चाँद की चांदनी कब अकेले मिली।
स्याह रातों के फन सी वो फैली मिली॥
फूल रंगीन ही दे दिया खून तक-
फ़िर भी मुस्कान झूठी विषैली मिली॥
यम की आँखों से आंसू निकलने लगे -
आदमी बाँटता मौत कैसी मिली॥
लाश का हर कफ़न साफ़ सुथरा मिला-
जिंदगी बद से बदतर औ मैली मिली॥
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डॉक्टर यशवीर सिंह चन्देल 'राही'
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