बुधवार, 25 जून 2025

आपातकाल और इंदिरा के तलवे चाट कर छूटने वाले नेता

आपातकाल २५, जून, १९७५... सवेरे से ही मै देख रहा हूँ बहुत से अभूतपूर्व क्रांतिकारी लोग २५ जून २०२५ को सवेरे सवेरे जगते २०२५ की जगह १९७५ में चले गये, उनको श्रीमती गांधी द्वारा लगाये गये आपातकाल की याद सताने लगी, जेल कैसे गये? कितने लाठी खाये ? कौन कौन बड़ा नेता उनके साथ जेल में था, यह बताने मे परेशान हैं । जो आपातकाल में माफी मांगकर जेल से बाहर निकलकर समर्थन कर रहे थे , वे तो सबसे ज्यादा उछल कूद रहे हैं. ..... " जिसने आगे बढ़ कर छीना वे सज्जन श्रीमन्त हो गये, और पंक्ति में खड़े-खडे़ हम अक्षरहीन हलन्त हो गये, इतने भोले नहीं कि दुनिया छले और हम पता न पायें, उदासीन हो गये जो देखा घने लुटेरे संत हो गये , जब मादक संगीत खनकते सिक्कों का पड़ गया सुनाई, सभी इन्द्रियाँ जगी अचानक सभी अंग जीवन्त हो गये , जिनकी महिमा संरक्षित है कितने थानो के ग्रन्थों में, लोकतन्त्र का सूत्र पकड़कर माननीय अत्यन्त हो गये, जब भी संकट पड़ा राष्ट्र पर आई बलिदानों की बारी, चोर-रास्ता पकड़ भागने को तैय्यार तुरन्त हो गये.," आपातकाल की संघर्ष गाथा आप फेसबुक पर पढ़ रहे हैं, हँस रहे हैं. लोग अपनी अपनी कथा सुना रहे हैं. मेरी समस्या यह है कि बहुतों को नजदीक से देखा है. अगर हकीकत बयान कर दूँ तो कितनों की चड्ढी उतर जायेगी. छोटों को छोड़िये, बड़ों बड़ों ने थूक कर चाटा था, उस समय माफीनामा लिखा और परिवार संभालने लगे. जे.पी.आंदोलन का उत्तर प्रदेश में प्रसार करने के उद्देश्य से युवा नेताओं ने लखनऊ में सम्मेलन आयोजित किया , जिसमें जे.पी.को आमंत्रित किया गया और वे शामिल भी हुये, युवाओं को सम्बोधित किया. जुलूस भी निकला. राजनीतिक नटवरलाल कहे जाने वाले तेजतर्रार कांग्रेसी राजनेता स्वर्गीय हेमवतीनंदन बहुगुणा जी प्रदेश के मुख्यमंत्री थे.उन्होंने पहला दाव यह खेला कि जयप्रकाश जी को राजकीय अतिथि घोषित कर दिया. आंदोलनकारियों को गिरफ्तार न करने का खेल खेला ताकि आंदोलन के धार को भोथरा कर सकें. उनका बयान उल्लेख्य हैं, ' इनको गिरफ्तार किया गया तो आर्थिक बोझ बढ़ेगा, जेल में मुफ्त की रोटी तोड़ेंगे. मेरा बस चले तो इनसे गंगा के रेत का बालू टलवायें.' ......और वे 1977 में जनता पार्टी के सम्मानित नेता बने तथा बाद में शायद जनता सरकार के मंत्री भी. संक्षेप में,गोलमाल है भाई,सब गोलमाल है. हम भी का.हि.वि.वि. के B.Sc. के छात्र थे, संघ के स्वयंसेवक के साथ साथ विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता थे , जेल तो जाने से बच गया लेकिन हीटर जलाने के आरोप में वि.वि. से निकाल दिया गया। कोई तो बहाना चाहिये था , १९ महिने आपातकाल मे वि.वि. से निकाले जाने के बाद पहले उदय प्रताप कालेज में प्रवेश लिया, मन नही लगा तो उसी साल इलाहाबाद वि.