शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009
ग़ज़ल
बाजार के लिए न खरीदार के लिए ।
मेरा वजूद सिर्फ़ है ईसार के लिए ।
अब कुछ तो काम आए तेरे प्यार के लिए ।
वरना ये जिंदगानी है बेकार के लिए।
माथे पे जो शिकन है मेरे दिल की बात पर
काफी है ये इशारा समझदार के लिए ।
मिलने का उनका वादा जो अगले जनम का है
ये भी बहुत है हसरते दीदार के लिए ।
रातों के हक में आए उजालो के फैसले
सूरज तड़पता रह गया मिनसार के लिए ।
इल्मो अदब तो देन है भगवान की मगर
लाजिम है हुस्ने फिक्र भी फनकार के लिए।
दस्ते तलब बढ़ाना तो कैसा हुजूरे दोस्त
लव ही न हिल सके मेरे इजहार के लिए
कुछ बात हो तो उसका तदासक करें कोई
जिद पर अडे हुए है वो बेकार के लिए।
दुनिया के साथ साथ मिले स्वर्ग में सुकूँ
क्या क्या नही है हक के तलबगार के लिए।
राही जो ख़ुद पे नाज करे भी तो क्या करे
'राही' तो मुश्ते ख़ाक है संसार के लिए ।
------------------डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '
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3 टिप्पणियां:
यशवीर जी,बहुत बढिया गज़ल लिखी है।बधाई
waah behtarin
चलिए एक तुकबंदी इसी तर्ज पर मैं भी कर दूँ-
है सामने एलेक्शन सब कहते हम हैं अच्छे।
जूते निकल रहे हैं सरकार के लिए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
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