बुधवार, 1 जनवरी 2025
कम्युनिस्टों की भारतीय लोकतंत्र के निर्माण में भूमिका-जगदीश्वर चतुर्वेदी
कम्युनिस्टों की भारतीय लोकतंत्र के निर्माण में भूमिका-जगदीश्वर चतुर्वेदी
इस साल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी अपना शताब्दी वर्ष मना रही है। कानपुर में 26-दिसंबर1925 कम्युनिस्ट पार्टी का स्थापना अधिवेशन हुआ।वहीं पर इसका संविधान स्वीकार किया गया।पहलीबार केन्द्रीय समिति बनायी गयी।
एक अच्छे कम्युनिस्ट के लिए अपनी पार्टी के इतिहास और नीतिगत नजरिये को जानना अनिवार्य चीज़ है।इन दस्तावेजों के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि कम्युनिस्ट पार्टी किस तरह के दमन-उत्पीडन ,गिरफ्तारियों , पाबंदियों और असंख्य कुर्बानियों के साथ काम करती रही है।कम्युनिस्ट असाधारण परिस्थितियों में लोकतंत्र और स्वाधीनता की रक्षा के लिए लगातार काम करते रहे हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बहुत ही छोटे संगठन के रुप में रही है, आज भी उसका छोटा ही संगठन है।इसके बावजूद उसने स्वाधीनता संग्राम और बाद में आज़ाद भारत में जमकर लोकतंत्र की रक्षा के लिए काम किया है।संख्या की दृष्टि से कम्युनिस्ट बहुत कम रहे हैं।लेकिन उनके विचारों का व्यापक समाज पर असर पड़ता रहा है।खासकर क्रान्ति,मार्क्सवाद, पूंजीवाद, नव्य आर्थिक उदारतावाद , साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद संबंधी विचारों का आम जनता पर व्यापक असर है।कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियां जनता और भारत के पक्ष में रही हैं।इसके बावजूद उसे स्वाधीनता संग्राम और स्वाधीनता के बाद सबसे अधिक दमन-गिरफ्तारी, सजा-उत्पीडन आदि का सामना करना पड़ा है।
समग्रता में 100 साल का इतिहास देखें तो कम्युनिस्ट पार्टी को सबसे अधिक दमन और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। स्वाधीनता संग्राम के दौरान भारतीय कम्युनिस्ट पहले थे जिन्होंने पूर्ण स्वराज्य का नारा दिया।उनके ख़िलाफ़ ब्रिटिश शासकों ने क्रूरतम दमन के हठकण्डे इस्तेमाल किए।पाबंदी तक लगायी।जबकि उन दिनों किसी भी पार्टी पर पाबंदी नहीं थी।
कम्युनिस्ट पार्टी क निर्माण के प्रथम एक दशक (1925-1935)के बीच में जो जुल्म सहने पड़े वे बहुत भयानक थे।उससे यह सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि आम जनता का अच्छा खासा हिस्सा उनके साथ था।इस दौर में भारत की स्वाधीनता का कार्यक्रम और पार्टी का आर्थिक-राजनीतिक कार्यक्रम बनाया।इससे स्वाधीनता आंदोलन को वैज्ञानिक दिशा देने में मदद मिली।इसके अलावा मज़दूरों और किसानों के लिए स्वतंत्र कार्यक्रम बनाए गए।इस सबको देखकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने कम्युनिस्ट पार्टी के ख़िलाफ़ त्रिस्तरीय दमन चक्र शुरु किया।ये थे-1.पेशावर षडयंत्र केस -1922-23।2.कानपुर षडयंत्र केस 1924 और तीसरा मेरठ षडयंत्र केस-1929-33।
सन् 1936 से 1947 के बीच में कम्युनिस्ट पार्टी ने व्यापक स्तर पर जनसंगठनों का निर्माण किया.एटक और अखिल भारतीय किसान सभा का निर्माण किया,छात्रों के लिए आल इण्डिया स्टूडेंट्स फेडरेशन,लेखकों के लिए प्रगतिशील लेखक संघ, और संस्कृतिकर्मियों के लिए इप्टा का गठन किया।अनेक बड़े जनांदोलन संगठित किए।इन सभी संगठनों ने सारे देश के बौद्धिक-सांस्कृतिक जगत को प्रभावित ही नहीं किया बल्कि मार्क्सवाद की ओर आकर्षित किया।
सन् 1942-1947 के बीच में स्वाधीनता संग्राम में जितने भी आंदोलन हुए उनमें कम्युनिस्टों की केन्द्रीय भूमिका थी।इनमें सबसे प्रमुख है- नौ सेना विद्रोह और तेलंगाना किसान विद्रोह।नौ सेना विद्रोह ने ब्रिटिश शासकों को भारत छोड़ने को मजबूर किया वहीं तेलंगाना आंदोलन ने भावी कांग्रेसी सत्ता की जडें हिला दीं। पहले लोकसभा चुनाव से लेकर आगामी दस सालों तक कम्युनिस्ट पार्टी प्रमुख विपक्ष थी।
कम्युनिस्ट पार्टी के जनसंगठनों का लक्ष्य था स्वाधीनता हासिल करना और लोकतंत्र स्थापित करना,।स्वतंत्र भारत में क्रांतिकारी भूमिसुधार लागू करना।इन तीनों लक्ष्यों के लिए जनता को गोलबंद करना।
15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिलने के समय अनेक घटनाएं ऐसी घटी हैं जिनके कारण कम्युनिस्टों के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।सन् 1954 से 1964 के बीच में भारत के प्रमुख विपक्षी दल के रुप में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उभरकर सामने आई।सन् 1957में केरल में पार्टी के नेतृत्व में पहली कम्युनिस्ट सरकार किसी ग़ैर समाजवादी समाज में सामने आई।सन् 1964 में पार्टी में वैचारिक मतभेदों के कारण विभाजन हुआ और माकपा का जन्म हुआ।इसके अलावा बंगाल और त्रिपुरा में वाम मोर्चे के लंबी अवधि तक चले शासन के दौरान वह वाममोर्चे और सरकार का अंग थी।इसके अलावा संसद से लेकर सड़क तक,संस्कृति से लेकर फिल्म जगत तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों ने महत्वपूर्ण काम किए हैं।संसदीय लोकतंत्र को अपना प्राथमिक मंच मानकर कम्युनिस्ट पार्टी विगत 100सालों से काम करती रही है।इस क्रम में उसके सदस्यों ने महत्वपूर्ण और प्रभावशाली भूमिकाएं निभायी हैं।उससे लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराएं समृद्ध हुई हैं।
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