बुधवार, 10 सितंबर 2025
देश में विदेशी ताकतों की मदद से अराजकता फैलाने की कोशिश की जा चुकी है
भारत तो नेपाल-बंगलादेश जैसी अराजकता को पहले ही भुगत चुका है । जब विदेशी ताकतों की साजिश में हमारी सरकार को अस्थिर किया गया था । सन 2012-13 को याद करिए ।।इंडिया अगेंस्ट करप्शन का बैनर और चीखती चिल्लाती भीड़ सरकार को पैदल करने पर आमादा थी । जिस तरह नेपाल बंगाल की भीड़ के पास कोई विचार नही था,उसी तरह इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नीचे बैठे लोग विचार शून्य थे । उस वक़्त भी भयँकर हिंसा और अराजकता फैलती अगर सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह का नेतृत्व न होता ।
जनरल वीके सिंह के नेतृत्व में सरकार के खिलाफ सेना।की टुकड़ी की मोर्चेबन्दी हो रही थी । सभी बड़े लीडर निशाने पर थे । साजिश तो यहां तक थी कि जो युवाओं की भीड़ आई है । इसपर गोली चला दी जाए,ताकि सरकार के खिलाफ आक्रोश बढ़े । याद कीजिये जब रामदेव ने शलवार जम्पर पहनकर भागने की नौटंकी की थी । वह चाहता था कि गोली चले, युवा मरें और सत्ता रक्तरंजित हो मगर दूरंदेश सोनिया जी ने इसपर पानी फेर दिया ।
मनमोहन जी के घर जाकर,सोनिया जी ने स्पष्ट सन्देश दिया कि सरकार भले चल जाए,गोली नही चलनी चाहिए ।।यह युवा हमारे हैं, इन्हें नही पता कि यह क्या कर रहे हैं । इनका इस्तेमाल हो रहा है । यह इस्तेमाल आगे शोषण में बदल जाएगा मगर फिर भी,इनपर गोली नही चलनी चाहिए ।
यही वह मौका था जब विदेशी ताकतों की कठपुतलियाँ दिल्ली में नँगा नाच कर रही थीं । लोग अक्सर कहते हैं कि रामदेव वगैरह को एयरपोर्ट लेने के लिए चार चार कैबिनेट मंत्री क्यों गए, अन्ना से संवाद को इतना महत्वपूर्ण क्यों माना,वजह यही थी ।।सरकार युवाओं को अराजकता छोड़कर यह बताना चाहती थी कि वह संवाद में यक़ीन करती है । इसीलिए रामदेव जैसों से भी बात को राज़ी है । सरकार ने उस वक़्त भयँकर हिंसक अराजकता से देश को बचाया था,जो बंगलादेश और नेपाल की सरकारें नही कर सकीं ।
म्यांमार,पाकिस्तान,लंका,बंगलादेश और जो नेपाल में हुआ । वह भारत में सन 2012-13 में ही चुका था । जनता के लिए काम करने वाली लोकतांत्रिक मूल्यों की सरकार को बदनाम किया गया । मनमोहन सिंह की आर्थिक प्रगति को उस वक़्त जक रोका गया,आजतक आर्थिक मामला स्थिर नही हो सका । उस दिन से आजतक रोज़ रुपये की कीमत गिरती है, डॉलर बढ़ता है ।
देश को इस समय गम्भीर होकर सोचना होगा । सोनिया जी और मनमोहन सिंह का कृतज्ञ होना होगा कि उन्होंने सरकार तो गवा दी मगर देश की जनता को हिंसा और अराजक नही होने दिया । सभी पड़ोसी मुल्कों में अमरीकी एजेंट सत्ता में बैठ गए । यह अमरीका की आंख का तारा बने और अपनी ही चौखट को खोखला करने लगे ।
ऐसी हर अराजकता के बाद अमरीकी पपेट ही बैठे हैं । जो कभी उनके राष्ट्रपति के गले मिलते हैं, कभी उनसे कुछ मांगते हैं । उनके ही हितों के फैसले लेते हैं ।
