रविवार, 7 सितंबर 2025

उ प्र में 2 लाख शिक्षकों की नौकरी जा रही है

उ प्र में 2 लाख शिक्षकों की नौकरी जा रही है जब भर्ती हुए तब TET नहीं, अब पास करना अनिवार्य; 1992 में प्राइमरी स्कूल के शिक्षक अब्दुल मजीद की मौत हो गई। उनके बेटे अब्दुल राशिद को मृतक आश्रित पर नौकरी मिली। 20 साल के अब्दुल 12वीं पास थे। उस वक्त शिक्षक बनने के लिए 12वीं पास ही न्यूनतम अर्हता थी। अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है कि सभी सरकारी शिक्षकों को 2 साल में टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना होगा। अगर 2 साल में पास नहीं कर पाते, तो नौकरी से बाहर कर दिया जाएगा। 53 साल के अब्दुल राशिद ने ग्रेजुएशन भी नहीं किया है। बिना ग्रेजुएशन TET परीक्षा नहीं दी सकती। ऐसे में वह दुविधा में हैं कि क्या किया जाए? अब्दुल राशिद की ही तरह पूरे यूपी में हजारों शिक्षक हैं, जो उस वक्त भर्ती हुए जब भर्ती में न्यूनतम अर्हता 12वीं पास थी। बाद में ग्रेजुएशन हुई। विशिष्ट बीटीसी हुआ। 2011 में तय हुआ कि अब TET पास करना अनिवार्य होगा। अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि जो पहले से नौकरी कर रहे, उन्हें भी अगले दो साल में TET पास करना होगा। वरना नौकरी से बाहर जाएं। आखिर पूरा मामला क्या है? टीचर्स के सामने चुनौती क्या है? कोर्ट में मांग क्या रखी गई? आगे क्या कुछ हो सकता है? इन सारे सवालों के जवाब जानते हैं... जो टेट पास नहीं कर पाएंगे उन्हें नौकरी छोड़नी होगी सुप्रीम कोर्ट 1 सितंबर, 2025 को तमिलनाडु और महाराष्ट्र में टीचिंग के लिए TET की अनिवार्यता से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। मामले को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह सुन रहे थे। इसके बाद उन्होंने फैसला दिया- जिन टीचर्स की नौकरी को 5 साल से ज्यादा बचे हैं, उन्हें टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट क्वॉलिफाई करना जरूरी होगा। अगर ऐसा नहीं किया तो उन्हें इस्तीफा देना होगा या फिर कंपल्सरी रिटायरमेंट लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पूरे देश में करीब 10 लाख टीचर प्रभावित होंगे। अकेले यूपी में करीब 2 लाख शिक्षकों पर असर पड़ेगा। कोर्ट ने अपने इस निर्देश में कहा है कि माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशंस पर यह फैसला लागू होगा या नहीं, इसका फैसला बड़ी बेंच करेगी। अब सवाल है, यूपी में कैसे लोग प्रभावित होंगे। इसे लेकर हमने दो लोगों से बात की। मैं 12वीं पास हूं, मुझे 5 साल का वक्त चाहिए अमेठी जिले के कंपोजिट विद्यालय वारसाबाद में 53 साल के अब्दुल राशिद सहायक टीचर के पद पर तैनात हैं। राशिद अमेठी जिला शिक्षक संघ के अध्यक्ष भी हैं। वह कहते हैं- 1992 में मेरे पिता अब्दुल मजीद की 51 साल की उम्र में मौत हो गई। उस वक्त मेरी उम्र 20 साल थी और मैं 12वीं पास था। मृतक आश्रित के रूप में मुझे नौकरी मिल गई। उस वक्त 12वीं पास ही प्राइमरी टीचर की नौकरी के लिए न्यूनतम अर्हता थी। 1995 में जो भर्ती हुई, उसमें भी 12वीं पास लोगों को नौकरी मिली। इसके बाद भर्ती में ग्रेजुएशन की डिग्री मांगी जाने लगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर राशिद कहते हैं- शिक्षकों का पक्ष केंद्र के वकील ने कोर्ट में नहीं रखा। शिक्षकों की तरफ से कोई बात करने वाला ही नहीं था। कोर्ट के सामने जो कागज रखा गया, उसके हिसाब से फैसला हो गया। जबकि, यह फैसला बहुत अव्यावहारिक है। 2017 में केंद्र ने जो संशोधन किया था, वह प्रशिक्षण के लिए था। कहा गया कि जो अनट्रेंड हैं, वो 31 मार्च, 2019 तक ट्रेंड हो जाएं। इसकी कॉपी राज्य सरकारों को भी भेजी गई। लेकिन, राज्य सरकारों ने इसे हल्के में लिया और किसी एजुकेशन अथॉरिटी को दिया ही नहीं। फिर कैसे किसी को पता चलता? अब्दुल कहते हैं- TET पास करना कठिन नहीं है, लेकिन हमें ग्रेजुएशन का भी मौका दिया जाना चाहिए। क्योंकि, उस वक्त 12वीं के आधार पर ही नौकरी मिली थी। उसके बाद हम लगातार पढ़ाते रहे। टीचर जैसे-जैसे पुराना होता है, उसकी एक विषय में दक्षता बढ़ती चली जाती है। लेकिन, बाकी विषयों में वह पिछड़ जाता है। जिसने 30 साल से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी छोड़ दी हो, उसके लिए फिर से तैयारी करना और परीक्षा देना आसान नहीं होगा। भर्ती की जो अर्हता थी पूरा किया, अब जो आदेश वह सही नहीं सीतापुर में सहायक अध्यापक पद पर तैनात संदीप यादव से भी हमने कोर्ट के फैसले पर बात की। वह कहते हैं- कोर्ट के बहुत सारे जजमेंट ऐसे होते हैं, जब कहा जाता है कि खेल का नियम खेल के बीच में नहीं बदला जा सकता। लेकिन, यहां खेल खत्म होने के बाद नियम बदलने की बात हो रही है। मैं 2004 विशिष्ट बीटीसी बैच का हूं। 