शुक्रवार, 19 सितंबर 2025
पेरियार - सामाजिक न्याय और समानता का अधूरा सपना - डॉ. सुरेश खैरनार,
सामाजिक न्याय और समानता का अधूरा सपना
- डॉ. सुरेश खैरनार,
रामास्वामी पेरियार की 146 वी जयंती के अवसर पर विनम्र अभिवादन तमिलनाडु के ईरोड में 17 सितंबर 1879 में जन्मे वेंकट रामास्वामी नायकर के पिता वेंकटप्पा नायडू धनी व्यापारी थे. इसलिए घर पर भजन कीर्तन तथा हिंदू महाकाव्य रामायण, महाभारत और पुराणों के पाठ लगातार चलते रहते थे. इसी से तंग आकर पंद्रह साल के रामास्वामी ने घर से भागकर उत्तर की काशी मतलब बनारस की राह पकड़ी, लेकिन बनारस के धार्मिक पाखंड को देखते हुए, उनकी रही सही आस्था भी जलकर राख हो गई. इसलिए वापस ईरोड लौट आए, और ईरोड के नगराध्यक्ष बन गए.
केरल के मशहूर मंदिर वायकोम के सत्याग्रह में चक्रवर्ती राजगोपालचारी की प्रेरणा से कांग्रेस में शामिल हो गए. असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया, और जेल गए. 1922 में मद्रास प्रेसिडेंन्सी कांग्रेस के अध्यक्ष बने. और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रस्ताव रखा, जो कांग्रेस ने ठुकरा दिया. इसलिए कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया और 1925 में कांग्रेस को छोड़ते हुए, उन्हें लगा कि यह पार्टी दलितों के बारे में असंवेदनशील है. उसके लिए उन्होंने दलितों के समर्थन में 1944 में जस्टिस पार्टी की स्थापना की. लेकिन चुनाव में पार्टी की बुरी तरह से हार देखकर, उन्होंने द्रविड़ मुनेत्र कझगम पार्टी की स्थापना की. और खुद सत्ता की राजनीति से दूर रहे. और स्त्री - शुद्रों के लिए लड़ाई लड़ने लगे.
1937 में चक्रवर्ती राजगोपालचारी जब मद्रास प्रेसिडेंन्सी के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने हिंदी को अनिवार्य घोषित किया. तो पेरियार ने हिंदी विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसकी वजह से, सरकार ने उन्हें 1938 में जेल में बंद कर दिया. वेंकट रामास्वामी नायकर कैसे बने पेरियार उन्होंने प्रथम बार तमिलनाडु तमिलों के लिए घोषणा की.
1925 में सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट (Self-Respect Movement) की शुरुआत की. और 1929 में यूरोप, सोवियत रुस, और मलेशिया की यात्रा की. 1929 अपना नायकर उपनाम का त्याग कर, उसकी जगह पेरियार मतलब पवित्र आत्मा, उपनाम रख लिया. पेरियार ने 1938 में तमिलनाडु तमिलों के लिए नारा दिया.
1944 में जस्टिस पार्टी के नाम को बदल कर द्रविड़ मुनेत्र कझगम (डीएमके) किया. 1948 में अपनी उम्र के 69 वे साल में अपनी उम्र से चालीस साल छोटी लड़की, जो उनकी निजी सहायक थी, से शादी करने के उनके निर्णय को लेकर काफी विवाद हुआ. लेकिन उन्होंने उसकी परवाह नहीं की, और दूसरी शादी की, क्योंकि उनकी पहली पत्नी का निधन हो गया था.
1949 में पेरियार और अन्ना दुराई के बीच मतभेद होने की वजह से डीएमके का पहली बार विभाजन हुआ. 24 दिसंबर 1973 के दिन 94 वर्ष की उम्र में पेरियार का निधन हो गया. लेकिन तमिलनाडु में द्रविड़ संस्कृति को लेकर पहली बार किसी ने स्वाभिमान को बढ़ावा देने के लिए जबरदस्त आंदोलन किया, जिसकी वजह से आज तमिलनाडु में अलट-पलट कर डीएमके की सरकारों का ही राज जारी है. और इस राजनीति की नींव रामास्वामी पेरियार ने ही डाली थी.
