मंगलवार, 2 दिसंबर 2025
एक दरख्त लगाओ - श्री सन्तोष कुमार झा,
एक दरख्त लगाओ
- श्री सन्तोष कुमार झा,
मोबाइल नं.9004447000
एक दरख्त लगाओ
कि तमाम परिन्दों का घर होगा
कड़ी धूप में राहगीरों का बसर होगा।
एक दरख्त लगाओ
कि बारिश आएगी
तपती जमीन को राहत, आबादी लहलहाएगी।
एक दरख्त लगाओ
कि फूल खिलेंगे, फल भी आएंगे
बच्चे खेलेंगे, गुलशन भी महक जाएंगे।
एक दरख्त लगाओ
कि थके मांदों को छांव मिल जाए
बस्तियां बसें, शहरों को गांव मिल जाए।
एक दरख्त लगाओ
कि धुएं को कौन पिएगा
नीलकण्ठ बन तुम्हारे लिए कौन जिएगा।
एक दरख्त लगाओ
कि मोहब्बत गुनगुनाएगी
मोर नाचेंगे भंवरे गाएंगे, राधा मुस्कुराएगी।
एक दरख्त लगाओ
कि कोयल कूकेगी, पपीहे गीत गाएंगे।
गोपियां नाचेंगी, कान्हा बांसुरी बजाएंगे।
एक दरख्त लगाओ
कि कुदरत का कहर न हो
सूखा पड़े न बाढ़ आए, आंधियों का डर न हो।
एक दरख्त लगाओ
कि देर न हो जाए
आग की बारिश हो हिमालय ही पिघल जाए।
एक दरख्त लगाओ
कि धरती पे हरा रंग रहे
पशु-पक्षी, पहाड़, नदियां आदमी के संग रहे।
एक दरख्त कटा तो मानो
एक बच्चा मर गया
एक दरख्त जिया तो समझो
कई पीढियां जी गईं।
एक दरख्त हर कोई लगाएगा
अपने हाथों से कई पीढ़ियां बचाएगा।
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