भारत इस अराजकता की भेंट चढ़ा एक पीड़ित है । उस समय सोनिया जी ने संवाद का रास्ता न खोला होता, तो जनरल वीके सिंह और बेदी जैसे लोग शासन प्रशासन को अराजक कर देते । कॉंग्रेस को इस अराजकता से निपटने का पुराना अनुभव है । जब शासन के पहिये रोक दिए जाएं,तब बिना हिंसा के उसे कैसे पटरी पर लाएं, यह हमारी घुट्टी में है ।
कुछ लोगों को लग रहा कि जो पड़ोस में आजकल घट रहा है । वह हमारे यहां भी होगा,तो भाई खुमार से बाहर निकलो ।।यह पहले हमारे यहां घट चुका है, जो अब इधर हो रहा है । हमारे यहाँ अराजकता के लाभार्थी ही सत्ता में हैं ।।यही कारण है कि वह जनहित या देशहित के नही बल्कि एक व्यापारी और एक अमरीकी हित के ही उपासक हैं ।
उस समय यूपीए सरकार अगर सतर्कता न बरतती,तो यह लोग साजिश में गोलियां चलवाते मगर गांधी नेहरू की बुनियाद वाली पार्टी ने इस षड्यंत्र को समझ लिया । विदेशी साजिश को भांप लिया । उसके प्यादों को भी पहचान लिया । भोली जनता की भलाई के लिए,कोई ऐसा कदम नही उठाया,जिससे मासूम नौजवानों के खून बहे । सत्ता के किये लाश बिछाना स्वीकार नही किया । षड्यन्त का शिकार तो हुए मगर अराजक नही हुए । आज उसी षड्यंत्रों के लाभार्थी सत्ता में हैं । वीके सिंह मंत्री बना, बेदी गवर्नर,रामदेव अरबपति और बाकी लाभार्थी अलग अलग सत्ता में बैठे ।
यह इसलिए याद दिला रहे हैं क्योंकि अराजकता की सत्ता पाए लाभार्थी यह आरोप लगा रहे हैं कि सतर्क रहो, पड़ोस जैसा यहां भी हो सकता है । अरे भाई यहां तो यह पहले ही हो चुका है । राहुल और कॉंग्रेस तो इसकी पीड़ित है ।
याद कीजिये, यह लोग नारे लगाते थे कि राहुल और सोनिया जी विदेश भाग जाएंगे । यह भूल गए थे कि हम गांधी नेहरू के वारिस हैं । आज देश के सामने सच खुल चुका है । वह जान गई है कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन वास्तव में सत्ता परिवर्तन था । भारत में रिजीम चेंज करने का षड्यंत्र । कॉंग्रेस ने देश के लिए सत्ता तो गवा दी मगर अपने हाथों में युवाओं का खून नही लगने दिया । यह बात अब सारे देश की जनता महसूस कर रही है ।
राहुल जी को बदनाम किया, मनमोहन जी को अस्थिर किया,शीला जी के घर पर हमले किये, क्या नही किया,जो आज पड़ोस में हो रहा है मगर वह लोकतांत्रिक मूल्यों की दूरंदेशी नेतृत्व था । जिसने अराजकता को इतने मौके नही दिए,की भारत का सिस्टम ही ध्वस्त ही जाए । जब केंद्रीय मंत्री बातचीत करते थे,वह भी उन षड्यंत्रकारियों से,तो वह एक रास्ता था कि लोकतंत्र बना रहे । मनमोहन जी ने सत्ता गवा दी मगर लोकतंत्र अक्षुण्य रखा,जो हमारा कोई भी पड़ोसी देश नही कर सका ।
यही वजह है कि सोनिया जी,मनमोहन जी का सम्मान वापस हुआ । कॉंग्रेस पर भरोसा लौटा और राहुल जी से उम्मीद बंधी । सच उजागर हुआ,षड्यंत्रकारी पहचाने जा रहे हैं । वोट चोरी पकड़ी जा रही है । लोकतंत्र और सँविधान का राज वापस लाने की कवायद जारी है ।
#nepal #genz
-सुरेन्द्र एस राजपूत
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