और उसी द्रविड़ पहचान की बदौलत तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र और युवा मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने, सनातन धर्म के बारे में बोलते हुए, उसकी तुलना मलेरिया या डेंगू जैसी बीमारियों से की. क्योंकि तमिलनाडु में मनुस्मृति से लेकर सनातन धर्म के खिलाफ आंदोलन सौ साल से पहले ही शुरू करने वाले पायोनियर रामास्वामी पेरियार की 144 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह में उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की आलोचना की तो तुरंत ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा ने सनातन धर्म की तारीफ के पुल बांधने की मुहिम शुरू कर दी.
क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में सिर्फ और सिर्फ तथाकथित सनातन धर्म ( ब्राम्हण धर्म ) की रक्षा के लिए की गई थी, जो हजारों वर्ष पुरानी मनुस्मृति के अनुसार समाज को चलाना चाहते हैं. यहां तक कि डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने 26 नवंबर 1949 के दिन संविधान सभा में भारतीय संविधान की घोषणा करने के बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइज़र के 30 नवंबर के 1949 संपादकीय में कहा गया था कि, "यह संविधान देश - विदेश के संविधानों की नकल कर के गुधडी जैसे बनाया है. इसमें हमारे देश के कोई भी मार्गदर्शक तत्व जो भारत मनू ने स्पार्टा के लायकरगस और पर्शियन सोलोन के भी पहले से विश्व के सबसे बेहतरीन संविधान मनुस्मृति के रहते हुए, इस की कोई जरूरत नहीं थी. मनुस्मृति में हमारे देश की संस्कृति तथा अध्यात्मिक नियम और कानून, जिसका पालन हजारों सालों से हमारे देश में हो रहा है. और मनुस्मृति ही हमारा हिंदू कानून है."
जिस मनुस्मृति में स्त्री और शुद्र जातियों का जन्म ब्रह्मा के पैर के अंगूठे से हुआ है, ऐसा लिखा हुआ है. और उन्हें वेदों का अध्ययन करने की मनाही से लेकर, अगर कहीं से वेदमंत्र सुन लिया तो, कानों में शीशे का उबला हुआ रस डाला जाता था. और शुद्र जातियों का एकमात्र काम है, ऊंची जातियों की सेवा करना.
चुनाव को देखते हुए गोपनीयता रखते हुए अचानक महिलाओं के विधानसभा और लोकसभा में 33% आरक्षण का बीस साल बाद का गाजर दिखाने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक ईकाई भाजपा उसी मनुस्मृति के अनुसार, जिसका संघ ने हमारे संविधान के घोषणा के बाद, भारत का आदर्श संविधान मनुस्मृति की वकालत की है. और उस मनुस्मृति में महिलाओं के लिए कौन से नियम हैं ? स्त्रियों को बचपन में पिता की छत्रछाया में रहना है, जवानी में अपने पति, और बुढ़ापे में अपने बेटे के कृपा पर रहना चाहिए. वह अकेली नहीं रह सकती, क्योंकि वह कमजोर है. और उसे हमेशा ही पुरुषों की कृपा से रहना चाहिए. और अभी लोकसभा में तथाकथित महिलाओं के आरक्षण का विधेयक भी, उन्हीं पुरुषों की शुद्र राजनीतिक चालबाजी का तमाशा है. क्योंकि यह विधेयक प्रत्यक्ष रूप से अमल में आने के लिए, और भी बीस साल लगने वाले हैं, क्योंकि गृहमंत्री लोकसभा में साफ-साफ बोले हैं कि "जब तक जनगणना नहीं होती, और उसके बाद मतदारसंघों का परिसीमन नहीं होता, तब तक इस पूरी प्रक्रिया को आज से कम-से-कम पंद्रह से बीस साल लगने वाले हैं.
इसका मतलब डॉ. राम मनोहर लोहिया की भाषा में "भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई हिंदू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई पिछले पांच हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है. और उसका अंत अभी भी दिखाई नहीं पड़ता, इस बात की कभी कोशिश नहीं की गई, जो होनी चाहिए थी. इस लड़ाई के मद्देनजर हिंदुस्तान के इतिहास को देखा जाए, लेकिन देश में जो कुछ होता है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा इसी कारण होता है." कभी कट्टरपंथी हावी हो जाते हैं. तो कभी उदारपंथी.