वि. मे पुन: B.sc. में प्रवेश लिया , वहां रहने की समस्या थी, छात्रावास की कमी के कारण हमे वहां से भी छोड़ना पड़ा , एक साल बरबाद हो गया, और इसी खीच तान में आपातकाल समाप्ति की घोषणा हो गयी, चुनाव हुआ , परिणाम सबको पता है । जे.पी . विस्तर से सीधे लोकतंत्र के मसीहा बनकर उभरे और श्रीमती गांधी ने जिसे अपने मंत्री मंडल से निकालकर बाहर फेंक दिया था उसी कांग्रेसी कचरा मोरारजी देसाई को जे.पी. ने pm बनाया संघियों के कहने पर । जनता पार्टी की सरकार बनते ही सभी जेल से बाहर , तमाम नये नये कुलपति वि.विद्यालयों मे नियुक्ति पाकर आ गये । हम भी वापस आ गये , तुरंत प्रवेश मिल गया ,यही नही कुलपति ने दोनो साल की परीछा को एक ही साथ देने का परमिशन भी दे दिया, और सुबह पार्ट वन ,शाम को पार्ट टू का एक्जाम देकर B.Sc. फाईनल मे प्रवेश पा गया , साल का जो नुकसान हुआ था ,भरपायी हो गया। और साथ ही साथ विद्यार्थी परिषद का छात्र नेता हो गया । वि.वि. मे जो अनुशासन आपातकाल में बना था सब तार तार हो गया । चारों तरफ दूसरी आजादी का जश्न हो रहा था, पूरा वि.वि. लंपटों का चारागाह बन गया था। छात्र संघ का चुनाव हुआ, समाजवादियों के प्रत्याशी चंचल जी ,विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी महेंद्र सिंह को हरा कर प्रेसिडेंट चुन लिये गये, बाकी दो पद वाईस प्रेसिडेंट रामाश्रय प्रसाद सिंहऔर महामंत्री महेंद्र नाथ पांडेय ( वर्तमान मे पूर्व केंद्रिय मंत्री) विद्यार्थी परिषद को मिला। समाजवादियों का नारा था , " खुली भरती ,सस्ती शिक्षा" वही हुआ , पूरे वि.वि. मे at the spot admission के नाम पर पूरे वि.वि. को मेरिट विहिन लफंगो से भर दिया गया। संघ , विद्यार्थी परिषद के एक छात्र नेता थे जो १५ साल वि.वि. के छात्र रहे , विभिन्न विभागों मे प्रवेश लेकर लेकिन एक भी डीग्री नही लिये , हां छात्र संघ के महामंत्री. प्रेसिडेंट जरूर बने और बाद में विधायक तथा सांसद भी बन गये ,यहीं से समझ मे आया गोलवलकर की थेसिस कि संघ का मुखिया चितपावन ब्राह्मण ,भूरी आँख वाला होगा और जनसंघ/ बी जे पी / विद्यार्थी परिषद का नेता सरस्वती विहिन , प्रतिभाहीन , लंपट लगनशील ही हो सकता है , वहां तर्क पर पूरी तरह से प्रतिबंधित है, तो समझ ही सकते हैं कि मेरे जैसे साइंस का छात्र वहां कितने दिन टिकेगा ? ऐसा वि.वि. जहां २४ हजार छात्र हो, डाक्टरी, इंजिनियरिंग, साइंस, कृषि, कामर्स इत्यादि पढ़ने वाले छात्र हो, वहां किसी की भी डीग्री ग्रेजुएशन से कम नही, उसका प्रतिनिधि हायर सेकेंडरी पास नेता हो। वहाँ २४ हजार छात्रों द्वारा चुना हुआ नेता का एक बानगी देखिये, " When I talk , aaiyai talk , you talk yuwai talk ,dont talk in midle midle " मतलब जब हम बोले तो हम ही बोले, और आप बोले तो आप ही बोले, बीच बीच मे मत बोलें। ज्यादा नहीं लिखूंगा नही तो मित्र सब बुरे मान जायेंगे। वहाँ चुनाव नही होता था , जाति के जोड़ घटाव होता था। खासकर ब्राह्मण , राजपूत ही वहां छात्र संघ का चुनाव जीतते थे ,कभी कभी भूमिहार भी ब्राह्मणों के गठजोड़ से जीत जाते थे , कभी कोई obc वहां प्रेसिडेंट नहीं बन सका ,दलित का तो हिंदू वि.