मंगलवार, 23 सितंबर 2025

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी महासचिव डी. राजा ने वाम दलों की व्यापक एकता का आह्वान...

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी महासचिव डी. राजा ने वाम दलों की व्यापक एकता का आह्वान... चंडीगढ़।भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा ने सोमवार को वाम दलों की व्यापक एकता पर जोर दिया और इसे ‘‘ऐतिहासिक आवश्यकता’’ बताया। उन्होंने कहा कि केवल यही एकता समानता, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद पर आधारित एक विकल्प प्रदान कर सकती है। राजा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ गठबंधन (राजग) की ‘‘लापरवाह नीतियों’’ ने बेरोजगारी सहित ‘‘बहुआयामी संकट’’ उत्पन्न किया है। उन्होंने कहा कि भाजपा को सत्ता से हटाया जाना चाहिए। राजा यहां भाकपा की 25वीं कांग्रेस के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव एम ए बेबी, भाकपा (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के मनोज भट्टाचार्य भी कार्यक्रम में उपस्थित थे। स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के करीबी रिश्तेदार प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने उद्घाटन सत्र से पहले राष्ट्रीय ध्वज फहराया। भाकपा नेता राजा ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि देश एक नाजुक दौर से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 एक महत्वपूर्ण क्षण था और भाजपा का पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आना केवल सरकार परिवर्तन नहीं, बल्कि ‘‘हमारी राजनीति की प्रकृति में गुणात्मक परिवर्तन’’ था। राजा ने आरोप लगाया, “ऐसा संगठन जिसने हमारे स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा नहीं लिया, भारत के संविधान का विरोध किया और हमेशा धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के प्रति तिरस्कार का भाव रखने वाले राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) ने अपनी राजनीतिक शाखा भाजपा के माध्यम से केंद्र सरकार पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया।” उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘तब से, हम भारतीय गणराज्य की नींव पर एक व्यवस्थित हमला देख रहे हैं।” भाकपा महासचिव ने दावा किया कि मुट्ठी भर कॉर्पोरेट घरानों को संसाधनों और बुनियादी ढांचे पर पूर्ण नियंत्रण दिया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया, “सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण, श्रम अधिकारों का हनन, कल्याणकारी कार्यक्रमों की समाप्ति, यह सब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, असहमति की आवाज दबाने और अधिनायकवादी शासन के साथ-साथ हो रहा है।” उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘यह फासीवाद का मॉडल है: अधिनायकवादी राजनीति और एकाधिकार वाला पूंजीवाद। अगर इसे जारी रहने दिया गया तो यह न केवल लोकतंत्र को तहस-नहस कर देगा, बल्कि भारत के एक बहुलवादी, समावेशी गणराज्य की अवधारणा को भी नष्ट कर देगा।’’

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