फिलहाल 1985 से बाबरी मस्जिद की आड़ में कट्टरपंथियों ने अपनी रथयात्राओं के द्वारा तथा दुनिया भर की शिलापूजा, शिलान्यास और अन्य धार्मिक अंधभक्ति के अभियानों के माध्यम से, देश में धार्मिक ध्रुवीकरण करने में कामयाबी हासिल की है. और उसकी बदौलत नरेंद्र मोदी भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार 2014 में. और उसके पहले नई शताब्दी की शुरुआत में जोड़-तोड़ करके तथाकथित एनडीए नाम का 26 विभिन्न दलों की मदद से सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे. और 2014 से नरेंद्र मोदी को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाबी मिली. और दोबारा 2019 में और भी अधिक सीटें लेकर गणेश चतुर्थी तिथि के दिन, जो भारत के संविधान के विपरीत है, नई संसद के प्रवेश करने का कार्यक्रम 100 सौ ब्राम्हणों को दक्षिण भारत से लाकर सेंगोल की प्रतिस्थापना, जिसका तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री अन्ना दुराई ने जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर सोंगल के बारे में सामंतवाद के प्रतीक बोलते हुए विरोध किया था. और दक्षिण भारत में अपना चुनाव प्रचार के लिए उपराष्ट्रपति से लेकर नई संसद के उद्घाटन समारोह के लिए दक्षिण भारत से ब्राम्हणों को लाने के पीछे भी संघ और भाजपा को दक्षिण भारत में राजनीतिक लाभ के मोह माया की वजह है. हालांकि संघ भाजपा का धर्म सिर्फ राजनीतिक ध्रुवीकरण का हथकंडे के अलावा कुछ नहीं है.
सनातन धर्म पिछड़ी जातियों के साथ हजारों वर्ष से कैसा व्यवहार करते आ रहा है ? पंद्रह साल के रामास्वामी ने अपने काशी के अनुभवों के बाद सनातन धर्म के खिलाफ एल्गार शुरू करते हुए एतिहासिक कार्य किया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी राजनीतिक ईकाई भाजपा उसी सनातन धर्म में सती की प्रथा से लेकर छूआछूत तथा स्त्री - शुद्रों के साथ हजारों वर्ष से कैसा व्यवहार होता आया है ? उसके समर्थन करने वाले प्रतिनिधि हैं. जिसके खिलाफ महात्मा ज्योतिबा फुले, राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, रामास्वामी पेरियार, डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने अथक प्रयास किए थे. इसी सनातन धर्म की ऊँच नीच की प्रथा की वजह से आज स्त्री - शुद्रों की आर्थिक सामाजिक पिछड़ेपन की स्थिति बनाने के लिए जिम्मेदार है. उस सनातन धर्म की रक्षा के लिए बढ़ चढ़कर आगे आए हैं.
दो सौ साल पहले महिलाओं को पति के मर जाने के बाद उसकी चिता पर जबरदस्ती जलाने वाले सनातन धर्म का बचाव करते हुए शर्म आनी चाहिए. वैसे ही उसी सनातन धर्म के अनुसार शुद्रों को मंदिर प्रवेश की बंदी से लेकर, उसके गले में मटका और कमर पर झाडू बांधकर चलने वाली परंपरा कौन सा मानव धर्म में आती है ? पेरियार रामास्वामी नायकर जिन्होंने आज से सौ साल पहले सनातन धर्म की मानवताविरोधी - स्त्रियों के विरोधी कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. उदयनिधि सिर्फ उसको याद दिलाने की बात कर रहे हैं. और चांद और सूरज पर अपने यानों को भेजने वाले लोगों को अपने धर्म की कुरीतियों का खुलकर समर्थन करते हुए देखकर हैरानी होती है. और आज से दो सौ साल पहले महात्मा ज्योतिबा फुले, राजाराम मोहन राय, पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर, केशवचंद्र सेन, देवेंद्रनाथ ठाकुर, रामास्वामी पेरियार तथा डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने भी इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए उसके खिलाफ अपनी जिंदगी भर प्रचार - प्रसार किया है. और भारत विश्व गुरु बनाने के लिए निकले लोग एक ही समय में चांद - सूरज पर संशोधन करने के लिए यान भेज रहे हैं. और दूसरी तरफ सनातन धर्म जैसे विषमताओं का समर्थन करने वाले पुराने धर्म की रक्षा करने की बात कर रहे हैं. इससे बडा पाखंड कोई और हो नहीं सकता.
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