वि. मे सोचना ही नामुमकिन है, ऐसे लोग आपातकाल की देन रहे ,जेल गये और आज सांसद ,मंत्री बनकर उस सरकार का अंग बने हुये हैं। जो १९७५ की इमरजेंसी को विना आपातकाल की घोषणा किये हुये ही फेल कर चुकी है। और आपातकाल याद कर रहे हैं , मैने बहुतों को देखा है जो वि.वि. मे नारा लगाते थे, " हाफ पैंट खोल के बोलो बंदे मातरम् " वे आज bjp के सबसे बड़े वकील बनकर हर हर मोदी करते हुये ताली थाली बजा रहे हैं , बहुत से क्रांतिकारियों को जानता हूं आपातकाल मे श्रीमती गांधी के तलुये चाटकर माफी मांगकर जेल से रिहा हुये थे । जैसे बाला साहब देवरस, नाना जी देशमुख और मदन लाल खुर्राना , सुब्रमनियन स्वामी इत्यादि तो संजय गांधी से मिलकर माफी मांगकर पुलिस कस्टडी से छूट गये थे। बाला साहब देवरस ने एकनाथ रामाकृष्ना रानाडे जो गोलवलकर के समय दूसरे नंबर पर थे, को श्रीमती गांधी से निगोशियेसन के लिये नियुक्त किया, और इसी निगोशियेशन का परिणाम रहा कि तमाम लोग माफीनामा भरकर और २० सूत्रिय कार्यक्रम का समर्थन करके बाहर आ गये । श्रीमती गांधी ने रानाडे को इस सेवा के बदले ICCR के गवर्निंग बाडी मे नामिनेट किया। गांधी नेहरू का देश आज गांधी के हत्यारों के द्वारा जाति , धर्म का नंगा नाच तथा आधुनिक तकनीकी मशीनों के वोटिंग के द्वारा कब्जा कर लिया गया है , चारों तरफ अराजकता, वेरोजगारी, भूखमरी, लूट पाट का बोलबाला है, संविधान को रौंदा जा रहा है, प्रतिरोध करने वाले को जड़ से मिटा दिया जा रहा है, देश की नवरत्न कंपनियों और संस्थाओं को कौड़ियों के दाम दलालों को कमीशन लेकर बेचा जा रहा है, ये क्रांतिकारी फेसबुक पर १९७५ की इमरजेंसी की चर्चा कर आज की अघोषित इमरजेंसी जो उससे लाख गुना बदतर है , को चर्चा से जाने अनजाने मे जनता के निगाह से बाहर कर रहे हैं । अब समझ मे आया कि उस आपात काल का एक लक्ष्य था, फासिस्टों, लंपटों, से लोकतंत्र को बचाना । जे. पी. लोकतंत्र का दम भरते थे और वही लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार को अलोकतांत्रिक तरीके से उखाड़ फेंकने की बात करते थे। फौज ,पुलिस को सरकार के आर्डर को नही मानने का आह्वाहन करते थे? ८ महिने चुनाव का इंतजार नही कर सकते थे? CIA के इशारे पर जे.