोदी या भागवत के सामने कोई संघी या bjp वाला ऐसे कहने की हिम्मत कर सकता है? वहां मोदी के सामने अडवानी की क्या हालत है? कभी अडवानी के पेशाब से bjp का चिराग जलता था और वही अडवानी संघ के करिंदे के सामने कैसे गिडगिड़ा रहे है, फोटो तो आपने देखा ही होगा। लेकिन मनमोहन को उनका मंत्री सलाम नही करता, ये है लोकतांत्रिक कांग्रेस और फासिस्ट संघ मे अंतर । मेरे सोच से राहुल नहीं चाहते हैं तो प्रियंका को लायें और संघी सोच के दलालों को बाहर करें। ये आस्तीन के सांप हैं कभी भी सिंधिया जितिन की तरह खोल उतारकर सामने आकर कांग्रेस को कमजोर करते रहेंगे, जितिन का बापभी संघी दलाल था ,यह बहुत ही उचित समय है , निर्णय लेने का। drbn singh

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