खुदगर्ज जिंदगी का यूँ विस्तार हो गया ।
हर आदमी दौलत का परस्तार हो गया ॥
दिल दे के दिल की आस में दीवाना हो गया -
अब आदमी का प्यार भी व्यापार हो गया ॥
कुछ तो बुझा दिए थे जलाने के वास्ते
कुछ का जलन ही बाँटना किरदार हो गया॥
यूँ दर्द जिंदगी में बेहिसाब बेगुनाह मिल गया
कुदरत का फैसला भी गुनाहगार हो गया ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
2 टिप्पणियां:
बहुत बढिया लिखा है ...
यूँ दर्द जिंदगी में बेहिसाब बेगुनाह मिल गया
कुदरत का फैसला भी गुनाहगार हो गया ॥
क्या बात है, बहुत ख़ूब लिखा आपने।
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