बुधवार, 24 दिसंबर 2025

मौलाना मदनी ने दिल्ली में जावेद अख्तर से बहस कर नास्तिकों को अपनी बात कहने का अधिकार प्रदान किया है।

मौलाना मदनी ने दिल्ली में जावेद अख्तर से बहस कर नास्तिकों को अपनी बात कहने का अधिकार प्रदान किया है। पूर्व में पुरानी बात है - वृंदावन में नास्तिकों का सम्मेलन कराया था कि रद्द इस सम्मेलन का आयोजन स्वामी बालेंदु ने किया था. इसकी सूचना फ़ेसबुक के जरिए दी गई थी और आयोजकों के दावे के मुताबिक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए देश के 18 राज्यों से पांच सौ से ज्यादा लोग जुटे थे. स्वामी बालेंदु ने कहते हैं कि वो सम्मेलन रद्द होने से निराश जरूर हैं लेकिन इसे अपनी कामयाबी के तौर पर देखते हैं. उन्होंने फोन पर बीबीसी से कहा, "पांच सौ लोगों के जुटने से धर्म की चूलें हिल गईं. इससे मालूम होता है कि धर्म कितना कमजोर है." वहीं, सम्मेलन का विरोध करने वालों में शामिल विश्व हिंदू परिषद की वृंदावन नगर इकाई के पूर्व अध्यक्ष और धर्म रक्षा संघ के प्रमुख सौरभ गौड़ कहते हैं कि वृंदावन में ऐसा कोई कार्यक्रम होने नहीं दिया जा सकता है. उन्होंने कहा, "वृंदावन धार्मिक नगरी है. भगवान कृष्ण की लीला भूमि है. करोड़ों लोगों के लिए आस्था का केंद्र है. अगर ये सम्मेलन में करना था तो कहीं और करते. अच्छा हुआ कार्यक्रम रद्द हो गया नहीं तो आज बड़ा कांड हो जाता." गौड़ कहते हैं कि सम्मेलन के आयोजकों ने भी पूरे जीवन धर्म का नाम लेकर कमाया है. अब पता नहीं कैसे नास्तिक हो गए. वहीं स्वामी बालेंदु भी मानते हैं कि किसी वक़्त वो भी आस्तिक थे और प्रवचन करते थे लेकिन बाद में वो नास्तिक हो गए. वो कहते हैं, "मेरी धर्म और ईश्वर से कोई सीधी लड़ाई नहीं है. मेरी लड़ाई गरीबी और शोषण से है. धर्म के नाम पर गरीबों का शोषण किया जा रहा है." स्वामी बालेंदु का दावा है कि वो अपनी मुहिम जारी रखेंगे. वहीं धार्मिक संगठनों का दावा है कि वो वृ़ंदावन में ऐसा कोई आयोजन नहीं होने देंगे. स्वामी बालेंदु का दावा है कि सम्मेलन का विरोध करने वालों ने उनके वृदांवन आश्रम पर पथराव किया और सम्मेलन में हिस्सा लेने आए लोगों को मारा पीटा. वो कहते हैं, "नास्तिक होना कोई गुनाह नहीं है. भारत का संविधान मुझे उतने ही अधिकार देता है, जितने एक आस्तिक को देता है. हम उनके प्रवचन और यज्ञ को नहीं रोकते तो उन्हें हमारे नास्तिक होने से क्या समस्या है?" इस पर गौड़ कहते हैं कि धर्म के बिना कोई समाज अनुशासित नहीं रह सकता. वो कहते हैं, "बिना धर्म के व्यक्ति अनुशासन में नहीं रह सकता. हिंदू, मुस्लिम, ईसाई या पारसी कोई भी कोई धर्म हो वो आध्यात्मिक शांति देता है और पूरे जीवन को अनुशासित रखने में अहम भूमिका निभाता है. अगर धर्म नहीं होता तो समाज में बुरी स्थिति उत्पन्न हो जाती." वहीं, स्वामी बालेंदु का कहना है कि वो मानते हैं कि समाज में ईश्वर और धर्म अंधविश्वास फैलाने का कारण हैं. लोग इनसे दूर होंगे तो बेहतर समाज बनाया जा सकता है. बालेंदु कहते हैं कि वो अपनी मुहिम आगे भी जारी रखेंगे.

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