पी. जैसे लोग हथियार बनकर श्रीमती गांधी की चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश कर रहे थे , कारण की बंगला देश की आजादी में श्रीमती गांधी ने अमेरिका की औकात बतायी थी। उसीका बदला CIA किसी तरह श्रीमती गांधी की सरकार को उखाड़ फेकना चाहती थी । जेंपी. उसके औजार बन गये थे और श्रीमती गांधी को हटाने के लिये CIA के पेड एजेंट मोरारजी तथा अटल विहारी , और संघ जिसका गांधी हत्या मे हाथ था ,से मिल गये थे । ऐसी स्थिति मे श्रीमती गांधी के सामने दो ही विकल्प था , पहला देश को अमेरिका के यहां गिरवी रख दें या देश मे आपातकाल लगाकर ऐसे लोगों की गतिविधियों को रोक दें। दूसरा विकल्प चुना। आज जनमत संग्रह करा लिजिये , मोदी सरकार से आपातकाल लाख गुना बेहतर था कि नहीं। चीन की कभी औकात ही नहीं हुई की श्रीमती गांधी की तरह आँख उठाकर देखे । आज इंदिरा गांधी याद आ रही है , इसलिये नही कि आपातकाल लगायीं थी, इसलिये कि हमने किस भांड़ - भंड़ुओं को देश की संसद सौप दी है। दुनिया के सबसे बड़े डिमोक्रेट नेहरू की बेटी तानाशाह कैसे हो सकती है ? लेकिन परिस्थितियां ही ऐसी खड़ी कर दी गयी की आपातकाल लगाना पड़ा, हांलाकि मै कभी भी, किसी भी स्थिति में लोकतंत्र मे आपातकाल का समर्थन नही कर सकता , श्रीमती गांधी को चुनाव करा देना चाहिये था और परिणाम को स्वीकार कर लेना चाहिय था , इससे जे. पी. जो विस्तर पर पड़े हुये थे को गांधी बनकर फासिस्टों को प्रमोट करने का मौका नही मिलता. दूसरे कांग्रेस की हार भी नही होती क्यूं कि सभी टुकड़े टुकड़े गैंग वाले थे, आपातकाल ने इन सभी टुकड़ों को जो तमाम विरोधी विचारों के थे को अनैतिक गठबंधन बनाने को मजबूर कर दिया। श्रीमती गांधी पर तानाशाह होने का संदेश दुनियां मे CIA के द्वारा फैलाये जाने लगा तब नेहरू की बेटी ने परिणाम कि चिंता किये हुये बिना ही आपातकाल हटाकर चुनाव की घोषणा कर दी , ये अलग बात है कि परिणाम प्रतिकूल रहा, लेकिन उन परिस्थितियों में भी कांग्रेस १५३ सीट पायी। सबसे अजीब बात यह रहा कि जितने वामपंथी, दक्खिन पंथी, जातिवादी, समाजवादी, निर्दलीय गुंडे, लंपट सर्वहारा सब जे. पी .को आगे करके श्रीमती गांधी को हराने मे लग गये , और मजेदार बात तो यह थी कि वह जे पी जो संपूर्ण क्रांति ला रहे थे , संघ के गुलाम बन चुके थे, यहां तक कह गये कि अगर संघ फासिस्ट है तो मैं भी फासिस्ट हूँ । प्रधान मंत्री की बारी आयी तो सबसे ज्यादा समर्थन जगजीवन बाबू का था, दूसरे पर चौ. चरण सिंह थे , लेकिन संघियों ने जे. पी. के कंधे पर बंदूक रखकर जगजीवन राम और चौ. चरण सिंह को काट कर गुजराती मोरार जी , हां वही मोरार जी जो महाराष्ट्र के गृहमंत्री की हैसियत से गांधी हत्या में सबूत होने के बावजूद भी सावरकर की गिरफ्तारी पर रोक लगा कर जांच अधिकारी पुलिस अफसरका तबादला कर दिया था। सावरकर की गिरफ्तारी पर रोक लगानेका कारण बताया कि पूरे मुंबई मे आग लग जायेगी अगर गिरफ्तार किया गया तो। संघ ने मोरारजी का एहसान चुकाया और जगजीवन बाबू मतलब दलितों की औकात बताया , साथ ही साथ चौं चरण सिंह द्वारा १९६७ के संविद सरकार के समय किये गये व्यवहार का बदला लिया। मोरार जी के सरकार मे संघ ने दो प्रमुख विभाग विदेश और सूचना प्रसारण लेकर भविष्य की रणनिति तय करना शुरू किया क्यूं कि उसको पता था कि यह सरकार बहुत दिन नही चलेगी । जे.