2007 में मैं सारी अर्हताओं को पूरा करते हुए सहायक अध्यापक बना। अब अगर 18 साल बाद किसी परीक्षा को पास करने के लिए कहा जाएगा, तो गलत होगा। क्योंकि, हम सबकी ही क्षमताओं पर असर पड़ा। सिलेबस बदल गया। ऐसी परिस्थिति में हमारे लिए मुकाबला करना आसान नहीं होगा। संदीप कहते हैं- 2017 में केंद्र सरकार ने नियम बदले, लेकिन टीचर्स को कोई नोटिस नहीं दिय गया। यह बात 2025 में जाकर खुल रही है। अगर पहले बता दिया जाता तो सभी 1-2 बार में पास हो जाते। अब 2 साल का प्रेशर बांध दिया। इस प्रेशर में टीचर जब बच्चों को पढ़ाने के लिए किताब खोलेगा, तो उसके दिमाग में खुद भी पास होने की चिंता होगी। ऐसे में वह बच्चों को ढंग से नहीं पढ़ा पाएगा। सरकार को कोर्ट में शिक्षकों का पक्ष रखना चाहिए। क्या कोई जज, अधिकारी जिस परीक्षा को पास करके चयनित हुआ है, अब वह परीक्षा देकर पास हो सकता है। शायद नहीं, इसलिए ऐसे फैसलों पर विचार करने की जरूरत है। जो फैसला आया, उसकी मांग लेकर कोई कोर्ट नहीं गया सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उसका क्या असर पड़ेगा और निदान क्या है? इसे लेकर हमने मेरठ में प्राइमरी स्कूल में तैनात सहायक अध्यापक हिमांशु राणा से बात की। हिमांशु शिक्षकों से जुड़े मामलों को लेकर हमेशा से आवाज उठाते रहे हैं। वह इस फैसले को लेकर कहते हैं- सुप्रीम कोर्ट में जो मैटर गया था, उसमें यह था कि महाराष्ट्र और तमिलनाडु में कुछ अल्पसंख्यक संस्थान थे। जहां उन्हें TET पास करने के लिए बाध्य किया जा रहा था। वहां ये मांग थी ही नहीं कि पूरे देश के शिक्षकों को TET पास करना है या नहीं। लेकिन, कोर्ट ने पूरे देश में TET को अनिवार्य कर दिया। हिमांशु बताते हैं- 2 अगस्त, 2010 को एनसीटीई की गाइडलाइन आई। इसके मुताबिक, जो लोग शिक्षक हैं या फिर कोई भर्ती प्रक्रिया चल रही है तो उसमें TET परीक्षा नहीं होगी। वह 2001 के नियमों के मुताबिक ही होगी। लेकिन, 3 अगस्त, 2017 में केंद्र सरकार ने नियम बदल दिया। सभी राज्यों को एक नोटिस भेजा, लेकिन राज्य की सरकारों ने इस नोटिस का ध्यान नहीं दिया। इस नोटिस में सभी को 2019 तक टीईटी पास करना था। राज्य सरकारों ने ध्यान नहीं दिया, इसलिए टीचर्स का भी इस पर फोकस नहीं रहा। प्रमोशन में टीईटी अनिवार्य हो, याचिका पेंडिंग हिमांशु कहते हैं- हमने लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका डाली है। इसमें बिना TET पास शिक्षकों को प्रमोशन नहीं देने की मांग की है। लेकिन, राज्य सरकार लगातार प्रमोशन कर रही है। जबकि, उन्हें केंद्र का आदेश पहले से पता था। लेकिन उस पर कोई बात नहीं की। बाद में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस पूरे मामले पर स्टे लगा दिया। इससे बचाव के लिए क्या करना होगा हमने हिमांशु से पूछा कि इस पूरे मामले में अब क्या विकल्प है? वह कहते हैं- अब तो ऑर्डर हो गया, इसलिए समाधान पर ही बात करनी होगी। कोई टीचर अगर कोर्ट जाएगा तो वह उतना प्रभावी नहीं होगा, जितना केंद्र और राज्य की सरकारें कोर्ट में टीचर के पक्ष से उनकी बात रखें। केंद्र सरकार सेक्शन 23/2 में सुधार करे। जो टीचर 2011 से पहले नियुक्त हैं, उन्हें टीईटी में छूट दिया जाए। उनकी नौकरी न ली जाए। हालांकि, अगर उन्हें प्रमोशन चाहिए तो इसके लिए TET अनिवार्य किया जाए। हिमांशु के मुताबिक, यूपी में इस फैसले से करीब 2 लाख शिक्षक प्रभावित होंगे। पूरे देश में यह संख्या 10 लाख के आसपास है। इन सबने अपनी पढ़ाई छोड़कर बच्चों को उनके सिलेबस के आधार पर पढ़ाया है। नए सिलेबस के आधार पर वह परीक्षा पास कर पाएं, यह उनके लिए आसान नहीं होगा।

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