बुधवार, 31 दिसंबर 2025
संघी घृणा अभियान का हिस्सा है एंजेल की हत्या
संघी घृणा अभियान का हिस्सा है एंजेल की हत्या
देहरादून में एंजेल चकमा हत्याकांड।
एंजेल चकमा हत्याकांड उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में हुई एक जातीय हिंसा की हृदय विदारक घटना है, जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी है। यह मामला नस्लीय हिंसा, पूर्वोत्तर भारत के छात्रों की सुरक्षा और पुलिस जांच की अपारदर्शिता और निकम्मे पन से जुड़ा है।
यह अपराध 9 दिसंबर 2025 की शाम, देहरादून के सेलाकुई इलाके में (प्रेमनगर थाना क्षेत्र) का है।
पीड़ित एंजेल चकमा (उम्र 24 साल), त्रिपुरा के उन्नकोटी जिले के नंदननगर निवासी थे। वे देहरादून के एक निजी विश्वविद्यालय ,जिज्ञासा यूनिवर्सिटी, उत्तरांचल यूनिवर्सिटी के पास स्थित, में एमबीए फाइनल ईयर के छात्र थे। उनके पिता तरुण प्रसाद चकमा बीएसएफ में कार्यरत हैं।
एंजेल अपने छोटे भाई माइकल चकमा के साथ बाजार में घरेलू सामान खरीदने गए थे। वहां एक शराब की दुकान या कैंटीन के पास कुछ युवकों का समूह मौजूद था, जो नशे में थे।
परिवार और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आरोपियों ने भाइयों को "चाइनीज", "चिंकी", "मोमोज" जैसे नस्लीय अपशब्द कहे और अभद्रता की। विरोध करने पर विवाद बढ़ा और आरोपियों ने चाकू, लोहे की रॉड और कड़े (ब्रेसलेट) से हमला किया।
एंजेल को सिर, गर्दन, पेट और रीढ़ पर गंभीर चोटें आईं। वे बार-बार चिल्लाते रहे, "मैं इंडियन हूं, चाइनीज नहीं"।
एंजेल को ग्राफिक एरा अस्पताल में भर्ती किया गया। 17 दिनों तक आईसीयू में जिंदगी-मौत से जूझने के बाद 26 दिसंबर 2025 को उनकी मौत हो गई। मौत के बाद मामला हत्या का बन गया।पूरे देश में शोर मच गया।
बताया जाता है कुल 6 आरोपी हैं। इनमें अविनाश नेगी (25), सूरज खवास (21, मणिपुर मूल का), सुमित कुमार (25), शौर्य (18), आयुष बदोनी (18) और मुख्य आरोपी यज्ञराज अवस्थी (नेपाल मूल का) शामिल हैं।
आम जनता में गुस्सा पनपने पर तथा देशव्यापी प्रोटेस्ट के कारण 5 आरोपी गिरफ्तार हुए जिनमें दो नाबालिग सुधार गृह में भेजे गए।
मुख्य आरोपी यज्ञराज अवस्थी फरार है । पुलिस का मानना है कि वह नेपाल भाग गया।
देहरादून एसएसपी अजय सिंह के अनुसार, यह नस्लीय हमला नहीं था। परंतु यह कथन परिस्थितियों की जानकारी से लोगों के गले के नीचे उतर नहीं रहा है।
देहरादून पुलिस की संवेदनहीनता का यह हाल है कि एफआईआर शुरुआत में मारपीट की धाराओं में दर्ज की गई, मौत के बाद हत्या (बीएनएस 103) जोड़ी गई। परिवार का आरोप है कि पुलिस ने शुरुआत में एफआईआर दर्ज करने में देरी की।
परिवार, पूर्वोत्तर छात्र संगठन (जैसे ऑल इंडिया चकमा स्टूडेंट्स यूनियन, एनईएसओ), राजनीतिक नेताओं ने और मीडिया ने इसे नस्लीय हिंसा प्रेरित हेट क्राइम बताया। अधिकतर लोगों का यह मानना है कि राष्ट्रवाद के नाम पर भारतीय जनता पार्टी सरकार एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विस्तारित परिवार के नेताओं एवं पदाधिकारियो के द्वारा समाज में नफरत फैलाने वाली नीतियों का नतीजा है। कभी मुसलमान को टारगेट किया जाता है, कभी ईसाइयों को तो कभी बरेली में बर्थडे पार्टी में लोग घुस जाते हैं या कहीं तलवार बांटी जा रही है।
यह मामला पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ भेदभाव की बड़ी समस्या को भी उजागर करता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रधान श्री मोहन भागवत प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की बातों का अनुसरण करते हुए देश को विश्व गुरु स्थापित करना चाहते हैं।
लेकिन जब देशवासियों पर उन्हीं की विचारधारा से प्रभावित लोग हिंसा पर उतारू है तो ना तो श्री मोहन भागवत उसकी निंदा करते हैं और ना ही देश के प्रधानमंत्री महोदय।
अंध भक्तों को छोड़कर 240 करोड़ आंखें राज्य सत्ता की पार्टी,उनके नेताओं और उनके वरदहस्त प्राप्त दस्तों को अच्छी तरह से देख रही हैं।
देश का कानून और जनता न्याय अवश्य करेगी।
इस नस्लीय हिंसा की जितनी भी निंदा की जाए वह कम है।
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