पी. गांधी बनना चाहते थे ,बन गये । पहली बार जब चंद्रशेखर ने मोरार जी को कहा कि चलकर जे. पी. से मिलकर उनको धन्यवाद कह दिजिये तब जानते है मोरार जी ने क्या कहा था ? मै नही जाऊंगा, मैं गांधी से भी कभी नही मिला , तो ये क्या हैं। जे.पी. को अपनी औकात पता चल गया और वे मोरार जी के शपथ ग्रहण में नही गये, बल्कि जिस समय मोरार जी शपथ ले रहे थे ,जे.पी. श्रीमती गांधी के घर मौजूद थे और इंदिरा को ढाढ़स दे रहे थे, कि हिम्मत नही हारना। लोहिया ने गांधी के हत्यारों को राजनिति के अछूतपन से निकालकर देश की राजनिति के मुख्य धारा मे लाकर जो अनैतिक पाप किया था, उनके साथी जे पी ने उन्ही हत्यारों को देश की संसद ही नही सरकार में हिस्सेदार बनाकर देश मे फासिज्म को महिमा मंडित किया जो आज दिल्ली की कुर्सी पर बैठकर देश के लोकतंत्र को बंधक बनाकर फासिज्म का नंगा नाच कर रहा है। आज देश उस घोषित आपातकाल से बुरे दौर में गुजर रहा है। ना देश की सीमायें सुरक्षित है, न देश की संस्थाये, न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका एवं चौथे खंभे के नाम से जाने जानेवाली मिडिया सरकार की रखैल बन चुकी है , सीमा पर जवान बिना युद्ध के काटे जा रहे हैं, और ये आदमी झूठ पर झूठ बोल रहा है कि कुछ नहीं हुआ है । जनाब लोग आपातकाल की बरसी पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। अगर कुछ आंसू बचे हों तो उन जवान विधवाओं जिनका सुहाग बिना कारण फर्जी आपरेशन सिंदूर में लुट गया, उन बहनों के लिये जिसको राखी पर भाई का इंतजार था, उन बूढ़ेमां बाप जिनकी बुढ़ापे की लाठी टूट गयी, उन बच्चों के लिये जिनके सिर पर से बाप का साया बचपन मे ही उठ गया है , के लिये भी दो बूंद आंसू बहा दो। चले हो गांधी ,नेहरू, इंदिरा की बराबरी करने । इस दोगले के नशों में गरम सिंदूर बह रहा है, जो ज़हर बनकर समाज में घुल रहा है. सावधान रहे... drbn singh.

1 टिप्पणी:

पैदल यात्री समान सड़क अधीकार मंच रांची व रामगढ का वेबिनर ने कहा…

बहुत ही महत्वपूर्ण विश्लेषण किया है। मैं इससे शत प्रतिशत सहमत हूं। यही कारण था कि जे पी ने आंदोलन के दौरान दलीय युवाओं संगठनों से निराश हो गए और छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का गठन किया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और वे अपने किए पर पश्चाताप करने लगे। उसी का नतीजा था कि वे मोरार जी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के बदले अपने इंदू से मिले और उन्हें ढाढस बंधाए। जे पी के उस कथन का कि "अगर संघ फासिस्ट है तो वे भी फासिस्ट हैं" का भरपूर इस्तेमाल किया और उसका लाभ आज तक उठा रहा है। ये गांधी के हत्यारे शायद कभी देश को सुरक्षित रख पाएं।

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