मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

चाँद की चांदनी कब अकेले मिली।



चाँद की चांदनी कब अकेले मिली।
स्याह रातों के फन सी वो फैली मिली॥

फूल रंगीन ही दे दिया खून तक-
फ़िर भी मुस्कान झूठी विषैली मिली॥

यम की आँखों से आंसू निकलने लगे -
आदमी बाँटता मौत कैसी मिली॥

लाश का हर कफ़न साफ़ सुथरा मिला-
जिंदगी बद से बदतर औ मैली मिली॥

------------- डॉक्टर यशवीर सिंह चन्देल 'राही'

कोई टिप्पणी नहीं:

Share |