आदमी तोलों में बंटता जा रहा है ।
सांस का व्यापार घटता जा रहा है ।
जिंदगी हर मोड़ पर सस्ती बिकी-
पर कफ़न का भावः बढ़ता जा रहा है॥
कल्पना मात्र से काम बनते नहीं
साधना भावः से साधू बनते नहीं।
त्याग ,त़प , धैर्य मनुजत्व भी चाहिए -
मात्र वनवास से राम बनते नहीं॥
मानव मन सौ दुखो का डेरा है।
रौशनी खोजने से क्या होगा
जबकी हर मन में ही अँधेरा है॥
राखियो के तार तोडे, मांग सूनी कर गए ।
देश की असमत बचाते,कोख सूनी कर गए ।
बलिदानियों के रक्त को सौ-सौ नमन
वे हमारे राष्ट्रध्वज की शान दूनी कर गए ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
2 टिप्पणियां:
सुमन जी,सभी मुक्तक बहुत सुन्दर हैं।बधाई स्वीकारें।
कल्पना मात्र से काम बनते नहीं
साधना भावः से साधू बनते नहीं।
त्याग ,त़प , धैर्य मनुजत्व भी चाहिए -
मात्र वनवास से राम बनते नहीं॥
आदमी तोलों में बंटता जा रहा है ।
सांस का व्यापार घटता जा रहा है ।
सुन्दर कविता
वीनस केसरी
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